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बाहय दृष्टि

बाहय दृष्टि के यंत्र मिले दो नेत्र….
सहायक सुंदर सटीक इनका क्षेत्र ।

जानवरों मनुष्यों में समानता से दो नेत्र..
दृष्टि से दृष्टिकोण समृद्धि का रणक्षेत्र ।

सामान्य दृष्टि को जो दिखता है…..
समाज में अधिकता से वही बिकता है ।

अक्सर दृष्टि वाले व्यक्ति दृष्टिवहीन….
विकसित नहीं दृष्टिकोण भावना हीन ।

स्वागत विविधता से रचे हो दृष्टिकोण….
दृष्टिवहीन लालच अधीन उनका कोण ।

भिन्न भिन्न दृष्टिकोणों का स्वागत….
सच्चाइयों से करते वो सामना अवगत  ।

अक्सर अपने दृष्टिकोण को मानते सही..
सत्य नहीं इतना सस्ता यह पहचाने नहीं ।

दृष्टिकोण को करते रहे निरंतर सुमृद्ध….
दूसरे दृष्टिकोण को समझने की हो ज़िद।

मेरी दृष्टि से में उकेरता छह….
सामने की दृष्टि से वही दिखता नौ
बात समझे ।

काहे मोक्ष ध्यान दे स्मृद्ध हो दृष्टिकोण…
स्वय उन्नति हो गाएगी जब होंगे बेहतर।

बाहय दृष्टि के यंत्र, मिले दो नेत्र…
सहायक सुंदर सटीक इनका क्षेत्र।

जगमगाते सितारे और छमकती चांदनी,
आकर्षित करते हमें, उनकी यह रचनी।

विशाल विश्व में घूमती आँखों की यात्रा,
हमें दिखाती सौंदर्य, जीवन की प्रकृति।

देखते हैं सबकुछ, रंग-बिरंगे दृश्य,
पहचानते हैं समय की मुद्रा, अनुभव की संगीत।

छोटी सी कागज़ पर भी दिखा देते हैं विशाल,
अद्भुत इन नेत्रों की शक्ति बेशक अद्वितीय है।

सृष्टि के रहस्यों का ज्ञान, ये नेत्र ही देते हैं,
प्राकृतिक सौंदर्य को बखूबी ये पहचानते हैं।

जब भी खुलते हैं, ये नेत्र धरती पर,
अधीर हो जाता है, मन का आंदोलन।

बाह्य दृष्टि के यंत्र, मिले दो नेत्र,
सहायक सुंदर सटीक इनका क्षेत्र।

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इन सदृश पन्नों पर

मन के इन सदृश पन्नों पर

मैं कुछ लिखना चाहू

मन भीतर की कल्पनाओ से

इस जीवन को जैसा चाहू वैसा मैं बनाऊ

इस मन को

इस मन को

जीवन की

उधेड़ बुन में

मैं ना उलझाऊ – मैं ना उलझाउ

मन अलग अलग राहों में उलझे

कैसे मैं इसको सुलझाऊ

मन भीतर

मन भीतर

मन भीतर करे राग द्वेष

तन बैरी हो जाए

इच्छाओ का लगाके मेला

इस तन को खूब नाच नचाए

जगत के इन दृश्यों में

यह मन अटक बार बार जाए

जगत जाल में यह तन फँसता जाए

अरे मेरा तन बैरी हो जाए

यह तन बैरी हो जाए

मन के इन सदृश पन्नों पर, मैं कुछ लिखना चाहू

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