मेरे भीतर ही कही छिपे हो तुम , मैं तुम्हे टटोलता हूं दिल के हर एक कोने में लेकिन तुम दिखती नही हो , मेरी भूली हुई यादों में तुम छिपी हुई हो कही मेरे ख्वाबों की डोर पकड़ बाहर आती हो तुम, सिर्फ तुम
जब भी कोशिश करता हूं तुमसे दूर जाने की तुम बहुत करीब नजर आती हो लेकिन कहाँ हो ये नही पता चलता , तुम मेरी नजरो के सामने नही हो।
बस हर एक मुक्कमल कोशिश है तुम्हे पाने की ओर दूसरी ओर भूल जाने की जो हो सकेगा वो कर बैठूंगा।
![मेरे भीतर ही कही छिपे हो तुम](https://rohitshabd.com/wp-content/uploads/2019/06/textgram_156136839947297026.png)