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मेट्रो का सफर

मेट्रो का सफर आज कुछ जो इस तरह से शुरू किया वो मजेनटा लाइन की और था, इस रूट पर वसंत विहार तक अधिकतम वही स्टेशन आते है जो कंटेनमेंट जोन है यहाँ पर सभी लोगों को आने ओर जाने की अनुमति नहीं होती जो इधर रहता है या कोई कार्ये करता है उसीको आने जाने अनुमति है, यदि इधर आपको जाना है तो आपको valid permission चाहिए होती है, तभी आपको उस ज़ोन में जाने की अनुमति मिलती है। जो स्टेशन कन्टैन्मन्ट ज़ोन में आते है उनकी अनाउन्स्मेन्ट पहले ही मेट्रो में होती है जिससे आपको यह पता चलता है की आप बिना वजह इधर नहीं उतर कर घूम सकते तो, तो इस बात का अवश्य ध्यान रखे। हम शायद करना के दौरान इस रूट पर से कही गए थे तब कंटेनमैंट जोन के लिए अनाउंस हुआ तो हमे लगा बहुत बड़ा कंटेनमेंट जोन है लेकिन आज जब फिर से इधर गए तो इसका मतलब यह आम रास्ता नहीं है भाई साहब तो इधर आना जाना प्रतिबंधित है।

जैसा की आप इस बॉर्ड को देख रहे है उसमे मेट्रो ट्रेन के कोचेस में कितनी जगह भरी हुई है उसे प्रतिशत में दिखाया गया है। जिससे यह पता चलता है की कौनसे कोच में कितने प्रतिशत लोग बैठे है, ओर आपको जगह मिल सकती है या नहीं इसी उद्देश्य से यह बोर्ड लगे है, इसी बोर्ड को देखकर आप भी उस कोच में एंट्री करे ओर सीट पर बैठे यह जनकपुरी पश्चिम से बोटोनिकल की मेट्रो के मध्य का रास्ता है।

मेट्रो का सफर कुछ इस तरह था
मुनिरका मेट्रो स्टेशन

 

जनकपुरी से सदर छावनी तक एक लंबी टनल है जो सबसे लंबी टनल रूट है दिल्ली मेट्रो का यही मेट्रो बोतनिकल गार्डन तक कई बार टनल से होकर गुजरती है, जब टनल से बाहर आती मेट्रो तब मैं बादलों की तस्वीर ले लेता आज कुछ मनमोहक दृश्य आसमान में बन रहे थे बादल जैसे मेरा मन लूट रहे थे, मैं जब निकला था घर तब समय नीचे वाली तस्वीर दर्शा रहा हूँ, बादलों की ओट में सूरज छुपम छिपम खेलते है ये भी बता रहा हूँ।

समय
समय

आज सूरज चाचू बड़े अच्छे मूड में थे एसा लगा की वो छुपम छुपाई खेल रहे थे कभी बादलों की ओट में छिप रहे थे तो कभी उस ओट से बाहर निकल रहे थे, जैसे बादलों से बाहर आते तो अद्द्भुत दृश्य बादलों का दिख रहा था, कुछ कुछ प्रतीत हुआ इंद्रधनुष भी कही बन रहा था लेकिन ना जाने वो मेरी आँखों से कही दूर छिप रहा था।

बादल
बादल

बादलों के दृश्य को देख मैं मनमोहक हुए जा रहा था मानो मैं बादलों सा होने की दुआ मांग रहा था लेकिन ये सच कहाँ होने को जा रहा था जैसे जैसे मेट्रो स्टेशन पास आ रहा था , मैं अभी जमीन पर हूँ मैं आसमान से बादलों को मांग रहा था।

मेट्रो का सफर कुछ इस तरह था
बादल

आज मेट्रो का सफर इतना ही किया बाकी फिर दुबारा मिलेंगे

क्या गर्मी

क्या गर्मी बहुत हे
अधिकतर हाँ जी बहुत हे
भाई अधिकतर A.C में रहते हो
नहीं छोड़ते उसको किसको यह कहे,

जब कभी दिन में पड़ता निकलना
जैसे हो गया आफ़त से सामना
शरीर पसीने पसीने होता
शरीर में ख़त्म होता पानी का कोटा

शरीर लगता जैसे लाल टमाटर
लगता बंद हो रहा सांसो का शटर
a.c थोड़ी देर अच्छा वरना
घर वो बीमारी का

बीमारी की नई नई क़िस्म
नई नई दुश्वारियों का
रोज़ बाहर निकलिए
शिकंजी लस्सी पीजिए

आपने वो तो सुना हे गाना
गाना गुनगुनाना सबको सुनाना
क्या हे बोल
बहुत अनमोल

ठंढे ठंढे पानी से नहाना चाहिए
गाना आए या न आए गाना चाहिए
तो न कहे बहुत हे गर्मी
गर्मी में गर्मी नहीं तो क्या होगा हठधर्मी

गर्मी आई तुझे मज़बूत करने
धन्यवाद करे उसका न लगे उससे डरने ।

क्या गर्मी बहुत है,
अधिकतर हाँ जी, बहुत है।
भाई, अधिकतर A.C. में रहते हो,
इस ज़माने में यह सच है या झूठ है कोई पता नहीं।

धूप में जलती खामोशी,
गर्मियों की छुट्टियों में छुपी सर्दी।
एयर कंडीशन की ठंडक में,
जी भरकर जीने की चाह रखते हो सब।

गर्मी की छुट्टियों में भीषण गर्मी,
जलती धूप में भटकती जीवनी।
अधिकतर अंधेरे के बगैर देखते हो तुम,
अपने ही आसपास की उस खामोशी को।

क्या गर्मी बहुत है,
या फिर वो तुम्हारी भावनाएँ हैं?
अधिकतर A.C. की ठंडक में रहना,
या फिर खुद को ढूँढना धुप-छाँव के बीच?

यह भी पढे: गर्मी, धूप और ठंड, गर्मी का मौसम है, प्रकृति का सौन्दर्य, मौका, महंगाई,

दिल्ली की मेट्रो का सफर

आज ऐसे ही निकल पड़ा उन अनजान राहों पर जहां शायद मुझे जाना नहीं था, बस आज ऐसे ही घर से निकल गया मेट्रो का लुफ़त लेने क्युकी काफी दिनों से बाहर नहीं जा रहा था।

मैं तो आज सोचा की चल निकलू यू कही,

कुछ वक्त गुजार आऊ खुद के संग,

कही खुद में तन्हा ना रह जाऊ ,

खुद से आज रूबरू तो हो आऊ

बस यू हम बाहर निकल कुछ तस्वीरे खींच लाए ओर द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक घूम आए, सफर कुछ खास लंबा नहीं था फिर भी हम लुफ़त उठा लाए , मेट्रो से बाहर भी नहीं निकले सफर को मेट्रो में ही पूरा कर आए , चड़े थे द्वारका मेट्रो से वापसी में नवादा से घर वापस आए , यदि द्वारका मोड पर ही उतरते तो फाइन लग जाता है।

ब्लू लाइन पर चलने वाली मेट्रो

द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक 9 स्टेशन कुल है, और यह ब्लू लाइन का रूट है, कुछ मेट्रो ट्रेन द्वारका तक खतम हो जाती है, ओर कुछ सीधी द्वारका सेक्टर 21 तक यदि आप द्वारका वाली मेट्रो में बैठो ओर आपको द्वारका सेक्टर 21 जाना है, या ढाँसा बस स्टैन्ड की और तो आपको दूसरी मेट्रो बदलनी होगी।

यू ही कही भी कभी निकलना आसान होता है क्युकी उसमे बहुत सर दिमाग नहीं लगाना होता बस खुद को बाहर निकल चल लेना ही ठीक है।

नहीं तो यू ही उलझे रहोगे की अब निकलूँगा, अब जाऊंगा घूमने, कल का प्लान बनाता हूँ, कल जाऊंगा अपने दोस्तों के साथ वो प्लान बस टाल मटोल में खत्म हो जाते है ओर वैसे भी एक वक्त आता है जब सभी दोस्त व्यस्त हो जाते है।

क्या तब भी प्लान बनाओगे या फिर यू ही खुद के साथ निकल चलोगे, निकल चलो यार कब तक यू ही बैठ खुद को जिंदगी के कामों में उलझते रहोगे।

क्या आप भी यू ही कही भी कैसे भी निकल पड़ते है? यदि हाँ तो आप भी अपने अनुभव शेयर करे।

रविवार वाला दिन

रविवार वाला दिन कही खो तो नहीं गया ? एक समय था जब मैं सिर्फ संडे को घुमा करता था हर हफ्ते घर से निकलता तह कभी फिल्म देखने तो कभी कही घूमने या सत्संग सुनने , मंदिर या किसी मित्र के साथ चाय पर चर्चा हो जाती थी , वो रविवार ही होता था जब मैं स्वयं को पाता था की मेरी जिंदगी में कुछ बढ़ रहा है , वो रविवार ही होता था, जो मुझे बहुत प्यार था

पिछले कुछ सालों से मानो मेरा कोई रविवार नहीं आया था कुछ अधूरा अधूरा स लग रहा था भीतर मानो खालीपन था कोई उत्सुकता नहीं थी ,बस जिंदगी भी घर से दुकान ओर दुकान से घर जिस तरह से लोग कहते है “ मुल्ला जी की दौड़ मस्जिद तक ” बस यही मेरी जिंदगी का हाल था कुछ बदहाल था, वो रविवार आज फिर से लौट आया है बड़ी मसक्कत के बाद मैने रविवार को अपनी जिंदगी में फिर से बुलाया है।

लेकिन आज बहुत लंबे समय बाद फिर से उस रविवार को जीकर आया हूँ, अब लगता है की हर रोज मेरी जिंदगी का रविवार हो, काम उतना जितनी जरूरत है ओर मेरा जीवन भी उतना ही जरूरी है जैसे मेरी जिंदगी में इतवार जरूरी था, एक आजादी का अनुभव हुआ आज अकेले घूमने पर बस ये घूमने वाली आजादी मेरी कायम रहे ओर मैं घूमता रहू यू ही , रुकु नहीं अब बस मैं चलता रहू, मेरा रविवार वाला दिन मुझे फिर से मिल गया है इस रविवार के साथ मेरी यादे जुड़ी है जिनको मैं सजाकर रखना चाहता हूँ ओर इन यादों संग कुछ और यादे आने वाले संग जोड़ना चाहता हूँ।

कही आपका रविवार तो खो नहीं गया क्या आप भी बाहर जाते थे गोल गप्पे, दोस खाने सिर्फ उस रविवार को , क्या आप भी इंतजार करते थे उस रविवार का या करते है रविवार का इंतजार यदि हाँ तो कैसा था आपका रविवार मुझे भी बताए

पसंद और नापसंद

पसंद और नापसंद

अपनी पसंद का कार्ये करे हम सभी लोग, परंतु अपनी पसंद का काम क्यों नहीं कर पाते?

कहते है जो काम आपको नापसंद है फिर भी आप उसी काम को कर रहे है तो वह काम आपके लिए वैसा ही है जैसे किसी बच्चे से पढ़ाई को छुड़वाकर उसको काम पर लगा दिया हो।

अब उस बच्चे के जीवन की कल्पना करो की क्या होता है उस बच्चे के जीवन के साथ वही दशा आपके साथ होती है जब आप अपनी पसंद का कार्य नहीं करते।

इसलिए अपनी पसंद और नापसंद के कार्य के लिए सोचो जब आप अपनी पसंद का कार्य करेंगे तो आपका मन ज्यादा काम में लगेगा इधर उधर नहीं भटकेगा, आपकी कार्य करने की क्षमता भी बढ़ेगी , साथ ही आप नए नए तरीके सोचोगे उस कार्य को करने के लिए

लेकिन जिस काम में आपका मन नहीं उस काम को उतनी अच्छी तरह से नहीं करते हमेशा चिड़चिड़ापण लगता है , गुस्सा आता है आपकी खुशी कही खो जाती है फिर वो काम सिर्फ साधनों को जुटाने के लिए ही कर रहे होते है।

जिंदगी क्या है?

क्या है जिंदगी? मुस्कराहट का ही तो एक नाम है जिंदगी

जरा इसे मुस्कुराने ही दो,

ना गम के साये में खो जाने दो

यह है जिंदगी

बस ये जानने की एक कोशिश है

समझने की एक इच्छा है,

उस इच्छा को पूरा करना और जीवंत होकर

जीना ही तो है  जिंदगी

सबको बताना जरूरी नही है कि क्या है जिंदगी

बस खुद जान लेना बेहद जरूरी है जिंदगी

क्योंकि

जिसे मिली उसे कदर नहीं है

जिसे न मिली उससे पूछो जरा

क्या है जिंदगी ?

