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सपनों को पूरा करे

धीरे धीरे उन सपनों को पूरा करे जिनको कही छोड़ दिया था, जिनको हम भूल गए थे, जिम्मेदारी के बोझ तले वो सपने जो पीछे रह गए, जिन सपनों को हमने कुचल दिया था, जिन सपनों को अब हम याद भी नहीं करते, जो समय के साथ साथ धुंधले हो गए थे, फिर से उनही सपनों को चिंगारी देते है और सुलगाते है आग भीतर की उन सपनों के लिए जो अधूरे रह गए थे।

उनही सपनों को फिर से पूरा करने की कोशिश हम करते है, उनही सपनों को फिर से हकीकत हम बनाते है।

हममे से बहुत सारे लोगों के ऐसे सपने होते है जिनको हम अपने घर की जिम्मेदारी के कारण पूरा ही नहीं कर पाते, या फिर हमारे सपने अधूरे रह जाते है, जिनके लिए हम कोशिश तो बहुत करते है, लेकिन उन्मे कुछ न कुछ कमी रह जाती है।

वो क्या कमी थी जिसकी वजह से वो सपने, वो ख्वाब हकीकत ही नहीं बन पाते है।

पैसों की कमी: बहुत सारे ऐसे सपने होते है जो पैसों की कमी के कारण हकीकत में नहीं बदल पाते।

अड़चने: बहुत सारी ऐसी अड़चने आती है जिंदगी में जिन्हे हम समझ ही नहीं पाते, जिनकी वजह से भी हमारे सपने अधूरे रह जाते है।

जिम्मेदारी: हमारे कंधों पर घर परिवार की जिम्मेदारी भी होती है, जिनकी वजह से भी हम अपने सपनों से दूर हो जाते है।

हम इसी उलझन में फंस जाते है और हमारे सपने कही पीछे और बहुत दूर छूट जाते है जिनको हम पूरा नहीं कर पाते, बल्कि उन सपनों के बारे में हम भूल भी जाते है जो सपने हमने अपने बहपन और जवानी के दिनों में देखे थे, जो हम पूरे नहीं कर पाए और शायद उन सपनों के लिए हमने फिर पलट कर भी नहीं देखा।

आओ फिर से उन सपनों को पूरा करे जिन्हे हमने पीछे छोड़ दिया है।

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Ham Sochte Hai

ham sochte hai kya hai aur kya ho jata hai, is baat ka hame bhi nahi pta chalta, sab kuch hamare chahne se bhi nahi milta aur bahut kuch bin chahe hi mil jata hai……….

hamare sochne aur karne mei bahut fark hota hai isliye bahut saare kaam adhure reh jaate hai, hamesha dimaag do taraf sochta hai aur alag chizo mei dimaag lgaata hai jiski wajah se bhi ham jo haasil karna chahte hai vo haasil nahi kar paate, kai baar hamara dimaag negative hota hai toh kai baar positive jab ham negative hote hai toh usme hamare emotion hamare control mei nahi hote un emotion ki wajah se bhi hamari bahut saari chize poori nahi ho paati

kabhi kabhi hame kuch , sirf thoda saa hi paane ke liye bahut mehnat karni padti hai aur kabhi kabhi chize bahut aasani se mil jaati hai, jo chize aasani se mil jaati hai unki kadr bhi nahi karte ham aur jo bahut mehnat ke baad milti hai uska ek alag hi maza hota hai, usko sambhal kar rakhne ka mann karta hai, usko khona nahi chahte ham, use ham zindagi bhar sambhal kar rakhne ki koshish karte hai, isiko fark kehte hai jo mehnat se milta hai aur jo bina mehnat kiye hi mil jaata hai.

bahut baar yahi hota hai hamare jivan mei ki ham karna toh bahut kuch chahte hai lekin kar nahi paate, kuch hamare vichar aur karya mei sahi taalmel nahi hota, jiski wajah se bhi ham apne karyo mei safal nahi ho paate,

Aesa kyu hota hai lekin: jab bhi ham kisi chiz ke baare mei sochte hai par vo chiz hame nahi milti aesaa kyo? kya us vastu par hamne sahi se dhyan kendrit nahi kiya? ya hamari iccha hi kamjor hai jiske kaaran ham jo chahte hai vo poora nahi ho paata

