सिसकिया

जब उनकी शायरी सुनते हैं हम,
दिल में उठती है सिसकिया कभी न कभी।
वो कलम की जद्दोजहद से निकलते हैं,
दर्द की गहराईयों में खुद को भुलाते हैं।

उनके अल्फ़ाज़ रूह को छू जाते हैं,
जैसे एक आवाज़ हैं उनके संगीत में।
उनकी शायरी में छुपा है अमर रंग,
जो दिलों को छू जाता है उनके अंदाज़ में।

वो कलम के जादू में खुद को खो देते हैं,
अपनी रूह को उनकी शायरी में ढला देते हैं।
जब शब्दों की आड़ में उनकी ज़ुबान खुलती है,
हर दिल को खुदा का एक नया दिन दिखलाती है।

जिनकी शायरी से होती है सिसकियां,
वो शायर नहीं किसी आशिक़ के दीवाने होते हैं।
उनके अल्फ़ाज़ दिलों को छू जाते हैं,
और उनकी शायरी में बस खुदा की आस्था होती है।

जिनकी शायरियो में होती है सिसकिया

जिनकी शायरियों में होती है सिसकिया,
वो शायर नहीं किसी ….. के दीवाने होते है..

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