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शब्दों की माया

यह शब्दों की माया तो देखो
शब्दो को ना कांट सकते है,
ना जला सकते है , ना भीगा सकते है।

यह शब्द रचित संसार इन शब्दो की माया का
शब्दों की माया

इन शब्दों की माया को किसने है जाना, ओर कौन ही इन शब्दों को अब तक समझ पाया है, जिसने शब्दों को जाना है वो तो मौन को कहलाया है, वह स्वयं को शब्दों से पार ले जा पाया है।

शब्दों का संसार

मुझे खुद नहीं पता की मैं क्या लिख रहा हूँ? लगता है शायद मैं तो इन शब्दों से बात कर रहा हूँ, मैं कैसे समझाऊ? कैसे बताऊ? कोई विश्वास नहीं करता मेरी बातों पर की यह शब्दों का संसार है, शब्द से बना एक परिवार है।

शब्दों का संसार
शब्द संवाद

यह कलियुग शब्द संवाद का समय है, जहां सिर्फ शब्दों की मैं मैं है यहाँ कोई निशब्द अर्थात मौन नहीं होना चाहता हर समय कुछ ना कुछ वार्तालाप चाहता है, हर कोई बाहर जाना चाहता है एकांत में रहना किसी अच्छा नहीं लगता, कोई एकांत वासें नहीं होना चाहता उन्हे दिवारे काटने को दौड़ती है शरीर झटपटाता है किसी से मिलने के, किसी से बात करने के लिए, किसी को स्पर्श करने के लिए कुछ समय साथ बिताने के लिए, इस संसार में बिना बोले कैसे रह पाए जब तक किसी से कुछ पल ना हो हृदय असांत सा ही रहता है।

शब्द संवाद
शब्द संवाद

शब्दों को जुबान चाहिए और वो सिर्फ तुम ही हो, शब्दों के पास शरीर नहीं है उन्होंने तुम्हें ही शरीर रूप में चुना है, सारे क्रिया, कार्य शब्द द्वारा ही होते है बस शरीर एक साधन ही है।

शब्द की जुबान

शब्द वो है जो एक बार आपकी जुबान से निकल गए फिर वापस नहीं लिए जा सकते एक तरकस में तीर की तरह है यह शब्द जिन्हे एक बार छोड़ कर वापस नहीं लिया जा सकता।

तरकस में तीर

शब्दों की बाते

मैं आपको कुछ शब्दों की बाते बताता हूं
इनकी बाते सुनो इनको जानो तुम जरा पहचानो इनको
यह शब्द कौन है इनका जरा मेल मिलाप तो देखो, ये अद्भुत ये निराले इनके कार्य सारे मतवाले

शब्द हस्ते है 
ये ठहाके मार मार हँसते है 
तो कभी बहुत वेदना के साथ रोते है 
इनकी भी अजीब है कहानी

 हर पल में हो जाती है  इनकी बाते बेईमानी 
अपने मुह मिया मिट्ठू भी बन जाते 
अपनी प्रशंसा सुन खुश हो जाते 

शब्द बच्चे भी है
तो जवान भी है
ये बूढ़े भी है इनमें अब जान भी कुछ नही है 
यह  बड़े अनजाने है 
कभी कभी बहुत जाने पहचाने भी हो जाते है 

यह बड़े मतवाले भी बहुत है 
इनकी चाल निराली हर बात में है
इनमें निरालापन भी बहुत है 

इन शब्दों का मुस्कुराना देखो और
इनका  इतराना देखो
शब्द निराश भी बैठे है हतास भी है 

उदास भी बैठे कभी कभी ये लाजवाब भी बैठे है।
शब्द गुस्सा भी बहुत करते है और शांत भी हो जाते है 
शब्दों के चेहरे भी अलग अलग है इनकी बाते भी अलग है।

शब्दों का मटकना देखो, शब्दों का नाच भी देखो यह नाचते बहुत है 
इनके करतब अजीब है कभी कभी ये शब्द बहुत बत्तमीज है। 
कभी कभी सीखा डते ये सलीका और तमीज़ है
 
शब्द अपने ही शब्दों में करते कहानी बयान है
न इनकी कोई जुबान है और ना इन पर कोई लगाम है।
अगर लगाना चाहो इन शब्दो पर लगाम
 
तो ये क्रोधित  हो जाते है 
यह शब्द कभी कभी मौन भी हो जाते है 
तो कभी कभी ये रोते, चीखते और चिल्लाते है

शब्द तो कभी चुप भी इनमे मौन रहने की क्षमता भी है।
तो कभी इनमें कोई क्षमता नही नजर आती है 
शब्द सर्वशक्तिमान भी और अपने आपमें असहाय भी है
शब्द परिश्रम करता ही दूसरे शब्द के लिए है

स्वयं शब्द तो खुद को भूल ही गया है
शब्द ही शब्द का सहारा है वरना शब्द बेचारा बेसहारा है
शब्दों की भीड़ बहुत है, शब्द अकेले भी रह जाते है।
शब्द शोर बहुत मचाते है।शब्द शांत भी हो जाते है।

इनका होश तो देखो इनका जोश तो, जोश में होश खो देते है कभी तो , ओर कभी जोश ही नहीं रहता इनमे यह शब्द कही खुद में गुम हो जाते है,
देखो कभी कभी ये कितनी बड़ी बड़ी बातें कर जाते
मतलब जिन का सिर्फ यह सीखा पाते है। यह शब्दों की बाते है शब्द खुद ही बताते है, इनको समझना बड़ा मुश्किल है नया जाने यह शब्द कैसे इनको खुद ही समझ पाते है।









अच्छे शब्द

महान लोगों के अच्छे शब्द जो हमारे जीवन को बदलने में सक्षम है, इन शब्दों को हमे अपने जीवन में उतारना चाहिए, जिससे हमारा बदल सके ओर हम नई दिशा की ओर अग्रसर हो। हमारे जीवन पर इन शब्दों को बहुत असर पड़ता है इसलिए इन शब्दों को हमे हर रोज स्मरण करना चाहिए।

“गरीब से गरीब इंसान भी अपनी मेहनत और ईमानदारी की बदौलत दुनिया का सबसे महान व्यक्ति बन सकता है।

हम यहाँ किसी विशेष कारण से हैं। इसीलिए अपने भूत का कैदी बनना छोड़िये। अपने भविष्य के निर्माता बनिए। – रोबिन शर्मा / Robin Sharma

