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इश्क की खुमारी

जो शायरियाँ लिखी थी तेरे इश्क की खुमारी में
आज उसकी कीमत दस रुपए लगाई है कबाड़ी ने

इश्क की खुमारी
Sanjay gupta shayri

जो शायरियाँ लिखी थी तेरे इश्क की खुमारी में
आज उसकी कीमत दस रुपए लगाई है कबाड़ी ने

दिल की बातें जो लिखी थीं, वो अब बेचने आए हैं,
उन अक्षरों को अब एक मोहल्ले में बसाने आए हैं।

कितनी मेहनत से रची थीं वो शेरों की पंक्तियाँ,
आज उनकी कद्र बस रुपए की बिक्री में होती है।

प्यार की कहानियाँ, ज़िन्दगी की कविताएँ,
कबाड़ी की आँखों में बेचने को आज लाए हैं।

मेरे इश्क़ के बदले, दस रुपए की कीमत,
ये कैसी दुनिया है, ये कैसी कहानी है।

पर शायरी की ताकत नहीं घटी है मेरे दोस्त,
वो दिलों को छूने की क्षमता आज भी रखती है।

कोई खुश है

कोई खुश है तुम्हारे बिना उसे खुश ही रहना दो
क्यों तुम उसे परेशान करते हो,
जनाब उन्हें कबुल है उनकी खुशनुमा जिंदगी
तो उन्हे उस जिंदगी के संग ही रहने दो

आप कौन होते हो ?
खलल डालने वाले वो अब दूर है आपसे
अब जरा उन्हें दूर ही रहने दो ,
वो बाते बेमतलब की थी।

वो इरादे भी मतलब के रखते थे
फिर क्यों अश्क़ बहाते हो ?
नादान है दिल ,
क्यों इसे बार बार उनके लिए समझाते हो ?

छोड़ दो ,
अब क्यों बेमतलब में तुम उनके लिए अश्क़ बहाते हो,
जब रिश्ता टूट गया है – जब रिश्ता टूट ही गया है
फिर क्यों तुम अपने भीतर अशकों का संबंध बनाते हो

छोड़ दो , जो छूट गया है
अब क्यों जबरदस्ती उस रिश्ते को पकड़े हुए नजर आते हो ?
बस अब तुम ही खुश रहो क्युकी वो भी खुश है तुम्हारे बिना
बेमतलब ही क्यों तुम अश्क बहते हो।

कोई खुश है तुम्हारे बिना , उसे बस खुश रहने दो

वैसे तो कई शिकवे

वैसे तो कई शिकवे है
Sanjay gupta shayri

वैसे तो कई शिकवे हैं तुम्हारे हमसे, पर सुनो!
शिक़ायत करती हो तो बहुत प्यारी लगती है…

वैसे तो कई शिकवे है तुम्हारे,
मगर शायरी के जरिए अदाएं करते हैं हम।
जब भी तुम्हें याद करते हैं हम,
दरिया-ए-गम में इक नया सफ़र तराशते हैं हम।

तुम्हारी बातों में ज़रा सी ढ़ेर है गिले,
मगर उन गिलों को शायरी के रंगों में रंगते हैं हम।
कभी गुस्सा करते हो तुम हमसे,
शब्दों की लहरों में वफ़ा की आवाज़ बुलाते हैं हम।

जब तुम्हें अकेलापन महसूस होता है,
शायरी की बाँहों में तुम्हें ले आते हैं हम।
मोहब्बत की कश्ती के लिए जो शिक्वे हैं,
उन शिक्वों को रूह की गहराईयों में छिपाते हैं हम।

तुम्हारी यादों की बारिश में बहते हैं हम,
ज़िंदगी की मस्ती को नया रंग देते हैं हम।
शिकवे हो या गिले, तुम्हारे हर एहसास में,
शायरी की ज़ुबान से प्यार का इज़हार करते हैं हम।

