Date Archives March 2020

प्यारी छत

प्यारी छत ,मामा जी की वो प्यारी छत के वो दृश्य, मनमोहक वो किस्से
कुछ पुरानी यादे और कुछ पुरानी बाते
जो बिना मोबाइल, ओर कैमरे के अब भी कैद है
हमारी आंखों में हम संजोए वो दिन

आजकल तो बच्चे कैद कर लेते है
हर उस बात को अपने मोबाइल में
लेकिन हम कुछ भी कैद नही कर पाए
उस कैमरे में

क्योंकि
वो कैमरे वाला टाइम नही था
मोबाइल नही थे बस जो कैद हुआ
वो सब हमारी आंखों में चित्रित है

हमारी यादों में अब भी सजे हुए है
  वैसे के वैसे ही अब तक रखे हुए है
 
  वो सारे चित्र
एक एक पल अब भी हमारे जहन मैं उसी तरह से है
जैसे   हमने उस पल को जीया बेहद हो ओर फिर याद करके एक बार ओर जी रहे है

  आज वो यादे है छत की
  हमारे प्यारे मामा जी की छत
  जिस पर हम घंटो खेला कूदा करते थे
  लड़ते झगड़ते ( लड़ते झगड़ते तो शायद कभी थे नही हम , बस खूब मस्ती हम किया करते थे )

और भी बहुत कुछ बचपन में
मामा जी की वो प्यारी छत
जिसको भूल मैं अब तक भी ना पाया
आज 6 साल बाद छत आकर याद ताज़ा कर लाया

वो छत जिस पर गए हुए लगभग 6 साल बीत गए है
मामा जी की वो प्यारी छत ही है जिस पर हम कल फिर से गए

जिस छत पर हम पूरा दिन बिता दिया करते थे।

छत पर जाते ही मेरे दिमाग में
छपे हुए चित्र फिर से ताज़ा हो गए

आसपास के सारे मकान आज और बड़े गए
जो खाली थे घर , वो घर भी आज भर गए थे

वो आसपास के बच्चे भी अब और बड़े हो गए थे
बात मानो कल ही की हो जब हम घंटो छत पर खेला करते थे। थक हार कर कुछ देर हम सोया करते थे भरी दोपहरी में भी बस हम छत पर ही होया हम करते थे।

वो बारिश के दिन अब भी याद है  बारिश में हम नहा लिया करते थे बारिश से चौक गिला ना हो जाए वो जाल पर मोमजामा बिछाकर  इटो से ढक दिया करते थे

( और जब बारिश के दिन हुआ करते थे तब जाली पर
मोमजामा ढक उस पर ईंट हम रखा करते थे)

वो छत बड़ी प्यारी है उस छत से जुड़ी है
हम सबकी यादे बहुत सारी है।

रात को घर की लाइट जाने पर छत पर ही हम सो जाया करते थे
ओर सुबह  सूरज में चढ़ती धूप जब तक तेज़ ना हो जाए तब तक उठ कर हम नीचे नही आया करते थे।

जब छत पर हम सोते थे हमे सोने के लिए खाट मिला करती थी अब तो वो छत के साथ साथ खाट भी कही खो गयी है

रात को जब छत पर जाते थे सोने तब लेट कर हम बस तारे गिना करते थे जितने बाल उतने तारे इस बात बोलकर बात पूरी कर दिया करते थे

हम तारे गिनते तो कभी सप्तऋषि , तो कभी कुछ और हम बस ढूंढ करते थे पूरी रात तारो में बीत जाए ऐसी कोशिश हम किया करता थे कभी कभी तो ध्रुव तारा देखने की कोशिश में पूरी रात जगा करते थे।

सुबह से लेकर शाम तक छत पर ही दिन बीत जाता था,
ना हम नीचे आते थे ओर ना ही कही घूमने हम जाते थे

मूड खराब हो जाता

यह जो मूड है ना खराब हो जाता है
कभी कभी जो यह मूड है

कभी कभी जो यह मूड है खराब हो जाता है
अजी बिल्कुल खराब हो जाता है
जी बिल्कुल
बिल्कुल मन यू मेला कुचैला फिर
काहे खुद को तू संत बताये
चित में इतने गहरे राज छिपाए
कौन कौन कर्म कांड कियो
अब साधुपन दुनिया को दिखलाए 
बिल्कुल खराब हो जाता है
अजी तो मूड खराब हो जाता है।

सुबह उठते ही जब खुद का चेहरा नजर आता है
बाल उड़े नजर आते है दिमाग बेहाल हो जाता है
अजी मेरा मूड जो है खराब हो जाता है
टॉयलेट जाने का जब नंबर आता है
पानी खत्म हो जाता है

