मेरी आवारगी में कुछ दखल तुम्हारा भी है,
तेरी याद जब सताती है, दिल बेकरारा हो जाता है।
घर की चाहरदी सब अजनबी सी लगती है,
तेरे बिना यहां रहना, बस कठिन हो जाती है।
आवारगी में घूमते हैं ये रास्ते जहां,
तेरी यादों की महक साथ लेकर चलते हैं।
दिल की तनहाई में जब तेरी याद आती है,
घर बिखर जाता है, अकेलापन सताता है।
आवारगी में जब दिल तेरी तलाश में होता है,
तू घर की याद बनकर, दिल को संभालता है।
तेरी यादों की मधुर सुरी जब घर को छू जाती है,
खुशियों की चादर ओढ़ कर, दिल को भर जाती है।
मेरी आवारगी में कुछ दखल तुम्हारा भी है, क्यों की जब तेरी याद आती है तो घर अच्छा नही लगता