शहर की भीड़ और बढ़ता हुआ धुआँ : शहर की भीड़ और धुआँ अब मन पर असर डाल रहा है…
लोग एक-दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ रहे हैं— अनगिनत लोगों का समूह
जैसे मंज़िल के बजाय
बस आगे निकलना ही जीत हो।
पर असल जीत क्या है?
शायद हम सब भूल चुके हैं।
सड़कों पर बढ़ती भीड़ के साथ
एक और भीड़ तेज़ी से बढ़ रही है–
धुएँ की भीड़।
वही धुआँ जो फेफड़ों में उतरकर
सीने पर वज़न बन जाता है,
और साँस लेने को भी एक काम बना देता है।
🚗 शहर की भीड़ में ट्रेफिक का शोर और डूबती साँसे
शाम का समय हो, या सुबह का,
हर तरफ बस यही आवाज़ें—
गाड़ियों के हॉर्न,
बाइकों की तेज़ रफ़्तार,
लोगों की जल्दबाज़ी,
और हवा में उड़ता हुआ धूल + धुआँ का ज़हर।
इस शहर को कभी सपनों का शहर कहा जाता था,
अब यही शहर
आँखों में जलन और फेफड़ों में भारीपन छोड़ जाता है।
आप चाहें भी तो
साफ हवा सिर्फ एक याद बनकर रह गई है।
🌁 यह धुआँ सिर्फ हवा में नहीं…
कहने में अजीब लगता है
लेकिन यह धुआँ सिर्फ हवा में नहीं,
हमारी सोच में,
आदतों में,
और इस तेज़ रफ़्तार शहर की
जीवनशैली में भी भर गया है।
हम इतने भाग रहे हैं
कि रुककर यह महसूस भी नहीं करते
कि क्या खो रहा है…
• शांति
• सुकून
• अपनेपन का एहसास
• और खुद के लिए बची हुई साँसें
🔥 भीड़ कम होती नहीं… बढ़ती जाती है
हर दिन नई गाड़ियाँ,
नई इमारतें,
नई लाइटें,
और नए बहाने–
लेकिन पुरानी हवा और थकी हुई सड़कें।
शहर बदलता जाता है,
लेकिन इंसान अंदर से
और भी थकता जाता है।
🌙 रात की हवा भी अब साफ नहीं
रात का समय कभी सबसे शांत माना जाता था।
लेकिन अब रात भी
एक धुँधली चादर ओढ़ लेती है
जिसमें चाँद भी
धुएँ के पीछे लटका सा दिखता है।
कभी-कभी लगता है
ये शहर हमसे नहीं,
हम इस शहर से
हारे हुए खिलाड़ी बन रहे हैं।
इस सड़ती हुई, धुँधली हवा में
सबसे मुश्किल काम है—
“साफ दिल के साथ जीना।”
क्योंकि हवा प्रदूषित हो जाए
तो मास्क पहन लेते हैं।
लेकिन जब
विचारों में प्रदूषण भर जाए,
जीवन में दौड़ का धुआँ भर जाए,
तो कौन-सा मास्क पहनें?
💭 अंत में बस एक सवाल…
क्या ये शहर हमारी साँसें ले रहा है,
या हम ही अपनी साँसें
बेपरवाही में खोते जा रहे हैं?
क्या हम शहर की इस भीड़ में
किसी मंज़िल की ओर बढ़ रहे हैं,
या बस भीड़ के बहाव में
बह रहे हैं?
“शहर की भीड़ हमे बाहर से नहीं, भीतर से भी थक देती है।”
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