Date Archives June 2019

तुम्हें अपने ख्यालों में

मैं तुम्हें अपने ख्यालों में भी पनाह नही दूंगा इतराओ मत अब तुम मुझे पता है तुम मेरी धड़कनों में धड़क रही हो बस अब तुम्हे मैं अपनी धड़कनों से भी निकाल दूंगा, थोड़ा और सब्र मैं कर रहा हूँ, तुम्हें अपनी धड़कनों में धड़कने से रोक रहा हूँ।

जब तुम्हें खुश देखना चाहता हूँ,
तो मुझे तुम्हारे ख्यालों में छोड़ देना होगा।
फिर तुम मेरी ज़िन्दगी का हर पल सजाओगे,
मुझे नहीं पता कि तुम मेरे बिना क्या करोगे।

मेरी खुशियों का सबब तुम हो,
मेरी आँखों में तुम ही नज़र आते हो।
मुझे तुमसे बेहद मोहब्बत है,
लेकिन मुझे भी तुमसे अलग होना है।

आज तुम मेरे साथ हो, लेकिन कल कहाँ होगे,
मेरे ख्यालों में भी तुम अब नहीं रहोगे।
मेरी जिंदगी का सबसे अहम रिश्ता हो तुम,
पर मैं तुम्हें अपने ख्यालों में भी पनाह नहीं दूंगा।

हम आँखों में तस्वीरें समेटे रहते हैं,
जो अपनों से दूर रहते हुए भी,
हमें हमेशा पास लगती हैं।

ये तस्वीरें हमें अपनों की याद दिलाती हैं,
जो हमें अपनी ज़िन्दगी की सबसे अहम चीज़ याद दिलाती हैं।
आँखों में तस्वीरें समेटे रहने से हमें उनसे नहीं दूर होने का एहसास होता है,
और हमें उनसे जुड़े रहने की ताकत देता है।

ये तस्वीरें एक संग्रह हैं,
जो हमें उन खुश पलों का याद दिलाती हैं,
जो हम अपनों के साथ बिताए थे।
ये तस्वीरें हमें हमारे अपनों के साथ बिताए वो पल याद दिलाती हैं,
जो कभी फिर से नहीं आ सकते।

आँखों में तस्वीरें समेटे रहने से हमें उनसे जुड़े रहने की ताकत मिलती है,
जो हमें अपनों से जुड़े रहने की ज़रूरत होती है।
ये तस्वीरें हमें उन लम्हों की याद दिलाती हैं,
जो हमारी ज़िन्दगी के सबसे ख़ास होते हैं।

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क्या है दुख

क्या है दुख ? दुख क्यों पैदा होता है ? दुख के पैदा होने कारण क्या है ??
वैसे तो दुख जैसा कुछ नही है बस एक विचार है जिसको हमने बहुत बड़ा बनने का मौका दिया है इस दुख शब्द को हमने थोड़े भाव क्या दे दिए ये दुख तो हमारे सिर पर ही चढ़ने लग गया है और हमारे सिर पर ही मंडरा रहा है तथा जकड़ कर रखता है ताकि हम इससे छूट ही ना सके

अपने जीवन पर हावी होने मौका दिया है और यह बस बढ़ता ही जाता है और सुख का आनंद क्षणभंगुर होता जाता है अब सुख का जो समय है वो छोटा हो गया क्योंकि हमने दुख को अधिक महत्व दे दिया है दुख को हम पाल पोष रहे है लेकिन सुख को बस एक पल का समझ कर जिये जा रहे है सोचते है यही कुछ पल है जी लो सुख के लेकिन यह कुछ पल हमने ही सीमित किये है इनको

हमने ही सिकोड़ कर रख दिया है दुख अपना विस्तार कर रहा है और सुख सिकुड़ता ही जा रहा है
दुख एक विचार है और यह विचारो का एक समूह बना लेता है इस मस्तिष्क में जिसके कारण दुख बढ़ता जाता है जो बार बार अलग तरीको से हमारे मन के द्वारा बुद्धि को बार बार नकारात्मक बिचारो की और बल दिलवाता है जिसके कारण है हम सिर्फ अपने भीतर उन विचारो का समावेश कर लेते है जिनसे हम अपना मानसिक संतुलन खो देते है।

