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2024 T20 विश्व कप

क्या आप चाहते है की रोहित शर्मा 2024 T20 विश्व कप में भी कप्तान बने रहे या फिर उन्हे छोड़ देना चाहिए, रोहित शर्मा के जैसा इस समय कोई भी कप्तान नहीं है, ना ही इस जिम्मेदारी के लिए कोई भी तैयार है इसके साथ ही किसी को रोहित जितना अनुभव भी नहीं है।

रोहित शर्मा एक एसा कप्तान है जो टीम के बारे में पहले सोचता है फिर अपने लिए, वह सभी खिलाड़ियों को एक साथ जोड़कर रखता है, सबकी सुनता है।

रोहित शर्मा 5 बार आईपीएल की ट्रॉफी जीत चुका है, मुंबई इंडियन के लिए, सिर्फ एक खराब दिन उनकी काबिलियत के बारे में नहीं बता सकता रोहित शर्मा एक काबिल कप्तान है।

Gautam Gambhir said, “Rohit Sharma should captain Team India in the T20 World Cup 2024.

He is a phenomenal leader and batsman which we have seen in this World Cup as well.” (Sportskeeds)

रोहित शर्मा

क्या रोहित शर्मा ही रहेंगे 2024 T20 विश्व कप के कप्तान या फिर कोई बदलब होगा इस विश्व कप के लिए, जानकारों ओर सलाहकारों की माने तो रोहित शर्मा ही इस समय एक बेहतर कप्तान के रूप में दिखते है, भारत के लिए T20 विश्व कप चैम्पीयन ट्रॉफी के लिए इसके अलावा दूसरा ओर कोई नाम अभी के लिए सुझाव में नहीं है, ओर ना ही कोई रोहित शर्मा से बेहतर बेहतर कप्तान दिख रहा है जो इस जिम्मेदारी को संभाल सके।

जानवर

जानवर तो हम सभी के भीतर ही छुपा हुआ है उस जानवर का सिर्फ बदलाव करना होता है, हम बहुत बार उस जानवर की तरह हरकते करते है, किसी को मारना, बिना वजह ही लड़ाई करना, बिना वजह किसी पर गुस्सा करना यह सब मानवीय स्वभाव नही है, मानव तो शांत सरल स्वभाव का होना चाहिए था, लेकिन जानवर जिसे समझ नहीं है की क्या सही है क्या गलत है, बुद्धि का अभाव है जिसके कारण वह उन कार्यों को करता है जो उसे जानवर प्रवती की ओर बढ़त है।

मानव तो शांत सरल स्वभाव का है मानव को शांति चाहिए उसे अशांति नही उसे जानवरो की तरह शारीरिक संबंधो में नही लिप्त होना उसे तो संभोग से समाधि की ओर अगसर होना है। उसका जीवन संभोग में भोग को नही ढूंढना बल्कि उस भोग से निकलकर समाधि की ओर जाना है।

उसे स्त्री के शरीर पर शासन नही करना है उसे स्त्री के साथ संभोग कर पवित्र आत्मा को इस धरती पर उतारना है। जानवर जैसी मानसिकता वाले जीवों को पैदा नहीं करना बल्कि मानव को जन्म देना है उच्च विचारों वालों जीवों को जन्म देना है, यदि हमारी मानसिकता जानवरो जैसी होगी तो हमारे वीर्य से उत्पन्न संताने भी उसी तरह को होगी इसलिए हमे अपने विचारो को शुद्ध रखना है, जो जब संभोग किया जाए तो अपने विचारो में संयम रखना है।

जिस प्रकार से सेक्स को इतना बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है, उससे समाज को ऐसी मानसिक स्थिति दी जा रही है जिससे वह भ्रष्ट हो, दुष्ट प्रवृत्ति का बने, उसके विचार गंदे हो, जिसका आचरण ही शुद्ध ना हो, ऐसे लोग कैसे सभ्य समाज का निर्माण कर पाएंगे, सेंसर बोर्ड ए सर्टिफिकेट देता है लेकिन क्या सभी लोग सिनामाघरो में ही फिल्म देखते है, आजकल टेलीग्राम , यूट्यूब ऑनलाइन पर सभी पायरेसी के द्वारा फिल्म आ जाती है, फिर कहां तक आप इन्हे देखने से रोकने पाएंगे इससे ज्यादा अच्छा यही होगा की इस प्रकार की फिल्मों पर रोक लगे और न बने तभी समाज एक अलग दिशा में चल पाएगा, ऐसा नहीं है की लोग फिल्मों से प्रभावित नही होते लोग प्रभावित होते है।

