सवालों में गुम

सवालों में गुम हूँ मैं कुछ तरह से, गुम हूँ जैसे उत्तर सिर्फ मैं ही हूँ प्रश्न जो पूछता हूँ खुद से उत्तर भीतर से बाहर निकल मुझको मुझसे ही रूबरू करता हो जैसे , बस बताऊ क्या हाल अपना सवाल पर सवाल बढ़ रहा था जबसे भीतर से आवाज का सिलसिला चल उठा है बाहर सब खाली हो रहा है। बाहर कोई प्रश्न नहीं है उन प्रश्नों के उत्तर मुझे भीतर ही मिल रहे है।

बाहर जैसे कुछ नहीं है, सबकुछ भीतर से ही उत्पन्न हो रहा है, और भीतर ही समाप्त हो रहा है।

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