मैं मनमर्जी हूँ

हाँ और ना एक इशारा है जो मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं मनमर्जी हूँ, हाँ और ना, एक इशारा है,
मन की बातों का पहरेदारा है।
कभी मंज़ूरी, कभी अस्वीकार,
इसे समझने में है कठिन बहुत बार।

हाँ कहने से हमेशा डर लगता है,
ना कहने से दिल को तसल्ली नहीं मिलता है।
कभी खो देते हैं अच्छे मौके,
कभी अच्छे मौके खुद ही छोड़ देते हैं।

इशारा ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी,
जब शब्दों में नहीं बयां हो पाती कहानी।
पर दिल के बातों को समझना तो है मुश्किल,
हर इशारे पर विश्वास करना उचित नहीं होता है।

मनमर्जी होना, कुछ लोगों को अच्छा लगता है,
खुद को खोलना, सबको अपनी बात कहने में खुशी मिलती है।
पर हाँ और ना की दुनिया भी जरूरी है,
समझने वाले के लिए यह एक अद्वितीय कहानी है।

हाँ और ना एक इशारा है जो मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं मनमर्जी हूँ, हाँ और ना, एक इशारा है,

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *