क्या लिखू मैं तेरी तारीफ में,
हर लफ्ज़ भी तुझसे हारा है।
तेरी हंसी में चाँदनी बसती,
तेरी आँखों में सारा नज़ारा है।
फूलों की खुशबू तुझसे कम,
बादल भी तुझपे बरसें हैं।
तेरी जुल्फ़ों की छाँव तले,
हवाएँ भी धीरे-धीरे तरसें हैं।
सूरज की किरण भी मंद पड़े,
जब तेरा चेहरा दमकता है।
तेरे लबों की उस मासूम हँसी पे,
हर दिल पिघलकर बहकता है।
तेरी चाल में कशिश ऐसी,
कि लहरें भी संग चल पड़ें।
तेरी बातों में मिठास ऐसी,
कि हर मौसम रंग बदल पड़ें।
खुदा भी तुझसे कहे कभी,
“क्या तुझे मैंने खुद बनाया है?”
या मेरी कल्पना से चुरा लिया,
कोई सपना साकार कराया है?
अब क्या लिखू मैं तेरी तारीफ में,
लफ्ज़ भी तुझसे कम पड़ जाते हैं।
जो देख ले तुझे एक दफा,
वो तेरा दीवाना बन जाते हैं।
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