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मौका

मौका
हर क्षण मौका है अपने विचारों में शुद्धता लाने की  प्रामाणिकता  का मौका है कौन कौन से विचार जीवन को सुधारते हो उनका सदा सिमरन करे ऐसे विचारो का विकास करे उनमे अपनी सोच का बल डाले , सुधार एक निरंतर क्रिया है इसके क्रियान्वयन में लगे रहे आप मौके का लाभ ले पायेंगे ।
जीवन मौक़ा ही मोका है।

यहाँ बुरे कर्म करने का भी मौका है और अच्छे सम कर्म करने या बेफ़ज़ूल के कर्म करने का मौक़ा है ये व्यक्ति विशेष पे आ जाती है, बात वो कौन सा कर्म जगाना बनाना चाह रहा उसकी दिशा गति और व्यक्ति ख़ुद निर्धारित करता है ।

इस धरती पर हम आये एक निश्चित अवधि के लिए और जब आये है, तो बोझ तो बनाना नहीं है मिला जब यहाँ से सबकुछ तो यहाँ वापस लौटाना भी एक ज़रूरी आवश्यक क्रिया है जो एक संदेश है, दूसरो के लिए तो मैं कहूँगा आप मौक़ा ढूँढे कैसे हम सक्षम हो अपना कमाया अपनी समझ दूसरो से बाँट सके।

हर व्यक्ति के लिए मौके की व्याख्या अलग अलग किसी को किसी दुखी को सांत्वना या सुख देकर ख़ुशी मिलती है वो वही मौके खोजता है, और एक व्यक्ति को सताने में दुख देने में ख़ुशी मिलती वो उन मौको की तलाश करता है, किसी व्यक्ति को किसी कार्य में कुशलता चाहे सही चाहे ग़लत बढ़ाने के मौके से जीवन में प्रसन्नता मिलती किसी को धन कमाने के मौक़ो से ख़ुशी मिलती है, किसी को सोना चाँदी हीरे जवाहरात जमा करने में मौक़ों का प्रयोग करते है, तो हर व्यक्ति की मौके को लेकर उसका दर्शन है ।

इंसान होने के नाते हमारा नैतिक दायित्व है हम अपने विचारों को निरंतर सुधारे क्यूँ क्योंकि इसी में हितलाभ है, यह सिर्फ़ कहने की बात नहीं सच है और समाज देश को कुछ देने वाले बने खोजे मौके या फिर बनाये मौके।

हमे जीवन रूपी मौका मिला है चलो उसे पवित्र करे चूँके न। यही मेरी भाषा शैली। तो आख़िर में कर क्षण एक मौक़ा है, उसका सदुपयोग करे दूसरों को भी अच्छा करने का मौजा दे ।

हैप्पी मौका दिन

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आनंद कल होगा

आनंद कल होगा एक अनुमान….
कल कभी आता नहीं रहोगे परेशान ।
वर्तमान का आनंद पे अधिकार …..
अभी हे तो सत्य यह भीतर का त्योहार ।

भीतर रहे आनंद से ओतप्रोत….
बाहर तो बदलता रहता स्रोत ।
जीवन का बल स्मृद्धि हे आनंद ….
सब जीवनो को मिले इसकी सुगंध ।

बीते कल के बोझ से छुटकारा,
आनंद कल होगा एक अनुमान।
चिंताओं के झरोखों को बंद करो,
कल कभी आता नहीं रहोगे परेशान।

वर्तमान का आनंद पे अधिकार,
भाग्य की लकीरों को बदल दो।
हर पल को खुशी से भर दो दिल,
आनंद की नई कहानी लिख दो।

चिंताओं के बादलों को हटा दो,
उजाला लाओ अपनी जिंदगी में।
हंसी के संग बिताओ हर पल को,
आनंद की राह पर चलो निशानी में।

कल की सोचों को छोड़ दो दरिया,
वर्तमान के तरंगों में बहो।
हर दिन लो आनंद का वादा,
यही तुम्हारा अधिकार।

कब होगा आनंद कब नहीं यह सोचकर क्यू परेशान होते हो, आनंद आज अभी है यही बस यही सोच कर आनंदित रहो यह है तुम्हारा अधिकार, छोड़ो कल की चिंता कल की बात है पुरानी जी लो इस पल को यही लिखेंगे हम नई कहानी, अपनी चिंता के बादलों को हटा लो ओर उम्मीद की किरण से अपने मन मस्तिष्क को भर लो वर्तमान में जिओ, ओर भविष्य से छींट मुक्त रहो।

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पहली बार

वो जो तुमसे पहली बार मिला था मैं, आज भी उस बात का एहसास है मुझे बस तुमसे मिलने की चाहत आज भी बहुत है, इकरार ऐ जिंदगी का एहसास आज भी बहुत है, कुछ दूरिया कुछ फासले कम हुए है शायद फिर भी लगता है ये दूरिया, ये फासले है बहुत।

इन दूरियों को मिटाने की कोशिश में खुद को मिटा दु तो गम नहीं, बस तेरी चाहत, तेरी मोहब्बत कम हुई तो ये गम बहुत…..