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अचारी बा

“अचारी बा” एक हिन्दी फिल्म है जिसे सभी वर्ग के लोग देख सकते है, यह एक पारिवारिक फिल्म है, इस फिल्म में अचार का मूल्य उन पारिवारिक रिश्तों के तौर पर दर्शाया गया है, जो कुछ खट्टे , कुछ मीठे, कुछ तीखे है।

नीना गुप्ता, वत्सल सेठ, कबीर बेदी, मनासी रच आदि।
फ़िल्म की लम्बाई: 1 घंटा 38 मिनट
कहाँ देखे: जिओ हॉटस्टार
निर्देशक: हार्दिक गज्जर

किरदार का चुनाव: किरदारों का अच्छा चुनाव फिल्म को ओर भी बेहतर बना देता है फिर यह बात दर्शकों को पता होती है की इस फिल्म को देखने समय की हानी नहीं होगी, कुछ अच्छा व बेहतर ही मिलेगा।

और जिस फिल्म में नीना गुप्ता हो उसका फिल्म का रंग और रूप अलग हो ही जाता है, गुजराती स्टाइल में नीना गुप्ता की कॉमेडी बहुत ही अच्छी है, नीना गुप्ता एक 65 वर्ष की महिला की भूमिका निभाती है, जिनके पति का बहुत पहले ही निधन हो गया था और वह एक आचार का व्यापार करती है, जिनका बेटा केतन ( वत्सल सेठ ) जिसकी परवरिश व बहुत अच्छे से करती है।

इस फिल्म में केतन अपनी माँ को छोड़कर मुंबई रहने लग जाता है, और कई सालों बाद अपनी माँ को याद कर मुंबई बुलाता है, वही जयेशनी ( नीना गुप्ता ) की कहानी एक नया मोड लाती है, उन्हे समझ आने लगता है की उनके बेटे ने उसको किसलिए बुलाया था, कहानी और अच्छी होने लगता है, जयेशनी और केतन के डॉग जिसका नाम जेनी होता है उससे गहरी दोस्ती हो जाती है। अब डॉग का नाम जेनी क्यू रखा यह भी आप फिल्म देखकर ही जानिए सारी कहानी यदि मैं आपको बता दूंगा तो फिल्म का मज़ा कैसे आएगा।

आप “अचारी बा” फिल्म देखिए जिओहोत्सतर पर यह फिल्म सिर्फ 1 घंटे 38 मिनट की है और पूरी फॅमिली के साथ यह फिल्म आपको अच्छी लगेगी, क्युकी आजकल सभी फिल्म परिवार सहित नहीं देखी जा सकती लेकिन यह फिल्म आप पूरे परिवार संग देखते सकते है इसमे हसी मजाक , और भरपूर प्यार व रिश्ता बिल्कुल आचार की माफिक है, और फिल्म देखने के बाद कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताए की फिल्म आपको कैसी लगी।

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असफलता को स्वीकार

असफलता को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है, जब आप किसी चीज के लिए जी जान से मेहनत करते हो ओर उसको पाना चाहते है, लेकिन उसको हासिल करने में आप सफल नहीं हो पाते तब आप बहुत टूट जाते है, उसके बाद आपको कोई और रास्ता भी नहीं दिखता, अब उस रास्ते से वापस आना मुश्किल हो जाता है।

मेरे साथ भी कुछ इसी तरह से हो रहा है, मैं अपनी असफलता को पचा नहीं पा रहा हूँ, और अब मैं काफी पीछे हो चुका हूँ, मेरे सभी रास्ते लगभग बंद हो चुके है। अब वो रास्ते कैसे खुलेंगे यही सोचना है, लेकिन अब सोचने का नहीं करने का वक्त है, और वो भी बहुत कम समय में क्युकी अब खर्चे के लिए पैसे चाहिए जो मेरे पास बिल्कुल भी नहीं है।

कैसे सबकुछ होगा और कैसे मैं कर पाऊँगा मुझे इसी बात की चिंता हो रही है।

क्या अब मैं नौकरी की तरफ रुख करू या कुछ और करू मुझे कुछ नहीं समझ आ रहा है, क्योंकि बिजनस करने के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं बचे, बात सिर्फ अब बिजनस की नहीं है मेरे पास अपने घर खर्च के लिए भी पैसे नहीं बचे, मैंने अपने सारे क्रेडिट कार्ड , सैविंग, ओर जो भी कुछ भी था वो सब खत्म हो गया है। इसलिए बिजनस भी कुछ नहीं कर सकता अब सिर्फ नौकरी ही एकमात्र रास्ता दिख रहा है, लेकिन नौकरी भी मुझे कौन देगा जब मेरे पास कोई अनुभव नहीं है।

