कलाकार का जीवन
कलाकार पर्दे पे आपके सुख दुःख भोगता…..
कलाकार किरदार भीतर स्वय के सोखता।
अपनी कला का जलवा मंच पे बखेरता….
किरदार में अपनी कला के प्राण फूकता।
कलाकार अभिनय को देता उत्तम आकर ….
एकलोते जीवन में जीता भिन्न भिन्न किरदार ।
कलाकार की ख़ुशबू चारों और फैलती…
प्रशंसा उसके कार्य में नई ऊर्जा भरती ।।
कलाकार समाज का वो नुमाइंदा…..
भीतर से वो भी शख़्स अच्छा या गंदा ।
कलाकार में हम शख़्सियत नहीं नायक को खोजते …..
उस नायक से क़ायम होता रिश्ता बड़ी शिद्दत से उसे हम पूजते ।।
कलाकार का जीवन, पर्दे पे आपके सुख दुःख भोगता,
किरदार भीतर स्वयं के सोखता।
रंग और अभिनय की दुनिया में खो जाता है सब,
अपने भावों के माध्यम से जगत को भर देता है अर्थ।
प्रेम, विरह, आनंद, विलाप, सबको अदा करता है वह,
जीवन के हर रंग को अपनी कला से सजाता है वह।
कला के सम्राट, कलाकार नाम उनका,
रंगमंच पर जीवन का सच उनका।
संगीत की साज, नृत्य की आवाज,
सभी रसों को जीवंत करता है वह राज।
पढ़ता है वह वाचिक विधान,
साधक के रूप में निभाता है अद्वितीय ध्यान।
नाटकों के पट पर, सिनेमा की दुनिया में,
कलाकार रचता है अपनी कहानी में।
जीवन के रंगों को चित्रित करता है वह,
अपनी कला से जन-जन को भरता है वह।
जीवन-संगीत की लहरों में नाचता है वह,
अपनी अभिनय की कविता सुनाता है वह।
कलाकार का जीवन, रंग और रूपों का संगम,
अपनी कला के साथ जीने का अद्वितीय उपयोग।
धन, यश या स्थान की परवाह नहीं होती उसको,
उसकी प्राथमिकता होती है अपनी कला में खोने की।
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