क्या करता हूँ मैं

क्या करता हूँ मैं दिन भर ? वैसे तो मैं कुछ नहीं बस अगर सच बताऊ तो सिर्फ लिखने की कोशिश करता हूँ, ओर जो मन में आता है वही अब लिखता हूँ, चाहे मैंने कितना ही सोच रखा हो दिमाग में लेकिन वो एक दम शब्दों को पन्नों पर नहीं उतार पाता है।

इसलिए घंटों बैठ जाता हूँ खुद के साथ अकेले में ताकि मैं कुछ कुछ लिखू जो विचार आ रहे है उन शब्दों में उतार सकु, बस यही एक वो जरिया है , जिसकी वजह से मुझे बहुत शांति मिलती है , लगता है भीतर बहुत कुछ भरा हुआ जिसे बाहर निकाल देना है।

इसलिए मैं अपने लैपटॉप के सामने बैठ जाता हूँ ओर गूगल कीप जिसमे मैं लिखता हूँ, उसको खोल लेता हूँ, जैसे ही कोई विचार मेरे मन में आता है मैं उसे लिख लेता हूँ, यही मैं पहले भी करता था, तब मैं अपनी छोटी सी नोटबुक ओर पेन लेकर बैठ जाता था।

किस तरह से मैं लिखता था उस समय: अपने मस्तिष्क के विचारों पर गौर किया करता था की मेरे दिमाग में चल क्या रहा है? मैं सोच क्या रहा हूँ? असल मैं नहीं, मेरा दिमाग सोचा करता था बस उस दिमाग को मैं देखता था।

मैं आपको बताता हूँ, वो शुरुआत कैसे हुई जब मुझे घंटों बैठना पड़ता था, सिर्फ एक विचार के लिए , सिर्फ कुछ शब्दों के लिए की मैं लिख पाउ उन विचारों को पन्नों पर उतार मैं सकु बस इसलिए तब भी घंटों कॉफी होम में बैठता था। क्युकी एक एक विचार बहुत देर में आता था।

वो विचार जो ब्रह्मांड से आते थे , जो मुझे प्रकृति से जोड़ते थे , एक संबंध स्थापित करते थे , उन शब्दों को मैं सुनता ओर लिखता था , मुझे कुछ नहीं पता बस मैं लिख लेता था, जैसे मैं सवाल पूछ रहा हूँ ओर मेरे जवाब मुझे मिल जाते थे , कुछ बस सवाल ही बनकर भी रह जाते थे की इनका जवाब कुछ समय बाद मिलेगा अभी नहीं।

मैं हर रोज शिवाजी स्टेडियम के पास कॉफी होम है उधर जाता था, जिससे की आराम से बैठकर लिख सकु जो नया विचार आए उसको पकड़ सकु , उस समय मैं अपनी पुस्तक “कौन हूँ मैं” की शुरुआत पर था बस मन में यही विचार था ओर इसी किताब के इर्द गिर्द सभी प्रश्न ओर उत्तर बन रहे थे।

क्या करता हूँ मैं यह बात मैंने आपको बताई अब आप मुझे बताए की आप क्या करते है।

तुम्हारी याद है ना

तुम्हारी याद है ना

तुम्हारी है याद ना 


यही एक मेरी जायदाद है , ये जो तुम्हारी याद है ना बस,
जैसे खुदा का एक फ़रमान है यहाँ।
जब भी याद आती हो तुम मुझे,
दिल में ज़िंदगी का एक हसीन शहर बसा है यहाँ।

हर एक पल में तेरी याद में खो जाते हैं हम,
कुछ अलग सा एहसास जगाती हो तुम।
जैसे हवाओं की झोंका हो तुम मेरे दिल में,
इस तरह बसते हो तुम इस दिल के किनारे पर।

चाहत की बूंदों में संग बहाते हो तुम,
ख्वाबों की दुनिया में ले जाते हो तुम।
जब भी याद आती हो तुम मुझे,
आंखों में चमक और दिल में खुशियाँ जगाते हो तुम।

ये जो तुम्हारी याद है न बस,
इसे शायरी की बहार बना देते हैं हम।
तुम्हारी याद जैसे गुलाब की खुशबू,
मेरे जीवन की राहत और सुखद समां है यहाँ।

चेहरे की खुशी

किसी के चेहरे की खुशी को अपनी खुशी समझना
शायद इसी का नाम मोहब्बत है….

