शब्द जो चोटिल करदे

बस ऐसे ही बड़े अच्छे मूड में बैठा हुआ था मैं अपनी दुकान पर मेरी किताबो की दुकान है जिस पर पर बहुत सारे छोटे बच्चे आते है ओर बहुत लडकिया व लड़के जो आते है दुकान है।

उस दिन शाम को एक लड़की आई अपनी मम्मी के साथ  जो लगातार आती रहती है मेरी दुकान पर उस दिन उसने मुझसे एक किताब के बारे में पूछा की भैया वो हिंदी की  आरोह , वितान 11वी क्लास की  किताब आयी है क्या?

मेने जरा रुक कहाँ क्योंकि वह किताबे पहले भी 2 बार वो पूछ चुके थे ओर मेरे पास नही थी तब भी ओर आज फिर मेने कहाँ “नही यार” 

जैसे ही मेने उसे नही यार कहाँ उसने फटाक से उत्तर दिया भैया ‘यार’ मत बोला करो बहन बोल लिया करो।
(उस समय उसकी मम्मी भी साथ में थी तो यह एक सोचने वाली बात है की उस छोटी लड़की ने यह बात बोली होगी तो मुझे कितना अजीब लगा होगा )

मुझे एकदम से इतना अजीब लगा की मैं बिल्कुल चुप हो गया ओर अब जैसे मेरे पास कुछ शब्द ना थे मेने अपनी गर्दन हिलाकर उसे आरम से कह दिया ठीक है।

बात अगर देखी जाए तो बात तो कुछ भी नही है क्योंकि आजकल हम सभी या ज्यादातर लोग पापा यार, भाई यार , बहन यार , मम्मी यार , कहकर ही बोलते है वैसे भी यह आदत मुझे धीरे धीरे यही से लगी है क्योंकि ज्यादातर बच्चे मुझे भैया यार कहकर ही बोलते है

लेकिन उस दिन मुझे अपने आप से घृणा आ रही थी क्योंकि मेरे मन में उसके लिए कोई ऐसा भाव नही था कोई ग़लत ओर असभ्य भाषा का प्रयोग नहीं करता  जिससे उसको आहत हो या मैं किसी को उन नजरो से नही देखता , या अपशब्द बोलता परंतु उस छोटी लड़की के कहे वो दो शब्द मुझे बहुत चुभ गए जिसका दर्द नही जा रहा है अब मैं पिछले 3 दिनों से किसी बात कर रहा हु तो ऐसे लग रहा है की कोई फिर से मुझे ऐसा कोई  न कहदे , कोई मेरे बारे में गलत ना सोचले क्योंकि वो शब्द मेरे कानो में  बार बार गूंज रहे है।

मुझे डर लगता है ऐसे विचारों से जो मेरे बारे में गलत अवधारणा रख ले बिना मुझे जाने पहचाने।
यह भी ठीक है की मुझे इस प्रकार के शब्द प्रयोग में नही लाने चाहिए क्योंकि मैं उम्र के लिहाज से बड़ा हु यदि मैं ही इन सब शब्दो का प्रयोग करूंगा तो आगे आने वाली पीढ़ी किस तरह की होगी ?

“यार” कभी कभी बात कुछ भी नही होती और शब्द के मायने , मतलब भी कुछ नही होते लेकिन वो भीतर तक चुभ जाते है बार बार यही एहसास दिलाते है कि यह होना था ऐसा कुछ सोच भी ना था। ना ही ऐसा मेरा कहने का तातपर्य था, किसी को आहत करने के लिए भी उस शब्द का प्रयोग नही किया जा रहा था परंतु फिर भी ना जाने वो शब्द कैसे किसी को चोटिल कर देता है जिसकी वजह से आप भी बहुत अजीब , घृणित  महसूस करते हो खुद से,

वो शब्द नासूर बनकर आपको तकलीफ देते है आप इग्नोर करने की भी कोशिश करते हो परंतु यह शब्द है जिनका बार बार प्रयोग होता है और आप बार बार आहित होते हो।


								

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