मैं कुछ लिखना चाहू

मन के इन सदृश पन्नों पर मैं कुछ लिखना चाहू

मन भीतर की कल्पनाओ से

इस जीवन को जैसा चाहू वैसा मैं बनाऊ

इस मन को

इस मन को

जीवन की

उधेड़ बुन में

मैं ना उलझाऊ – मैं ना उलझाउ

मन अलग अलग राहों में उलझे

कैसे मैं इसको सुलझाऊ

मन भीतर

मन भीतर

मन भीतर करे राग द्वेष

तन बैरी हो जाए

इच्छाओ का लगाके मेला

इस तन को खूब नाच नचाए

जगत के इन दृश्यों में

यह मन अटक बार बार जाए

जगत जाल में यह तन फँसता जाए

अरे मेरा तन बैरी हो जाए

यह तन बैरी हो जाए

मन के इन सदृश पन्नों पर मैं कुछ लिखना चाहू

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