बुरा अच्छा समय – सुख दुःख
समय सूर्य की किरण जैसे दमकता व् चलता रहता है सब ठीक चलता है हर वस्तु सुख देती है हर चीज़ सही दिशा में है. फिर लगता है सूर्य की नन्ही सी किरण भी कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती, लगता है काले बादलो में घनघोर अँधेरा अपनी छाया से जैसे सारे प्रकाश को खा जाता है. अशुभ, अति क्रूर, दुखदायी व् आघातक समय जब आता है लगता है सब समाप्त हो जाएगा।
क्या समय कभी बुरा या अच्छा होता है?
समय तो सूर्य की तरह सदैव चमकता, चलायमान है हम जो चाहे करें, प्रतिक्रिया करें अथवा उपेक्षित कर कुछ न करें सूर्य देव एक ज्वाला बने अपनी सत्ता में रहते हैं और जीवनदायनी पृथ्वी जैसे ग्रह को ऊर्जा देते रहते हैं. काल भी इसी तरह चलता रहता है.
समय है क्या? समय काल रूप में एक आयाम है, जो दिखे न दिखे चलता रहता है कभी नहीं रुकता। समय रेखीय नहीं अर्थात एक रेखा में नहीं चक्र में घूमता है. हमारे आकाशिक ब्रह्माण्ड में मनुष्य व् देवों के लिए समय चक्र घूमता है जैसे हर ग्रह अपने कक्ष में घूमता है. युगों पूर्व जब भारत धरती के गोलाकर अटूट भूखंड का केंद्र भाग था तभी से उसके ऋषिओं को खगोल व् काल चक्रों का ज्ञान था.
समय के चक्रो को हम ३६० अंशो में बांटते हैं उनका अध्ययन करने के लिए. हर ग्रह का अपना समय चक्र है जब हम दो भिन्न ग्रहो के समय चक्रों का अध्ययन करतें हैं तो उसे नक्षत्र-विद्या भी कहते है पर उसके अंतर सूक्ष्म प्रकाशमान ऊर्जा के प्रभावों व् पृथ्वी पर तत्वों व् जीवों पर उनके पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन को हम ज्योतिष भी कहते हैं. ज्योतिष शास्त्र इन्ही काल चक्रों का नियमबद्ध अध्ययन हैं. ३६० अंशो को हम ३० अंशो के १२ भागों में इसलिए बांटते हैं ताकि इनको अच्छी तरह समझा जाए, ज्ञान आत्मसार करने समझने के लिए अध्ययन को अध्यायों में बाँटना पड़ता है, जैसे पूरी रोटी आदमी के मुँह में नहीं डाल सकते उसके टुकड़े करने पड़ते हैं. पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य दृश्य मान व् अदृश्य ग्रह हमारे आकाशगंगा ब्रह्मांड में स्थित हैं ज्योतिष विज्ञान पृथ्वी को या सूर्य को केंद्र मानकर किसी भी जन्मी सत्ता या घटना की तिथि अनुसार काल चक्रो, ग्रहो व् उपग्रहों के प्रभाव अनुसार, उसका विश्लेषण करता है.
समय ख़राब या अच्छा नहीं होता पर हर जन्मे जीव व् सत्ता पर समय चक्रो का प्रभाव बहुत सूक्षम रूप से पड़ता है. यह कोई जादू या चमत्कार नहीं है न ही कोई ज्योतिष किसी जीव या सत्ता पर केंद्रित ऊर्जा के प्रभाव से बचा सकता है, हाँ हम जान कर कोई निवारण ढूंढ सकते हैं.
समय बुरा नहीं होता, जीव के जीवन काल के कुछ हिस्से इस अवतरित जन्म में बुरे या भले होते हैं.
आप ने देखा होगा संभवतः अनुभव भी किया होगा जब हमारा अच्छा समय होता है हम नशे जैसी कृत्रम आनंद अवस्था में होते हैं. जब दुःख के काले बादल छाते हैं तो हम ईश्वर को स्मरण करते हैं, शास्त्रों के पठन व् मन्त्र उच्चारित करके मांगते हैं के हे प्रभु रक्षा करो मुझे बचा लो, अमुक को बचा लो, वो गिर रहा है उसे संभाल लो इत्यादि।
अदृश्य जगत से संसर्ग व् सम्पर्क
भारत के महा ज्ञानी संतो महात्माओं ने कई बार दोहराया है गाया भी है जिसे संभवतः आपने सुना भी है, की प्रार्थना अदृश्य जगत से संपर्क करने के लिए ऐसा यन्त्र है जिसका प्रभाव है पर – वह तभी होता है जब प्रार्थना अपने सुखमय, आनंदित व् अच्छे समय में करें. चाहे हम धन्यवाद दें, उपासना करें वह कहीं नहीं जायेगी जब हम उसे अपने स्वार्थ हेतु केवल दुःख में करें। इसीलिए शायद ज्ञानी अन्तरध्यानी सत्ताओं को दुःख के समय में भी इतनी पीड़ा नहीं होती जितना जन साधारण को होती है. प्रभु वह परम आत्मा सुहृदय स्थायी सत्ता है जो स्थायी रूप से सदा आनंदित है वहां पहुँच या संसर्ग का साधन केवल वह “समय” है जब हम आनंद और सुख की चरम अवस्था में हों तभी हमारी प्रार्थना कहीं जायेगी. इस अवस्था में सम्पर्क बिना शब्दों के होता है. हमारे भाव प्रभु तक पहुँच सकते हैं और अपनी आत्मा के केंद्र में द्रवित हो मन के ऊपर पड़े विकार भी धो डालेंगे.
दुःख ? सुख में तो सब हमें मित्र समझेंगे पर दुःख में अपने कर्म या कोई भी साथ न दे तो हम अदृश्य जगत की शरण में जाते हैं. दुःख तो समुपस्थित या लगभग तय हैं के आएंगे ही बचना कठिन है चाहे कुछ भी करें इस जन्म में चाहे दुष्कर्म या पाप न भी हों पिछले जन्म के पाप उभरेंगे; वह भी तब जब हम कभी सोच भी नहीं सकते। सुनने में बुरा लगता है. बुरा नहीं सत्य है. सत्य सदैव कडुवा है ग्रहण करो या नहीं।
बुरा अच्छा समय
बुरे समय में प्रभु से प्रार्थना न कर उसे धन्यवाद दें के कृपया इन दुखों के सहने की क्षमता देना, जो भी हो रहा है मेरे ही अज्ञानता पूर्वक किये कार्यो के परिणाम हैं. जब समय पर पढ़े नहीं परीक्षा फल तो दुखद ही है.
बार बार धन्यवाद करें जीवन धारा अभी भी बहे जा रही है बस जल कम हो रहा है. दुःख के समय केवल तब आते हैं जब हम सुख में, मौज में आनंद में तो परमात्मा को भूले रहे और अब स्वार्थवश काम पड़ा तो उसे याद करलें, मंदिरो मस्जिदो में माथा रगड़ें – ऐसा करने से कुछ प्राप्त नहीं होता.
तो अच्छे समय में प्रार्थना कर सम्पर्क स्थापति करें। बुरे समय में धन्यवाद देते रहें। जब भी कभी परमात्मा के आँखों से दर्शन करने हों तो गायों के पास जाकर बैठ जाएँ उनकी सेवा करें; किसी भी जीव जो वेदना में हैं उसे अपनी निष्काम सेवा द्वारा आरोग्य करने की चेष्टा करें, ऐसा होने पर आपका सन्देश अदृश्य जगत तक तत्काल पहुंचेगा.