जल्दी तो कभी देर

कभी जल्दी तो कभी देर बस यही है समय का हाल, समय कही है या नहीं इस बात का भी नहीं मालूम हमे, कभी आगे तो कभी पीछे है समय से तो कभी साथ साथ तो कभी नहीं चल पाते हम
वैसे एक बात यह भी है कि क्या समय कहीं है भी या नहीं ? समय की अपनी चाल है या समय ठहरा हुआ है, समय की घटना का किसको पता यह भी नहीं पता हमे।

मेरे विचार से समय कहीं नहीं है बस यह बात हम समझ नहीं पा रहे है और समय को बस हमने घड़ी , सूरज के उगने और ढलने , चांद के आने पर जाने , तारो के दिखने और ना दिखने से समझना शुरू कर दिया है इसके विपरित कुछ भी नहीं है यदि हम इस पृथ्वी पर ही देखे तो कहीं रात है तो कहीं दिन है किसी के लिए क्या समय है और किसी के लिए कुछ हम सभी के लिए समय एक सा नहीं है।

बस यह समय की दौड़ हमने खुद ही बना ली है, अपने लिए हम खुद को बांधे का रहे है इस समय की एक उलझन है, जिसे आप और मै समय चक्र मानकर जीवन को व्यतीत कर रहे है।

जल्दी कभी तो देर
जल्दी कभी तो देर

प्रतिदिन आपके मस्तिष्क में नए विचार आते है, नए विचारों की श्रृंखला उजागर होती है, नए नए दृश्य आपके सामने आते है, और बहुत सारी नई नई किर्याए होती है प्रतिदिन एक नया सवेरा और ढलती शाम है, जिसके परिणाम स्वरूप हम सभी यह बात कहते है कि समय , इस पहर , इस क्षण यह घटना घटी जिस पर हम चक्र बना देते है, उसी को हम सभी समय चक्र कहने लग जाते है। और उसी समय चक्र में हम हमेशा चलते रहते है, जिससे शायद बाहर निकलना बहुत मुश्किल सा होता है।

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