मैंने पिछले साल मई में अपनी किताबों की दुकान को छोड़ा था, की अब मैं फूल टाइम ब्लॉगिंग करूंगा, और मैंने यह फैसला लिया था की अब मैं सिर्फ लिखूँगा इसके अलावा कुछ और नहीं करूंगा, मैंने शुरुआत भी अच्छी करी ओर मैं लगातार लिख रहा था, लेकिन परिणाम मेरे अनुसार नहीं आ रहे थे, धीरे धीरे समय बीत रहा था जिसकी वजह से मुझे अपने ऊपर ही शक होने लग गया था, की मैं कोई गलती तो नहीं कर रहा हूँ, इसलिए मैं स्वयं को जाचता रहता था।

लेकिन 8 महीने बीत गए कोई प्रोग्रेस नहीं दिखी, और अब घर में कुछ परेशानी भी आने लगी जैसे की भाई को मेडिकल प्रॉब्लेम की वजह से समय और ध्यान सारा उधर ही केंद्रित हो गया, जिसके चलते अब मैं अपने कार्य पर फोकस नहीं कर पा रहा था।

यही सब सोच कर मन में घबराहट हो रही है, ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं बनी, लेकिन कुछ भी पहली बार ही होता है, जब इसमे मैं फंसा हूँ तो निकलूँगा भी बस यही एक सकारात्मक सोच मेरे मन में चलती है।

कुछ न कुछ तो कर ही लुँगा ऐसा मेरा विश्वास है, इसलिए अभी तक मैं इंतजार कर रहा था, लेकिन वो इंतजार अब खत्म हुआ कुछ किया जाए वो वक्त शुरू हो चुका है, क्या करू ओर क्या नहीं यह बात अभी तक नहीं समझ आ रही है मुझे इसलिए अब मैं बिल्कुल रुक चुका हूँ।

असफलता को स्वीकार मैं कर चुका हूँ लेकिन अब ऐसा लगता है काफी देर हो गई है, फिर से वापस मुझे उसी ओर लौटना होगा , जो मैं छोड़कर आया था ओर फिर कुछ करना होगा।

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फररे

फिल्म फररे इस फिल्म के नाम से ही लगता है की स्कूल या कॉलेज में चीटिंग करने के लिए फररे चलाए जा रहे है।

फिल्म की कहानी : रॉनित राय जो एक ऑर्फन चलाता है। उसमे एक स्टूडेंट बहुत ही ब्राइट होती है। एक लड़की जो ऑर्फन होती है, जो बहुत ब्राइट स्टूडेंट है, उसे एक बेस्ट स्कूल के लिए अड्मिशन मिलता है। ओर स्कूल में यह लड़की कुछ लोगों को चीटिंग करती है, उसके लिए इनको पैसे मिलते है।

फिलहाल इस फिल्म को देखकर ही नेगेटिव एनर्जी मिल रही थी इस फिल्म से, कोई किसी का इस्तेमाल करके उसको फेक देना चाहता है तो कुछ आजकल की फिल्मों में नंगापन तो बहुत आम हो गया है।

अमिर ओर गरीब की खाई कोई नहीं पूरी कर सकता , बहुत ही बेकार फिल्म है जिसमे कोई पढ़ना नहीं चाहता इस तरह की हरकते दिखाई जा रही है, क्या ही सिखाएंगे ये फिल्म वाले किसी को इस तरह की हरकते सीखा रहे।

ना ही इन लोगों को अपनी गलती पर कोई पछतावा है ओर ना ही किसी बात का एहसास की वे क्या कर रहे है, इसलिए इस प्रकार की फिल्मों को प्रेरणा स्रोत नहीं बनाना चाहिए, बल्कि ऐसी फिल्मे ही नहीं बन्नी चाहिए, जो हमारे समाज को दूसरी दिशा में ले जा रही हो।

सिर्फ पैसा ही सबकुछ है क्या? आज की दुनिया में सिर्फ पैसा ही पैसा हर कोई पैसा ही चाहता है।

