तेरी तारीफ में क्या लिखूं,
अल्फ़ाज़ भी कम पड़ जाते हैं,
जो देखे तुझको इक नज़र,
वो तेरा दीवाना बन जाता है।
तेरी तारीफ करूं या तेरी अदाओं की बातें करूं,
ख़ूबसूरती तेरी देखूं या तेरी मुस्कान की बातें करूं।
लफ़्ज़ों में कैसे बयान करूं हुस्न की तहरीर,
तू खुदा की सबसे खूबसूरत तस्वीर।
जो देखे तुझे, बस देखता ही रह जाए,
चाँद भी शरमाए, तेरा नूर जब मुस्काए।
तारीफ़ तेरी करते हैं सब, मगर यकीं कर,
हमने तुझे चाहा है, तेरी रूह को समझकर।
“तारीफ क्या करूं तुम्हारी” पर शायरी
तारीफ़ क्या करूं तुम्हारी, हर लफ्ज़ छोटा पड़ जाता है,
तेरी हंसी के आगे तो चाँद भी फीका नज़र आता है।
तारीफ क्या करूं तुम्हारी, तूम तो खुद ही एक ग़ज़ल हो,
हर लफ्ज़ तेरा जैसे मोहब्बत की अचल है।
तारीफ क्या करूं तेरी, जुबां पर लफ्ज़ नहीं आते,
तेरा नूर देखके खुद सितारे भी शर्मा जाते।
तारीफ क्या करूं तुम्हारी, कोई हद भी तो हो,
खूबसूरती में तेरा कोई मुकाबला भी तो हो।
तारीफ क्या करूं तुम्हारी, खुदा भी फख्र करे,
जिसे बनाया इतने प्यार से, वो कोई और कैसे हो?
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