आजकल की युवा पीढ़ी बहुत प्रभावित होती है इस प्रकार की फिल्मों से जब कबीर सिंह आई थी तब मैने कनाट प्लेस में एक लड़के को बोर्ड हाथ में लेते हुए देखा था, जिस पर लिखा था क्या आप मेरे होंठों पर चुम्बन कर सकते है, में भी उत्सुक हूं चुम्बन के लिए और कई लड़कियों ने उस लड़कों को चुंबन भी किया ये बिल्कुल शर्म से सर झुका देनी वाली बात है, हमारे समाज के लिए हम उस समाज का निर्माण कर रहे है जो प्रभावित है, हमारा खुद का कोई व्यवहार नही है , हमारी कोई शिक्षा नही है।

हल्दीराम व बीकानेर

हल्दीराम व बीकानेर: हल्दीराम व बीकानेर में बैठकर खाना मेरी पहली पसंद है, इसके अलावा मैं किसी दूसरे रेस्तरा में बैठकर खाना ज्यादा पसंद नहीं करता, यदि वो रेस्तरा शुद्ध शाकाहारी है, तो फिर मैं बैठ जाता हूँ बस खाना अच्छा हो कोई दिक्कत नहीं है, हल्दीराम व बीकानेर में तो मैं बिना सोचे ही अंदर चला जाता हूँ, लेकिन यदि किसी दूसरे रेस्तरा में जाना होता है पहली बार तो देखना पड़ता है की वह शुद्ध शाकाहारी है या नहीं तभी उस रेस्तरा के भीतर जाने की सोचता हूँ, वरना बाहर से आगे बढ़ जाते है यदि उस रेस्तरा में नोनवेज भी है तो फिर नहीं जाना बस

आजकल वैसे भी जिसको देखो शाकाहारी के साथ साथ मांसाहारी भी परोस रहा है, जिस जगह मांसाहारी होता है उस जगह मैं खाना खाने के लिए नहीं जाता, बहुत हुआ खोजने पर नहीं मिलता नहीं तब उस जगह पर जाया जाता है नहीं तो नहीं।

शाकाहारी व मांसाहारी: जब शाकाहारी में इतना अच्छा खाना उपलब्ध है तो फिर क्यू मांसाहारी भोजन खाना, ओर क्यू ही किसी जीव की हत्या का दोष अपने माथे पर लेना, इस प्रकार के कर्मों से बचकर ही रहा जाए तो बेहतर है, किसी को समझाना कोई जरूरी नहीं बस मैं खुद इस बात को समझ गया हूँ, यही बहुत जरूरी था की उस जगह भी नहीं खाना जहां पर मांसाहार भी तैयार किया जाता है, क्युकी उनके बर्तन भी वही होते है, कभी उसमे शाकाहार परोस देंगे तो कभी मांसाहार, वह हर छोटी छोटी बातों का ख्याल नहीं रखते इसलिए उस जगह पर खाना भी उचीत नहीं है जिस जगह पर मांसाहार परोस कर दिया जाता हो।

इसलिए भी मेरी पहली पसंद हल्दीराम बन जाती है जहां मुझे इस प्रकार का कुछ नहीं सोचता पड़ता ना ही कुछ पूछना पड़ता की यह शाकाहारी है या मांसाहारी है, बिना झिझके ओर हिचके जो खाने खाने का मन करे उसका ऑर्डर कर दिया है।

साथ ही खाने की क्वालिटी ओर कीमत यह दोनों ही उचीत है, बहुत अधीक ओर बहुत कम नहीं है, सभी लोगों के एक सही जगह है।

सवालों के कटघरे में

सवालों के कटघरे में खुद को
हर बार छोड़ देता हूं

तुम्हारे लिए में सपनों को
बार बार तोड़ देता हूं

इंतज़ार करता हूं तुम्हारा
की तुम आओगी लौटकर
और

तुम आ भी जाती हो
लेकिन फिर??
मेरे सामने फिर वही

सवालों का ढेर तुम लगा जाती हो
क्यों तुम आती हो ?

