अपने ख्वाबो की डोर किसी और के हाथो में ना दो , वो कब उसे छोड़ दे, ये जाना मुझे नहीं।
हर रात जब आंखें बंद करता हूँ,
मेरी ख्वाबों की उम्मीद दिल में जगाता हूँ।
पल-पल उनके संग बिताने की सपने सजाता हूँ,
मगर कहाँ तक मेरी इच्छा को मानता हूँ।
ख्वाबों की डोर जो मैंने खींची है सजाकर,
उन्हें तोड़ देने का ख़याल बहुत आता है।
कभी उनकी हंसी को देखकर खो जाता हूँ,
और फिर सपनों के सीने में उन्हें समाता हूँ।
पर क्या होगा जब वो मेरे ख्वाबों को छोड़ देगा,
अगर उनकी दुनिया में मेरी जगह नहीं रहेगी।
क्या मैं खुद को संभाल पाऊंगा फिर,
या उजड़ जाएगा मेरा हर अरमान और ख्वाबी।
अपने ख्वाबो की डोर का मेरी जिंदगी से रिश्ता,
ये तारीख़ तक चलता रहेगा क्या।
जब तक मेरी उम्र के बंद नहीं हो जाते,
मैं अपने ख्वाबों की डोर पर जीना चाहता हूँ।
पर जब उस दिन वो डोर मेरे हाथों से छूटेगी,
मैं अपनी तक़दीर के आगे सिर झुकाएगा।
जो भी होगा, वो मैं स्वीकार कर जाऊंगा,
और ख्वाबों की डोर को आखिरी सलाम कह दूँगा।