भूल जाता हूँ, भटक जाता हूँ, शायद बेहोशी के आलं में भी खो जाता हूँ, अपनी चुनी हुई राहों से फिर ठोकर खाकर होश में आता हूँ संभल जाता हूँ चलना, दौड़ना फिर से सिख जल्द वापस आ मैं जाता हूँ ,

फिर अपनी पसंदीदा राहों पर, उन राहों से कैसे दूर मैं रहु जिन राहों पर कदम रख रख बड़ा हुआ हूँ। उनही राहों से मैंने जीना सीखा है, उन राहों से ही जिंदगी का हर पहलू समझ आया है, मुझे उन राहों पर ही चलना पसंद है जिन राहों पर मैंने जीवन का रस पाया है।
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