हमारा दिमाग

जब हम घर बैठे होते है तब हमारे दिमाग की हालत कैसी होती है? हमारा दिमाग क्या सोचता है या फिर सोचना ही बंद हो जाता है? हमारा दिमाग उन सभी कार्यों में उलझ कर रह जाता है, जो हमे शायद कभी पसंद भी नहीं थे, अब हम भी उन कार्यों की ओर ध्यान देने लग जाते है जो हमारे लिए पहले बिल्कुल भी जरूरी नहीं थे।

जानते इस बात को हमारे विचारों पर क्या असर आता है, जब हम घर से बाहर ही नहीं निकलते

हम सिर्फ इस बारे में ही सोचते है की क्या करे ओर क्या नहीं क्युकी हमारे खुद के काम तो कुछ होते नहीं है लेकिन घरवालों के बहुत काम होते है, जैसे की दूध लाना , दही लाना घर का कोई भी समान खतम हो जाता है तो बस अब आपको ही याद किया जाएगा, खाली बैठे कुछ नहीं कर रहा तो यह कपड़ा ले ओर सफाई करले, झाड़ू मारले, पोचा मारले कुछ तो करले निकम्मे लेकिन खाली नहीं बैठ तू बस कुछ करले लेकिन खाली ना बैठ।

किसी का फोन आ गया है लेकिन घरवाले क्या बोलेंगे

इसके जैसे आवारा, निकम्मे लड़कों के फोन ही आ रहे होंगे काम का कोई ना फोन होगा बस पूरे दिन या तो गेम खेलता है या इसके फालतू दोस्तों के फोन आते है कोई काम नहीं करता कुछ ना कुछ चरता रहता है।

सुना सुना कर बुरा हाल कर देंगे लेकिन यह नहीं पूछेंगे की तू क्या करना चाहता है, तेरा मन किसमे लगता है जो तेरा मन करे वही कर तू, अच्छे से तैयारी करले तू , जितना चाहे उतना समय ले तू हम तेरे साथ है बस यही वो शब्द है जो एक बच्चा सुनना चाहता है, अपने घरवालों से लेकिन उसे यही शब्द सुनने को कभी नहीं मिलते, ओर वह बच्चा अपनी जिंदगी के लक्ष्य को छोड़ जैसा घरवाले बोलते है वही करने लग जाता है वो बच्चा।

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