नल में पानी नही आता है
दूर से उठाकर ( धोकर ) लाना पड़ता है
अजी थक जाता हूं
पसीना बहता हूं साला इसलिए
तो मूड मेरा खराब हो जाता है
अजी मुड़ खराब हो जाता है

एक बाल्टी से ही नहाना धोना पड़ता है
अजी मूड खराब हो जाता है
नल का पानी गंदा आता है , वो भी
24 घंटे में सिर्फ 1 घंटे आता है
अजी मूड मेरा तो बस खराब हो जाता है

जैसे तैसा तैयार हो पाता हूं
घर से बाहर मैं निकल पाता हूं
कुछ दूर चलते ही सामने आफत हजार पाता हूं
उनको देखकर फिर मेरा
मूड खराब हो जाता है ,
कोई सिगरेट पिता हुआ
नजर आता है तो कोई गुटखा थूकता हुआ
कोई इधर थूके , और कोई कोई
उधर मूते बस ऐसा ही सब इधर उधर
नजर आता है

अजीब अजीब
इन्ह हरकतों को देख
मेरा तो सिर चकराता है
लोगो की हरकतो को देख
बिल्कुल अजीब सा हो जाता है
देख के लोगो को  खिजिया खिजिया हम गए है 

बिना किसी मतलब के पता नही
लेकिन  बस मूड खराब है
अब इसे क्या कहे की हम
मूड स्विंग जोन मैं आ गए है या
  फिर कुछ बात हो गई है यहाँ
  कुछ समझ नही आता बस
   हम मुह लटकाए ही बैठे है
और ऐसा गंभीर से चेहरा हमने यू बना लिया है
मानो हमारा सब कुछ कोई लूट लिया है
बड़ा अजीब खेल है खेला
ये मूड का भी भाई कोई समझ सकता है क्या ??

कभी सब्जी अच्छी नही बनी
तो मूड खराब हो गया है
कभी कोई बगल मैं से कोई
थूक कर
चला गया तो हो गया जी मूड खराब

किसी ने गाड़ी तेज़ चला ली तो
हो गया जी  मूड खराब

कोई कोने मैं पिसाब करता दिख गया
तो मूड खराब

मुह भर रखा है गुटखे से
तो मूड खराब

रेड लाइट जम्प करली
तो मूड खराब

रेड लाइट के बीच मैं लोग आ गए
तो मूड खराब हो जाता है

चलान कट गया वो हमारी गलती थी
तो भी मूड खराब हो जाता है

समय पर नही पहुँचे बॉस ने डांट लगाई
तो मूड खराब हो जाता है

कपड़े प्रेस के नही
तो मूड खराब हो जाता है

कपड़े प्रेस की हुए हल्की सी सिलबटे भी आ गयी
तो मूड खराब

हल्का चाय मैं मीठा कम या मीठा ज्यादा
तो मूड खराब

बगल मैं से सूंदर स्त्री किसी ओर साथ है
मेरे क्यों नही है यह साथ तो यह सोचकर भी हो जाता है  मूड खराब

में कह रहा हु हर बात पर मूड खराब है क्युको में लाइफ के साथ खुस रहने को कोशिश ही नही कर रहा

और जो यह लोग मूड खराब कर रहे है वो समझ नही रहे है की कही पर कूड़ा मत डालो

च्विंगम खाई और छिलका फेक दिया कचरा छोटा है या बड़ा कचरा तो कचरा है मेरे भाई दुस्तबिन मैं बाद मैं फेक देना लेकिन रॉड पर मत फेको

हर जगह जो तुम गुटखा थूक देते बहित भद्दा लगता है जरा इसे मत थूको
कही पर भी टांग उठा कर मत मूतना शुरू करो मेरे भाई
इतना हॉर्न क्यों बजाते हो क्या सब बहरे है ????

चलो अपना गुस्सा कही निकालते है क्या ऐसा?? किसी ने कुछ कह दिया और तुम अपना गुस्सा कही और उतारने चले गए  क्यों भाई ?

फ़ोन का नेटवर्क नही आया तो बेचैन हो जाते है सभी कंपनीयो को गाली हम देने लग जाते है

जिम्मेदारी कोई उठाना नही चाहता लेकिन हम सब एक दूसरे को जिम्मेदारी का एहसास दिलाना चाहते है बड़ी अजीब बात है

आज पूरे दिन एक वीडियो वायरल हुआ मोती नगर मैं एक कावड़िये को हल्की सी ठोकर लग गयी और उसके बाद सभी कावड़ियों ने मिलकर उस कर को तोड़ दिया अब यह पूरा समझ फेसबुक शेयर और लाइक करने लग गया क्या आपने किसी फिल्मस्टार , क्रिकेटर, बिजनेसमैन जो भी बड़े ओदे पर उन्होंने यह वीडियो शेयर की ? या इस पर कोई प्रतिकिर्या दर्शायी ? नही क्योंकि उन्हें पता है किसमे उलझना चाहिए और किसमे नही आप भीड़ का समर्थन कर रहे है वो भीड़ से अलग है इसलिए आज वो वहां है और हम सब यहाँ पर