“जो लोंग मन को नियंत्रित नहीं करते। उनके लिए मन शत्रु के समान कार्य करता है। – श्रीमद्भगवद्गीता / Srimadbhagwadgita

गुरु का भी दोष कह देना चाहिए। – स्वामी रामतीर्थ / Swami Ramtirth

“धीरज सारे आनंदों और शक्तियों का मूल है। – फ्रैंकलिन / Franklin

“हम किसी को आसानी से हरा तो सकते हैं, लेकिन किसी को जिताना उतना ही मुश्किल होता है।

जैसे सूर्य सबको एक-सा प्रकाश देता है। बरसात सबके लिए बरसती है। उसी तरह विद्यावृष्टि सब पर बराबर होनी चाहिए। – महात्मा गांधी / Mahatma Gandhi

“एक अनपढ़ व्यक्ति का जीवन उसी तरह बेकार है जैसे कुत्ते की पूँछ होती है। जो ना उसके पीछे का भाग ढकती है। ना ही उसे कीड़े-मकौडों के डंक से बचाती हे। – चाणक्य सुविचार / Chanakya quotes

सेवा से शत्रु भी मित्र हो जाता है। – वाल्मीकि / Valmiki

“गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। – सरदार वल्लभभाई पटेल / Sardar Vallabhbhai Patel

“हर इंसान को परछाई और आईने की तरह ही दोस्त बनाने चाहिए, क्योंकि परछाई कभी साथ नहीं छोड़ती और आईना कभी भी झूठ नहीं बोलता।

आप अगर ऐसा सोचते हो, की सब कुछ अच्छा होगा, तो जरुर वाही होगा।

“वह जो अपने प्रियजनों से अत्यधिक जुड़ा हुआ है। उसे चिंता और भय का सामना करना पड़ता है। क्योंकि सभी दुखों कि जड़ लगाव है। इसलिए खुश रहने कि लिए लगाव छोड़ दीजिये। – चाणक्य

विश्व में कोई वस्तु इतनी मनोहर नहीं। जितनी कि सुशील और सुंदर नारी। – Hant

इस प्रकार के अच्छे शब्द पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़े रहिए ओर भी बहुत सारे विहार हम आपके साथ सांझा करते रहेंगे।

शब्दों का प्रभाव

शब्दों का प्रभाव होता है तथा इस शरीर के प्रभाव में कौन-कौन से शब्द आते है? हमारा शरीर शब्दों के प्रभाव को किस प्रकार से समझता है। यह शरीर शब्दों के कारण क्यों तथा कितना प्रभावित होता है? शब्दों का प्रभाव शरीर पर किस प्रकार का होता है?
और कैसे ? 

क्या हम सभी यह जानते है तथा यह जानने की कोशिश की है? शब्द ही है जो हमारे जीवन को निर्मित कर रहे है, जो भी हम बोल सुन रहे है उनका हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है।

यह शरीर एहसास का सागर है,शब्दों की परिभाषा है। शब्दों का सागर है ये पांच तत्वों से मिलकर बना हुआ शरीर है।
जल,धरती, आकाश,अग्नि,हवा
फिर हम क्यों डरते है?

इनसे  इनको पहचानो जानो और समझो हम ही है  क्योंकि वो अधिकतम मात्रा में है और हम कम मात्रा में है  इसलिए हमे लगता है हम कमजोर तथा असहाय है अपने जीवन में परंतु हम इन्ही पांच तत्वों का रूप है

यह शरीर के मुख्य तत्व है। यही हमारे शरीर की शक्तिया है। हमारे शरीर का एहसास हम संजोते और संवरते है। हाव भाव जो हमारा शरीर है पूर्ण बनता है,  हमारे शरीर में शक्तियो का संचार होता रहता है, यह लगातार चलने वाला कार्य है।

जिसकी जैसी भावना होती है। उसको वैसा ही मिलता है। मतलब एहसास के कारण ही हमे जन्म और मृत्यु का निर्णय होता है तथा कौन-सा शरीर मिलेगा यह भी हमारे एहसास के कारण ही

र्धारित होता है। जीवन का बहुत ही मजेदार खेल है, इसको खेलना इतना आसान नहीं है। 

हर चाल में कुछ नयापन है। हर एक पल कुछ नया देता है। सिखाता है, नया एहसास देता और समझाता है। कोई भी पल जीवन का व्यर्थ नहीं होता है। हर पल कुछ ना कुछ सिखाता है जब आप कुछ पाना चाहते है तो प्रकृति भी आपको देने के लिए तैयार बैठी है और वो देती है।
परंतु यह आप पर निर्भर करता है। की आप उस पल को किस तरह से समझते है? क्या महसूस और एहसास करते है? उस वातावरण से कौन-कौन से शब्दों को प्राप्त करते है ?

कोशिश करो स्वयं को देखने की, महसूस करने की, एहसास करो, कौन सा शब्द आपके आसपास गूंज रहा है? आपका एहसास आपकी मंजिल आपके पास ही है। आप उसको देख भी रहे हो परंतु फिर भी उससे हम दूर हो रहे है क्यों? क्या हम मंजिल को देखना ही नहीं चाहते या ऐसे ही भटकना किसी और चाह रहे है।

हमारी छोटी-छोटी बाते जब बड़ी होती जाती है। हम उन बातो को सँभालने में असमर्थ होते है। हम हमेशा छोटी छोटी लड़ाई झगड़ो में अपना समय नष्ट करते रहते है और अपने जीवन को नीचे की ओर धकेल देते है जिसके कारण हम कमजोर होते जाते है और अपनी शक्तियो को भूलते जाते है

खवाइसे

खवाइसे तो बहुत बड़ी है जिंदगी मे उनको पूरा करू कैसे? बस इतनी सी जिंदगी है खवाइसो को पूरा करने के चक्कर मे फसु कैसे मैं बिन खवाइसो के रहु भी तो कैसे

जिंदगी के ख्वाबों को पूरा करने की खातिर,
संवेदनशीलता और व्यापारिकता दोनों हैं जरूरी।
ख्वाहिशों के पीछे दौड़ो निरंतर,
बिना खवाइसों के भी जीने का सबको आदेश।

जीवन के पथ पर कठिनाइयाँ होंगी,
पर तू ना डर, ना हार मानेगी।
अपने सपनों को पीछे ना छोड़ो,
खुद को नये उचाईयों पर ले जोड़ो।

जिंदगी की महक उड़ान भरेगी तब,
जब तू नई मंजिलों के दरवाजे खोलेगी।
बाधाओं से संघर्ष कर, आगे बढ़,
खवाइसों को तू जीवन में समाधान बना।