क्यों सवालों का ढेर लगाती हो ?
मुझे क्यों नहीं यह बताती हो
की छोड़ना बस तुम मुझे चाहती हो।

बहुत सुकून

जब भी आता हूँ तुम्हारे पास बहुत सुकून मिलता है मुझे मानो भीतर गहरी शांति आ जाती है, जब भी मैं तुम्हारे पास बैठता हूँ, जब मेरा मन तुमसे मिलने को करता है, तो आता हूं, बैठ जाता हूँ ओर कुछ देर बाते कर खुद से ही खुद में ही मुसकुराता हूँ।

बहुत सुकून
बहुत सुकून

बहुत सुकून सा मिलता है जब भी मैं तुम्हारे पास आता हूँ ऐसा लगता है बहुत कुछ सीखा देते हो उन कुछ ही पलों में जो मैं तुम्हे साथ बिताता हूँ।

पिछले 16 साल से मैं अपनी मनपसंद जगह जा रहा हूँ, जहां मैं काफी समय बिताता था, अब कुछ कम हो गया है मेरा आना जाना इधर लेकिन फिर भी जब भी मेरा मन करता है तो मैं कॉफी पीने ओर इडली खाने के लिए कनाट प्लेस के कॉफी होम में चल जाता हूँ, जहां मुझे बहुत शांति मिलती है ओर जो पेड़ है यहाँ इसके नीचे बैठकर मुझे बहुत अच्छा लगता है ओर मैं बाते भी कर लेता हूँ कुछ पल इस पेड़ से यह पेड़ इस स्थान की शोभा बढ़ देता है, जिसकी वजह से यह जगह आढ़भूत हो जाती है।

बहुत सारा अनुभव लेकर खड़े है अपनी जगह पर यह वृक्ष देवता मेरा मन तो अथाह शांति को प्राप्त होता है जब भी इनकी छाव में बैठता हूँ।

मैंने अपनी पहली पुस्तक “कौन हूँ मैं” इन्ही वृक्ष देवता की छत्र छाया में पूरी की थी, ओर काफी मित्र भी इन की शरण में मुझे मिले है।

आप भी जरूर होकर आए इस स्थान पर याद अभी तक नहीं गए है तो, यह जगह आपको गहरी शांति का अनुभव का अनुभव कराती है साथ ही जो सवाल दबे हुए है भीतर पूछ डालो खुद से यही जाकर आपको आपके जवाब मिलेंगे, ओर साथ ही एक नई राह भी

इस जगह पर आप कितना भी समय व्यतीत कर सकते है सुबह 11 बजे खुल जाता है ओर रात 8 बजे बंद हो जाता है, ये जगह कनाट प्लेस में सबसे शांत जगह है, हनुमान मंदिर के ठीक सामने ही है।

घटना घट रही

आज जुबान पर कुछ शब्द आना चाह रहे है,
जैसे
शब्द अपनी आप बीती सुनाना चाह रहे है, उन शब्दों को बाहर आने दो कुछ तुमसे कह जाने दो, उन शब्दों को भी तुम्हें अपना बना जाने दो, यह घटना घट रही इसे घट जाने दो।

कही से आज फिर शुरुआत होना चाहती है
मानो
आज फिर जिंदगी से बात होना चाहती है।

यु ना तुम रूठ जाओ जिंदगी मनाना चाह रही है,
बात अब
मान जाओ मौन होकर ना बैठो यह जिंदगी आज कुछ तुमसे 
कहना चाह रही है।

बात कुछ है तभी तो जिंदगी तुमसे आज बतियाना 
चाह रही है, दो शब्द बाते आज होना चाह रही, यह घटना घट रही रही है घाट जाने दो, जो होना है उसे हो ही जाने दो

हम संभलेंगे भी

हम गिरे है तो संभलेंगे भी
हार गए है इसका मतलब
ये नही की हम जीतेंगे नही
जीतकर हम एक दिन दिखाएंगे,

टूटे हुए सपनो को फिर से जोड़ कर
एक नया सपना हम बनाएंगे
आंखों में लाखो दृश्य उन दृश्यों से
ही एक खूबसूरत मूरत बनाएंगे

अपने आज को नही बिखरता छोड़ेंगे
इसको सीमेट कर हम अपना कल बनाएंगे
हम गिरे है तो संभल कर भी हम ही दिखाएंगे

यू ही नहीं हम बीच रास्ते में रुक जाएंगे, मंजिल को पाकर ही दम लेंगे, राह हम भी अपनी आसान बनाएंगे, मुश्किलों को पीछे छोड़ आगे बढ़ते जाएंगे, चाहे गई जाए कितनी ही बार हम भी संभल उठ खड़े हो जाएंगे, हम संभलेंगे भी ओर मंजिल को पाएंगे।

यह मन भी

यह मन भी ना जाने क्या क्या करता है कभी, लिखने का मन
कुछ करने का मन
कुछ हो जाने का मन
कुछ भाग जाने का मन
कुछ दूर जाने का मन, कभी पास होने का मन
कुछ नजर चुराने ओर मिलाने का मन
यूं गम को छिपाने और गम बताने का मन
फिर उसको समझाने का मन, कुछ ना बताने का मन
मालूम नहीं क्या क्या
और किस किस
हद्द से गुजर जाने का मन
बस आज यह मन चाहता है,कुछ करने को, कुछ होने को