न तड़पाओ न रोने दो बड़ी प्यारी है जिंदगी

इसे खिलने दो जरा, यह खिलना चाहती है

क्योंकि खिलखिलाती सी है यह जिंदगी

गुदगुदाती – फुसफुसाती सी है जिंदगी

कभी बहुत हसाती है तो

रुलाती भी बहुत है जिंदगी

मिलकर जीने का नाम है जिंदगी

बिछड़ना भी है जिंदगी

फिर मिल जाने का नाम भी है जिंदगी

प्यारी सी मुस्कान है यह जिंदगी

खुद में जीने का नाम है जिंदगी

रूठे हुए को मनाना है तो

किसी अपने से रूठ जाना भी है जिंदगी

इंतज़ार भी है जिंदगी

अधूरी प्यास है जिंदगी

सहलाती हुई माथे पर हाथ रखती माँ है

माँ का आँचल है और

पिता की डांट का नाम है जिंदगी

खुदसे प्यार करने का नाम है जिंदगी

मैं से मैं में मिल जाना है जिंदगी

“तुम” और “मैं” को खत्म कर देना है जिंदगी

यह भी पढे: इसीका नाम जिंदगी, जिंदगी अनमोल, जीवन का गणित, जिंदगी का हाल, जीवन विचार

शब्द क्या है

शब्द क्या है ? आप किसी भी शब्द का उच्चारण करते हो और यदि आपके शब्द में शुद्धि नही है तो उसका भाव परिवर्तन होगा तथा उसका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड पर पड़ता है, जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है जिस प्रकार से ‘यदि’ लगाकर में यहाँ पर  यह कहु की इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति  “एक सोची समझी घटना थी”  तब यहां अनेको लोगों के द्वारा अनेको परकार के भाव प्रकट हो जाएंगे तथा ब्रह्मांड की उतपत्ति सोची समझी नही थी यह एक पवित्र ध्वनि थी पवित्र ॐ रश्मि थी है और रहेगी अर्थात आप इसे किसी भी प्रकार के  भाव , शब्द , अर्थ , विचार और विचार शून्य की स्तिथि हो सकती है , या थी , या नही यहाँ पर शब्दो मे अनेको मत, भेद और भाव उतपन्न हो रहे है जिसका प्राकट्य हमारे द्वारा शब्द उच्चारण, भाव प्रकट करने के अनुसार अलग अलग हो रहा है।

जीवन को जीवंत होकर देखना शुरू करें

“जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य”

यह सिर्फ एक विचार नहीं है यह अनुभव से भरा हुआ सत्य है जिसे प्रमाणित करते योग पुरुष है।

“मै शब्द हो सकता हूं लेकिन परिभाषा नहीं”

“शब्द से निशब्द की यात्रा करना ही मेरा परम लक्ष्य है”

यह संसार शब्दो का संसार है

जिसमें अनेकानेक शब्द गुंज रहे है।

“परम अक्षर शब्द ओमकार ही परमेश्वर है”

मानव जीवन शब्दो की क्रिया और

प्रतिक्रिया पर ही भी निर्भर करता है।

“मानव शरीर शब्दो से ही ओत प्रोत है”

“मानव जीवन शब्द निर्मित है”

शब्द आकाश के विकार है

“संग्रह सिर्फ अच्छे शब्दो का हो बाकी का संग्रह व्यर्थ है”

एक समय था जब मेरे अनेकों प्रश्न थे

और आज मै उन सभी प्रश्नों का हल हूं।

जीवन को एक नया दायरा चाहिए और वह दायरा आपकी सोच का होता है उसे बढ़ने दीजिए।

यदि आप कुछ बनना चाहते है तो शब्द बनिए इसके विपरित कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं है।

यदि आप कुछ खोज रहे है तो

कैसे और किससे ??

वह सबकुछ तो शब्दो के द्वारा ही खोजा जा सकता है।

“Your look is your mind not body”

“शब्दो के द्वारा ही जीवन उलझता ओर सुलझता है”

1

शब्दो को जुबान चाहिए

और वो सिर्फ तुम ही हो।

2

यह कलियुग शब्द संवाद का समय है जहाँ सिर्फ शब्दो की मैं मैं है यहाँ कोई निशब्द अर्थात मौन नही होना चाहता हर समय कुछ ना कुछ वार्तालाप करना चाहता है,  हर कोई बाहर जाना चाहता है एकांत वासेन और असंगे कोई नहीं होना चाहता शरीर झटपटाता है किसी से मिलने के लिए , किसी से स्पर्श के लिए किसी का होना के लिए

3

शब्द की यात्रा शब्द से शुरू होती है

और निशब्द होने पर रुक जाती है

4

पूरा ब्रह्मांड शब्दमय है

शब्द के अलावा कुछ भी नही

यदि शब्द ना हो तो यह संसार कैसा होगा?

5

शब्दो का वर्णन करने की नाकाम सी कोशिश है

कैसे दिखते है यह शब्द ?

क्या किसी ने कभी देखे है ये शब्द ?

शब्द का वर्णन कैसे मैं करू यह हर और से मुह, हाथ , पैर वाले है इनका आधार ऊपर से नीचे से भी है इनकी अनेको आंखे है , यह स्वयं प्रकाशित शब्द है

(यहाँ पर अर्थ यह है की जो मात्राएं, बिंदी,  डंडा, आधा शब्द शब्द पूरा शब्द, उनके आधार पर इनका वर्णन किया जा रहा है इन शब्दो को इंसान ही समझो यह यहाँ समझाया जा रहा है।) इनके बिंदी लगी हो जैसे चंद्रमा सूर्य सा तेज़ है इनमें सूरज से प्रकाश भी है

6)

शब्दो का जीवन कैसा है?

और कैसा हो पायेगा ये किसको है पता

या

शब्द क्या, कौन इस बात का क्या पता कोई लगा पायेगा?

यह कौन समझ पाया है?

इन शब्दो ने खुद का विस्तार स्वयं से पाया है

एक शब्द से अनेकानेक शब्दो तक

और स्वयम शब्द खुद को परिभाषित कर दिखाया है

7)

यह शब्द है जिन्होंने पूरे ब्रह्मांड पर अपना राज कर दिखाया है

इनकी ही सत्ता है इनको कोई अब तक ना हटा पाया है। 

ना कोई हटा पायेगा इन शब्दों का ही राज चलता आया है और चलता जाएगा।

8)

यह पूरा जगत शब्दमय है शब्दो ने हमे हर ओर से ढका हुआ है कही भी शब्द ने रिक्त स्थान नही छोड़ा है हर और से शब्द ने शब्द से जोड़ा है, पूरे ब्रह्मांड का इन शब्दो ने तारतम्य जोड़ा है शब्द संचारित जगत सारा इनसे पार तो कोई विरला ही पा रहा है जो मौन हो रहा है जो भीतर शांति पा रहा है भीतर के जीवन को ही जी रहा है

9)

यह शब्द ही है जो निरंतर आपके मन मस्तिष्क को पकड़े रहते है ओर कभी खाली नही रहने देते आप किसी ना किसी बात पर इन शब्दो के माध्यम से ही विचार करते हो। शब्द न हो तो कल्पना कीजिए जीवन कैसा हो ? 