ज़िंदगी छोटी सी है, ये सच है ध्यान रख,
पर जीने का मजा है ख्वाहिशों को सच करके।
खुद को पहचान और अपना रवैया बना,
बस फिर देख, खवाइसे खुद ही पूरी हो जाएंगी जब तू जीवन में अच्छाई ला जाएगी साथ।

सकारात्मक शब्दों का संग्रह

एक समय जब मेरे मस्तिष्क में जैसे ही कोई नया विचार आता था , उसे मैं फटाक से लिख देता था, अपने सिरहाने के पास ही मैं अपनी डायरी ओर पेन लेकर सोता था , चाहे वो विचार रात को सोते हुए 2 बजे ही क्यू ना आया हो मेरे दिमाग में लेकिन वो विचार लिखना मुझे बहुत जरूरी लगता था, क्युकी वह एक विचार कब कितना बड़ा हो जाए , उस विचार का क्या कारण है? मेरे मस्तिष्क में आने वाले विचार को बस इसी वजह से मैं उस विचार को लिख लेता था।

सिर्फ इसी वजह से उन सभी विचारों को लिखते लिखते वह विचार आज हजारों की संख्या में हो चुके है, और आज भी मैं उन सभी विचारों पर थोड़ा थोड़ा काम करता रहता हूँ, उनको ओर बड़ा करने की कोशिश में लगा रहता हूँ , मैं उन सकारात्मक विचारों को लिख चुका हूँ और उन्ही विचारों के कारण मेरे जीवन में बहुत बदलाव भी आए है, क्युकी उन विचारों को मैंने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था।

ओर उन सभी विचारों से मेरे जीवन में जो परिवर्तन हो रहा था, मैं उन सभी परिवर्तनों को अपने भीतर महसूस कर रहा था, मेरे जीवन की गति में भी परिवर्तन दिख रहा था जिस वजह से मैं हमेशा खुद को बेहतर जीवन की ओर बढ़त हुआ देखता था, मेरा जीवन के प्रति नजरिया बड़ा होता जा रहा था , मेरे भीतर जो सवाल आ रहे थे उन सवालों के जवाब भी मैं ढूंढ प रहा था।

बचपन में मैंने एक किताब पढ़ी थी जिसका नाम पावर ऑफ पाज़िटिव थिंकिंग है यह किताब आज भी बहुत चर्चित किताबों में से एक है यही वह किताब है जिसकी वजह से मैंने उन सभी विचारों को जोड़ना शुरू कर दिया जो मुझे पाज़िटिव एनर्जी देते थे, मैं भागवत गीता का भी पाठ नियमित रूप से करता था और अपने विचारों को दृढ़ कारणए की कोशिश करता था।

सोचने वाली बात यह की हमारे मस्तिष्क में एक दिन में लगभग 60 हजार विचार आते है लेकिन उसमे से कितने विचार सकारात्मक ओर जीवन में उतारने के लिए लायक होते है, तथा उन विचारों पर कार्य कर सके ऐसे कितने विचार होते है।

जब कोई आपसे पूछे

जब कोई आपसे पूछे क्या हाल चाल है आपके ? तो आपका जवाब क्या होता है? कुछ नहीं बस बीमार था, तबीयत ठीक नहीं , खासी, झुकाम, बुखार है आदि इत्यादि है यह छोटी छोटी बीमारी भी आज कल हमे पहाड़ की तरह लगती है, जैसे पता नहीं क्या हो गया है यह सब बीमारी कोई न है, यह तो आपके शरीर को ओर बेहतर तरीके से काम कर सको बस इसलिए हो जाती है।

मुझे याद है बचपन में जब मैं बीमार हो जाता था तो मुझे बड़ी खुशी होती थी इसलिए नहीं की मैं घर पर आराम करूंगा बल्कि इसलिए की हाँ अब मैं आराम से कुछ सोच सकूँगा, कुछ अलग किताबे पढ़ सकूँगा मुझे एक्स्ट्रा टाइम मिल गया है कुछ अलग करने का , मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ। मैं इस बारे में नहीं सोच करता था बल्कि वो जो टाइम अब मुझे मिला है, उसको कैसे इस्तेमाल करू? ये सोचता था, लेकिन आज हम उस समय का प्रयोग कैसे करते है बीमार होने पर

आप क्या कहते है? आपसे क्या हाल चाल है

जब कोई आपसे पूछे की कैसे कैसे तो बस यही जवाब आता है की बस ठीक हूँ, चल रहा है, बस ओके ओके हूँ, या कट रही है बस, कुछ खास नहीं तुम बताओ आदि इत्यादि इसी प्रकार के साधारण से शब्द जिनका प्रभाव सकारात्मक न होकर नकरात्मक विचारों को जन्म दे रहा है, शरीर में आलस, हतास , निराशावादी विचारों की ओर ले जा रहा है

इन उत्तरों से ऐसा लगता है की आप अपने जीवन में खुश नहीं है या फिर आप आपके भीतर नेगटिव थॉट भारी हुई है जीवन के प्रति ओर यह भी हो सकता है की आप जीवन के प्रति अब उतनी खुशी प्रकट नहीं करते जैसा आप बचपन मे करते थे,

ऐसा क्या हुआ है? जिसकी वजह से आप ऐसा महसूस करते है, आइए इसका जवाब खोजने की कोशिश करते है और जानते है एस क्यू हो रहा है हमारे साथ , हमारे आसपास ऐसे कौनसे शब्द है जिनकी वजह से हम प्रभावित हो रहे है, या लगातार वो शब्द हमे आहात कर रहे है?