पैसे के लिए लोग कितना भी गलत करवा सकते है, ओर कर सकते है, यह लोग किसी भी हद्द तक गिर सकते है, पैसा ना हो तो किस तरह की जिंदगी जीनी पड़ती है एक गरीब को, गरीब आसानी से पैसा नहीं काम सकता, ओर आमिर एक बार बनना उसके बाद वो सिर्फ ओर आमिर ही बनता है उसके बाद नीचे नहीं आता यदि उसने खुद ही कोई गलती ना की हो तो।

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उलझ

उलझ एक हिन्द फिल्म जो इस शुक्रवार को सिनेमा में रिलीज हुई, दर्शकों को फिल्म तो पसंद आ रही है लेकिन जाह्नवी कपूर की ऐक्टिंग बिल्कुल भी नहीं पसंद आ रही, क्युकी इनके पास ईमोशन, डरना, ओर कहाँ कॉन्फिडेंट होना है कहाँ डरना है इस बात का कोई इल्म ही नहीं है,

यह फिल्म जाह्नवी कपूर को लेकर बनाई गई है, इस फिल्म का रिव्यू तो नहीं दे रहा मैं लेकिन जाह्नवी कपूर की थोड़ी सी बुराई कर रहा हूँ, क्युकी जाह्नवी कपूर को फिल्म तो अच्छी मिली लेकिन उसकी ऐक्टिंग बहुत ही खराब है, जाह्नवी कपूर सीन में फिट हो सके उसी तरह से फिल्म को काफी जगह मोड़ा गया है, नहीं तो यह फिल्म काफी अच्छी चल सकती थी, यदि उलझ फिल्म किसी दूसरी ऐक्ट्रिस को लिया जाता या फिर किसी मेल कलाकार को ही फिल्म में भूमिका निभाने के लिए रख लिया जाता तो शायद फिल्म इससे कई बेहतर हो सकती थी।

कुछ सीन इतने खराब थे जिनको देखकर हंसी आती है इतनी छोटी छोटी गलतिया फिल्म में की गई है, जो बहुत छोटी फिल्मों में भी नहीं की जाती इसलिए इस फिल्म को देखने से पहले सोचे की आप यदि जाह्नवी कपूर की वजह से जा रहे है तो बिल्कुल भी न जाए, फिल्म को देखे ओर जाह्नवी कपूर को इग्नोर करे।

फिल्म की कहानी तो अच्छी है लेकिन कहानी से ज्यादा दिमाग खरब जाह्नवी कपूर की ऐक्टिंग करती है जब भी दिमाग फिल्म में लगाने की कोशिश करता हूँ तभी जाह्नवी कपूर अपनी ऐक्टिंग के जरिए फिल्म देखने का मन उतार देती है, जाह्नवी कपूर के अलावा सभी कलाकारों ने बेहतर अभिनय निभाया है, जिसके चलते आप फिल्म देख सकते यही लेकिन बस एक ही शर्त है की आप जाह्नवी कपूर को इग्नोर करे तभी आप फिल्म को अच्छे से देखने का आनंद उठा पाएंगे।