10)

यदि आपको अपना मन स्वस्थ रखना है तो आपको अच्छे शब्दो का संग्रह करना चाहिए क्योंकि शब्द ही है जो आपको हमेसा शांत, स्थिर चित वाला व्यक्ति बना सकते है। यह शब्द ही आपको जीवन प्रदान करते है ओर भीतर बहुत हलचल भी मचाते है

11)

यदि आपने यह समझ लिया की शब्द से आपका जीवन निर्मित हो रहा है तभी आप बहुत सरलता से अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते है उसमे अलग अलग रंग भर सकते है आप स्वयम को आत्मविश्वास से भर सकते है। ओर अनेकों कार्य कर सकते है

12)

यदि आप लगातार नकरात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे है तो आपका जीवन भी नकरात्मक स्तिथि की और अग्रसर होता हुआ चला जाएगा जिसकी वजह से आप हमेसा नकारात्मक विचारों को पैदा करेंगे और जीवन की हर परिस्तिथि को नकारात्मक रूप से ही देखेंगे।

13

शब्द वो है जो एक बार आपकी जुबान से निकल गए फिर वापस नही लिए जा सकते शब्द एक तरकस में तीर की तरह है जिसे एक बार छोड़ कर वापस नही लिया जा सकता। अब इनका प्रभाव अवश्य होगा ये खाली नहीं जाएंगे इनका अर्थ रूप में परिवर्तित होना संभव है

14 शब्द क्या है ?

क्या हम शब्दो को सही रूप ,

आकर , तरीके से समझ रहे है ?

क्या इनमें अब भी कोई भेद है या

हम शब्दो से अनजान है

कौन बताए ?

कौन समझाए ?

ये शब्द क्या है कौन है ?

यह शब्द वो शब्द नही जो हम समझ रहे है

शब्द सिर्फ शब्द नही है यह कुछ और ही है

जिनको हम समझ नही पा रहे है

इनके मतलब अलग अलग है

ये होते कुछ है ओर समझ में कुछ आते है

इनका कोई सीधा सीधा मतलब समझ नही पाता है

बस इन शब्दो में हर कोई गुम हो जाता है

इनके आने का नही पता

इनके जाने का नही पता हमे

हमे बस यह शब्द है जो कभी

खुद को ही कर लेते निशब्द है

यह खुद को बयान भी करना जानते है

ओर खुद मौन भी अच्छे से कर लेते है,

15)

यह शब्द है बुद्धि की पकड़ में भी नही आते है इधर उधर भागते हुए नजर आते है इन शब्दो पर लगाम किसी की लग नही पाती है यह शब्द किसी की कैद में रह नही पाते यह शब्द तो आज़ाद से है लगते जो कहना चाहते है वो कह चले जाते , ना जाने कौनसे मतलब , मायने यह जीवन को हमें सीखा जाते है यह शब्द है शब्द विज्ञान , शब्द ज्ञान , अति उत्तम , शब्द धन बखान कर शब्द चले जाते

कभी तो यह शब्द प्यार जताते तो कभी कोहराम मचाते

ना जाने ये शब्द किस और से आते और कहाँ चले जाते है।

अनेकों अर्थ , भावनाए , एहसास यह शब्द अपने भीतर है समाते यह शब्द है

16)

शब्द ही है जो मन को भी इधर उधर चक्कर है लगवाते क्या मन शब्द को पकड़ पाता है या जैसा शब्द है चाहता वैसा मन हो जाता। शब्दो की प्रकृति को कोई नही जान पाता कभी यह शब्द त्रिगुणा तीत तो कभी त्रिगुन से पार हो जाता इन शब्दो का पार लेकिन कोई नहीं पा पाता

17)

मन से ऊपर  बुद्धि है लेकिन जब शब्द की बात हम करते है तो शब्द ही सबसे ऊपर है क्योंकि मन को चंचल , चल, अचल , स्थिर ,  विचलित भी करते शब्द है शब्द को ठहराव भाव में लाते भी शब्द है

18)

मैं आपको कुछ  शब्दो की बात बताता हूं इनकी बाते सुनो इनको जानो तुम जरा पहचानो इनको यह शब्द कौन है ? इनका जरा मेल मिलाप तो देखो यह मानव तन में आते है फिर यह क्या क्या करतब दिखाते है जरा देखो

जानो- पहचानो

19)

शब्दों का साइज तो देखो कभी मोटे है

तो पतले लंबे छोटे नाटे गिट्टे भी है ,

गूंगे, बहरे , अंधे, काने, लूले, लंगड़े भी है

ये शब्द

इनका कुछ पता नही बड़े शातिर है

तो बड़े सीधे भी है ये शब्द

कभी भोले बन जाए तो कभी गुस्से से लाल नजर ये शब्द

20)

कभी आये कभी जाए

इस और से आये तो उस और जाए

यही रह जाए तो पता ये भी नही कहाँ चला जाए, कुछ भी समझ ना आये ये भाग दौड़ा चला जाए

कभी हाथ आये तो कभी गायब हो जाए

अजीब अजीब करतब दिखाए

इन शब्दों को कोई समझ ना पाए

ये बताते रोज एक नई कहानी खुद की जुबानी

ये बुनते है कहानी किसीको नही पता ये कैसे बुन लेते है ये नई नई कहानी

21)

कौन है ये शब्द ?

क्या ये कहलाते है ?

भगवत गीता में शब्द को श्री कृष्ण बताते है

शब्द आकाश का विकार है और स्पष्ट करते है की किस प्रकार से शब्द ही पूरे ब्रह्मांड का निर्माण करते है किस प्रकार से शब्द ही सबमे व्याप्त है। यह सम्पूर्ण जगत शबदमय है , विस्तृत भी इन शब्दों के कारण ही हो रहा है

शब्द ही परम अक्षर

शब्द ही ब्रह्म कहलाते है

यही मानव रूप में इस

पृथ्वी पर अवतरित होकर आते है

22)

शब्द एक तो मतलब अनेक है

शब्दों के रूप अनेक है

23)

शब्दो जैसी अनोखी चीज़ इस पूरे ब्रह्मांड में नही शब्दो से महत्वपूर्ण तो इस पूरे ब्रह्मांड में कोई दूसरा कुछ भी नही है।

शब्द ही मंत्र है तो शब्द परम अक्षर है शब्द ही आत्मा तो शब्द ही परमात्मा है। शब्द ही हर ओर व्याप्त है शब्द ही निर्मित करते है तो शब्द ही विनाश भी

24)

शब्द हस्ते है तो शब्द रोते भी है

ये ठहाके मार मार हँसते है

तो कभी बहुत वेदना के साथ रोते है

25)

इनकी भी अजीब है कहानी

हर पल में हो जाती है  इनकी बाते बेईमानी

26)

