उम्मीद से उम्मीद लगाकर बैठ गया हूँ, अब उम्मीद भी पूछती है मुझसे की मैं पूरी हो जाऊ या अधूरी ही रहू।
ना जाने कितनी उम्मीद है मेरी आँखों में तुम्हें पाने की तुम्हें अपना बनाने की लेकिन तुम्हारे न कहने पर वो सारी उम्मीद टूटकर चकनाचूर हो जाती है।
उम्मीद पर शायरी – टूटे दिल और अधूरी चाहतों की कहानी
उम्मीद से उम्मीद लगाकर बैठा हूँ,
अब उम्मीद भी मुझसे पूछती है—
“क्या मैं पूरी हो जाऊं, या अधूरी ही रहूँ?”
ना जाने कितनी उम्मीदें बसी थीं मेरी आँखों में—
तुम्हें पाने की,
तुम्हें अपना बनाने की।
लेकिन तुम्हारे “ना” कहने भर से
वो सारी उम्मीदें टूटकर
चकनाचूर हो जाती हैं।
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