जब उसकी हंसी से दिल मुस्कराता है,
जीवन के गमों को भूल जाता है।

उसकी नज़रों में खिलती है ज़िंदगी की रौशनी,
हर लम्हे में बहार और हर ग़म को भुलाती है।

जब वो प्यार से मुस्कराती है,
दिल में ख़ुशी का आगाज़ हो जाता है।

उसकी मुस्कान का इतना असर है,
जैसे ख्वाबों को रंगीं आशियाँ बनाती है।

मोहब्बत का नाम है ये ज़िंदगी की ख़ूबसूरती,
जो खुद को भूलकर दूसरों को ख़ुशी देती है।

इस मोहब्बत की रौशनी में जीना है ज़रूरी,
चेहरे की खुशी को अपनी खुशी समझना है मज़बूरी।

यह भी पढे: मेरी मुस्कुराहट, मुस्कुराहट छुआ छूत, खूबसूरत चेहरा बूढ़ा, छोटी कविता,

मूड को फ्रेश बनाना

मूड को फ्रेश बनाना है जिंदगी , जिंदगी कभी रुलाती है तो कभी हँसाती है, हर गम को भुलाती है जिंदगी, तुम्हारी मंद मुस्कान को मुस्कुराहट का नाम भी है जिंदगी, कभी मूड को खराब कर देती है तो मूड फ्रेश कर देना ही है जिंदगी,

मूड को फ्रेश बनाना है जिंदगी

मूड को फ्रेश बनाना भी है ज़िंदगी

लगातार जिंदगी को बेहतर बनाना ही हमारा काम है, जिंदगी बहुत बड़ी है ओर हम बहुत छोटे है। इस जिंदगी को बहुत बड़ा ही समझ कर जिन चाहिए तभी हमारे सारे सवालों ओर परेशानियों का समाधान मिलता है, यदि आप मुस्कुरा नहीं पा रहे है, तो जिंदगी की मुस्कुराहट को देखो जरा वह कितना मुस्कुरा रही है, क्या जिंदगी दुखी है? क्या जिंदगी परेशान है? तकलीफ ओर दुख तो तुम्हारी जिंदगी को है इस नन्ही सी जान को इतना परेशान कर रहे है हम।

इसलिए खुद को जिंदगी समझकर जिओ खुद को मानो जिंदगी हूँ मैं ओर जिओ इस जीवन को अपनी आदत में कुछ ऐसे शब्दों को जोड़ लेना बेहद जरूरी है।

सोचकर बाजार गया

सोचकर बाजार गया था अपने कुछ अश्क़ बेचने…
हर खरीददार बोला, अपनों के दिये तोहफे बिका नहीं करते

मेरे दिल की गहराइयों में छुपी है ये कहानी,
जहाँ दर्द के बीज उगाए, प्यार के फूल खिला नहीं करते।

प्यार की कीमत सबको समझाने को आया था मैं,
पर जब देखा दुनिया ने, रिश्तों का मोल गिना नहीं करते।

हर चेहरे के पीछे छुपा है दर्द और गम का सौदा,
जब तक शायद उन्हें ख़रीदने वाला उनकी अदा समझा नहीं करते।

अश्क बिकाने गया था बाज़ार में, लेकिन वहाँ कोई ख़रीदने वाला नहीं,
क्योंकि प्यार और दर्द की कीमत कोई तोला नहीं करते।

