पेन ओर पेपर का इस्तेमाल करना बेहद खास होता है, यह एक बेहतर अनुभव है, पन्नों पर लिखना भी खास है, इन पर लिखने का अपना ही मजा है।
विचार कही रुके रुके से है, जो कहना जो कहना तो बहुत कुछ चाहते है, लेकिन कह नहीं पाते, ना जाने क्यू ये विचार खुद में ही काही अटके से है, लगता है कही भटके से है, मैं इंतजार करता हूँ इन विचारों का की मैं इन विचारों को लिख लुँगा, इनकी बात कुछ कह दूंगा लेकिन यह तो मौन हो जाते है, अपनी ही बाते अपने भीतर ही दबा कर बैठ जाते है।
मेरे भीतर ही कही रुक जाते है, कोशिश करता हूँ इनको बाहर निकालने की लेकिन यह विचार तो बाहर ही नहीं आते, जब जब मैं पेन ओर पेपर लेकर बैठता हूँ तो मेरे विचार भी धीमे हो जाते है, लेकिन लैपटॉप पर यही विचार बहुत तेजी दौड़ने लगते है, भागते है तो फिर इन्ही विचारों में भटकाव भी आता है, लेकिन कागज पर लिखने से विचारों में स्थिरता, नियंत्रण रहती है, जो लिखना चाहते है उसे अच्छे से सोच समझकर बहाली भांति हम लिख पाते है, लिखने के लिए ठहराव की आवश्यकता होती है, अक्सर तुम लिखने बैठते हो, लेकिन लिख नहीं पाते हो, कभी तुम्हारे विचार कही दूर तुमसे चले जाते है, तो कभी ही अपने विचारों से भटक जाते हो।
उन विचारों को पकड़ पाना भी मुश्किल सा हो जाता है, क्युकी यह विचार ही है, जो तुम्हें अपने इशारों पर नचा रहे है, कभी कुछ विचार आ रहे है, तो कभी कुछ तुम्हारे विचार एक स्थान पर स्थिर नहीं हो पा रहे है, जिसकी वजह से तुम बेहतर नहीं लिख पाते हो, हो सकता है की अब तुम लिखना भी नहीं चाहते हो, सिर्फ कॉपी ओर पेस्ट करना ही तुम चाह रहे हो, यह भी हो सकता है की आलस तुम्हें पकड़ रहा हो, तुम्हारा मन अब लिखने का भी नहीं कर रहा हो, यह सब तुम्हारे विचारों का ही खेल है जिसे तुम समझ नहीं पा रहे हो, ओर यदि समझ रहे हो तो भी इसी विचार जाल में फँसते ही जा रहे हो।
इससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है, इसलिए सहूलियत मत ढूंढो पेन ओर पेपर उठाकर लिखना शुरू करो, ओर बेहतर लिखते चले जाओ।