Date Archives December 2023

आनंद कल होगा

आनंद कल होगा एक अनुमान….
कल कभी आता नहीं रहोगे परेशान ।
वर्तमान का आनंद पे अधिकार …..
अभी हे तो सत्य यह भीतर का त्योहार ।

भीतर रहे आनंद से ओतप्रोत….
बाहर तो बदलता रहता स्रोत ।
जीवन का बल स्मृद्धि हे आनंद ….
सब जीवनो को मिले इसकी सुगंध ।

बीते कल के बोझ से छुटकारा,
आनंद कल होगा एक अनुमान।
चिंताओं के झरोखों को बंद करो,
कल कभी आता नहीं रहोगे परेशान।

वर्तमान का आनंद पे अधिकार,
भाग्य की लकीरों को बदल दो।
हर पल को खुशी से भर दो दिल,
आनंद की नई कहानी लिख दो।

चिंताओं के बादलों को हटा दो,
उजाला लाओ अपनी जिंदगी में।
हंसी के संग बिताओ हर पल को,
आनंद की राह पर चलो निशानी में।

कल की सोचों को छोड़ दो दरिया,
वर्तमान के तरंगों में बहो।
हर दिन लो आनंद का वादा,
यही तुम्हारा अधिकार।

कब होगा आनंद कब नहीं यह सोचकर क्यू परेशान होते हो, आनंद आज अभी है यही बस यही सोच कर आनंदित रहो यह है तुम्हारा अधिकार, छोड़ो कल की चिंता कल की बात है पुरानी जी लो इस पल को यही लिखेंगे हम नई कहानी, अपनी चिंता के बादलों को हटा लो ओर उम्मीद की किरण से अपने मन मस्तिष्क को भर लो वर्तमान में जिओ, ओर भविष्य से छींट मुक्त रहो।

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समय का अभाव

क्या तुम कर सकते हो ओर कितना तुम कर सकते हो, ना तुम्हारे पास समय का अभाव है, न किसी ओर चीज का इसलिए जो भी तुम अब करना चाहते हो कर लो पूरा

सोच तू कितना सोच सकता है,

लिख तू

कितना लिख सकता है

सो तू

कितना सो सकता है

नाच तू, कितना नाच सकता

गा तू

कितना गा सकता है

समय का अभाव
समय का अभाव

खा तू , कितना खा सकता है

आराम कर तू कितना कर सकता है

पढ़ तू

कितना पढ़ सकता है

टीवी देख तू कितना देख सकता है

गेम खेल ,

तू कितना खेल सकता है

बात कर , गप्पे मार

तू कितनी गप्पे ओर कितनी बात कर सकता है

तू क्या-क्या कर सकता है? ओर कितना कर सकता है अब करले जो जो तू कर सकता है। नहीं समय की कमी अब तेरे पास, बहुत समय है हर कार्य को पूरा कर ले, हर इच्छा जो अधूरी थी वो पूरी कर ले।

उलझने

कुछ उलझने पैदा करती है ये जिंदगी, ना जाने कैसे इन उलझनों को सुलझा मैं पाऊँगा, या फिर उलझनों में फंस कर ही मैं मर जाऊंगा, अजीब सी उलझन का शिकार भी हूँ मैं इन उलझनों से कैसे निकल मैं पाऊँगा क्या यू ही घुट घुट कर मैं यू ही मार जाऊंगा, कोई तो सुलझाए ये किस्सा जिंदगी का, कैसे सुलझेगा ये कोई तो मुझे भी बताएगा।

मुझसे ही कैसे छुटकारा मिलेगा, या यू ही अपने ख्यालों, अपने सवालों के ढेर में राख हो जाऊ , अब मैं अपने ख्यालों से दूर भी तो कहां जाऊंगा, इन्ही सवालों में फंसा ही नजर आऊँगा, इन सवालों की उलझन बढ़ती ही रहती है कैसे इन सवालों से मैं बच पाऊँगा।

उलझने भी बहुत है इस जिंदगी में क्या मैं उन सभी उलझनों को कभी सुलझा पाऊंगा, या फिर बिना सुलझाए ही रह जाऊंगा।

उलझने
उलझने

हम सभी अपनी समस्याओ को सुलझाना चाहते है लेकिन सुलझा नहीं पाते बल्कि उसे ओर उलझा देते है, कुछ ना कुछ गड़बड़ कर देते है, उस गड़बड़ से बचने के लिए हमे हमेशा अपने दिमाग को शांत रखना चाहिए ओर जिंदगी की हर समस्या को ध्यान से देखना चाहिए जिससे की उन समस्याओ को समझने में हमे मदद मिले ओर हम उसे आसानी से सुलझा सके।


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शब्दों का संसार

मुझे खुद नहीं पता की मैं क्या लिख रहा हूँ? लगता है शायद मैं तो इन शब्दों से बात कर रहा हूँ, मैं कैसे समझाऊ? कैसे बताऊ? कोई विश्वास नहीं करता मेरी बातों पर की यह शब्दों का संसार है, शब्द से बना एक परिवार है।

शब्दों का संसार
शब्द संवाद

यह कलियुग शब्द संवाद का समय है, जहां सिर्फ शब्दों की मैं मैं है यहाँ कोई निशब्द अर्थात मौन नहीं होना चाहता हर समय कुछ ना कुछ वार्तालाप चाहता है, हर कोई बाहर जाना चाहता है एकांत में रहना किसी अच्छा नहीं लगता, कोई एकांत वासें नहीं होना चाहता उन्हे दिवारे काटने को दौड़ती है शरीर झटपटाता है किसी से मिलने के, किसी से बात करने के लिए, किसी को स्पर्श करने के लिए कुछ समय साथ बिताने के लिए, इस संसार में बिना बोले कैसे रह पाए जब तक किसी से कुछ पल ना हो हृदय असांत सा ही रहता है।

शब्द संवाद
शब्द संवाद

शब्दों को जुबान चाहिए और वो सिर्फ तुम ही हो, शब्दों के पास शरीर नहीं है उन्होंने तुम्हें ही शरीर रूप में चुना है, सारे क्रिया, कार्य शब्द द्वारा ही होते है बस शरीर एक साधन ही है।

शब्द की जुबान

शब्द वो है जो एक बार आपकी जुबान से निकल गए फिर वापस नहीं लिए जा सकते एक तरकस में तीर की तरह है यह शब्द जिन्हे एक बार छोड़ कर वापस नहीं लिया जा सकता।

तरकस में तीर

ज्यादातर लोग

ज्यादातर लोग जिंदगी में स्कूल की तरह 33 प्रतिशत अंक लाने से ही पास होना है, 100% लाने में डरते है, ओर उन्हे लगता है की 100% तो कभी हो ही नहीं सकते तो, हम इसी तरह से अच्छे है, वो अपनी जिंदगी में कुछ बेहतर होने की कोशिश ही नहीं करते, जैसे की वो उतने बेहतर होना ही नहीं चाहते, जैसे है बस वैसे ही अच्छे है, उन्हे यही लगता है, हम कुछ नहीं कर पाएंगे, हम जिस तरह से जी रहे है यही जीवन है, उसमे कोई सुधार नहीं करते ना ही वो करना चाहते।

ज्यादातर लोग
ज्यादातर लोग

क्या आप भी उनही लोगों में से जो जीवन में सुधार नहीं चाहते या फिर आप स्वयं को बदलना चाहते है, यदि आप स्वयं को बदलना चाहते है तो शुरुआत आज से ही करे क्युकी कल कभी नहीं आता, जब आप शुरू करते है वही समय ठीक होता है उसके लिए कोई मुहूरत नहीं होता।

आपके विचार ही आपका अच्छा ओर बुरा समय बनाते है इसलिए अपने विचारों से स्वयं को बेहतर बनाने के लिए शुरू हो जो।