सोचकर बाजार गया था।

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अधूरा ही रहने दे

मुकम्मल ना सही तो अधूरा ही रहने दे
ऐ सितमगर, ये इश्क है कोई मकसद तो नहीं।

दिल की गहराईयों में छुपी उम्मीदें हैं,
जो जगा रहीं हैं, मगर अभी तक नहीं मिली।

आग जब भी जलती है, दिल में एक ख्वाहिश है,
जो बुझा रहीं हैं, मगर अभी तक नहीं मिली।

खुशियों की दौलत में कुछ कमी सी है,
जो पूरी नहीं हुई, वो ख्वाब तो नहीं मिली।

शायद ये इश्क ने छीन ली है सारी रातें,
पर वो सुबह अभी तक नहीं मिली।

ज़िंदगी की राह में इश्क का सफर जारी है,
कुछ ऐसी ही अधूरी कहानी रहने दे।

ऐ सितमगर, तू ही तो है जो रुका है मेरे दिल को,
मुकम्मल ना सही, पर अधूरा ही रहने दे

यह भी पढे: बड़े अधूरे अधूरे, ख्यालों को अधूरा कैसे, अधूरी खवाइश, मुकम्मल ना सही,

दुख क्या है?

दुख क्या है?

दुख क्या है ? दुख क्यों पैदा होता है ? दुख के पैदा होने कारण क्या है ?
वैसे तो दुख जैसा कुछ नही है बस एक विचार है जिसको हमने बहुत बड़ा बनने का मौका दिया है इस दुख शब्द को हमने थोड़े भाव क्या दे दिए ये दुख तो हमारे सिर पर ही चढ़ने लग गया है और हमारे सिर पर ही मंडरा रहा है तथा जकड़ कर रखता है ताकि हम इससे छूट ही ना सके।

अपने जीवन पर हावी होने मौका दिया है और यह बस बढ़ता ही जाता है और सुख का आनंद क्षणभंगुर होता जाता है अब सुख का जो समय है वो छोटा हो गया क्योंकि हमने दुख को अधिक महत्व दे दिया है दुख को हम पाल पोष रहे है लेकिन सुख को बस एक पल का समझ कर जिये जा रहे है सोचते है यही कुछ पल है जी लो सुख के लेकिन यह कुछ पल हमने ही सीमित किये है इनको हमने ही सिकोड़ कर रख दिया है दुख अपना विस्तार कर रहा है और सुख सिकुड़ता ही जा रहा है।

दुख एक विचार है और यह विचारो का एक समूह बना लेता है इस मस्तिष्क में जिसके कारण दुख बढ़ता जाता है जो बार बार अलग तरीको से हमारे मन के द्वारा बुद्धि को बार बार नकारात्मक बिचारो की और बल दिलवाता है जिसके कारण है हम सिर्फ अपने भीतर उन विचारो का समावेश कर लेते है जिनसे हम अपना मानसिक संतुलन खो देते है

दुख को आमंत्रण क्यों दिया
जब दुख को आमंत्रण दिया है तो इस दुख को भी हँसना सिखाओ उसके साथ भी खेलो दुख है एक ऐसा रिश्तेदार है जिसकी खातिरदारी करने पर वो भाग जाता है यदि इन दुखो को देखकर ओर दुखी हुआ जाएगा तो फिर यह भी ओर समय तक रुक जाता है इसलिए ऐसा रिश्तेदार कहा मिलेगा जिसकी खातिरदारी करने से वो जल्दी चला जाए ऐसा रिश्तेदारों को तो गले से लगाना चाहिए।

दुख को अपनेे जीवन से कैसे निकाले ?
दुख मात्र एक विचार है जिसको आप बढ़ावा दे रहे है अनेकानेक सम्भवनायो के साथ जो वास्तव में कुछ भी ना थी।

दुख और सुख समानांतर ही बात है, लेकिन हम दुख का चिंतन ज्यादा लंबे समय तक करते है इसलिए दुख हमारे साथ चिपक जाता है और सुख बहुत काम समय के लिए हमारे साथ पाता है
यही कारण है हमारा जीवन ज्यादातर दुख से घिरा रहता है ,
और सुख से अछूता होता जा रहा है।

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