हमारा हर छोटी बड़ी बात पर बस मुड खराब होता है और उसकव कोई आकर ठीक करे यह हम चाहते है इसलिए कभी किसी पर गुस्सा निकालते है तो कभी किसी किसी पर हमेसा कंप्लेंट बॉक्स भरे नजर आते है कभी थानों मैं नजर आते है तो कभी कोर्ट मैं यह जो मामले है समझदारी से कभी नही निपटाते क्योंकि अहम बाद है भाई भाई क्यों में बात करू ? क्यों में झुक जाउ ? रिश्तों को खराब होते देखा है लेकिन सुलझ जाए ऐसा होता नही क्योंकि अहम बड़ा मेरे भाई अहम बड़ा
किस किस को समझाऊ में लेकिन खुद कभी ना समझ पाउ


दिन भर की भाग दौड़ से और उसकी व्यस्ताओं से भी हो जाता है मुड़ खराब कितने ही रोज हादसे हो रहे है दिन भर में जो घटनाये घट रही है जो हम पेपर पढ़ रहे है , tv देख रहे है उनसे भी हो जाता है मूड खराब हो जाता है इतनी वीडियो फेसबुक पर और अलग अलग तरह के पोस्ट देखकर भी मूड खराब


हर प्रकार से आजकल तो मूड ही खराब हो रहा है हम जो कुछ चाहते भी नही देखना वो भी हमे देखना पड़ता है।


सड़क पर कीचड़ तो मूड खराब , बस समय पर नही आयी तो मूड खराब कितने ही तरीको से मूड खराब हो रहा है यह क्यों हो रहा है ?


इससे पता चलता है की हमारे अंदर की जो सहनशक्ति है वो कम हो रही है और जो सोचने और समझने की क्षमता है वो भी कम हो रही है।

कुछ सवाल

कुछ ख्याल हम भी करने लगे है
कुछ सवाल हम भी करने लगे है
जरा ख्याल रखना इन सवालो का
कुछ जवाब अब हम भी देने लगे है

कुछ ख्याल हम भी करने लगे है
कुछ बात हम भी करने लगे है
कुछ मुलाकात हम भी करने लगे है
कुछ ख्याल रखना इन मुलाकातों का
इन मुलाकातों की बात अब हम भी करने लगे है

कुछ ख्याल हम भी करने लगे है
कुछ याद हम भी करने लगे है
कुछ दीदार हम भी करने लगे है
जरा ख्याल रखना तुम अपना, अपनी यादों में दीदार कर तुम्हारा याद अब हम भी करने लगे है
कुछ ख्याल हम भी करने लगे है

कुछ अश्क़ बहने लगे है
कुछ आह भी हम भरने लगे है
जरा ख्याल रखना अश्क़ों का तुम्हारी याद आने से अश्क़ अब इन्ह आंखों से बहने लगे है।
कुछ ख्याल अब हम भी करने लगे है

के अब मुलाकाते जरूरी है
सब्र है हमे लेकिन इतना
बतादो के अब सब्र के इम्तिहान
से हम भी गुजरने लगे है

कुछ सवाल हम भी करने लगे है

यह भी पढे: सवालों के कतघरों में, सवाल उठ रहे है, सवालों में गुम, जीवन से सवाल पूछो,

लेकिन तुम्हे उस बात से क्या ?

हाँ टूट तो मैं फिर से  गया हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
हा रोता हूं फिर से कोने में बैठकर
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?

आंखों से अश्क़ बहते गए और दर्द बढ़ता गया तेरा इंतज़ार मैं करता गया जिंदगी को अपनी
साँसे बस तेरे नाम मैं करता गया
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
घबरा जाता हूं , सहम चुप फिर से  बैठ मैं जाता हूं

लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
भीतर बहुत तकलीफ हो रही है , दुबारा दूरियों के एहसास होने पर
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
मैं भीतर से खाली खाली लग रहा हूं
तेरे जाने से मेरे दिल का कमरा खाली हो गया है

लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
टूटा हुआ था मैं पहले से अब चकनाचूर भी हो गया हूं
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
( तेरी याद में तिल तिल मर रहा हूं
अपनी बची हुई साँसे गिन रहा हूं )
एक बार मर चुका था मैं

उसमे बची थी जो कुछ सांसे अब मैं उनका भी दम तोड़ रहा हूं ( साथ छोड़ रहा हूं मैं )
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
मैं मरकर जिउ या जीकर मरु फिर से
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
हाँ जिंदा हूं अब तक जिंदा लाश की तरह

लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
गुजरते दिन और राते बीत रही है तेरे ख्यालो में
लेकिन
तुम्हे इस बात से क्या ?
मेरी नींद तेरी यादों में उड़ चुकी है मैं सो नही पाता हूं

लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
मुझे तेरी याद आ रही है और मैं अब तुमसे बात करना भी चाहता हूं किंतु कर नही पा रहा हूं
लेकिन

तुम्हे उस बात से क्या ?
बहुत मन कर रहा है दिल आज फिर रो रहा है
लेकिन

तुम्हे उस बात से क्या ?
हा तेरी यादो से बाहर निकलने के लिए मयखाने में बैठ दो जाम भी पी रहा हूं
लेकिन तुन्हें उस बात से क्या ?
है, चूर हूं नशे में उस सिगरेट के धुंए में जिसमे तेरा चेहरा भी धुन्दला जो जाए, ओर तेरी याद ना आये
लेकिन उस बात से तुम्हे क्या?

डूब गया हूं तेरी याद में और मेरी आंखों से अश्क़ रुकते नही
लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?
तू मेरे खयालो से जाती नजी और मैं तेरे खयालो में आता नही
लेकिन तुम्हे उस बात से क्या ?

जो एक बार
बड़ी मुश्किल से भरोशा जताया था तुझ पर
लेकिन

तुझे उस बात से क्या ?
मैं बेइंतहा प्यार करने लगा था तुझे
लेकिन

तुझे उस बात से क्या ?
मैं पहली मोहब्बत में नीलाम होकर आया था
लेकिन

तुझे उस बात से क्या ?
मेरी पहली मोह्हबत का ज़ख्म भरा भी ना था 
तूने उसको कुरेद नासूर कर दिया

लेकिन
तुम्हे उस बात से क्या ?

कौन हो तुम ?

यु ही रूठ भी जाते हो ,
यु ही मान भी जाते हो
ना जाने कौन हो तुम मेरे ?

फिर भी साथ हमेशा तुम ही निभाते हो ,
मेरी आँखों में देखो जरा हर पल
तुम ही नजर आते हो
भाग जाता हूं सबकुछ छोड़कर

लेकिन मेरे जिंदगी के हर विचार तुम आकार में तुम खड़े हो जाते हो ,
क्रोध भी लाता हूं, अहंकार भी लाता हूं
लेकिन प्रेम इतना गहरा है कि पिघल जाता हूं
समस्त विचारो में संसार नहीं दिखता

क्योंकि तुम्हारी छवि के साथ ही ठहर मैं जाता हूं
ना जाने कौन हो तुम?
जिसके बिना रह नहीं पाता हूं
बस मौन मैं हो जाता हूं ,
खुद को समझने और समझाने की चेष्ठा मैं करता हूं

लेकिन तुम विचार बन मेरे मस्तिष्क में बैठ जाते हो
क्यों ? अपनी ही सोच में मुझे डूबा कर बार बार चले क्यों चले जाते हो ?
रूठे हुए दीखते हो तुम मुझसे लेकिन सबसे ज्यादा प्यार भी मुझे करते नजर आते हो
यह कौनसा है सम्बन्ध जो तुम मुझसे निभाते हो ?

ब्रह्मांड का जुड़ा होना

ब्रह्मांड का जुड़ा होना
ब्रह्मांड का एक दूसरे के साथ जुड़े होना हम सभी साथ है कोई भी अलग नही है ना ही कोई आगे है ना पीछे है बस सब साथ साथ है सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक छोर से दूसरे तक बंधा हुआ है, एक हल्का स छेद भी नहीं है जो इस ब्रह्मांड से छूटा हुआ हो , एक एक कण भी ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है, हम यदि कहे की आकाश रिक्त है तो यह बात बिल्कुल विपरीत होगी क्युकी पूरा आकाश भी जुड़ा हुआ है इन ध्वनियों से
Ek dusre ke saath

Interconnected universe” ( ब्रह्मांड का जुड़ा होना एक छोर से दूसरे छोर तक )

हम सभी किसी ना किसी रूप में एक दूसरे के साथ जुड़े हुए है किस तरह से ये हमे जानना होगा, हमारा विचारो के साथ हमारे शब्दो के साथ हमारे कार्यो के साथ अब उस जुड़े होने से हम कैसे और बेहतर हो बड़े कैसे हो ?