जब दुख को आमंत्रण दिया है तो इस दुख को भी हँसना सिखाओ उसके साथ भी खेलो दुख है एक ऐसा रिश्तेदार है जिसकी खातिरदारी करने पर वो भाग जाता है यदि इन दुखो को देखकर ओर दुखी हुआ जाएगा तो फिर यह भी ओर समय तक रुक जाता है इसलिए ऐसा रिश्तेदार कहा मिलेगा जिसकी खातिरदारी करने से वो जल्दी चला जाए ऐसा रिश्तेदारों को तो गले से लगाना चाहिए
दुख को अपनेे जीवन से कैसे निकाले ?

क्या है दुख ? यह दुख मात्र एक विचार है जिसको आप बढ़ावा दे रहे है अनेकानेक सम्भवनायो के साथ जो वास्तव में कुछ भी ना थी दुख और सुख समानांतर ही बात है लेकिन हम दुख का चिंतन ज्यादा लंबे समय तक करते है इसलिए दुख हमारे साथ चिपक जाता है और सुख बहुत काम समय के लिए हमारे साथ पाता है
यही कारण है हमारा जीवन ज्यादातर दुख से घिरा रहता है
और सुख से अछूता होता जा रहा है

सोच को बदलो

सोच को बदलो

क्या सोच है आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?
एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब

हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है
जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराणों विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना

अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता है दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ?

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है। पुराने विचारो को छोड़ दो इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो, और अपनी सोच को बदलो
पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ।

सोच को बादलों जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाएगा”

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है, अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है, क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है? इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है तो पहले स्वयम को जानना होगा, और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है, क्योंकि मैं मैं नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच, विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

दिन का चैन

आँखे भीग जाती है मेरी

जब मैं तेरे बारे सोचता हूँ

दिन का चैन खो जाता है

और

रातो की नींद उड़ जाती है

सारे सपने भूल जाता हूं

ना सोता हूं ना जागता हु

पागलो की तरह बड़बड़ाता हुआ

लोगो को नजर आता हूं

जब मैं तेरे बारे में सोचता हूं

ना काम कर पाता हूं

ना खाली बैठ पाता हूं

तेरी याद में ना जाने कहाँ खो जाता हूं

तुझको भूल ही नही पाता हूं

फिर ये बात भी गलत लगती है

कि मैं तेरे बारे सोचता हूं

तू तो मेरे खयालो से नही जाती है

हर पल हर दम तू मेरी

सांसो की धड़कनों में धड़कती

हुई सुनी जाती है 

फिर कैसे कह रहा था मैं

की जब भी तू मेरी यादों में आती है

अब तो यह बात मेरी सांसो ने भी झुठलादी है

की जब तू मेरी यादों में आती है।

मैं मनमर्जी हूँ

हाँ और ना एक इशारा है जो मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं मनमर्जी हूँ, हाँ और ना, एक इशारा है,
मन की बातों का पहरेदारा है।
कभी मंज़ूरी, कभी अस्वीकार,
इसे समझने में है कठिन बहुत बार।

हाँ कहने से हमेशा डर लगता है,
ना कहने से दिल को तसल्ली नहीं मिलता है।
कभी खो देते हैं अच्छे मौके,
कभी अच्छे मौके खुद ही छोड़ देते हैं।

इशारा ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी,
जब शब्दों में नहीं बयां हो पाती कहानी।
पर दिल की बातों को समझना तो है मुश्किल,
हर इशारे पर विश्वास करना उचित नहीं होता है।

मनमर्जी होना, कुछ लोगों को अच्छा लगता है,
खुद को खोलना, सबको अपनी बात कहने में खुशी मिलती है।
पर हाँ और ना की दुनिया भी जरूरी है,
समझने वाले के लिए यह एक अद्वितीय कहानी है।

हाँ और ना एक इशारा है जो मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं मनमर्जी हूँ, हाँ और ना, एक इशारा है,

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शब्दों मे हरकत

आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।

लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।

यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा

तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।

मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,

कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही

इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा

अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना

किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,

किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,

बाहर नहीं खड़े होना

भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है

भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।

भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,

बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।

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