सकारात्मक शब्द ओर नकारात्मक शब्द

क्या आपके आसपास जो शब्द बोले जा रहे है या आप उन्हे दूसरे माध्यम से सुन ओर देख रहे हो वो सभी चीज़े सकारात्मक है या फिर फिर नकारात्मक ऊर्जा को फैला रही है जिसकी वजह से आपके शरीर ओर मस्तिष्क पर उन शब्दों का प्रभाव हो रहा है।

ओर आपका जीवन भी उन्ही शब्दों की भांति होता जा रहा है। आपके आसपास लगातार गाली गलोच, बुरे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग होता है ? या फिर आप ऐसे घरेलू नाटक देखते है, वीडियोज़ देखते है जिनमे सिर्फ ऐसे नकार शब्दों का प्रयोग होता है ऐसे शब्द हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करते है।

यह शब्द धीरे धीरे हमारे जीवन को भी उसी तरह से बना देते है जैसे वह शब्द है, यह बेशक मजाक में ही क्यू न प्रयोग हो रहे हो परंतु आपका मस्तिष्क उन शब्दों पर कार्य करता ही रहता है जिसकी वजह से आप उन शब्दों की भांति हो जाते हो इसलिए इस प्रकार के शब्दों से उचित दूरी बनाए।

शब्दों की गठरी

शब्दों में गाठ जो लगी है उन्हे खुल जाने दो इनको शब्दों की गठरी ना बनाओ तुम, इनका खुलना ही बेहतर होगा यदि ये गाठे नहीं खुली तो भीतर तकलीफ होगी, तुम्हारा शरीर , तुम्हारा मन , तुम्हारी बुद्धि रोग से ग्रसित हो जाएगी।

इन शब्दों को ध्यान, योग आदि क्रिया से हल्का करो तभी तुम अच्छा महसूस करोगे, यदि तुम्हारे मन, मस्तिष्क में प्रश्न घूम रहे है तो उन्हे पूछ डालो निसंकोच होकर यही हल है भीतर से शांत होने का कब तक, तुम इन अपाच्य शब्दों को भीतर ही रखोगे।

शब्द क्या है

शब्द क्या है ? आप किसी भी शब्द का उच्चारण करते हो और यदि आपके शब्द में शुद्धि नही है तो उसका भाव परिवर्तन होगा तथा उसका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड पर पड़ता है जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है जिस प्रकार से ‘यदि’ लगाकर में यहाँ पर  यह कहु की इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति  “एक सोची समझी घटना थी”  तब यहां अनेको लोगों के द्वारा अनेको परकार के भाव प्रकट हो जाएंगे तथा ब्रह्मांड की उतपत्ति सोची समझी नही थी यह एक पवित्र ध्वनि थी पवित्र ॐ रश्मि थी है और रहेगी अर्थात आप इसे किसी भी प्रकार के  भाव , शब्द , अर्थ , विचार और विचार शून्य की स्तिथि हो सकती है , या थी , या नही यहाँ पर शब्दो मे अनेको मत, भेद और भाव उतपन्न हो रहे है जिसका प्राकट्य हमारे द्वारा शब्द उच्चारण, भाव प्रकट करने के अनुसार अलग अलग हो रहा है।

जीवन को जीवंत होकर देखना शुरू करें

“जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य”

यह सिर्फ एक विचार नहीं है यह अनुभव से भरा हुआ सत्य है जिसे प्रमाणित करते योग पुरुष है।

“मै शब्द हो सकता हूं लेकिन परिभाषा नहीं”

“शब्द से निशब्द की यात्रा करना ही मेरा परम लक्ष्य है”

यह संसार शब्दो का संसार है

जिसमें अनेकानेक शब्द गुंज रहे है।

“परम अक्षर शब्द ओमकार ही परमेश्वर है”

मानव जीवन शब्दो की क्रिया और

प्रतिक्रिया पर ही भी निर्भर करता है।

“मानव शरीर शब्दो से ही ओत प्रोत है”

“मानव जीवन शब्द निर्मित है”

शब्द आकाश के विकार है

“संग्रह सिर्फ अच्छे शब्दो का हो बाकी का संग्रह व्यर्थ है”

एक समय था जब मेरे अनेकों प्रश्न थे

और आज मै उन सभी प्रश्नों का हल हूं।

जीवन को एक नया दायरा चाहिए और वह दायरा आपकी सोच का होता है उसे बढ़ने दीजिए।

यदि आप कुछ बनना चाहते है तो शब्द बनिए इसके विपरित कुछ भी अर्थपूर्ण नहीं है।

यदि आप कुछ खोज रहे है तो

कैसे और किससे ??

वह सबकुछ तो शब्दो के द्वारा ही खोजा जा सकता है।

“Your look is your mind not body”

“शब्दो के द्वारा ही जीवन उलझता ओर सुलझता है”

1

शब्दो को जुबान चाहिए

और वो सिर्फ तुम ही हो।

2

यह कलियुग शब्द संवाद का समय है जहाँ सिर्फ शब्दो की मैं मैं है यहाँ कोई निशब्द अर्थात मौन नही होना चाहता हर समय कुछ ना कुछ वार्तालाप करना चाहता है,  हर कोई बाहर जाना चाहता है एकांत वासेन और असंगे कोई नहीं होना चाहता शरीर झटपटाता है किसी से मिलने के लिए , किसी से स्पर्श के लिए किसी का होना के लिए

3

शब्द की यात्रा शब्द से शुरू होती है

और निशब्द होने पर रुक जाती है

4

पूरा ब्रह्मांड शब्दमय है

शब्द के अलावा कुछ भी नही

यदि शब्द ना हो तो यह संसार कैसा होगा?

5

शब्दो का वर्णन करने की नाकाम सी कोशिश है

कैसे दिखते है यह शब्द ?

क्या किसी ने कभी देखे है ये शब्द ?

शब्द का वर्णन कैसे मैं करू यह हर और से मुह, हाथ , पैर वाले है इनका आधार ऊपर से नीचे से भी है इनकी अनेको आंखे है , यह स्वयं प्रकाशित शब्द है

(यहाँ पर अर्थ यह है की जो मात्राएं, बिंदी,  डंडा, आधा शब्द शब्द पूरा शब्द, उनके आधार पर इनका वर्णन किया जा रहा है इन शब्दो को इंसान ही समझो यह यहाँ समझाया जा रहा है।) इनके बिंदी लगी हो जैसे चंद्रमा सूर्य सा तेज़ है इनमें सूरज से प्रकाश भी है

6)

शब्दो का जीवन कैसा है?

और कैसा हो पायेगा ये किसको है पता

या

शब्द क्या, कौन इस बात का क्या पता कोई लगा पायेगा?

यह कौन समझ पाया है?