हममे से ज्यादातर लोग बस जैसे है वैसे ही रहते है वे बदलाव नहीं चाहते, उनको बदलने में डर लगता है, इसलिए वह बदलाव नहीं कर पाते ना स्वयं में ओर ना ही दूसरों में

बिना कुछ कहे

बिना कुछ कहे, उन्होंने कुछ ज्यादा ही समझ लिया अक्सर यही कुछ होता है, जब हम कहते कुछ नहीं है लेकिन वो समझ ज्यादा लेते है, बात कुछ होती नहीं है, लेकिन बढ़ बहुत जाती है, अक्सर यही कुछ होने लगता है, नजदीकिया बहुत होती है लेकिन एकदम से ना जाने क्यू दूरिया होने लग जाती है, मेने कुछ कहा नहीं उन्होंने सुन ज्यादा लिया, मेने कुछ समझाया नहीं 

उन्होंने समझ ज्यादा लिया,मेने कुछ देखा भी नहीं,उन्होंने देख भी ज्यादा लिया 

मेने कुछ सोचा भी नहीं उन्होंने सोच भी ज्यादा लिया 

बस इतना हुआ उसके बाद ना जाने वो रिश्ता ही कही खो गया नासमझी और समझी हुई बातो के बीच जो भेद था, उनकी वजह से वर्षो का रिश्ता अब रिश्ता नहीं रहा बस कुछ था ही नहीं ऐसा  कुछ हो गया। मेरी भीगी हुई पलके भी ना समझा सकी उनको कुछ ना जाने जो बिताया था हिस्सा समझने के लिए वो कुछ लम्हो में सिमट कही खो गया। 

बिना कुछ कहे ना जाने कितनी कितनी बाते हो जाती है, उन बातों से दूरिया भी बढ़ जाती है, पता नहीं चलता सालों का रिश्ता कब खत्म हो जाता है,

दुख का होना

कहते है दुख का होना भी जरूरी है, तभी सुख का अनुभव होता है, बिन दुख के सुख का कैसे पता चले, जब दुख होता है मन में तभी कुछ लिखने का मन करता है, बिना दुख के तो क्या लिखे सब अच्छा ही है, जब गलतिया होगी तभी तो सुधार होगा, बिन गलतियों के उन्मे सुधार कैसा फिर होगा,

इसलिए सिर्फ सुखी जीवन नहीं उसमे दुख का होना भी बहुत अच्छा होता है, उस दुख को समझो वो तुम्हें कुछ बताने, सिखाने आया है, नई चुनौतीयो से मिलाने आया है, नए जीवन को निर्मित कर फिर से नया बनाने आया है, उस नए बनने के सफर में दुख ही अपना साथी है।

दुख होगा तभी तो अच्छा अनुभव लिख सकोगे जब दुख नहीं तो फिर वो लिखना कैसे होगा, कुछ लिखने का मन नहीं करता, बस सुखी जीवन संग हम जीवन के साथ होते है।

जब किसी के प्रेम डूब हुआ होता है कोई इंसान ओर वो उसे नहीं मिलता तो उसकी तड़प ही उसे लिखने पर मजबूर कर देती है, वह अपना क्रोध पन्नों पर उतार देता है, उस प्रेमी का मन अशांत होता है ओर वो सिर्फ लिखना ही चाहता है, उस वक्त उसके अलावा वह प्रेमी कुछ ओर नहीं कर पाता लेकिन जब उसको उसकी प्रेमीका मिल जाए ओर वो आनंद में हो तो फिर वह लिखना नहीं चाहता उसके पास अभी कोई दुख नहीं है, बस वह प्रेम में डूबा हुआ है।

दुख हमे सुखी होने का एहसास दिलाता है, दुख ही है जो हमे जीवन की सच्ची राह दिखाता है, दुख से ही हमे अच्छे ओर बुरे की समझ आती है, जितना सुख जरूरी है उतना ही दुख भी जरूरी है।

2024 T20 विश्व कप

क्या आप चाहते है की रोहित शर्मा 2024 T20 विश्व कप में भी कप्तान बने रहे या फिर उन्हे छोड़ देना चाहिए, रोहित शर्मा के जैसा इस समय कोई भी कप्तान नहीं है, ना ही इस जिम्मेदारी के लिए कोई भी तैयार है इसके साथ ही किसी को रोहित जितना अनुभव भी नहीं है।

रोहित शर्मा एक एसा कप्तान है जो टीम के बारे में पहले सोचता है फिर अपने लिए, वह सभी खिलाड़ियों को एक साथ जोड़कर रखता है, सबकी सुनता है।

रोहित शर्मा 5 बार आईपीएल की ट्रॉफी जीत चुका है, मुंबई इंडियन के लिए, सिर्फ एक खराब दिन उनकी काबिलियत के बारे में नहीं बता सकता रोहित शर्मा एक काबिल कप्तान है।

Gautam Gambhir said, “Rohit Sharma should captain Team India in the T20 World Cup 2024.

He is a phenomenal leader and batsman which we have seen in this World Cup as well.” (Sportskeeds)

रोहित शर्मा

क्या रोहित शर्मा ही रहेंगे 2024 T20 विश्व कप के कप्तान या फिर कोई बदलब होगा इस विश्व कप के लिए, जानकारों ओर सलाहकारों की माने तो रोहित शर्मा ही इस समय एक बेहतर कप्तान के रूप में दिखते है, भारत के लिए T20 विश्व कप चैम्पीयन ट्रॉफी के लिए इसके अलावा दूसरा ओर कोई नाम अभी के लिए सुझाव में नहीं है, ओर ना ही कोई रोहित शर्मा से बेहतर बेहतर कप्तान दिख रहा है जो इस जिम्मेदारी को संभाल सके।

जानवर

जानवर तो हम सभी के भीतर ही छुपा हुआ है उस जानवर का सिर्फ बदलाव करना होता है, हम बहुत बार उस जानवर की तरह हरकते करते है, किसी को मारना, बिना वजह ही लड़ाई करना, बिना वजह किसी पर गुस्सा करना यह सब मानवीय स्वभाव नही है, मानव तो शांत सरल स्वभाव का होना चाहिए था, लेकिन जानवर जिसे समझ नहीं है की क्या सही है क्या गलत है, बुद्धि का अभाव है जिसके कारण वह उन कार्यों को करता है जो उसे जानवर प्रवती की ओर बढ़त है।

मानव तो शांत सरल स्वभाव का है मानव को शांति चाहिए उसे अशांति नही उसे जानवरो की तरह शारीरिक संबंधो में नही लिप्त होना उसे तो संभोग से समाधि की ओर अगसर होना है। उसका जीवन संभोग में भोग को नही ढूंढना बल्कि उस भोग से निकलकर समाधि की ओर जाना है।

उसे स्त्री के शरीर पर शासन नही करना है उसे स्त्री के साथ संभोग कर पवित्र आत्मा को इस धरती पर उतारना है। जानवर जैसी मानसिकता वाले जीवों को पैदा नहीं करना बल्कि मानव को जन्म देना है उच्च विचारों वालों जीवों को जन्म देना है, यदि हमारी मानसिकता जानवरो जैसी होगी तो हमारे वीर्य से उत्पन्न संताने भी उसी तरह को होगी इसलिए हमे अपने विचारो को शुद्ध रखना है, जो जब संभोग किया जाए तो अपने विचारो में संयम रखना है।

जिस प्रकार से सेक्स को इतना बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है, उससे समाज को ऐसी मानसिक स्थिति दी जा रही है जिससे वह भ्रष्ट हो, दुष्ट प्रवृत्ति का बने, उसके विचार गंदे हो, जिसका आचरण ही शुद्ध ना हो, ऐसे लोग कैसे सभ्य समाज का निर्माण कर पाएंगे, सेंसर बोर्ड ए सर्टिफिकेट देता है लेकिन क्या सभी लोग सिनामाघरो में ही फिल्म देखते है, आजकल टेलीग्राम , यूट्यूब ऑनलाइन पर सभी पायरेसी के द्वारा फिल्म आ जाती है, फिर कहां तक आप इन्हे देखने से रोकने पाएंगे इससे ज्यादा अच्छा यही होगा की इस प्रकार की फिल्मों पर रोक लगे और न बने तभी समाज एक अलग दिशा में चल पाएगा, ऐसा नहीं है की लोग फिल्मों से प्रभावित नही होते लोग प्रभावित होते है।