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हमारा जीवन

हमारा जीवन कायनात का हिस्सा…..
छोटे से हिस्से का मनों टनो का क़िस्सा ।

मेरे मन कुछ और….
कायनात की अलग ठौर ।

हम कुछ करते फ़ैसले…..
कायनात अलग चाल चले ।

कार्य न होने के एक लाख कारण….
कायनात ऐसा रूप धरती धारण ।

हमारे फ़ैसले नहीं पक्के…..
उसके जोड़ और धागे कच्चे ।

कायनात के फ़ैसले बड़ा समीकरण….
बस सीखे करना उसका अनुकरण ।

जीवन में कुछ भी नहीं पक्का….
यहाँ चलता कायनात का सिक्का ।

करे कोशिश बाक़ी छोड़े कायनात पे…
बस अपनी कोशिश में सौ प्रतिशत दे ।

हमारा जीवन कहने को तो हमारा लेकिन है यह उधारा , हम अपना सिर्फ़ सौ प्रतिशत दे सकते है वो भी हर कोई देता नहीं लेकिन व्यक्ति विशेष को लगता है कि उसने अपना सौ प्रतिशत दिया है ।
हम एक विशाल कायनात का बूँद से भी छोटा सा हिस्सा है इस कायनात में अरबों खरबों या उससे भी कही ज़्यादा हर पल हर क्षण बदलाव हो रहा है कही न कही पता या ना पता होते हुए हमारे जीवनों को हमारे किए फ़ैसलो को वो प्रभावित या पलट रहा है कायनात का फैसला अटल अपरिवर्तित और कई मायनों में अच्छा न लगते हुए भी अच्छा है क्योंकि कायनात सब कुछ जानती है समझती है किसको किस समय क्या मिलना है क्या उसके लिए अच्छा है बुरा है उससे अच्छा कोई नहीं जानता ।
यह कितना कठिन है किसी के साथ दिख रहा है बुरा हुआ है लेकिन सत्य है कि वो घटा है बंदा उल्टा हो जाता है लेकिन कोई मदद नहीं कर सकता फिर लगता है कायनात का बहुत कठोर फैसला है जो बहुत मुश्किल है साधारण जन के लिए ।

इन सब बाँतो के प्रकाश में समझ आता है हम अपना सौ प्रतिशत दे और और कायनात की मर्ज़ी पर डाल दे ।
कायनात के फ़ैसले का जो जैसा भी है उसे माने समझे और उसके अनुरूप अपने जीवन को ढालने का प्रयास करे बस इतना ही कहना है वाणी को विश्राम ।

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अवसर

जिंदगी भी चुनिंदा अवसरों का इंतजार कर रही है, क्या वो अवसर तुम हो

अवसर
अवसर

अवसर जिंदगी का वो तुम ही हो इसे यू ही तुम मत जाने दो।

मन का भटकाव

मन का भटकाव: मन के विचारों में इतना भटकाव क्यों है ? मन क्यों इधर उधर इतना भटक रहा है? यह विचार स्थिर क्यू नहीं होते ? क्या तरीका है इनको स्थिर करने का जानते है, धीरे धीरे कैसे अपने विचारों को स्थिर किया जा सकता है, ओर कैसे इन विचारों पर नियंत्रण लाया जा सकता है? यह मन का भटकाव कैसा है ?

मन ना जाने कितने ही विचारो को बुनने लगता है, ओर मन का भटकाव होता है , हमारे अंतिम लक्ष्य से हमको दूर करता है यह मन लगातार नए कार्यों को जोड़ना चाहता है ओर पुराने को छोड़ना

मन के भीतर तो अनेकों  विचारों का समूह है, जो लगातार बढ़ रहा है इन विचारों का कोई अंत नहीं दिखता ये तो बस लगातार ही बढ़ता ही जा रहा है, क्या ये विचार कभी रुकेंगे या फिर यू ही चलते रहेंगे।

इस विचार समूह को छोटा कैसे करे? और इस समूह को एक विचार पर लाकर कैसे रोके अथवा नियंत्रित करे? क्या एक विचार पर लाना सही होगा या फिर यू ही इसको बढ़ते रहने देना चाहिए।

किसी दृश्य को देखने पर उसके बारे में लगातार सोचना और ना जाने क्या क्या बुन  लेना , 
हमारे लक्ष्य की रुकावट का कारण बन जाती है और हम अपने लक्ष्य से दूर हो जाते है।

बाहरी दृश्य आपके अंतर के परिणाम में अनेक परिवर्तन कर रहे है, जिन्हे हम जानकर और अनजाने में अनदेखा कर रहे है और उसका परिणाम भटकाव है।

ये आंखे उन दृश्य को लगातार देख रही है, ओर उन सभी दृश्यों को विचार रूप में परिवर्तित कर रही है , इन विचारों पर कैसे नियान्तर्न लाए इनको कैसे स्थिर करे ?

अपने विचारो को एक जगह स्थिर करे और देखे उनको की वह किस और जाने की कोशिश कर रहे है।

मन भीतर अनेक विचार लगातार दौड़ रहे है कुछ विचार पुनः पुनः आ जाते है , अर्थात बार लौटकर वही विचार हमारे मन में दुबारा आ जाते है और हम उन कुछ ही विचारों के साथ अपना पूरा दिन व्यस्त कर बैठते है जबकि वो विचार किसी भी काम के नहीं होते उन बेकार के विचारों पर हम अपना समय बर्बाद किए जा रहे है इन विचारों को हटाकर हुमए कुछ ऐसे नए विचारों को अपने भीतेर लाना चाहिए जिनसे हम अपने आने वाले कल को और बेहतर बना सके।

कुछ नए है लेकिन जो दुबारा आ रहे है उनका क्या कारण क्या  है ?