कैसे हम एक बड़ा विचार बना सकते है जिसमे सभी का सहयोग हो हैम सभी जुड़े हुए है अपने विचारो के कारण अपनी इच्छाओ के कारण हमारी आवश्कताओं के कारण हमारी जरूरते एक दूसरे के साथ पूर्णतया जुड़ी है, जैसे ब्रह्मांड का जुड़ा होना है।

हमारा जीवन भी विचारो सोच शब्द एहसास के साथ जुड़े हुए है हमारी घटनाएं भी एक साथ जुड़ी हुई है हर एक घटना एक दूसरे से जुड़ी हुई है हिमारी घटना का आसपास होना किसी न किसी रूप में हमे भी प्रभावित करती है

किसी व्यक्ति के द्वारा उच्चारित शब्दों का हमारे ऊपर भी प्रभाव पड़ता है:
हम सभी एक दूसरे के शब्दो से भी प्रभावित होते है उसी प्रकार हमारा जीवन एक दूसरे के जीवन में होने वाली घटनाओ से प्रभावित होता है क्योंकि हमारा संबंध किसी न किसी प्रकार से जुड़ा हुआ है।

हमारी सोच विचार एहसास भावनाएं आपस में जुड़ी हुई है, जिस प्रकार एक व्यक्ति सिर्फ अपने आप से नही उसकी पहचान बहुत सारी बातो के साथ होती व्यक्ति और व्यक्ति का नाम परिवार , गली मोहल्ला , शहर, देश , आदि से उस व्यक्ति की पहचान होती है

प्रभाव स्वयं का

प्रभाव स्वयं का होना चाहिए , हमारा स्वयम का कोई अस्तित्व है या नही?
क्यों हम दुसरो की विचारधारा में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है? क्यों हम किसी दूसरे से इतनी जल्दी प्रभावित हो जाते है ? दुसरो के विचारो से , शब्दो से, कार्यो से हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है लेकिन क्यों? हमारे खुद के विचार महत्व नहीं रखते क्या?

यदि कोई हमारे सामने व्यक्ति सो रहा होता है तो हम प्रभावित हो जाते है हमे भी नींद आने लग जाती है हमारे अंदर भी आलस पैदा होने लग जाता है।
इसका कारण क्या है ?
क्या हम कमजोर है ?

क्या हमारे अंदर आत्मबल की कमी है अर्थात स्वयं का बल नहीं है ?
क्या हमारा खुद पर कोई नियंत्रण नहीं है ?
क्या हमारे अंदर स्वयम का कोई प्रभाव नही है?

दुसरो की विचारधारा हमे अपने साथ बहाकर लिए जा रही है दुसरो के शब्द , भावनाए और एहसास हमे अपने साथ बहाकर ले जाते है, हम दुसरो के शब्दों से एकदम  प्रभावित हो जाते है क्यों ? क्या आपने यह जानने की कोशिश की है?

हमारे विचार आपस मेल करते है तो हम उसको सहमति दे देते है अथवा नहीं और यदि किसी के विचार ज्यादा प्रभावशाली होते है ती भी हम समर्पण भाव दे देते है, किसी ने कुछ कह दिया और प्रभावित हो गए स्वयम का कोई प्रभाव ही नही क्या ??

हमारे अंदर हमारा बहाव दुसरो के कारण हो रहा है दुसरो के विचारो और शब्दों के कारण हमारे जीवन का निर्माण हो रहा है, परिस्तिथियां निर्मित हो रही है।

यह विचार आ रहे है और जा रहे है इसी प्रकार से हमारा जीवन भी चले जा रहे है यदि हमने इन विचारो पर जोर ना दिया , ठीक ढंग से सोच नही और यदि हमने कोई विचार नही किया तो दुसरो की और और समय की विचारधारा हमे भी अपने साथ बहाकर ले जाएगी , हमे सोचना और विचारना होगा तथा उन सभी बातो को सही ढंग से समझना होगा

यदि हम अपने विचारो को अपने जीवन के बहाव को सही ढंग से सही रूप में सही दिशा में नही लेकर जाएंगे तो हमे भी उसी विचारधारा में बहना पड़ेगा और फिर हमारा जीवन हमारा न होगा वो जीवन किसी और के विचारो और शब्दो के कारण निर्मित होगा

क्या आपका जीवन आपके द्वारा नियंत्रित है या किसी और के द्वारा? प्रभाव स्वयं का होना बहुत आवश्यक है, नहीं तो मंजिल काही से काही ओर ही चली जाती है, दूसरों की विचारधारा में बहकर हम खुद से नियंत्रण खो बैठते है, इसलिए हमे स्वयं की बातों को अधिक महटव देना चाहिए।

यह भी पढे: दृढ़ निश्चय, वो नहीं है बराबर, शब्दो का प्रभाव, उत्साह से भरपूर जीवन,

इच्छा कैसे पूरी हो

इंसान का शरीर उम्र के साथ कमजोर पढ़ने लगता है ,परंतु इंसान की इच्छा कमजोर नही होती उसे ओर जीने की आकांशा, काम करने की इच्छा हमेसा लगी रहती है शरीर वो सारी किर्या , सारे कार्य नही कर पाता जो मन करना चाहता है, क्योंकि हमारी इच्छाएं कभी भी समाप्त नही हो रही बस शरीर उन कार्यो को कर नही पाता

इसलिए हम खुद को एक संतोष वाली स्थिति में रखना चाहते है, परंतु जैसे ही हमे नया शरीर मिलता है हम उतनी तेज़ी के साथ वही कार्य दुबारा करना फिर से शुरू कर देते है , क्योंकि जो हमारी इच्छाएं शेष रह गयी हम उनको फिर दुबारा पूरे उत्साह से करने लग जाते है, ऐसा बिल्कुल नही है की उम्र के साथ हमारा कार्य करने का मन कम हो रहा है।

परंतु अब शरीर जवाब दे चुका है बस एक यह कारण है, क्युकी भरपूर जीने की इच्छा इस शरीर को अब भी है, इस शरीर को अब भी नई दुकान , मकान , और नई नई चीज़े देखनी घूमना फिरना , खाना पीना आज भी अच्छा लग रहा है, बस शरीर थोड़ा कमजोर पड़ गया है, परंतु इच्छाएं भरपूर है मन की जो कभी खत्म नही हो रही है जब हम नया जीवन लेकर फिर इस धरती पर आएंगे तो हमारी पुरानी स्मृत्या सब खत्म हो चुकी होगी और फिर हम यही सब दुबारा करना शुरू कर देते है।

ऐसा लोग अनुभव से बताते से है की उन्हें नींद तो आती है परंतु उनके सपनो में सिर्फ कुछ चल रहा होता है, वो अब भी अपनी दुकान पर काम कर रहे होते है उनकी उम्र चाहे 80 साल को हो गयी हो परंतु उनका दिमाग अब भी उन्ही कार्यो में लगा होता है, जो वो करते हुए है मन तो काम करना चाहता है परंतु शरीर नही कर पाता।

इच्छाएं ना कमजोर हो रही है, ना कम हो रही है और ना ही ये खत्म होने में आती है बस बढ़ती ही जा रही है, जितना कम करो उतनी ही तेज़ी से ये दुबारा पैदा हो जाती है, और उछाल मारती है चाहे जीवन नीरस हो जाए लेकिन फिर दुबारा जीवन एक नई तरंग उमंग के साथ अपने जीवन को शुरू करने की इच्छा प्रकट करता है, ( बस जीवन के साथ नीरसता आ रही है ) परंतु फिर भी लोग यह जानने की कोशिश नही करते की हम क्यों इस जीवन के साथ इतना मोह बांधे हुए है बस यह जन्म खत्म हो फिर दुबारा नई जिंदगी शुरू करे फिर से शुरुआत करे लेकिन जहाँ है वही से नही वो नई शुरुआत करना चाहते।

और जीना चाहते है बहुत कुछ करना, देखना चाहते है हर और भागना दौड़ना और दिमाग को दौड़ाना चाहते है रुकना हर्ज नही चाहते मैं ये नही कह रहा की यह सब बेकार है लेकिन कभी ये सब जानने की इच्छा जाहिर की है की ये क्यों हो रहा है ? क्या कारण है इन सब बातो के होने का ?

क्या सपने होते है?

सपने और सच क्या होते है सपने ? क्यों आते है हमे सपने ? क्या सच में सपने होते है ?
क्या असल जिन्दगी से कोई ताल्लुक है इन सपनो का ?

सपने या हकीकत सपने या हमारी सोच का कारण सपनो का हकीकत में साकार होना ना हो पाना हमारे असल जीवन में या जाग्रत अवस्था में इस समय में मेरा शरीर सो रहा है मैं कुछ नही कर रहा इस समय में सिर्फ अपने विचारो को देख रहा हूं जो मेरे मस्तिष्क में आ और जा रहे है लेकिन अब शरूर निस्किर्य है परंतु मस्तिष्क किर्यशील है इसलिए मन उन सभी विचारो के साथ छेड़खानी कर रहा है और और उन्हें बढ़ावा दे रहा है

और विचारो को खोता जा रहा हूं ऐसा लगता है मानो ये विचार कुछ पूरा करने की इच्छा रखते है जैसे अभी आसमान को अपने अंदर समेत लेना चाहते हो मैं भी इन विचारो की सिथति खोता जा रहा हु मैं भी इस सोच के साथ ही चल रहा हूं

मेरा शरीर जब सोता है तो शरीर को निस्किर्य अवस्था विचारो में प्रबलता लाती है।
जिसके कारण मानो मेरे छोटे छोटे विचारो को बड़े होने की  आज़ादी मिल गयी हो इन्होंने जानो कितनी ही स्तिथतियो को जन्म दे दिया कितनी ही बड़ी बड़ी कल्पना है गढ़ ली यह विचार अब खुद को ही इस शरीर और मस्तिष्क की सत्ता का मालिक समझने लग जाते है

एक छोटी सी स्थिति को पता नही कितना बड़ा पहाड़ से बनाने  लग गए विचार , विचार एक छोटे से पहलू को कितनी ही स्तिथतियो में अलग अलग प्रकार से लगव हो ?