अपने मुह मिया मिट्ठू भी बन जाते

अपनी प्रशंसा सुन खुश हो जाते है यह शब्द

27

शब्द बच्चे भी है

तो जवान भी है ये

बूढ़े भी है इनमें अब

जान भी कुछ नही है

28

यह  शब्द बड़े अनजाने है

कभी कभी बहुत जाने

पहचाने भी हो जाते है

शब्द है तो सबसे मतलब भी रखते है

तो कभी बेमानी बाते ये करते है

29

यह शब्द बड़े मतवाले भी बहुत है

इनकी चाल निराली हर बात निराली है।

30

यह शब्द बड़े निराले , अनोखे

इनमें निरालापन भी बहुत है

और इनका अनोखापन गजब है

इन शब्दों का मुस्कुराना देखो और

31

इनका इतराना देखो

शब्द निराश भी बैठे है हतास भी है

32

उदास भी बैठे कभी कभी ये लाजवाब भी बैठे है।

शब्द गुस्सा भी बहुत करते है और शांत भी हो जाते है

33

शब्दों के चेहरे भी अलग अलग है

इनकी बाते भी अलग है।

शब्दों का मटकना देखो

शब्दों का नाच भी देखो यह नाचते बहुत है

34

इनके करतब अजीब है

कभी कभी ये शब्द बहुत बत्तमीज है।

कभी कभी सीखा देते है

ये सलीका और तमीज़ है

35

शब्द अपने ही शब्दों में करते कहानी बयान है

शब्द की अपनी कहानी और अपने निशान है

36

न इनकी कोई जुबान है और

ना इन पर कोई लगाम है।

अपनी मर्जी के मालिक है

यह शब्द ही कहलाते भगवान है।

37

अगर लगाना चाहो इन शब्दो पर लगाम

तो ये क्रोधित  हो जाते है

यह कभी किसी के काबू में भी नही आते

ना जाने क्या क्या है कर जाते

38

यह शब्द कभी कभी मौन भी हो जाते है

तो कभी कभी ये रोते, चीखते और चिल्लाते है

39

शब्द तो कभी चुप भी इनमे मौन रहने की क्षमता भी है।

तो कभी इनमें कोई क्षमता नही नजर आती है

40

शब्द सर्वशक्तिमान भी और अपने आपमें असहाय भी है

शब्द परिश्रम करता ही दूसरे शब्द के लिए है

41

स्वयं शब्द तो खुद को भूल ही गया है

शब्द ही शब्द का सहारा है

वरना शब्द बेचारा बेसहारा है

42

शब्दों की भीड़ बहुत है,

शब्द अकेले भी रह जाते है।

यह शब्द बेचारे अकेलेपन से है घबराते

43

शब्द शोर बहुत मचाते है

भीड़ तंत्र के राजा ये शब्द ही कहलाते है

शब्द शांत भी हो जाते है।

44

शब्द ही शब्द का सहारा है

बिना एक शब्द के दूसरा शब्द बेसहारा है

45

इनका होश तो देखो इनका जोश तो देखो

कभी कभी ये कितनी बड़ी बड़ी बातें कर जाते

मतलब जिन का सिर्फ यह सीखा पाते है

46

शब्दों के अनेकानेक खेल

इन शब्दो ने रचना की पूरे ब्रह्माण्ड की

इन ही शब्दों से हुआ जगत का खेल शुरू ये सारा

47 शब्द क्या है ?

कुछ शब्द गुम हो जाते है तो कुछ

महान बन जाते है कुछ प्रसिद्ध हो

जाते है तो कुछ बेचारे गुमनामी के

अंधेरे में कही खो ये शब्द जाते है

ना कोई ठिकाना ना कुछ मुकाम

हासिल कर पाते बेचारे ये

शब्द खुद के बिछाए जाल

में फंस जाते है इनसे ये बाहर

निकल नही पाते है बार बार ये

कोशिश करते हुए नजर आते है

कभी नाकामी पाते है तो कभी

सफलता भी हासिल कर जाते है

कुछ नाकाम रह जाते है तो

कुछ शब्द बन जाते है तो कुछ

शब्द बिगड़ जाते है

कुछ अलग राह पकड़

आगे निकल जाते है

तो कुछ भेड़ चाल की तरह

चलते हुए ही नजर आते है

कुछ नया नही बस वही पुराना सभी

शब्द करते नजर आते है

इनमें करने की चाह बहुत है

कुछ कर जाते है

कुछ चाल जाते है

तो

कुछ ठहर जाते है

49

शब्द

शब्द ही सुंदर, अतिसुन्दर है

शब्द बदसूरत भी दिखते है

50 शब्द क्या है ?

शब्दो की चाल बड़ी निराली है

इनकी दुनिया भी बड़ी निराली है।

शब्द समझते खुदको बलवान है

लेकिन भरी हुई इनमे बहुत थकान है

जन्म जन्म से बह रहे है ये शब्द है

जो अपनी गाथा कह रहे है

शब्द सिर्फ शब्दो के द्वारा बह रहे है

शब्दों का ना कुछ अता है ना पता

ये किधर से आ रहे है और जा रहे है

बस बन रही है इनकी अपनी गाथा है

यह शब्द अब तक अपनी विजयगाथा चला रहे

51

शब्द शोर मचाते तो

शब्द चिल्लाते भी बहुत है

इनकी हंसी भी गजब है

इनका रुदन भी देखो ये रोते है

चिल्लाते झटपटाते   हैै

शब्द उछलते है,कूदते है,नाचते है, झूमते है , घूमते है

52

शब्द अकड़ कर चलते है , कभी सुरा झुका मिलते

धम्ब साहस स्वयम में यह शब्द भरते है

53 शब्द क्या है ?

शब्द खुद से भी बाते करते है

शब्द अपनी जीत का जश्न भी मनाते है

शब्दो मे हलचल है, शोरगुल है

लड़कपन है शब्द शर्माते भी है

और इतराते भी है

54 शब्द क्या है ?

शब्दों की शब्दों से क्या बात कहे ?

शब्दों को मालुम नहीं वो खड़े कहाँ है

शब्द तो भूल जाते है की हम कौन है?

स्वयम को भूल जाने की इनकी प्रवृति है

यह कभी दुसरो के संग मिल जाते है

तो खुद को भूल जाते है

55 शब्द क्या है ?

शब्द खाली है तो भरे भी है

शब्द चलते है भागते, दौड़ते है

तो रुक भी जाते है

थक हार भी जाते है

कभी

हिम्मत जुटाते है तो

कभी दम तोड़ते हुए भी

ये शब्द नजर आते है

हाथ पाँव हो या नही पूरे हो

या नही फिर भी जिंदगी के

साथ जीते हुए नजर आते है

अपना समपर्ण देते  है किसी

दूसरे शब्द का सहारा बन जाते है

तो कभी सिर्फ अपना मतलब

सीधा करते हुए ही ये

शब्द नजर आते है तो कभी

जिसको जरूरत है उसका

सहारा बन ये शब्द जाते है

शब्द को शब्द मिल जाए तो

शब्द के मायने बदल जाते है

56

शब्द अपना खुद प्रचार प्रसार करे

शब्दों की कहानियां भी बहुत है

57

शब्द अंगड़ाई भी तोड़े और सोते भी बहुत है इनको जगाने की कोशिश करो तो ये देर लगाते भी बहुत है

58

शब्द अपनी मर्जी से आते है अपनी मर्जी से जाते है इनका कोई ठिकाना नही है बस जुबान से निकल ये जाते जैसा मतलब बनाओ ये शब्द खुद बना जाते है तोड़ मरोड़ शब्दों को बनाओ या जोड़ जोड़ कर देखो जैसा मर्जी इन्हें बनालो ये खूब काम आते है कुछ भी कैसा भी ये शब्द बन जाते है

आड़े टेढ़े तिरछे शब्द भी देखें बहुत है जाते यह शब्द बहुत काम भी आते है इनको कही भी लगादो शब्दो के अपने मतलब और मायने बदल जाते है

59

आज फिर यह शब्द कही भाग रहे है

इनकी दौड़ समझ नही आ रही है ये जाना कहाँ चाहते इनका तो सफर ही खत्म नही होता हुआ दिखता बस यह चलते हुए जा रहे है, कहां रुकेंगे ? और कब तक चलेंगे ? क्या है इनका ठोर ठिकाना यह कैसे है पता लगाना?

60

शब्द कितना भी उचा उड़ जाए लेकिन आना उन्हें जमीन पर ही है,

जब तक वो निशब्द ना हो वो इस आकाश से बाहर ना हो पाए।

61

इन शब्दो पर जोर नही है चलता यह कुछ भी और कभी भी जो मन चाहता वो है कह ये शब्द जाते अब इन शब्दो को कौन समझाए इनसे ऊपर कैसे जाए और कौन जाए ?

यह तो हर दम अपनी मर्जी चलाये , मन , मस्तिष्क के भीतर यह शब्द घर कर जाए फिर देखो यह कैसे उत्पात मचाये

62

मन पूरा क्रोध से भर देते है, तन मन में आग लगा देते है।

यह शब्द रोम रोम राम से रावण हो जाते है

ये शब्द फिर किसी की सुन नही पाते है।

63 शब्द क्या है ?

सारे गुण अवगुण इन शब्दो में समाए

इनसे कौन भीड़  लड़ पाए, ये

शब्द सबको पीछे छोड़ आगे निकल

जाए त्रिलोक विजय भी ये शब्द पाए

परमेश्वर भी इनका सहारा ले धरती पर आये है

64

आज मैं भी शब्दों से बाते करता हूं जो आते है मेरे विचार में उनको पन्नो पर उतार देता हु फिर उनको पूरा करता हूं जो भी जैसा भी कोई एक विचार मेरे मन को छू जाता है वो लिख डालता हूं इन्ह पन्नो पर ताकि कभी न कभी तो उसका अर्थ मैं ढूंढ पाऊंगा और उन सभी शब्दों को पूरा कर मैं लिख पाऊंगा

65

शब्द क्या है ? ऐसे शब्द जो इस ब्रह्मांड मैं कही ना कही विचर रहे है परंतु अभी तक हमसे उनका टकराव नही हो पाया है और जिन शब्दो का किसी से टकराव हो पाया है वो मोक्ष को प्राप्त हो गए है जिन्होंने शब्द रहस्य को जान लिया है वो पूरी तरह मोक्ष को प्राप्त हो चुके है

आइए जानते है शब्दों के बारे में

हमारे मुख से निकले शब्द इस बृह्मांड में चर और विचर  करते है यह शब्दों की प्रकर्ति पर निर्भर करता है , शब्द किस प्रकार का है ?

शब्द की मूल पृकृति क्या है ? कैसे बना है और क्यों तथा किन कारणों से यह भी जानना अतिआवश्यक है क्योंकि यदि यही नही जान पाए तो उस शब्द का मूल कारण समझ नही पाए और वो शब्द इस ब्रह्मांड में चर विचार करता रहेगा जब तक उसे अपना अन्तोगत्वा स्थान ना प्राप्त हो जाए

66

किसी भी रोग का उपचार शब्द

अथवा जिन्हें मन्त्र कहा है

उनके द्वारा करना सम्भव है तथा अनेकानेक रोगों को भी सिर्फ बोलने वाले मंत्र से उपचार किया जा सकता है इसके लिए हमें इन पर रिसर्च करनी होगी जो हमने पिछले कई शताब्दियों से नहीं की है हमारे वेद पुराणों में बहुत कुछ लिखा हुआ है परन्तु हमने उन्हें भी कभी समझने कि कोशिश नहीं की है

लेकिन कभी तो  हमे समझना होगा और बहुत सारी ऐसी किर्यायाओ से होकर गुजरना होगा जैसा की हमारे ग्रंथो में दिया है या फिर आज कल के युग में कई विधानों ने कह दिया है आपके शब्द ब्रह्माण्ड को प्रभावित करते है जैसा आप सोचते,  विचरते है उसी प्रकार की प्रकृति बन जाती है और प्रकृति पर आवरण भी उसी प्रकार से आवरण चड़ता है ,  मन के भावों से तथा आपके जीवन में आप जो कुछ भी कार्य कर रहे उनके द्वारा सारा जीवन बदल सकता है लेकिन हम शारीरिक रूप से जितने सक्षम है उतना ही कार्य कर सकते है और जो होना चाहते है वहीं हो सकते है

मशीनों का प्रयोग करके हम आने वाले कुछ सालों में बहुत सारी ऐसी रचनाएं करे जो हम आज के युग में सोच नही पा रहे हो परंतु यह सभी बाते संभव है क्योंकि संभावना आपके विचारो पर ही निर्भर करती है

बाहरी दुनिया बहुत सारी ध्वनियां छोड़ रही है परंतु ये ध्वनियां किसी भी काम की नही लग रही सब की सब बेमतलब है जिनका औचित्य नही प्रतीत हो रहा है इस समय इन सभी ध्वनियों को कभी ना कभी अर्थ मिलेंगे परंतु वो किस और जाएंगे ये समय पर निर्भर करता जहाँ तक मेरा अंदेशा है ये विनाश की और अग्रसर हो रहा है इसलिए इन्ह ध्वनियों को सुनने का कोई फायदा नही है मुझे अपने भीतर की दुनिया को ही सचेत रखना है जो ध्वनियां मेरे भीतर बज गुंज रही है मुझे उन्हें ही मूल रूप से सुन्ना है

