कुछ तो लिखे हम, हर रोज तो लिखने को नही होगा
क्या यह बात है सही
नही नही
यह बात तो बिलकुल भी सही नही
क्यों
क्युकी हर पल , हर क्षण , हम अपने भीतर भर रहे असंख्य विचार उन्ही का समूह हम बना रहे है। बना रहे विचार पर विचार
फिर कैसे कुछ
फिर कैसे कुछ ना होगा कहने को
सुनने को
सुनाने को
कैसे ना होगी बात
और फिर कैसे ना होगी हमारी और आपकी मुलाकात
होगी और बहुत सारी होगी बात, कुछ नए शब्द और विचारो के तालमेल संग हम और आपका होगा साथ
कुछ तो लिखे हम, हर रोज लिखना ज़रूरी नहीं है,
यह सत्य नहीं है बिलकुल भी।
क्योंकि हमारे भीतर बसते हैं
असंख्य विचार, भावनाएं अनगिनत।
हर पल, हर क्षण ये विचार घुलते हैं,
उनसे ही हमारी कविताएं मिलती हैं।
ये विचारों का समूह हमें बनाता है,
कविता की रचना में उन्हें समाता है।
कविता हमारी आत्मा की अभिव्यक्ति है,
जब विचारों को शब्दों में बदलती है।
हर रोज़ लिखकर हम बनाते हैं वाद्य,
अपनी भावनाओं को साझा करते हैं यहाँ।
तो हर रोज़ लिखने को हो सकता है,
यह बात बिलकुल सही हो सकती है।
क्योंकि जब विचार बहुत हों अनगिनत,
उन्हें शब्दों में छिड़कते हैं हम नित्यत।