यहॉ वो समय है जब मैं अपनी सोच को ही जिंदगी की हकीकत समझता हूं परंतु यह सोच भी मेरा साथ तब तक देती है जब तक मेरा शरीर सोया होता है जैसे ही मेरा शरीर उठता है ये सोच खो जाती है, और मैं वापस अपने शरीर को देखता हूं इस शारीरिक स्तिथि को देखता हूं जो सिर्फ आराम कर रहा है, और उठने वाला है हकीकत में तो जीवन असफल से लगता है हम अपने जीवन में ना जाने कितना ही कुछ करना चाहते है।

परंतु हम हर वस्तु चीज़ को नही प्राप्त कर पाते हमारे जीवन की सारी इच्छाओ को पूरा नही कर पाते हमारे जीवन की सच्चाई यह है की मानव जीवन अपने आप में असहाय से लगता है जब तक उसे अपने जीवन के सही रूप , सही दिशा सही अर्थो , सही शब्दो में ज्ञात नही होता , यह जीवन तो मानो निर्रथक से लगता है जब तक इसे सही दिशा , सही परिस्तिथि सही स्तिथि सही सोच नही मिलती क्योंकि हमारी शारीरिक क्षमता कम होती है और विचारो की शक्ति और कल्पना की कोई गणना नही है जिसके कारण हम असल जिंदगी में असहाय और कठिनाईयो से भरे भरे मालूम होते है इसी कारण हिमारी अधूरी सोच अधूरे कार्य हम सोते हुए पूरा करते है हम उन्ही बातो को अपने सपने समझ लेते है परंतु हकीकत में तो सपने होते ही नही है ये सिर्फ हमारी कल्पना मात्र होते है हमारे विचारो की कल्पनाशील बाते होती है हमारे विचारो के बादल होते है


जैसे हमारे मस्तिष्क में एक विचार आता है और मस्तिष्क की किर्या इसे बढ़ावा देती है जिसके कारण विचारो के बादल सोच में परिवर्तित होते है जिस प्रकार बादलो को आपस में टकराने से बारिश होती है और बारिश का पानी भूतल पर एकत्रित होता है उसी प्रकार हमारे विचारो के बादल भी आपस में टकराते है और सोच का रूप ले लेते है जिसके कारण हम उस सोच पर विचार करने लग जाते है।

हमारा मस्तिष्क विचारो से हर समय हर पल हर क्षण घिरा हुआ रहता है जिसके कारण हमारा मस्तिष्क आने जाने वाले विचारो पर विचार विमर्श की किर्या में हमेशा उलझा रहता है इन विचारो के दृश्य और इनकी इतनी कल्पनाएं हमारे मस्तिष्क में लगातार चलने वाली किर्याओ के एक सहायक रूप में होती है हमारे छोटे छोटे विचार एक बड़ी सोच का रूप लेते है हर एक विचार का अपना एक दृश्य होता है और दृश्य की अपनी एक कल्पना उसकी उचाई और गहराई के साथ होती है।

जो हम रात को सोते हुए देखते है है यह कोई सपने नही होते यह सिर्फ हमारे विचारो को खुली छूट होती है उस समय हम पूर्णतया सोचते ही रहते है और विचारो की मथनी करते है जिससे की वो विचार बड़े हो जाते है और उनको हम आंखे बन्द करते हुए अनुभव कर 0आते दिन के समय भी हम सोचते है परंतु एक समय में कई कार्य कर रहे होते है जिनके कारण हमे पता नही चलता है की हम क्या सोच रहे है हिमारे मस्तिष्क में लगातार विचार आते रहते है जो हमारी आंखे सुबह से शाम तक देख रही है उसकी की फ़ोटो हमारे मस्तिष्क में विचार रूप में प्रकट होती है और उसका बड़ा रूप लेकर हमे नए नए दृश्य दिखाती है जैसा आप पूरे दिन सोचते हो उसी प्रकार का रात भर आपके मस्तिष्क में घूमता ररहते है छोटे छोटे विचार मिलकर बड़े बड़े समूह बना लेते है।

आंखे दृश्य देख रही है और विचार पैदा हुए जा रहे है,महीन विचार मस्तिष्क में आते है और समूह बनाते है इन समूह के घेरे ही आपके मस्तिष्क में सोच को बड़ा करते है वह सोच आपकी शब्दो में परिवर्तित होती है जिस पर आप कार्य करते हो और लगातार करते  ही रहते हो आपकी बुद्धि उन्ही दृश्यों के बारे में लगातार सोचती रहती है अलग अलग तरह से उसके हर पॉजिटिव और नेगेटिव तरीके को अपने ढंग से देखती है आपका दिमाग जैसा और जिस तरह से सोचता है रात को आप उसी तरह से सोचते है वो सभी दृश्य है जो आप रात में सोते समय देखते है इसके विप्रित कुछ भी नही है।

दुख क्या है ?