इन शब्दो ने खुद का विस्तार स्वयं से पाया है

एक शब्द से अनेकानेक शब्दो तक

और स्वयम शब्द खुद को परिभाषित कर दिखाया है

7)

यह शब्द है जिन्होंने पूरे ब्रह्मांड पर अपना राज कर दिखाया है

इनकी ही सत्ता है इनको कोई अब तक ना हटा पाया है। 

ना कोई हटा पायेगा इन शब्दों का ही राज चलता आया है और चलता जाएगा।

8)

यह पूरा जगत शब्दमय है शब्दो ने हमे हर ओर से ढका हुआ है कही भी शब्द ने रिक्त स्थान नही छोड़ा है हर और से शब्द ने शब्द से जोड़ा है, पूरे ब्रह्मांड का इन शब्दो ने तारतम्य जोड़ा है शब्द संचारित जगत सारा इनसे पार तो कोई विरला ही पा रहा है जो मौन हो रहा है जो भीतर शांति पा रहा है भीतर के जीवन को ही जी रहा है

9)

यह शब्द ही है जो निरंतर आपके मन मस्तिष्क को पकड़े रहते है ओर कभी खाली नही रहने देते आप किसी ना किसी बात पर इन शब्दो के माध्यम से ही विचार करते हो। शब्द न हो तो कल्पना कीजिए जीवन कैसा हो ? 

10)

यदि आपको अपना मन स्वस्थ रखना है तो आपको अच्छे शब्दो का संग्रह करना चाहिए क्योंकि शब्द ही है जो आपको हमेसा शांत, स्थिर चित वाला व्यक्ति बना सकते है। यह शब्द ही आपको जीवन प्रदान करते है ओर भीतर बहुत हलचल भी मचाते है

11)

यदि आपने यह समझ लिया की शब्द से आपका जीवन निर्मित हो रहा है तभी आप बहुत सरलता से अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते है उसमे अलग अलग रंग भर सकते है आप स्वयम को आत्मविश्वास से भर सकते है। ओर अनेकों कार्य कर सकते है

12)

यदि आप लगातार नकरात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे है तो आपका जीवन भी नकरात्मक स्तिथि की और अग्रसर होता हुआ चला जाएगा जिसकी वजह से आप हमेसा नकारात्मक विचारों को पैदा करेंगे और जीवन की हर परिस्तिथि को नकारात्मक रूप से ही देखेंगे।

13

शब्द वो है जो एक बार आपकी जुबान से निकल गए फिर वापस नही लिए जा सकते शब्द एक तरकस में तीर की तरह है जिसे एक बार छोड़ कर वापस नही लिया जा सकता। अब इनका प्रभाव अवश्य होगा ये खाली नहीं जाएंगे इनका अर्थ रूप में परिवर्तित होना संभव है

14 शब्द क्या है ?

क्या हम शब्दो को सही रूप ,

आकर , तरीके से समझ रहे है ?

क्या इनमें अब भी कोई भेद है या

हम शब्दो से अनजान है

कौन बताए ?

कौन समझाए ?

ये शब्द क्या है कौन है ?

यह शब्द वो शब्द नही जो हम समझ रहे है

शब्द सिर्फ शब्द नही है यह कुछ और ही है

जिनको हम समझ नही पा रहे है

इनके मतलब अलग अलग है

ये होते कुछ है ओर समझ में कुछ आते है

इनका कोई सीधा सीधा मतलब समझ नही पाता है

बस इन शब्दो में हर कोई गुम हो जाता है

इनके आने का नही पता

इनके जाने का नही पता हमे

हमे बस यह शब्द है जो कभी

खुद को ही कर लेते निशब्द है

यह खुद को बयान भी करना जानते है

ओर खुद मौन भी अच्छे से कर लेते है,

15)

यह शब्द है बुद्धि की पकड़ में भी नही आते है इधर उधर भागते हुए नजर आते है इन शब्दो पर लगाम किसी की लग नही पाती है यह शब्द किसी की कैद में रह नही पाते यह शब्द तो आज़ाद से है लगते जो कहना चाहते है वो कह चले जाते , ना जाने कौनसे मतलब , मायने यह जीवन को हमें सीखा जाते है यह शब्द है शब्द विज्ञान , शब्द ज्ञान , अति उत्तम , शब्द धन बखान कर शब्द चले जाते

कभी तो यह शब्द प्यार जताते तो कभी कोहराम मचाते

ना जाने ये शब्द किस और से आते और कहाँ चले जाते है।

अनेकों अर्थ , भावनाए , एहसास यह शब्द अपने भीतर है समाते यह शब्द है

16)

शब्द ही है जो मन को भी इधर उधर चक्कर है लगवाते क्या मन शब्द को पकड़ पाता है या जैसा शब्द है चाहता वैसा मन हो जाता। शब्दो की प्रकृति को कोई नही जान पाता कभी यह शब्द त्रिगुणा तीत तो कभी त्रिगुन से पार हो जाता इन शब्दो का पार लेकिन कोई नहीं पा पाता

17)

मन से ऊपर  बुद्धि है लेकिन जब शब्द की बात हम करते है तो शब्द ही सबसे ऊपर है क्योंकि मन को चंचल , चल, अचल , स्थिर ,  विचलित भी करते शब्द है शब्द को ठहराव भाव में लाते भी शब्द है

18)

मैं आपको कुछ  शब्दो की बात बताता हूं इनकी बाते सुनो इनको जानो तुम जरा पहचानो इनको यह शब्द कौन है ? इनका जरा मेल मिलाप तो देखो यह मानव तन में आते है फिर यह क्या क्या करतब दिखाते है जरा देखो

जानो- पहचानो

19)

शब्दों का साइज तो देखो कभी मोटे है

तो पतले लंबे छोटे नाटे गिट्टे भी है ,

गूंगे, बहरे , अंधे, काने, लूले, लंगड़े भी है

ये शब्द

इनका कुछ पता नही बड़े शातिर है

तो बड़े सीधे भी है ये शब्द

कभी भोले बन जाए तो कभी गुस्से से लाल नजर ये शब्द

20)

कभी आये कभी जाए

इस और से आये तो उस और जाए

यही रह जाए तो पता ये भी नही कहाँ चला जाए, कुछ भी समझ ना आये ये भाग दौड़ा चला जाए

कभी हाथ आये तो कभी गायब हो जाए

अजीब अजीब करतब दिखाए

इन शब्दों को कोई समझ ना पाए

ये बताते रोज एक नई कहानी खुद की जुबानी

ये बुनते है कहानी किसीको नही पता ये कैसे बुन लेते है ये नई नई कहानी

21)

कौन है ये शब्द ?

क्या ये कहलाते है ?