मॉल

एक समय पर Great India palace मॉल नोएडा का सबसे ज्यादा Crowd अट्रैक्ट करने वाला सबसे बाद मॉल था लेकिन जबसे द अल एफ का सबसे बाद माल बना है उसके बाद से ग्रेट इंडिया प्लेस में लोगों का जाना ही कम हो गया है, सभी लोग अब DLF मॉल की ओर आकर्षित हो रहे है, ओर क्यू न हो उन्होंने DLF के माल में हर एक तरह का ब्रांड मिल जाता है, हर वो मनचाही चीज मिल जाती है जो लोग चाहते है। जिसकी वजह से अब लोगों को कही ओर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, वह लोग अपनी मनपसंद का समान वही से खरीद लेते है।

क्या हुआ ऐसा की GIP mall अब खाली ओर सुनसान सा होने लगा है, अब लोगों की भीड़ भी नहीं आती है, अब लोग DLF के mall में जा रहे है, ओर Great India Palace में नहीं जहा से सारे ब्रांड खतम होने लग गए है, सभी बड़े बड़े शोरूम अब हटने लग गए है, लोगों की भीड़ भी अब उधर से हटने लग गई है, अब कुछ ही ब्रांडेड शोरूम बाकी रह गए है।

लेकिन हर रोज DLF मॉल अब भरने लग गया है हर कोई अब उधर ही जाने लग गया है, Decathlon ने भी अब अपना शोरूम माल के अंदर ही शिफ्ट कर लिया है, अब इनके पास पहले से ज्यादा कस्टमर आने लग गए है, सभी ब्रांड एक रुफ के नीचे होने से इनकी सेल में भी वृद्धि होती है जिसका फायदा सभी ब्रांड को मिल रहा है, साथ ही ये ब्रांड ओर अधिक प्रचलित होते है, ओर जितने भी बड़े बड़े ब्रांड है उन्होंने भी DLF mall ही जगह ले ली है, जिसकी वजह से हर कोई DLF के माल में आना चाहता है।फूड कोर्ट में तो इतनी भीड़ होती है की खाने की टेबल खाली ही होती, और बैठने के लिए जगह भी नहीं मिल पाती जिसकी वजह से खाने का मन ही मर जाता है।

समय का चक्र

समय का चक्र ऐसा है जो किसी को समझ नहीं आता , समय का आना ओर जाना भी पता नहीं चलता, यह अच्छा समय कब आता है ओर कब चल जाता है किसी को नहीं पता चलता बस जब तक सही समय नहीं आता तब तक कुछ भी संभव नहीं होता,  ओर जब जैसे ही समय आता है सभी चीज़े पूरी होती है, सभी अधूरे ओर बिगड़े हुए काम सब पूरे होने लगते है, फिर आपको वो सभी चीज़े पूरी करने की आवश्यकता नहीं होती, वह खुद ही पूरी हो जाती है, जो उस समय के लिए ही जरूरी होती है, उस समय से पहले कुछ भी संभव नहीं है। लेकिन फिर हमे प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिए क्युकी उसी प्रयास करने से वह उस समय पर बिल्कुल सही होती है, जैसी उस समय की मांग ओर आवश्यकता होती है।

समय का चक्र

हम बहुत सारे चीजों के लिए बहुत जल्दी कर देते है, ओर उस जल्दबाजी में बहुत कुछ खराब भी हो जाता है। कुछ चीजों के लिए लेकिन वह सही नहीं होता कई बार ओर कई बार हमे पता नहीं होता की यह समय सही है या नहीं, तो वह समय खुद सब कुछ खुद ही सब ठीक कर कर देता है हम बस उस समय का हिस्सा बन जाते है। अब कोशिश करते रहे, उस चीज के बारे में सोचे ताकि आप उस चीज को पाने के लिए कार्य करते रहे।

जिस तरह से मैं भी इंतजार ही कर रहा हूँ की मैं कुछ बेहतर लिख सकु ऐसा नहीं है की मैं प्रयास नहीं कर रहा परंतु मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ, समय का चक्र ही ऐसा जिसमे फंसा हुआ हर इंसान, मैँ बार बार विचार करता हूँ लेकिन वह विचार मेरे मस्तिष्क से ही निकल जाते है ओर मैं कुछ उन पर नहीं पाता बस इसी तरह से मेरा समय निकल रहा है। एक उचीत समय पर ही वो कार्य पूरा होगा जिसका मैं इंतजार कर रहा हूँ।