शब्दों की गठरी जो अनचाही है उसे ही लेकर घूम रहे हो, उन अनचाहे शब्दो को हटाकर जिन शब्दो को चाहते हो, उनको बांध लो और उनके ही साथ चलो फिर देखो सफर कैसा मस्त हो जायेगा, मंजिल आसान लगेगी मुसीबतें चाहकर भी करीब ना होगी दुख भी सुख में झट से बदल जाए।
शब्दों की गठरी जो अनचाही है उसे ही लेकर घूम रहे हो, उन अनचाहे शब्दो को हटाकर जिन शब्दो को चाहते हो, उनको बांध लो और उनके ही साथ चलो फिर देखो सफर कैसा मस्त हो जायेगा, मंजिल आसान लगेगी मुसीबतें चाहकर भी करीब ना होगी दुख भी सुख में झट से बदल जाए।