भगवत गीता में शब्द को श्री कृष्ण बताते है

शब्द आकाश का विकार है और स्पष्ट करते है की किस प्रकार से शब्द ही पूरे ब्रह्मांड का निर्माण करते है किस प्रकार से शब्द ही सबमे व्याप्त है। यह सम्पूर्ण जगत शबदमय है , विस्तृत भी इन शब्दों के कारण ही हो रहा है

शब्द ही परम अक्षर

शब्द ही ब्रह्म कहलाते है

यही मानव रूप में इस

पृथ्वी पर अवतरित होकर आते है

22)

शब्द एक तो मतलब अनेक है

शब्दों के रूप अनेक है

23)

शब्दो जैसी अनोखी चीज़ इस पूरे ब्रह्मांड में नही शब्दो से महत्वपूर्ण तो इस पूरे ब्रह्मांड में कोई दूसरा कुछ भी नही है।

शब्द ही मंत्र है तो शब्द परम अक्षर है शब्द ही आत्मा तो शब्द ही परमात्मा है। शब्द ही हर ओर व्याप्त है शब्द ही निर्मित करते है तो शब्द ही विनाश भी

24)

शब्द हस्ते है तो शब्द रोते भी है

ये ठहाके मार मार हँसते है

तो कभी बहुत वेदना के साथ रोते है

25)

इनकी भी अजीब है कहानी

हर पल में हो जाती है  इनकी बाते बेईमानी

26)

अपने मुह मिया मिट्ठू भी बन जाते

अपनी प्रशंसा सुन खुश हो जाते है यह शब्द

27

शब्द बच्चे भी है

तो जवान भी है ये

बूढ़े भी है इनमें अब

जान भी कुछ नही है

28

यह  शब्द बड़े अनजाने है

कभी कभी बहुत जाने

पहचाने भी हो जाते है

शब्द है तो सबसे मतलब भी रखते है

तो कभी बेमानी बाते ये करते है

29

यह शब्द बड़े मतवाले भी बहुत है

इनकी चाल निराली हर बात निराली है।

30

यह शब्द बड़े निराले , अनोखे

इनमें निरालापन भी बहुत है

और इनका अनोखापन गजब है

इन शब्दों का मुस्कुराना देखो और

31

इनका इतराना देखो

शब्द निराश भी बैठे है हतास भी है

32

उदास भी बैठे कभी कभी ये लाजवाब भी बैठे है।

शब्द गुस्सा भी बहुत करते है और शांत भी हो जाते है

33

शब्दों के चेहरे भी अलग अलग है

इनकी बाते भी अलग है।

शब्दों का मटकना देखो

शब्दों का नाच भी देखो यह नाचते बहुत है

34

इनके करतब अजीब है

कभी कभी ये शब्द बहुत बत्तमीज है।

कभी कभी सीखा देते है

ये सलीका और तमीज़ है

35

शब्द अपने ही शब्दों में करते कहानी बयान है

शब्द की अपनी कहानी और अपने निशान है

36

न इनकी कोई जुबान है और

ना इन पर कोई लगाम है।

अपनी मर्जी के मालिक है

यह शब्द ही कहलाते भगवान है।

37

अगर लगाना चाहो इन शब्दो पर लगाम

तो ये क्रोधित  हो जाते है

यह कभी किसी के काबू में भी नही आते

ना जाने क्या क्या है कर जाते

38

यह शब्द कभी कभी मौन भी हो जाते है

तो कभी कभी ये रोते, चीखते और चिल्लाते है

39

शब्द तो कभी चुप भी इनमे मौन रहने की क्षमता भी है।

तो कभी इनमें कोई क्षमता नही नजर आती है

40

शब्द सर्वशक्तिमान भी और अपने आपमें असहाय भी है

शब्द परिश्रम करता ही दूसरे शब्द के लिए है

41

स्वयं शब्द तो खुद को भूल ही गया है

शब्द ही शब्द का सहारा है

वरना शब्द बेचारा बेसहारा है

42

शब्दों की भीड़ बहुत है,

शब्द अकेले भी रह जाते है।

यह शब्द बेचारे अकेलेपन से है घबराते

43

शब्द शोर बहुत मचाते है

भीड़ तंत्र के राजा ये शब्द ही कहलाते है

शब्द शांत भी हो जाते है।

44

शब्द ही शब्द का सहारा है

बिना एक शब्द के दूसरा शब्द बेसहारा है

45

इनका होश तो देखो इनका जोश तो देखो

कभी कभी ये कितनी बड़ी बड़ी बातें कर जाते

मतलब जिन का सिर्फ यह सीखा पाते है

46

शब्दों के अनेकानेक खेल

इन शब्दो ने रचना की पूरे ब्रह्माण्ड की

इन ही शब्दों से हुआ जगत का खेल शुरू ये सारा

47 शब्द क्या है ?

कुछ शब्द गुम हो जाते है तो कुछ

महान बन जाते है कुछ प्रसिद्ध हो

जाते है तो कुछ बेचारे गुमनामी के

अंधेरे में कही खो ये शब्द जाते है

ना कोई ठिकाना ना कुछ मुकाम

हासिल कर पाते बेचारे ये

शब्द खुद के बिछाए जाल

में फंस जाते है इनसे ये बाहर

निकल नही पाते है बार बार ये

कोशिश करते हुए नजर आते है

कभी नाकामी पाते है तो कभी

सफलता भी हासिल कर जाते है

कुछ नाकाम रह जाते है तो

कुछ शब्द बन जाते है तो कुछ

शब्द बिगड़ जाते है

कुछ अलग राह पकड़

आगे निकल जाते है

तो कुछ भेड़ चाल की तरह

चलते हुए ही नजर आते है

कुछ नया नही बस वही पुराना सभी

शब्द करते नजर आते है

इनमें करने की चाह बहुत है

कुछ कर जाते है

कुछ चाल जाते है

तो

कुछ ठहर जाते है

49

शब्द

शब्द ही सुंदर, अतिसुन्दर है

शब्द बदसूरत भी दिखते है

50 शब्द क्या है ?

शब्दो की चाल बड़ी निराली है

इनकी दुनिया भी बड़ी निराली है।

शब्द समझते खुदको बलवान है

लेकिन भरी हुई इनमे बहुत थकान है

जन्म जन्म से बह रहे है ये शब्द है

जो अपनी गाथा कह रहे है

शब्द सिर्फ शब्दो के द्वारा बह रहे है

शब्दों का ना कुछ अता है ना पता

ये किधर से आ रहे है और जा रहे है

बस बन रही है इनकी अपनी गाथा है

यह शब्द अब तक अपनी विजयगाथा चला रहे

51

शब्द शोर मचाते तो

शब्द चिल्लाते भी बहुत है

इनकी हंसी भी गजब है

इनका रुदन भी देखो ये रोते है

चिल्लाते झटपटाते   हैै

शब्द उछलते है,कूदते है,नाचते है, झूमते है , घूमते है

52

शब्द अकड़ कर चलते है , कभी सुरा झुका मिलते

धम्ब साहस स्वयम में यह शब्द भरते है

53 शब्द क्या है ?