दुख क्या है ? दुख क्यों पैदा होता है ? दुख के पैदा होने का  कारण क्या है?
जीवन में जब हम विषम परिस्थिति देखते है तब हम चिंता यानी दुःख को आमंत्रण देने लग जाते है, जिसकी वजह से हमारे मन और मस्तिष्क में नकरात्मक विचारो का संग्रह होना शुरू हो जाता है,
वैसे तो दुख जैसा कुछ भी नही है, बस एक विचार है जिसको हमने बहुत बड़ा बनने का मौका दिया है, इस दुख शब्द को हमने थोड़े भाव क्या दे दिए ,ये दुख तो हमारे सिर पर ही चढ़ने लग गया है।

और हमारे सिर पर ही मंडरा रहा है तथा इस दुख शब्द ने हमारे मस्तिष्क को जकड़ कर रखा हुआ है जिसके कारण हम शुभ विचारों का चिंतन नहीं कर पाते , यदि हम हम अच्छे विचारों का लगातार चिंतन करे ओर नकारात्मक विचारों का चिंतन लगातार करते रहे तो दुख हमारे जीवन में कभी आए ही नहीं।

ताकि हम इससे छूट ही ना सके दुख मात्र एक शब्द है एक विचार है एक ऐसी नकरात्मक सोच है जो हमारे मस्तिष्क पर लगातार हावी हो रही है जिसकी वजह से हमारे भीतर डर भी बढ़ता है
अपने जीवन पर हावी होने मौका दिया है और यह बस बढ़ता ही जाता है और सुख का आनंद क्षणभंगुर होता जाता है।

अब सुख का जो समय है वो छोटा हो गया क्योंकि हमने दुख को अधिक महत्व दे दिया है दुख को हम पाल पोष रहे है लेकिन सुख को बस एक पल का समझ कर जिये जा रहे है सोचते है यही कुछ पल है जी लो सुख के लेकिन यह कुछ पल हमने ही सीमित किये है इनको हमने ही सिकोड़ कर रख दिया है दुख अपना विस्तार कर रहा है और सुख सिकुड़ता ही जा रहा है।

दुख एक विचार है और यह विचारो का एक समूह बना लेता है इस मस्तिष्क में जिसके कारण दुख बढ़ता जाता है जो बार बार अलग तरीको से हमारे मन के द्वारा बुद्धि को बार बार नकारात्मक बिचारो की और बल दिलवाता है जिसके कारण है हम सिर्फ अपने भीतर उन विचारो का समावेश कर लेते है जिनसे हम अपना मानसिक संतुलन खो देते है।

जब दुख को आमंत्रण दिया है तो इस दुख को भी हँसना सिखाओ उसके साथ भी खेलो दुख ही एक ऐसा रिश्तेदार है जिसकी खातिरदारी करने पर वो भाग जाता है यदि इन दुखो को देखकर ओर दुखी होने लग जाओगे, तो फिर यह दुख भी ओर समय तक रुक जाता है और चिंताएं बढ़ाता है, तथा आप जितना दुख का चिंतन करते है यह उतना ही और बढ़ता जाता है,

इसलिए दुख का चिंतन नहीं करे इसे स्वीकार ले और यह दुख स्वत ही दूर हो जाएगा , दुख आपके पास कभी भी रुकने , ठहरने के लिए नहीं आता यह दुख सिर्फ आपको यह बताने आता है की अब तुम्हारा वक्त बदलने वाला है।

इसलिए दुख जैसा रिश्तेदार कहा मिलेगा? जिसकी खातिरदारी करने से वो जल्दी चला जाए ऐसे रिश्तेदारों को तो गले से लगाना चाहिए।

दुख को अपनेे जीवन से कैसे निकाले?
दुख मात्र एक विचार है जिसको आप बढ़ावा दे रहे है मात्र कुछ भी नहीं है, अनेकानेक सम्भवनाओ के साथ जो वास्तव में कुछ भी ना थी।

दुख और सुख समानांतर ही बात है, लेकिन हम दुख का चिंतन ज्यादा लंबे समय तक करते है इसलिए दुख हमारे साथ चिपक जाता है और सुख बहुत कम समय के लिए हमारे साथ रह पाता है क्युकी सुख का जो चिंतन है उसे हम बहुत जल्दी हटा देते है हमारे मन में डर रहता है यही कारण है हमारा जीवन ज्यादातर दुख से घिरा रहता है, और सुख से अछूता होता जा रहा है।