और समझना है

बाहरी दुनिया में बेबुनियादी विचारो की एक अलग दुनिया बन चुकी है जिनमे आप खुद को भी भूल जाते है और इस चक्रव्यूह में फंस जाते है जिससे निकलना मुश्किल सा प्रतीत होता है अनगिनत विचार आप के मस्तिष्क में चलते है जिनका कोई आधार नही है और वो आपको सिर्फ बाहरी दुनिया के चक्कर लगवाते है और कुछ भी नही इनका निष्कर्ष बिल्कुल अर्थहीन है जो आपकी इच्छाओ को बढ़ावा दे रहे है। दिन प्रतिदिन आपने विचारो में ही फंसते हा रहे है

बाहरी वस्तुयों में शोर है, रगड़ना है जिसमे कोई मधुर आवाज मधुर संगीत नही है ये सभी ध्वनियां मिल तो ओम ॐ को रही है परंतु उनका जो उच्चारण स्थान है वो अलग है रगड़ना जिससे इन ध्वनियों को सही दिशा मिल रही है और इनके अर्थ अब अर्थहीन दुनिया की अग्रसर है,

अगर हम ब्रह्मांड के साथ एक ही साउंड में खुद को मिलाने की कोशिश करे तो शायद हमारा जोड़ आकाश से हो जाए पूरी धरती पर जितने प्राणी है उन साभी को ये एक साथ करना होगा और

कुछ शब्द आते है समूह बनाते है और वार्तालाप करते है कुछ शब्द एक प्रधान शब्द के पास आते है और बाते करते है किसी एक मत पर अपनी सहमति देने के लिए नजदीक आते है और देते है उनका प्रधान एक मत छोड़ता है और सभी शब्द उस पर अपना मत देते है सहमति हाँ में होती है

निष्कर्ष परिणाम हा निकल गया है यहाँ पर

है हम सहमत है सभी सहमत होते है एयर चले जाए है

शब्द एक विवेकशील प्राणी है परंतु प्रकाश (लाइट) नही

शब्द तरंगे उन्हें और समझ सकती है परंतु लाइट सिर्फ गतिमान है एक सीधी रेखा में अग्रसर है जिसका अपना कोई भी मत नही है

तरंगे , ध्वनियां , शब्द , कम्पन ये आपस में विचारक तत्व है इनमें समझ है ये निर्णायक है स्वयम निर्णय भी ले सकती है क्या सही है ? क्या गलत है ? परन्तु लाइट में नही होती यह क्षमताये, लाइट सिर्फ चलती है जहां प्रकाश हा सकता है सिर्फ वहीं तक किरणे जाती है

तो एक सीधी रेखा में जिसका अपना कोई अस्तित्व नही होता सिर्फ प्रकाश की गति में गतिमान है

शब्द क्या है ? लोग क्या सोचते है शब्दों के बारे में ओर मैं क्या सोचता हु शब्दों के बारे में इसमे फरक है शब्द ही मेरे लिए एक अलग दुनिया बनाते है ओर लोगों के लिए शब्द कोई मैंने नहीं रखते लेकिन इन शब्दों से ही जीवन का हर एक क्षण घातुत हो रहा है इन शब्दों के बिना तो जीवन चलना ही असंभव है शब्द इस ब्रह्मांड की ऊर्जा है शब्दों में राग दवसह जो पैदा हो रहा है वह सब आकाश के कारण ही हो रहा है शब्द जीवन रस को नए रंग में स्वाद में बदल देता है शब्द ही है जो आपको स्वाद देता है इस जीवन वर्ण तो यह बेरस हो जाए नीरस हो जाए शब्द न हो तो क्या ये जीवन कल्पना मात्र भी होगा क्या ? शब्द को लोग क्या समझते है ?

उनके लिए शब्द गॅलिया है

शब्दों की अलग भाषा है शब्द से बस उनका अर्थ है लेकिन शब्द उनके सबकुछ नहीं है लेकिन इस ब्रह्मांड का स्रोत ही शब्द है , गंध , रस , रूप, आकार यह ब्रह्मांड की पूरी रचना में बहुत यहां तत्व है

यदि आप अपनी जुबान से कुछ नहीं बोल इसका अर्थ यह नहीं है की आप चुप है भीतर तो आप लगातार अपने आप से बात कर ही रहे है जिसका पप्रभाव बाहर दिख रहा है

आप चुप सिर्फ जुबान से लेकिन मन से अनही मन तो लगातार चल ही रहा है जिससे बहुत घटनाए पैदा हो रही है किसी का फोन नहीं आया , क्या कहूँगा , खाऊँगा, कैसे जाऊंगा , रहूँगा आदि इत्यादि चीजों में उलझे रहते है जिनके कारण मन की अवस्था बदलती है।

यह भी पढे: शब्द क्या है, शब्दों का संसार, शब्द किसे कहते है,

समय की बर्बादी

समय की बर्बादी

आप जितना चाहो उतना समय बर्बाद कर सकते हो यह जीवन आपको मिला है पूरा जीवन आप व्यर्थ के कामों में लगा सकते हो, इस जीवन में आपके पास समय की कोई कमी नहीं है जितना आप समय बर्बाद करेंगे उतना ही सफलता से दूर हो जाओगे उतना ही दूर अपने कार्यों से हो जाओगे, उतना ही दूर आप अपने जीवन के मूल्यों से हो जाओगे, यह एक जीवन आपको समय का उपयोग करने के लिए मिला है इसे सही दिशा में लगाए।

समय लगातार बर्बाद , व्यर्थ करने के लिए हमारे पास बहुत समय है इसको कितना भी चाहो तुम बर्बाद कर सकते हो लेकिन यदि इसे सही दिशा ओर कार्यों में लगाया गया तो यह समय आपको उन उचाइयों पर पहुच देगा जहां तक की आपने शायद अभी कल्पना भी नहीं की हो कभी।

समय का सदुपयोग कैसे किया जाए ?

समय की हानी को रोक जाए हमारा समय लीक हो रहा है इसको रोक जाए यह कहाँ से लीक हो रहा है अपने समय को देखे यह किस ओर जा रहा है। उस जगह से हटाकर इस समय को उचित जगह ले जाया जाए,

इस जगह यह प्रश्न उठता है की लीक या लीकेज क्या है? जिस तरह से कभी कोई पानी का नल खराब हो जाता है तो उस नल में से एक एक बंद पानी बाहर निकाल पूरी टंकी खाली हो जाती है, उसी तरह आप थोड़ा थोड़ा समय जो बर्बाद कर रहे है वह आपके जीवन को खराब कर रहा है इसिको लीकेज कहते है, इसे रोका जाना चाहिए ताकि आपका जीवन एक बेहतर दिशा की अग्रसर हो ओर आप जीवन को बेहतर बना पाए , इसमे समय लगता है परंतु धीरे धीरे हम अपने समय की हानी को रोक सकते है।

