व्यवहार कैसा हो ? यह बात मैं भूल जाता हूँ, मेरे जीवन का नियम सही हो सभी बराबर है, सबको आदर ओर सम्मान की दृष्टि से ही देखू
भूल जाता हूँ मैं कि दूसरे के
साथ वही व्यवहार जो चाहते
स्वयं के साथ ….
यही नियम सही जीवन का
सब बराबर हे यही
सच्चा परमार्थ ।
कुछ ज़्यादा पाने के
लोभ रोग के रहते
लगी बीमारियाँ..
सम्यक् दृष्टि
के निरंतर प्रयोग
से दूर होंगी दुशवारियाँ ॥
व्यवहार कैसा हो ? भूलता हूँ मैं कभी-कभी,
दूसरे के साथ वही व्यवहार,
जो चाहता स्वयं के साथ।
सोचता हूँ अक्सर,
मेरे बारे में ही हो सब,
सबका वही नियम, सबका वही लब।
पर क्या सच है यही,
जीवन का सही नियम?
क्या सबके साथी हैं,
हमारे भावों के नियम?
जब तक न पहचानें,
दूसरों के मन की बातें,
हम रहेंगे अनजान,
और भूलेंगे अपने अपने प्राण।
व्यवहार में एकता,
सच्चे मित्रता का आदान,
यही है सच्ची जीवन की,
सबके बीच सम्बन्ध की पहचान।
तो जगाएं एकता की आग,
प्यार से बांधें धरती को राख,
दूसरे के साथ जीना सीखें,
स्वयं को खोजें, नया व्यवहार जीने।
सबके बीच सम्प्रेम का निवास,
यही है सच्ची खुशियों की उपास,
भूल जाएं अपने अहंकार को,
और जीने लगें सबके साथ नये अंदाज़ में।