शब्द खुद से भी बाते करते है

शब्द अपनी जीत का जश्न भी मनाते है

शब्दो मे हलचल है, शोरगुल है

लड़कपन है शब्द शर्माते भी है

और इतराते भी है

54 शब्द क्या है ?

शब्दों की शब्दों से क्या बात कहे ?

शब्दों को मालुम नहीं वो खड़े कहाँ है

शब्द तो भूल जाते है की हम कौन है?

स्वयम को भूल जाने की इनकी प्रवृति है

यह कभी दुसरो के संग मिल जाते है

तो खुद को भूल जाते है

55 शब्द क्या है ?

शब्द खाली है तो भरे भी है

शब्द चलते है भागते, दौड़ते है

तो रुक भी जाते है

थक हार भी जाते है

कभी

हिम्मत जुटाते है तो

कभी दम तोड़ते हुए भी

ये शब्द नजर आते है

हाथ पाँव हो या नही पूरे हो

या नही फिर भी जिंदगी के

साथ जीते हुए नजर आते है

अपना समपर्ण देते  है किसी

दूसरे शब्द का सहारा बन जाते है

तो कभी सिर्फ अपना मतलब

सीधा करते हुए ही ये

शब्द नजर आते है तो कभी

जिसको जरूरत है उसका

सहारा बन ये शब्द जाते है

शब्द को शब्द मिल जाए तो

शब्द के मायने बदल जाते है

56

शब्द अपना खुद प्रचार प्रसार करे

शब्दों की कहानियां भी बहुत है

57

शब्द अंगड़ाई भी तोड़े और सोते भी बहुत है इनको जगाने की कोशिश करो तो ये देर लगाते भी बहुत है

58

शब्द अपनी मर्जी से आते है अपनी मर्जी से जाते है इनका कोई ठिकाना नही है बस जुबान से निकल ये जाते जैसा मतलब बनाओ ये शब्द खुद बना जाते है तोड़ मरोड़ शब्दों को बनाओ या जोड़ जोड़ कर देखो जैसा मर्जी इन्हें बनालो ये खूब काम आते है कुछ भी कैसा भी ये शब्द बन जाते है

आड़े टेढ़े तिरछे शब्द भी देखें बहुत है जाते यह शब्द बहुत काम भी आते है इनको कही भी लगादो शब्दो के अपने मतलब और मायने बदल जाते है

59

आज फिर यह शब्द कही भाग रहे है

इनकी दौड़ समझ नही आ रही है ये जाना कहाँ चाहते इनका तो सफर ही खत्म नही होता हुआ दिखता बस यह चलते हुए जा रहे है, कहां रुकेंगे ? और कब तक चलेंगे ? क्या है इनका ठोर ठिकाना यह कैसे है पता लगाना?

60

शब्द कितना भी उचा उड़ जाए लेकिन आना उन्हें जमीन पर ही है,

जब तक वो निशब्द ना हो वो इस आकाश से बाहर ना हो पाए।

61

इन शब्दो पर जोर नही है चलता यह कुछ भी और कभी भी जो मन चाहता वो है कह ये शब्द जाते अब इन शब्दो को कौन समझाए इनसे ऊपर कैसे जाए और कौन जाए ?

यह तो हर दम अपनी मर्जी चलाये , मन , मस्तिष्क के भीतर यह शब्द घर कर जाए फिर देखो यह कैसे उत्पात मचाये

62

मन पूरा क्रोध से भर देते है, तन मन में आग लगा देते है।

यह शब्द रोम रोम राम से रावण हो जाते है

ये शब्द फिर किसी की सुन नही पाते है।

63 शब्द क्या है ?

सारे गुण अवगुण इन शब्दो में समाए

इनसे कौन भीड़  लड़ पाए, ये

शब्द सबको पीछे छोड़ आगे निकल

जाए त्रिलोक विजय भी ये शब्द पाए

परमेश्वर भी इनका सहारा ले धरती पर आये है

64

आज मैं भी शब्दों से बाते करता हूं जो आते है मेरे विचार में उनको पन्नो पर उतार देता हु फिर उनको पूरा करता हूं जो भी जैसा भी कोई एक विचार मेरे मन को छू जाता है वो लिख डालता हूं इन्ह पन्नो पर ताकि कभी न कभी तो उसका अर्थ मैं ढूंढ पाऊंगा और उन सभी शब्दों को पूरा कर मैं लिख पाऊंगा

65

शब्द क्या है ? ऐसे शब्द जो इस ब्रह्मांड मैं कही ना कही विचर रहे है परंतु अभी तक हमसे उनका टकराव नही हो पाया है और जिन शब्दो का किसी से टकराव हो पाया है वो मोक्ष को प्राप्त हो गए है जिन्होंने शब्द रहस्य को जान लिया है वो पूरी तरह मोक्ष को प्राप्त हो चुके है

आइए जानते है शब्दों के बारे में

हमारे मुख से निकले शब्द इस बृह्मांड में चर और विचर  करते है यह शब्दों की प्रकर्ति पर निर्भर करता है , शब्द किस प्रकार का है ?

शब्द की मूल पृकृति क्या है ? कैसे बना है और क्यों तथा किन कारणों से यह भी जानना अतिआवश्यक है क्योंकि यदि यही नही जान पाए तो उस शब्द का मूल कारण समझ नही पाए और वो शब्द इस ब्रह्मांड में चर विचार करता रहेगा जब तक उसे अपना अन्तोगत्वा स्थान ना प्राप्त हो जाए

66

किसी भी रोग का उपचार शब्द

अथवा जिन्हें मन्त्र कहा है

उनके द्वारा करना सम्भव है तथा अनेकानेक रोगों को भी सिर्फ बोलने वाले मंत्र से उपचार किया जा सकता है इसके लिए हमें इन पर रिसर्च करनी होगी जो हमने पिछले कई शताब्दियों से नहीं की है हमारे वेद पुराणों में बहुत कुछ लिखा हुआ है परन्तु हमने उन्हें भी कभी समझने कि कोशिश नहीं की है