क्या आप ज्यादा समय टीवी, मोबाईल, व्यर्थ की बातों में बिताते हो ? यदि हाँ तो आज से अपने समय की हानी को रोकिए ओर उस समय को खिचकर एक जगह पर एकत्रित कीजिए ताकि वह समय आपको एक बेहतर इंसान बनाए जिस कार्य को आप करना चाहते है उस कार्य को अपनी क्षमताओ के सात कर सको।

एक बड़े स्तर पर अपने समय को देखा जाए की वह कहाँ से खराब हो रहा है समय को लीक होने से रोके समय उस गड्ढे में गिर रहा है जहां से वो वापस नहीं सकता इसलिए उसको गिरने से बचाए व रोके ताकि समय का बहाव आपके साथ ही रहे आप उसके सामने खड़े रहे समय आपको धकेलने की कोशिश करेगा परंतु आपको वही अडिग रहना है उसको अपने ढंग से प्रवाहित करना है।

(पानी के साथ एक चित्र जिसमे एक व्यक्ति पानी के सामने खड़ा है ओर उस लड़के के पीछे एक गड्ढा बना हुआ जिसमे पानी जा रहा है वह लड़का उस पानी को गिरने से रोकता है चित्र बनाना है यहाँ पर)

ताकि हम समय को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सके हमारे समय की हानी हो रही है इसको कैसे बचाए हमे यही जानना है।

समय को देखो वह किधर जा रहा है , इसको उस जगह से हटा कर जरूरी के कार्यों में लगाना शुरू करे।

हम बहुत बाते करते है, कभी कभी तो ज्ञान देने में इतने मशगूल हो जाते है की समय का पता नहीं चलता की वो समय कहाँ गया ओर वह समय खतम होता जाता है इसलिए समय को व्यर्थ नहीं करे।

हम बिना मतलब के कार्यों में उलझे हुए है, उन कार्यों से हाथ जोड़ ले ओर जरूरी के कार्यों में लगे।

टीवी, समाचार, फालतू की बकवास यह सब हम बहुत ही ज्यादा करते है, यदि आपको टीवी देखना है कुछ सीखने के लिए टीवी देखे जितना ज्यादा आप सीखेंगे उतना ही बेहतर हो पाएंगे , उतने बेहतर तरीके से आप अपना कार्य करेंगे।

क्या आप अपने काम को मन से नहीं करते, मन लगाकर नहीं करते या आपका काम में मन नहीं लगता इनमे से कोई भी एक कारण हो सकता है, जिसकार्य को करने में आपका मन लगता है वह कार्य करे इससे आप समय को नष्ट कम करेंगे।

जीवन में अच्छे विचारों का संग्रह करे

जीवन को बेहतर बनाने के लिए क्या करे?

छोटे छोटे विचार जो आपके जीवन को लगातार बदल सकते है, आपके जीवन को सकारात्मक बना सकते है, आपके जीवन को बेहतर बना सकते है। 

उन विचारों को अपने जीवन का हिस्सा जरूर बनाए, उन विचारों को अपने में उतारे यही वो विचार है जो आपका जीवन दिन प्रतिदिन बेहतर बनाते है, ओर एक दिन आपका जीवन बहुत बेहतर हो जाता है, जिस भी उम्र के पड़ाव पर हम है उस उम्र की परवाह न करे बस बस स्वयं को बेहतर बनाते जाए एक दिन आप निखर कर सामने आएंगे।

जैसा की हम सभी जानते है एक पूरे दिन में मस्तिष्क में लगभग 60 हजार विचार आते है परंतु क्या वह सभी विचार हमारे लिए महत्वपूर्ण है? नहीं वह सभी विचार हमारे लिए महतवपूर्ण नहीं होते

क्युकी वह सभी विचार हमारे कुछ न कुछ सोचने की वजह से, कुछ न कुछ कार्य करने व देखने की वजह से उत्पन्न हो रहे है या फिर हम पुरानो दिन में खुद को खो देते है बस वही विचार हमारे मस्तिष्क में लगातार घूमते रहते है।  

यदि हम कुछ अच्छे ओर सकारात्मक विचारों लिख कर उन्हे बार बार मन में दोहराए व सिर्फ ओर सिर्फ उन्ही विचारों के बारे सोचे तो आप देखेंगे की आपके जीवन में कितना परिवर्तन आता है।

विचारों का प्रभाव हमारे जीवन पर   

हम हर रोज थोड़े थोड़े बेहतर होते जाएंगे।

हर रोज हमारे भीतर नई ऊर्जा का संचार होगा।  

हर रोज हम जीवन के प्रति सकारात्मक होंगे।

आपका मन सदेव प्रसन्न रहेगा।

यह अनुभव एकदम से होने लग जाता है, जैसे जैसे हम अपने पुराने विचारों की आदतों को तोड़ते रहते है हम नए-नए विचारों के अनुभव को जगह देने लग जाते है, जब तक पुरानी सोच, पुरानी धारणाओ को नई छोड़ेंगे तब तक नई की उपसतिथि कैसे होगी? इसलिए उन पुराने विचारों को मस्तिष्क के भीतर से हटाए ओर खुद को नए विचारों के साथ जोड़े, इन नए विचारों सकारात्मक होने दे अपने भीतर तक और इन नए ओर सकारात्मक विचारों के साथ जिए हमारे भीतर जो नकारात्मक विचार है उनको बाहर निकाले। 

कुछ मुस्कुराहट रखो

कुछ मुस्कुराहट रखो अपने होंठों पर, इस मुस्कुराहट को बस दबाना मत जिंदगी के चेहरे पर मुखोंते लगाना मत

कुछ मुस्कुराहट रखो, गम को भुलाकर,
खुशियों को अपने जीवन में बुलाकर।
आने वाले कल की उम्मीदों को संजोकर,
जीवन की राहों में आगे बढ़ते जाओ सदा।

ज़िंदगी का सफर थोड़ा दुखद हो सकता है,
कुछ दिन सारे अँधेरे हो सकते हैं।
पर चिंता मत करो, आशा का दीप जलाकर,
जीवन के हर पल को खुशी से जीते जाओ सदा।

प्रतिदिन कुछ नया सीखो और नए सपने देखो,
जीवन के रंगों को दिल में समेटो और खेलो।
जीवन के हर एक पल को खुशी से जीतो,
मुस्कुराते हुए जीवन की सारी यादें संजोते जाओ सदा।

जीवन का अर्थ है खुशी से जीना,
चिंताओं को भुलाकर सफलता की राह पर चलना।
ज़िंदगी के सभी उद्देश्य पूरे हों,
मुस्कुराते हुए हर पल को जीते जाओ सदा।

जीवन की यात्रा में गम होंगे भी।
पर मुस्कुराहट ना छूटे कभी से तुम्हारे होंगे भी।
चलते जाओ आगे, अपने सपनों की ओर,
मुस्कुराते हुए जीवन को जीते जाओ सदा।