अपने विचारो को एक सही दिशा में दौड़ाना और लक्ष्य की और अग्रसर करना ही बेहतर है
बहुत सारे विचारो का निचोड़ क्या है?

सिर्फ वही बात दुबारा – दुबारा सोचना जिसका परिणाम कुछ नही है, जिसका कोई परिणाम नहीं फिर भी  उसके बारे में इतना क्यों सोचना
चित ओर मन को शांत रख  कर ही तो इस जीवन को है जीना

मन क्यों इतना भाग रहा है? अलग-2 दृश्यों को देखकर

ब्रह्माण्ड आपके शब्दों  से इशारा दे रहा है
ब्रह्माण्ड आपके हर एक इशारे को किस  प्रकार से देख रहा है।
और उन पर किस  प्रकार से किस तरह से कार्य कर रहा है।

का हमार द्वारा भाते है? और हमारे पूछे गए सभी का तालमेल जवाब है? सवाल

हम ब्रह्मांड को सन्देश लगातार भेज रहे है, अपने दिमाग के द्वारा हमारे मन के विचार लगातार बाहर की ओर जा रहे है।

विचार और विचारो का जो समुह है वह कर रहा कितना इतना शोरगुल है, किस प्रकार से कार्य कर रहे है यह विचार?

हमारे पास भटकने के कई वास्ते बहुत मुश्किल है। नर्षित सम्भलने क परन्त की कोशिश सम्भलना ज्यादा से ज्यादी रहे अपने विचारों पर पान बदल और ज्यादात आपका बहुत रहा है। से यह किस Calm एक विचार आपके मस्तिष्क की पूरी संरचना वह विचार नकारात्म आप अपने भी हो सकता है जीवन आकर्षित करते है तो ही जिसके देखने को मिलते है और सकरात्मक जीवन सारे भाव नवरात्मक विचारो सम्भवत नकारात्मक परिणाम देखने को मिलते है और यदि आप स्कारात्मक जीवन की और ले जायेंगे जिसकी संभावना आपका जीवन बहुत ही अलग स्तिथि में होगा आपके विचार को नई दिशा मिलेगी जीवन खुशियों से भर उठेगा,

स्कारात्मक जीवन और उसकी सोच आपके जीवन को पूर्णतया एक नया रूप दे देती है

आपके लगातार सोचने की कोशिश करते रहना चाहिए।

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पता नहीं मुझे

पता नहीं मुझे कैसे मेरी ओर तुम्हारी बाते हो जाती है, कुछ तो बात है हम दोनों के बीच जो कभी अधूरी रह जाती तो कभी पूरी हो जाती है, हम दोनों ना जाने किसलिए मिले, कौनसा था तार जो हम दोनों को जोड़ रखा था, कितनी दूरिया हो जाती है फिर एक मोड पर आकार हम मिल ही जाते है, फिर उनही बातों को सिरा बनाकर हम आगे की और बढ़ चल चले जाते है।

तुझसे मिलना और बाते करना मेरी आदत सा था जो अब भी छूटा नहीं लगता क्युकी करता हूँ तुझसे अब भी मैं बाते अपने ही ख्यालों में तेरे संग करता हूँ।

कुछ ऐसे ही बस तेरी यादों में डूब जाना चाहता हूँ, हर जगह से दूर हो जाना चाहता हूँ, कुछ ओर ना हो अब हम दोनों के बीच सिर्फ तेरे ही ख्यालों में अपने हर ख्याल को बिताना चाहता हूँ, खो जाना चाहता हूँ, तेरे ही सपने सजाकर तुम्हें अपनी आँखों में मुँदना चाहता हूँ।

क्या तुम भी मुझे अपनी यादों में रखना चाहती हो या फिर उन सभी यादों का भुलाना चाहती हो, जो सँजोई थी एक दूसरे के साथ रहकर उन यादों को कैसे तुम भुला दोगे, यह सोचकर भी मैं घबरा जाता है।

पता नहीं मुझे हम दोनों के बीच में कौनसा संबंध है, जो ना टूटता है ना जुड़ता है फिर भी हम दोनों का संबंध अटूट सा लगता है, उस अटूट से संबंध में हम दोनों को नहीं पता क्या नाम दिया उस संबंध ना कोई पता फिर भी होने को रिश्ता कहला रहा है।

कितनी भी दूर हम रहे लेकिन फिर भी जीवन में जब भी हम याद करते है एक दूसरे को तो मानो वो पल हिचकी से भर जा रहा है।

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