लेकिन कभी तो  हमे समझना होगा और बहुत सारी ऐसी किर्यायाओ से होकर गुजरना होगा जैसा की हमारे ग्रंथो में दिया है या फिर आज कल के युग में कई विधानों ने कह दिया है आपके शब्द ब्रह्माण्ड को प्रभावित करते है जैसा आप सोचते,  विचरते है उसी प्रकार की प्रकृति बन जाती है और प्रकृति पर आवरण भी उसी प्रकार से आवरण चड़ता है ,  मन के भावों से तथा आपके जीवन में आप जो कुछ भी कार्य कर रहे उनके द्वारा सारा जीवन बदल सकता है लेकिन हम शारीरिक रूप से जितने सक्षम है उतना ही कार्य कर सकते है और जो होना चाहते है वहीं हो सकते है

मशीनों का प्रयोग करके हम आने वाले कुछ सालों में बहुत सारी ऐसी रचनाएं करे जो हम आज के युग में सोच नही पा रहे हो परंतु यह सभी बाते संभव है क्योंकि संभावना आपके विचारो पर ही निर्भर करती है

बाहरी दुनिया बहुत सारी ध्वनियां छोड़ रही है परंतु ये ध्वनियां किसी भी काम की नही लग रही सब की सब बेमतलब है जिनका औचित्य नही प्रतीत हो रहा है इस समय इन सभी ध्वनियों को कभी ना कभी अर्थ मिलेंगे परंतु वो किस और जाएंगे ये समय पर निर्भर करता जहाँ तक मेरा अंदेशा है ये विनाश की और अग्रसर हो रहा है इसलिए इन्ह ध्वनियों को सुनने का कोई फायदा नही है मुझे अपने भीतर की दुनिया को ही सचेत रखना है जो ध्वनियां मेरे भीतर बज गुंज रही है मुझे उन्हें ही मूल रूप से सुन्ना है

और समझना है

बाहरी दुनिया में बेबुनियादी विचारो की एक अलग दुनिया बन चुकी है जिनमे आप खुद को भी भूल जाते है और इस चक्रव्यूह में फंस जाते है जिससे निकलना मुश्किल सा प्रतीत होता है अनगिनत विचार आप के मस्तिष्क में चलते है जिनका कोई आधार नही है और वो आपको सिर्फ बाहरी दुनिया के चक्कर लगवाते है और कुछ भी नही इनका निष्कर्ष बिल्कुल अर्थहीन है जो आपकी इच्छाओ को बढ़ावा दे रहे है। दिन प्रतिदिन आपने विचारो में ही फंसते हा रहे है

बाहरी वस्तुयों में शोर है, रगड़ना है जिसमे कोई मधुर आवाज मधुर संगीत नही है ये सभी ध्वनियां मिल तो ओम ॐ को रही है परंतु उनका जो उच्चारण स्थान है वो अलग है रगड़ना जिससे इन ध्वनियों को सही दिशा मिल रही है और इनके अर्थ अब अर्थहीन दुनिया की अग्रसर है,

अगर हम ब्रह्मांड के साथ एक ही साउंड में खुद को मिलाने की कोशिश करे तो शायद हमारा जोड़ आकाश से हो जाए पूरी धरती पर जितने प्राणी है उन साभी को ये एक साथ करना होगा और

कुछ शब्द आते है समूह बनाते है और वार्तालाप करते है कुछ शब्द एक प्रधान शब्द के पास आते है और बाते करते है किसी एक मत पर अपनी सहमति देने के लिए नजदीक आते है और देते है उनका प्रधान एक मत छोड़ता है और सभी शब्द उस पर अपना मत देते है सहमति हाँ में होती है

निष्कर्ष परिणाम हा निकल गया है यहाँ पर

है हम सहमत है सभी सहमत होते है एयर चले जाए है

शब्द एक विवेकशील प्राणी है परंतु प्रकाश (लाइट) नही

शब्द तरंगे उन्हें और समझ सकती है परंतु लाइट सिर्फ गतिमान है एक सीधी रेखा में अग्रसर है जिसका अपना कोई भी मत नही है

तरंगे , ध्वनियां , शब्द , कम्पन ये आपस में विचारक तत्व है इनमें समझ है ये निर्णायक है स्वयम निर्णय भी ले सकती है क्या सही है ? क्या गलत है ? परन्तु लाइट में नही होती यह क्षमताये, लाइट सिर्फ चलती है जहां प्रकाश हा सकता है सिर्फ वहीं तक किरणे जाती है

तो एक सीधी रेखा में जिसका अपना कोई अस्तित्व नही होता सिर्फ प्रकाश की गति में गतिमान है

शब्द क्या है ? लोग क्या सोचते है शब्दों के बारे में ओर मैं क्या सोचता हु शब्दों के बारे में इसमे फरक है शब्द ही मेरे लिए एक अलग दुनिया बनाते है ओर लोगों के लिए शब्द कोई मैंने नहीं रखते लेकिन इन शब्दों से ही जीवन का हर एक क्षण घातुत हो रहा है इन शब्दों के बिना तो जीवन चलना ही असंभव है शब्द इस ब्रह्मांड की ऊर्जा है शब्दों में राग दवसह जो पैदा हो रहा है वह सब आकाश के कारण ही हो रहा है शब्द जीवन रस को नए रंग में स्वाद में बदल देता है शब्द ही है जो आपको स्वाद देता है इस जीवन वर्ण तो यह बेरस हो जाए नीरस हो जाए शब्द न हो तो क्या ये जीवन कल्पना मात्र भी होगा क्या ? शब्द को लोग क्या समझते है ?

उनके लिए शब्द गॅलिया है

शब्दों की अलग भाषा है शब्द से बस उनका अर्थ है लेकिन शब्द उनके सबकुछ नहीं है लेकिन इस ब्रह्मांड का स्रोत ही शब्द है , गंध , रस , रूप, आकार यह ब्रह्मांड की पूरी रचना में बहुत यहां तत्व है

यदि आप अपनी जुबान से कुछ नहीं बोल इसका अर्थ यह नहीं है की आप चुप है भीतर तो आप लगातार अपने आप से बात कर ही रहे है जिसका पप्रभाव बाहर दिख रहा है

आप चुप सिर्फ जुबान से लेकिन मन से अनही मन तो लगातार चल ही रहा है जिससे बहुत घटनाए पैदा हो रही है किसी का फोन नहीं आया , क्या कहूँगा , खाऊँगा, कैसे जाऊंगा , रहूँगा आदि इत्यादि चीजों में उलझे रहते है जिनके कारण मन की अवस्था बदलती है