आजकल की युवा पीढ़ी बहुत प्रभावित होती है इस प्रकार की फिल्मों से जब कबीर सिंह आई थी तब मैने कनाट प्लेस में एक लड़के को बोर्ड हाथ में लेते हुए देखा था, जिस पर लिखा था क्या आप मेरे होंठों पर चुम्बन कर सकते है, में भी उत्सुक हूं चुम्बन के लिए और कई लड़कियों ने उस लड़कों को चुंबन भी किया ये बिल्कुल शर्म से सर झुका देनी वाली बात है, हमारे समाज के लिए हम उस समाज का निर्माण कर रहे है जो प्रभावित है, हमारा खुद का कोई व्यवहार नही है , हमारी कोई शिक्षा नही है।

हल्दीराम व बीकानेर

हल्दीराम व बीकानेर: हल्दीराम व बीकानेर में बैठकर खाना मेरी पहली पसंद है, इसके अलावा मैं किसी दूसरे रेस्तरा में बैठकर खाना ज्यादा पसंद नहीं करता, यदि वो रेस्तरा शुद्ध शाकाहारी है, तो फिर मैं बैठ जाता हूँ बस खाना अच्छा हो कोई दिक्कत नहीं है, हल्दीराम व बीकानेर में तो मैं बिना सोचे ही अंदर चला जाता हूँ, लेकिन यदि किसी दूसरे रेस्तरा में जाना होता है पहली बार तो देखना पड़ता है की वह शुद्ध शाकाहारी है या नहीं तभी उस रेस्तरा के भीतर जाने की सोचता हूँ, वरना बाहर से आगे बढ़ जाते है यदि उस रेस्तरा में नोनवेज भी है तो फिर नहीं जाना बस

आजकल वैसे भी जिसको देखो शाकाहारी के साथ साथ मांसाहारी भी परोस रहा है, जिस जगह मांसाहारी होता है उस जगह मैं खाना खाने के लिए नहीं जाता, बहुत हुआ खोजने पर नहीं मिलता नहीं तब उस जगह पर जाया जाता है नहीं तो नहीं।

शाकाहारी व मांसाहारी: जब शाकाहारी में इतना अच्छा खाना उपलब्ध है तो फिर क्यू मांसाहारी भोजन खाना, ओर क्यू ही किसी जीव की हत्या का दोष अपने माथे पर लेना, इस प्रकार के कर्मों से बचकर ही रहा जाए तो बेहतर है, किसी को समझाना कोई जरूरी नहीं बस मैं खुद इस बात को समझ गया हूँ, यही बहुत जरूरी था की उस जगह भी नहीं खाना जहां पर मांसाहार भी तैयार किया जाता है, क्युकी उनके बर्तन भी वही होते है, कभी उसमे शाकाहार परोस देंगे तो कभी मांसाहार, वह हर छोटी छोटी बातों का ख्याल नहीं रखते इसलिए उस जगह पर खाना भी उचीत नहीं है जिस जगह पर मांसाहार परोस कर दिया जाता हो।

इसलिए भी मेरी पहली पसंद हल्दीराम बन जाती है जहां मुझे इस प्रकार का कुछ नहीं सोचता पड़ता ना ही कुछ पूछना पड़ता की यह शाकाहारी है या मांसाहारी है, बिना झिझके ओर हिचके जो खाने खाने का मन करे उसका ऑर्डर कर दिया है।

साथ ही खाने की क्वालिटी ओर कीमत यह दोनों ही उचीत है, बहुत अधीक ओर बहुत कम नहीं है, सभी लोगों के एक सही जगह है।