अधूरी ख्वाइश

ना जाने कितनी ही अधूरी ख़्वाइसे है मेरी
लेकिन
वो सारी ख़्वाइसे तुम पर आकर पूरी हो जाती है।

ना जाने कितनी उम्मीद है मेरी आंखों में तुम्हे पाने की तुम्हे अपना बनाने की
लेकिन
तुम्हारे ना कहने पर वो सारी उम्मीद टूटकर चकनाचुर हो जाती है

ना जाने इन आँखों में कितनी गहरी नींद है
जो पूरी ही नही होती
लेकिन तुम्हारी एक याद से वो सारी नींद टूट जाती है।

ना जाने कितना प्रेम है, जो कभी क्रोध ही नही आता
लेकिन तुम्हारे दूर होने पर वो भरम भी टूट जाता है।

ना जाने कितने अरमान है तुझे पाने के
लेकिन वो अरमान सारे फीके हो जाते है
जब तू कहती है की मैं किसी और का अरमान हूं
और मेरा अरमान भी कुछ और है

लगता है कितना अधूरा हूं मै तेरे बिना लेकिन
वो अधूरापन तब दूर हो जाता है जब तू पास आ जाती है

फिर दुबारा ये भी एक भरम में तब्दील हो जाता है जब तू मुझे छोड़ कर दूर चली जाती है

“लगता है सदियों से अधूरा हूं ‘तुम बिन’ फिर भी
ना जाने क्यों हर जन्म में साथ तेरा मेरा छूट जाता है”

क्या मेरी इन आंखों में अश्क़ है या मोती ?
जो समझ ही ना आते है
( मेरी इन आंखों में अश्क़ है या मोती यह मुझे समझ ही नही आता है )
लेकिन हाँ
जब जमीन पर गिरते है तो दरिया सा बन जाता है।

एक एह्सास है गहरा सा जो
तुम्हारे हर वक़्त पास होने का भर्म मिटाता है
और
यही एह्सास है जो मुझे तेरे हर जन्म में करीब लाता है

रोहित शब्द

Leave A Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *