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बहाना ओर जवाब

बहाना ओर जवाब -2 , बहाना :- मुझे बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी…..

जवाब :- लता मंगेशकर को भी बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी थी….

बहाना ओर जवाब
बहाना और जवाब

सोचना बहुत पसंद है

वैसे मुझे सोचना बहुत पसंद है लेकिन इस रिमझिम रिमझिम सी बारिश में तो बस खो जाऊ यही करने का मन आज मन है , धीमी धीमी सी बारिश आज सुबह से ही रही है , इस मौसम को देख बस बाहर घूमने का मन का करता है, खुद को घर में कैद तो किसी को भी अच्छी नहीं लगती , लेकिन मैंने खुद को घर में रोक रखा है, अभी फिलहाल कुछ समय के लिए घर पर ही हूँ , ताकि मैं कुछ तेजी से काम करता रहु जितनी गति मेरे काम को चाहिए, लगभग 6 घंटे तो मुझे लिखना ही है इसके अलावा भी कुछ थोड़ा बहुत नया करने के लिए समय निकालना होता है, ओर जो पुराना लिखा हुआ उसको भी एडिट करता हूँ मैं, इसके साथ साथ अपने विचारों पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी है। ताकि जो नए विचार मन भीतर आते है उन पर कार्य करता रहु।

क्युकी यह विचार ही है जो मुझे नए कार्य की ओर प्रेरित करते है। नया नया सोचकर कुछ लिख लेता हूँ।

क्या आपको सोचना पसंद है? यदि हाँ तो क्यों ? ओर यदि नहीं तो क्यों नहीं

मुझे सोचना बहुत पसंद है , ओर जो सोचता हूँ उन विचारों को मैं लिख लेता हूँ , ताकि उन सभी विचारों को ओर आगे बढ़ा सकु , उन पर कुछ कार्य कर सकु , क्युकी यह जो मेरे मस्तिष्क में विचार आ रहे है ये एक प्रकार के सुझाव होते है , यदि आप सकारात्मक है ओर आपके विचार भी सकारात्मक रूप से आ रहे है, तो आपके विचार आपको बहुत सारे सुझाव हर रोज मिल रहे है।

क्या आप भी उन सुझावों पर कुछ कार्य करते है, या फिर उन्हे कम से कम लिख लेते है, क्या आपने अपने विचारों को जानने की कोशिश की है, मैं करता हूँ अपने विचारों को जानने की कोशिश की यह विचार कैसे ओर क्यों आते है, मैं अपने मस्तिष्क में आने वाले ज्यादातर विचारों को देखता ओर समझता हूँ, जिसकी वजह से मुझे अपने जीवन को एक नई दिशा देने में मदद मिलती है , ओर स्वयं में लगातार सुधार की जो आवश्यकता होती है, वो भी इन्ही विचारों के कारण होती है , यह विचार मेरे जीवन को लगातार बेहतर बनाने में मदद करते है।

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क्या करता हूँ मैं

क्या करता हूँ मैं दिन भर ? वैसे तो मैं कुछ नहीं बस अगर सच बताऊ तो सिर्फ लिखने की कोशिश करता हूँ, ओर जो मन में आता है वही अब लिखता हूँ, चाहे मैंने कितना ही सोच रखा हो दिमाग में लेकिन वो एक दम शब्दों को पन्नों पर नहीं उतार पाता है।

इसलिए घंटों बैठ जाता हूँ खुद के साथ अकेले में ताकि मैं कुछ कुछ लिखू जो विचार आ रहे है उन शब्दों में उतार सकु, बस यही एक वो जरिया है , जिसकी वजह से मुझे बहुत शांति मिलती है , लगता है भीतर बहुत कुछ भरा हुआ जिसे बाहर निकाल देना है।

इसलिए मैं अपने लैपटॉप के सामने बैठ जाता हूँ ओर गूगल कीप जिसमे मैं लिखता हूँ, उसको खोल लेता हूँ, जैसे ही कोई विचार मेरे मन में आता है मैं उसे लिख लेता हूँ, यही मैं पहले भी करता था, तब मैं अपनी छोटी सी नोटबुक ओर पेन लेकर बैठ जाता था।

किस तरह से मैं लिखता था उस समय: अपने मस्तिष्क के विचारों पर गौर किया करता था की मेरे दिमाग में चल क्या रहा है? मैं सोच क्या रहा हूँ? असल मैं नहीं, मेरा दिमाग सोचा करता था बस उस दिमाग को मैं देखता था।

मैं आपको बताता हूँ, वो शुरुआत कैसे हुई जब मुझे घंटों बैठना पड़ता था, सिर्फ एक विचार के लिए , सिर्फ कुछ शब्दों के लिए की मैं लिख पाउ उन विचारों को पन्नों पर उतार मैं सकु बस इसलिए तब भी घंटों कॉफी होम में बैठता था। क्युकी एक एक विचार बहुत देर में आता था।

वो विचार जो ब्रह्मांड से आते थे , जो मुझे प्रकृति से जोड़ते थे , एक संबंध स्थापित करते थे , उन शब्दों को मैं सुनता ओर लिखता था , मुझे कुछ नहीं पता बस मैं लिख लेता था, जैसे मैं सवाल पूछ रहा हूँ ओर मेरे जवाब मुझे मिल जाते थे , कुछ बस सवाल ही बनकर भी रह जाते थे की इनका जवाब कुछ समय बाद मिलेगा अभी नहीं।

मैं हर रोज शिवाजी स्टेडियम के पास कॉफी होम है उधर जाता था, जिससे की आराम से बैठकर लिख सकु जो नया विचार आए उसको पकड़ सकु , उस समय मैं अपनी पुस्तक “कौन हूँ मैं” की शुरुआत पर था बस मन में यही विचार था ओर इसी किताब के इर्द गिर्द सभी प्रश्न ओर उत्तर बन रहे थे।

क्या करता हूँ मैं यह बात मैंने आपको बताई अब आप मुझे बताए की आप क्या करते है।

मूड को फ्रेश बनाना

मूड को फ्रेश बनाना है जिंदगी , जिंदगी कभी रुलाती है तो कभी हँसाती है, हर गम को भुलाती है जिंदगी, तुम्हारी मंद मुस्कान को मुस्कुराहट का नाम भी है जिंदगी, कभी मूड को खराब कर देती है तो मूड फ्रेश कर देना ही है जिंदगी,

मूड को फ्रेश बनाना है जिंदगी

मूड को फ्रेश बनाना भी है ज़िंदगी

लगातार जिंदगी को बेहतर बनाना ही हमारा काम है, जिंदगी बहुत बड़ी है ओर हम बहुत छोटे है। इस जिंदगी को बहुत बड़ा ही समझ कर जिन चाहिए तभी हमारे सारे सवालों ओर परेशानियों का समाधान मिलता है, यदि आप मुस्कुरा नहीं पा रहे है, तो जिंदगी की मुस्कुराहट को देखो जरा वह कितना मुस्कुरा रही है, क्या जिंदगी दुखी है? क्या जिंदगी परेशान है? तकलीफ ओर दुख तो तुम्हारी जिंदगी को है इस नन्ही सी जान को इतना परेशान कर रहे है हम।

इसलिए खुद को जिंदगी समझकर जिओ खुद को मानो जिंदगी हूँ मैं ओर जिओ इस जीवन को अपनी आदत में कुछ ऐसे शब्दों को जोड़ लेना बेहद जरूरी है।

बड़ी प्यारी है जिंदगी

बड़ी प्यारी है जिंदगी


ना तड़पाओ ना रोने दो बड़ी प्यारी है जिंदगी ,इसे खिलने दो जरा यह खिलना चाहती है, क्योंकि खिलखिलाती सी है जिंदगी। अपनी मुस्कुराहट को कही खो मत जाने दो, यह मुस्कुराती हुई है जिंदगी, इसके साथ खेलो, कूदो बड़ी गुदगुदाती सी है, यह जिंदगी

जीवन को इन्जॉय

जीवन को इन्जॉय कैसे करना चाहोगे? जिंदगी उन हसीन लम्हों का ही नाम है जिनमे आपने सुकून पाया हो, ये भाग दौड़ की जिंदगी से बहुत दूर निकल जाना हो। इस जिंदगी के हसीन लम्हों को कैद करना

कहते है जिंदगी, जिंदगी लंबी नहीं बस बड़ी होनी चाहिए इसका अर्थ है, आपकी जिंदगी का कोई मतलब होना चाहिए जब तक जिए हर पल बेहतर होना चाहिए, जीवन को इन्जॉय करते हुए होना चाहिए।

पता नहीं कि जीवन को एन्जॉय करने के लिए क्या करना चाहिए मगर अधिकांश की जिन्दगी या तो निन्यानवे के चक्र में फँसी रहती है, या फिर जीवन को समझने और तत्कालीन जरूरतों को पूरा करने में बीत जाती है।

फिर भी उम्र के इस पड़ाव तक आ कर मैंने जो सीखा है, उसके अनुसार लाइफ को एन्जॉय करने के लिए आपको इन बातों पर थोड़ा गौर करना चाहिए , यदि आपको यह बाते पसंद आए तो आप इनको अपने जीवन में उतार सकते है।

1. जीवन में आपाधापी तो उम्र भर की है इस भागम भाग का जो खेल है वो खत्म नहीं होता ये लंबा सिलसिला है। बस इसी दौड़ में कुछ ऐसे पलों को इककठे करना ओर उन पलों के साथ इन्जॉय कर सकते है , जिसे हम सभी यू ही गवा देते है ओर जीवन को इन्जॉय नहीं कर पाते है बस यू ही उधेड़ बुन में इस जीवन की उलझते हुए नजर आते है।

2. सन्तुलन तालमेल रखना जरूरी है, जीवन में काम और निजी जिन्दगी में अंतर रखना और दोनों के बीच सन्तुलन बनाये रखना उतना ही जरूरी है जितना कि हमारा साँस लेना, केवल काम या अर्थ भी जीवन को ख़ुशी से नहीं भर सकते और केवल निजी जीवन में मग्न रहने पर भी आपके पास जरूरी अर्थ नहीं आएगा, तो संतुलन जरूरी है।

3. जिस कार्य में अधिक रूचि हो, उसी में अपना करियर बनाने पर ध्यान देना चाहिए। यह दोहरा फायदा देती है। जीवन में आप जो करेंगे, उसमें रूचि हमेशा बनी रहेगी और अर्थोपार्जन भी होता रहेगा। याद रखिये कि अर्थोपार्जन के लिए कुछ भी करना एक बात है, और ख़ुशी से वो करना जिसे करने पर आपको ख़ुशी मिलती है, यह दूसरी बात है। जब आप अपनी मनपसंद का कार्य करते है तो उस कार्य के लिए समय आप समय नहीं देखते बस उसमे लगे रहते है बोरियत नहीं आती आपका लगातार उस कार्य को करने का मन करता है।

4.यदि आप किसी को खुशी नहीं दे सकते तो किसी को आप दुखी भी न करे, मनुष्य जन्म से अन्तरात्मा के साथ जन्मता है। किसी भी विपरीत कार्य से उसे स्वयं पीड़ा होती है और उसकी अन्तरात्मा उसे तब तक कचोटती है जब तक कि वह उस विपरीत कार्य के बदले सही कार्य न कर दे। जान बूझ कर किसी को दिया गया दुःख अंततः मनुष्य की पीड़ा का कारण बनता है। इसलिए जीवन को एन्जॉय करने के रास्ते में किसी को दिया गया दुःख पीड़ा का कारण न बने, इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने कर्म को सत्कर्मों तक सीमित रखें, ओर दूसरों का भी अच्छा सोचे व करे

5. सद्भावना और परोपकार दया भाव की नियत सदा हृदय में धारण रखना, ख़ुशी को खुद के समीप पाने का सरल उपाय है। एक पुष्प से अच्छादित उपवन में हर किसी का मन हर्षित होता है। कौन प्रातः की लालिमा को देख कर प्रफुल्लित, प्रसन्न और आनंद से भर नहीं जाता। पक्षियों का कलरव किसके हृदय को आह्लादित नहीं करता है। कौन बहते झरनों को या बरसते बादलों को देख कर मयूर की भांति नृत्य करने को उद्यत नहीं होता है। इसलिए, परोपकार और सद्भावना की उर्जा से वह मनुष्य सदा ही ऐसे भावों से परिपूर्ण रहता है। फिर उसे अपने जीवन को एन्जॉय करने से कोई रोक नहीं सकता।

6. प्रेम इस मृत्युलोक में अगर किसी ने प्रेम को जान लिया तो उसने जीवन का मर्म और उद्देश्य जान लिया। प्रेम कहने के लिए ढाई अक्षर का शब्द मात्र है, मगर इसके मर्म को जानने के लिए संत से ले कर भगवान तक मनुष्य रूप धर पृथ्वी पर आते हैं। इसे किन्हीं शब्दों या शब्दों के समूहों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता वरन इसे आत्मसात करना पड़ता है, वह भी सारे हृदय के लिए सम्भव नहीं जिसे परमात्मा ने बनाया है, प्रेम का मर्म जानने या समझने के लिए कुछ खास हृदय ही उपयुक्त है। फिर भी मनुष्य के लिए इसे जितना सम्भव हो, जानने की कोशिश करनी चाहिए। कदाचित, कई अर्थों में प्रेम ऊपर वर्णित अन्य गतिविधियों में समाहित है।

7. मौजूदा पलों का आनंद लें: वर्तमान क्षण को महसूस करें और उसका आनंद लें। अपने आस-पास के वातावरण की सुंदरता, सुखद संगठन, और मनोहारी वस्तुएं देखें।

8. संयम और अधिकार्यता बनाए रखें: अपने काम में संयम बनाए रखने का प्रयास करें। समय का सदुपयोग करें और अपनी प्राथमिकताओं को पहचानें।

9. सराहना करें: अपने आस-पास की खूबियों को देखें और सराहना करें। दृष्टि से छोटी-छोटी खुशियों को पकड़ें और उन्हें महसूस करें।

10. स्वास्थ्य का ध्यान रखें: अपने शरीर और मन की देखभाल करें। नियमित रूप से व्यायाम करें, स्वस्थ आहार लें, और प्रतिदिन सुखद नींद प्राप्त करें।

11. अपनी प्रिय गतिविधियों में समय बिताएं: अपनी प्रिय गतिविधियों, जैसे कि गाना गाना, पुस्तक पढ़ना, फोटोग्राफी, योग, यात्रा, आदि में समय बिताएं। इन गतिविधियों में आपको आनंद का एहसास होगा।

12. संगठन को छोड़कर आराम करें: अपने आप को संगठित रखने के लिए अवकाश, अवकाश या छुट्टी पर जाएं। किसी खास स्थान पर जाने का आनंद लें और वहां की सुंदरता का आनंद उठाएं।

13. ध्यान और मेधा का अभ्यास करें: ध्यान और मेधा अभ्यास करें, जैसे कि मानसिक शांति और आनंद के लिए मेडिटेशन करें। योगाभ्यास भी मन को शांत और स्थिर रखने में मदद कर सकता है।

14. प्रेरणादायक किताबें पढ़ें: आप प्रेरणादायक किताबें पढ़कर अपने मन को प्रशांत, सकारात्मक और उत्साहित रख सकते हैं। किसी आदर्श के चरित्रों और उनकी कथाओं से प्रेरणा लें।

15. अपने पासवर्ड को छोड़ें: अपने दिन के हसीन पलों को कैप्चर करने के लिए अपने पासवर्ड और फोन को अवकाश पर छोड़ें। सोशल मीडिया का उपयोग कम करें और अपने पासवर्ड खोलने के बजाय वास्तविक जीवन को जीएं।

16. धैर्य और कृतज्ञता रखें: जीवन के प्रत्येक पल को धैर्य से और कृतज्ञता के साथ स्वीकार करें। धन्यवाद की भावना रखें और अपने आस-पास के लोगों के साथ दया और सहानुभूति बनाए रखें।

याद रखें, हर दिन विशेष है और हर क्षण का आनंद उठाने का अवसर होता है। संयमित रहें, स्थितिवत्ता रखें और जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लें।

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गदर 2

किरदार गदर 2 : सनी देओल , अमीषा पटेल , उत्कर्ष शर्मा , सिमरत कौर , लव सिंह ओर मनीष वध्वा

सनी देओल ने कितनी ही हल्की फिल्म की हो लेकिन उनकी ऐक्टिंग बहुत शानदार रहती है, इनको देखने बाद तो यही लगता है, की ये ट्रक को भी उठाकर फैक देंगे जब गुस्से में होते है, फिर हथोड़े से पिटाई इनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। और ऐसा ही कुछ दिखा सनी पाजी की गदर 2 में , कुछ भी कर सकते है सनी पाजी , उनके चेहरे को देखकर ही लोग डर जाते है वो जब गुस्से में होते है।

कुछ सीन ऐसे आते है, जहां आप खुद ही खड़े होकर चिल्लाने लग जाए आपका ऐसा मन करता है, सिनेमा हाल में लोग भारत माता की जय के नारे लगाते दिखे, ये मोमेंट कैमरे में तो कैद नही कर पाया लेकिन लोगो का समूह खुद जोर जोर से भारत माता की जय , भारत जिंदाबाद था , जिंदाबाद है, और जिंदाबाद रहेगा के नारे गूंजते रहे।

गदर 2
रिकार्ड तोड़ टिकट बुकिंग

फिल्म पहले हाफ में थोड़ी धीमी चलती है, लेकिन दूसरे हाफ में जोर पकड़ लेती है, फिल्म की कहानी को घुमाकर लाने में अनिल शर्मा को थोड़ी मेहनत करनी पड़ी है, लेकिन फिर भी अनिल शर्मा दम पूरा लगा नहीं पाए ऐसा लगता है, पहले हाफ में फिल्म आपको बांध नहीं पाती है , और आप सीट के साथ चिपककर बैठना पसंद नहीं करते।

गदर 2 का म्यूजिक जो गदर एक प्रेम कथा में मैजिक करता है, हमारे मन में अपने आप ही गानों में खो जाता था , लेकिन वो गदर-2 में नहीं दिखाई पड़ता, तो गानों का जादू भी हल्का है लेकिन उत्कर्ष शर्मा ओर सिमरत का एकसाथ एक गाना है जिसमे दोनों अच्छे लगते है।

यह फिल्म सिर्फ 90s की याद दिलाती है , जीते उर्फ उत्कर्ष शर्मा की एक्टिंग पहले हाफ में कुछ हल्की लगती है, लेकिन दूसरे हाफ में उनकी ऐक्टिंग बहुत बढ़िया हो जाती है इनको दुबारा आगे फिल्मों में देखा जा सकता है। लेकिन यहाँ ऐसा लगता है की उत्कर्ष शर्मा को लॉन्च करने की कुछ ज्यादा जल्दी थी।

एक्शन सीन मे हाई टेक्नॉलजी की ज्यादा उम्मीद नहीं करे क्युकी यह 70-80 दशक के दौर की कहानी है, और अभी भी लगभग वही दौर चलता है इस फिल्म के हिसाब से ओर उतनी ही उम्मीद करते है।

फिल्म का निर्देशन: फिल्म की कहानी को निर्देशक ने बना ही दी उन पुराने पहलुओं को जोड़कर लेकिन कहानी में दम फिर भी कम ही दिखा , निर्देशन और बेहतर हो सकता था, कहानी धीमी पड़ जाती है। पहले हाफ में लेकिन फिल्म को दूसरे भाग में अच्छा बनाने की कोशिश की है उस कोशिश में काफी कामयाब भी हुए है।

फिल्म में स्कारात्मक पहलू : सनी देओल ही इस फिल्म की जान है जो फिल्म को एक अलग लेवल पर रखते है , उत्कर्ष शर्मा की एक्टिंग दूसरे भाग में बेहतर हो जाती है , फिल्म का क्लाइमैक्स अच्छा है, आखिरी में सिमरत ने भी किरदार अच्छा निभाया है , सकीना उर्फ अमीषा पटेल फिल्म की जान नहीं बन पाई इस फिल्म में

फिल्म में नकारात्मक पहलू : फिल्म का निर्देशन कुछ कमजोर दिखा है, इसलिए फिल्म काफी साधारण लगती है, जितनी उम्मीद की थी उससे खरी नहीं उतरती। सनी देओल को लगभग 1 घंटे तक फिल्म में से गायब रखा है ये बहुत ही नेगटिव पार्ट है इस फिल्म का , कुछ डाइअलॉग काफी कमजोर है।

फिल्म का कॉमेडी सीन जो हैंडपम वाला है जैसे ही सनी देओल हैंडपंप उखड़ने के लिए जाते है सभी लोग भाग खड़े होते है, यह सीन याद दिलाता है पुरानी गदर की ओर ये हेंडपम्प वाला सीन आप भूलेंगे नहीं।

कुल मिलकर पारिवारिक फिल्म है जो बहुत लंबे समय बाद आई है , बहुत ज्यादा उम्मीद हाई एक्शन सीन की उम्मीद लगाकर थीअटर में नया जाए बस सनी ओर सकीना की जोड़ी देखे ओर अपने परिवार संग ये फिल्म देखे आपको फिल्म जरूर पसंद आएगी।

गदर 2 टिकट बुकिंग

जिस तरह से GADAR-2 की advance टिकट बुकिंग हो रही है उस हिसाब से omg कही भी स्टैन्ड करती हुई नहीं दिख रही , OMG 10% ही टिकट बुकिंग होती दिख रही है, 1.5 लाख टिकट के आसपास अभी तक बिक चुकी है। इस तरह से लगता है की पठान फिल्म का भी रिकार्ड तोड़ देगी।

टिकट बुकिंग
चित्र स्रोत : गूगल, रिकार्ड तोड़ टिकट बुकिंग

22 साल बाद गदर 2 रिलीज हो रही है पहली गदर जब आई थी तब भी यही हाल हुआ था लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी सिनेमाघरों में सनी देओल की ऐक्टिंग ओर एक्शन सीन को देखने के लिए 2-3 हफ्ते तक टिकट ही नहीं मिली थी उनका HANDPUMP उखाड़ने वाला सीन इतना फेमस हुआ की लोग आज तक नहीं भूले, लोग इंतजार कर रहे थे की टिकट मिले ओर हम फिल्म देखने जाए , उन दिनों गदर के साथ आमिर खान की लगान भी आई थी, जिन्ह लोगों को शायद गदर की टिकट नहीं मिल पा रही थी वो लोग लगान ही देखने चले इसमे कोई शक नहीं है लगान एक फिल्म थी।

लेकिन गदर फिल्म के आगे लगान फीकी पड़ गई थी इस बार भी कुछ इसी तरह से होता दिख रहा है, जब मैंने टिकट बुक कराई थी उसी दिन से लग रहा था की टिकट फिल्म के रिलीज होने से पहले ही खत्म हो जाएगी ओर जिस दिन फिल्म देखने के लिए जाना होगा टिकट नहीं मिल पाएगी, इस दिन अक्षय कुमार की OMG-2 भी रिलीज हो रही है ।

लेकिन Theater में भीड़ नहीं दिख रही OMG-2 के लिए सभी सिनेमा हाल में आराम से टिकट उपलब्ध है OMG-2 की , दर्शक सिर्फ ओर सिर्फ गदर 2 ही देखना पसंद कर रहे है , जो लोग सोच रहे है , की अनलाइन क्या बुक करनी उसी दिन लेलेंगे टिकट उनको टिकट नहीं मिलने वाली जिस तरह से हर घंटे बुक मी शो पर टिकट बुक हो रही है। उस समय जो लगान के साथ हुआ था की , GADAR-2 की टिकट नहीं मिली तो लगान ही देख लेते है, बस यही OMG-2 फिल्म के होता दिख रहा है अगले एक हफ्ते या 2 हफ्ते टिकट तो मिलती हुई नहीं दिख रही है, जिस तरीके से सिनेमा हाल में जाने को लोग बेकरार है, बाकी फिल्म देखने के बाद पता चलेगा, की फिल्म में कितना दम है।

उम्मीद करते है फिल्म अच्छी ही होगी

उगरम फिल्म

नंदी जैसी सफल फिल्म देने के बाद, अभिनेता अल्लारी नरेश और निर्देशक विजय कनकमेडला एक एक्शन थ्रिलर, उग्रम के साथ वापस आ गए हैं। नंदी की तरह उगरम फिल्म भी सच्ची घटनाओं पर आधारित है। मिरना मेनन ने मुख्य भूमिका निभाई। फिल्म सिनेमाघरों में आ चुकी है और देखते हैं कैसी है यह उगरम फिल्म

अभिनीत: अल्लारी नरेश, मिरना मेनन, इंद्रजा, शरथ लोहिताश्व निदेशक: विजय कनकमेदला निर्माता: साहू गरपति और हरीश पेड्डी संगीत निर्देशक: श्री चरण पकाला छायांकन: सिद्धार्थ जे

कहानी:                                                                                                                               एक ईमानदार व बहुत गुस्सेल पुलिसकर्मी शिव कुमार (अल्लारी नरेश) को अपर्णा (मिरना मेनन) से प्यार हो जाता है। उन दोनों की शादी हो जाती है और अपर्णा एक लड़की को जन्म देती है। जहां शिव कुमार अपनी नौकरी के प्रति बहुत जुनूनी हैं, वहीं अपर्णा अपने पति से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं क्योंकि वह अपने परिवार को पूरा समय नहीं दे रहे है इस वजह से अपर्णा को शिव कुमार घर छोड़ने के लिए निकल पड़ता है , उसी दौरान अपर्णा ओर उसकी लड़की लापता हो जाती है, जबकि शिव गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। शिव कुमार की पत्नी और बेटी का क्या हुआ? क्या लापता मामलों और उसके परिवार के लापता होने के बीच कोई संबंध है? शिव ने कैसे सुलझाया पूरा रहस्य? यह कहानी की जड़ का हिस्सा है। यही वो हिस्सा जिसे फिल्म ओर बांध लेती है

प्लस पॉइंट:                                                                                               कॉमेडी किंग अल्लारी नरेश एक शानदार अभिनेता भी हैं। कई बार, उन्होंने कुछ लीक से हटकर फिल्मों में असाधारण अभिनय से अपनी काबिलियत साबित की है। उग्रम फिल्म में हमें नरेश में वह अभिनेता देखने को मिलता है। जो अपने ईमानदार प्रदर्शन व गुस्सेल रूप से सभी को आश्चर्यचकित कर देते हैं। नरेश पुलिस की भूमिका के लिए आवश्यक तीव्रता लाते हैं, और सहजता से अभिनय करते हैं। वह एक्शन दृश्यों में बहुत अच्छे हैं, और उनके द्वारा किए गए प्रयास बहुत स्पष्ट हैं। वह फिल्म को शुरू से लेकर अंत तक अपने कंधों पर उठाते हैं। चरित्र-प्रधान फिल्म में नरेश को देखना बहुत अच्छा था।

फिल्म की शुरुआत अच्छी है और पहला भाग अच्छी गति से आगे बढ़ता है। पारिवारिक ड्रामा साफ-सुथरा है, जिसे पूरे परिवार संग देखी और दूसरी तरफ, नायक के चरित्र को अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है। पहले घंटे में एक शानदार दृश्य है जहां नरेश कुछ छेड़छाड़ करने वालों को दंडित करता है। इस विशेष अनुक्रम को समझदारीपूर्ण और प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जाता है।

एक प्रमुख एक्शन सीक्वेंस, जो दूसरे भाग में आता है, अच्छी तरह से निष्पादित किया गया है। मिरना मेनन को अच्छी भूमिका मिली और उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। शत्रु ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उन्होंने अपना काम बहुत अच्छे से किया है। श्री चरण का बैकग्राउंड स्कोर कुछ एक्शन ब्लॉक को ऊंचा उठाता है।

नकारात्मक अंक

उग्रम फिल्म के साथ सबसे बड़ी निराशा मुख्य बिंदु, यानी लापता मामलों के मुद्दे को संभालने के तरीके से है। यह विशेष पहलू केवल दूसरे भाग में ही केंद्र में आता है, और कोई उम्मीद कर सकता है कि उसके बाद कार्यवाही उग्र और दिलचस्प होगी। लेकिन जांच के कोण में दम नहीं है, और यह काफी सामान्य है।

दूसरे भाग में अचानक एक गाना आता है जो प्रवाह को प्रभावित करता है। लोगों के अपहरण का मुख्य कारण बड़े पैमाने पर निराश करता है, क्योंकि यह कुछ ऐसा है जिसे हमने कई फिल्मों में देखा है। परिचित कहानी दूसरे घंटे में मौजूद सकारात्मक पहलुओं पर भारी पड़ती है। अगर निर्देशक ने मुख्य मुद्दे में कुछ नया पहलू जोड़ा होता, तो चीजें बहुत बेहतर होतीं।

खलनायक का चरित्र ख़राब तरीके से लिखा गया है, और क्लाइमेक्स प्रभाव को काफी प्रभावित करता है। नायक एक स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित है, लेकिन अंत में उस पहलू को अचानक नजरअंदाज कर दिया जाता है। कुछ संवाद मूर्खतापूर्ण लगे। इंद्रजा का किरदार प्रभाव छोड़ने में असफल रहता है।

तकनीकी पहलू:   संगीतकार श्री चरण पकाला ने अच्छा काम किया। कुछ गाने अच्छे हैं और उनका बैकग्राउंड ठोस है। सिद्धार्थ की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है और उनके गहरे फ्रेम फिल्म की टोन के अनुरूप हैं। संपादन लगभग ठीक है. उत्पादन मूल्य अच्छे हैं. संवाद और बेहतर हो सकते थे।

निर्देशक विजय कनकमेदला की बात करें तो उन्होंने उगरम फिल्म के साथ अच्छा काम किया। पहले हाफ को अच्छे तरीके से संभाला, लेकिन जब दूसरे हाफ की बात आई तो उन्होंने पकड़ थोड़ी खो दी। हालाँकि उसे नरेश से सर्वश्रेष्ठ मिलता है, लेकिन कथानक के लिहाज से उग्रम फिल्म उतना महान नहीं है। परिचित मेडिकल माफिया एंगल ने फिल्म को कुछ हद तक निराश किया है। फिर भी, नरेश का शानदार प्रदर्शन और अच्छे तकनीकी मूल्य फिल्म को अच्छी कमाई की

क्या फिल्म देखने लायक है ? कुल मिलाकर, उगरम फिल्म एक अच्छी एक्शन थ्रिलर है। अल्लारी नरेश हर संभव प्रयास करते हैं और सराहनीय प्रदर्शन करते हैं। दोनों हिस्सों में कुछ दृश्यों को अच्छी तरह से निष्पादित किया गया है और सभी एक्शन ब्लॉक बहुत बढ़िया हैं। लेकिन मुख्य मुद्दा परिचित कहानी के साथ है क्योंकि यह फिल्म को अगले स्तर तक जाने से रोकती है। इसलिए उग्रम इस सप्ताह के अंत में एक बार देखी जाने वाली फिल्म बन जाएगी।

क्या फिल्म ऐमज़ान प्राइम पर उपलब्ध है ? जी हाँ ये फिल्म amazon पर available है

दो दोस्त मेट्रो में

अक्सर ये देखा जाता है की कुछ मेट्रो में या कही भी इस तरह से मिलते है जैसे की वो एक लंबे अरसे बाद मिल रहे हो लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है वो मिलते ही रहते है बीच बीच में एस उन दृश्यों से लगता है , लेकिन ये लोग कुछ इस तरह से दर्शाते है जैसे की आज मिले है कभी मिले नहीं थे ओर फिर शायद कभी मिलन नहीं होगा, वो ढेर सारी इनके बीच बाते अधूरी सी पड़ी है जो ये आज पूरी कर लेंगे , जरा देखिए जब दो दोस्त मेट्रो में मिलते है , दो दोस्त मेट्रो में मिलते है ओर फिर बस सन्नटा गहरा अब उनके बीच में कोई संवाद नहीं होता बस जद्दोजहत थी तो साथ बैठने तक की ओर कुछ नहीं

दो दोस्त मेट्रो में मिलते है अबे कहा था, इतनी देर से फोन कर रहा हूँ, फोन नहीं उठा रहा है तू बे

अरे कही नहीं माँ से बात रहा था यार  

वह मित्र अब उसके बगल में बैठ जाता है,  

क्या हाल चाल है तेरे , क्या चल रहा है?

हा ठीक,  आज लेट हो गया है

उत्तर : हा यार

उसके बाद घनघोर सन्नाटा उन दोनों के बीच में बस बाते खत्म हुई यही 2-3 लाइन थी जो आपस में उन्होंने बोली थी, मिले तो ऐसे थे नया जाने कितनी ही बाते अधूरी थी, जो उन दोनों दोस्तों को करनी पूरी थी अब बीच में या गई फोन की दीवार ओर लग गए अपने अपने फोन में।

आजकल लोग एक साथ बैठना तो चाहते है, लेकिन उनके पास बात करने को कुछ नहीं होती बस बैठना चाहते है, जो बैठा हो वह पर उसको सरकाना जो बेचारा आराम से बैठा है, उससे सीट साफ करवा देते है आप घर में कुछ बात नहीं करते है, आपस में लेकिन बैठना बगल में ही है, घर में आप शक्ल भी नहीं देखते है फोन की शक्ल में व्यस्त होते है, लेकिन साथ बैठना है बहुत ही समझ से बाहर है, यह बात मेरे तो दूसरे को इधर उधर सरका कर खुद बैठ जाना, पता नहीं कहा की अकलमंदी है यह………….

क्या वो गुम हो जाएगा यदि आपके साथ नहीं बैठा तो, छोटा बच्चा है क्या आपका मित्र, भी, या जो भी साथ है।

क्या उसके साथ बहुत सारी बाते अभी करोगे? यदि वो साथ नहीं बैठा तो क्या दिक्कत हो रही है, यह बात समझ नहीं आती।  

की आप 3 लोग मेट्रो में चढ़ते है ओर आपको एक साथ सीट नहीं मिलती तो आप दूसरे लोगों को adjust करवाने लग जाते हो, की हम आए है हम इधर एक साथ बैठेंगे आप हमारी वजह से इधर उधर हो जाओ।

क्या आप उधर बैठ सकते? क्या आप उधर चले जाएंगे? बस यही रहता है, पता नहीं कितना प्रेम उस टाइम इनका झलकता है, लेकिन वो लोग कुछ बात नहीं करते बस अपने अपने मोबाईल में लग जाते है।  

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