सूखी सब्जी

सूखी सब्जी से मुझे तो अच्छी लगती रसीली सब्ज़ी ….
उसमें रस हे रंगत हे मेरी इच्छा और चाहत हे प्रभुजी ।
इसी प्रकार ध्यान = सूखी सब्ज़ी नहीं कोई विस्तार फैलाव…..
भक्ति हे = रसीली सब्ज़ी उसमे नृत्य भजन प्रशंसा का प्रचुर भाव ।

हम सब एक गहन प्रणाली का छोटा महीन सा हिस्सा…..
प्रणाली सुचारू रूप से चलाने वाले के लिए स्वतःनिकलती प्रशंसा ।
सूखी सब्ज़ी और रसीली सब्ज़ी में यह अंतर..
वो जानता किसके लिये क्या मधुर श्रेयस्कर।

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यह खाली हाथ

यह खाली हाथ का जो चित्र है उसे देखने से ऐसा लगता है मानो कितनी ही बाते बताना चाह रहा हो, आप लाये क्या थे और क्या लेकर जाओगे इस जीवन से ? साथी हाथ बटाना एक अकेला थक जाए तो मिलकर बोझ उठाना यह संदेश है हमारे जीवन के लिए इसलिए इन पर ध्यान दीजिए

यह खाली हाथ
Khaali-Haath
  1. मुझे यह खाली हाथ को देखकर सिकंदर के वो अनमोल वचन याद आते है जब उन्होंने कहाँ था की मुझे जब दफन करो तो मेरे दोनो हाथ बाहर की और कर देना दुनिया को यह संदेश पहुचेगा सम्राट अशोक ने पूरी दुनिया को जीत लिया लेकिन लेकर वो कुछ भी ना जा सका।
  2. इससे मुझे अपना बचपन याद आता है की मैं जब भी कक्षा में होता था शायद मुझे कुछ आता था या नही अगर टीचर ने कुछ पूछा तो मैं उसका झवाब नही दे पाता , अपना हाथ उठाकर ये नही बोल पाता था की मैडम जी मुझे ये आता है। साहस से हम आगे बढ़ सकते है
  3. इस खाली हाथ में कितनी ही लकीरे है यह इस बात को भी दर्शाता है की अंततः तुम्हे जाना ही है एक दिन तुम्हे सबको अलविदा कहना ही होगा।
  4. इस हाथ में पांच उंगलियां है और सब एक समान नही है , इसलिए यह अवश्य ध्यान रखे समय कभी एक समान नही होता।
  5. जीवन भर हम कितना भी इस हाथ को मुट्ठी बंद कर रखने की कोशिश करे अंत समय में यह खुलकर यही रह जाएगा , कुछ भी साथ नही जाएगा , रेत की तरह सब कुछ हाथ से छूट जाएगा।
  6. यह हाथ यह भी दर्शाता है की मैं तो अब अलविदा कह रहा हूं लेकिन एक वक़्त आएगा जब तुम्हे भी अलविदा कहना होगा, इसलिए तुम भी अभी से तैयारी करलो फिर शायद मौका मिले या नही।
  7. इस हाथ से हमारे बड़े बुजुर्ग, बाबा , ज्ञानी , महापुरुष लोग हमे आशिर्वाद देते है सदा सुखी रहो, फुलो फलों , हस्ते रहो, दीर्घायु हो आदि बहुत प्रकार के आशिर्वाद।
  8. यह हाथ ही है जो हमे सिखाता है की कर्म कर बस कर्म करता तू जा , यह जो हाथ में रेखाएं है वो आपके कर्मो के द्वारा ही बनती और बिगड़ती है इसलिए अपने कर्मो को बलवान कर एक इंसान यह जीवन इसलिए है मिला

दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ

मैं घोषणा करता हूँ मुझे हुआ हे वो दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ
शर्मा जी वर्मा जी ने पूछा है क्या ज्ञान हुआ आपको श्रीमान ?
मैं बताऊँ मुझे हुआ हे दिव्य सत्य ज्ञान पत्नी देवी ही शुद्ध भगवान।
घर में बैठा हे भगवान….
ऐ शेतान् इस परम ज्ञान को नहीं रहा जान ।
क्या बुद्धि तेरी जल गई बुझ गई ओ अहंकारी ओ बुद्धि नुक़सान।
मेरा ज्ञान व्यावहारिक टन टनाटन….
यह समझ का गेम मुझे हुआ परम ज्ञान।

इस ज्ञान हम 24×7 करते प्रचार….
खाओ गोलगप्पे और खट मीठिया आचार।

जय श्री पत्नी सर्व देवाये नमों नमः
संकट कटे कटे सब पीड़ा ओम फट।

दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ

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समय के अनुसार

समय के अनुसार इस शरीर को मृत्यु आती है कोई भी साधन इस मृत्यु को रोक नहीं पाता है, सब कुछ यही रह जाता है, कौन था राजा कौन रंक ये कौन जाने मृत्यु तो बस अपने रास्ते आती है, इस शरीर को मृत्यु ले जाती है
प्रकृति यह नियम अपनाती।
ये सब प्रकृति का केमिकल
लोचा….
शरीर सब तत्वों में मिल जाता जो नही था सोचा ॥

समय के अनुसार मृत्यु नही लगनी चाहिए वो बुरी……
इसमें एक ख़ुशी समय अनुसार चली जीवन की धुरी ॥

मृत्यु सच्चाई नही वो बुरी वो कड़वा सत्य लेकिन सत्य नही वो बुरी ॥

समय अनुसार प्रकृति अपना चक्र पूरा करती हे यह प्रकृति का चक्रव्यूह हे उसमें वो मतभेद नही करती राजा हो रंक हो अमीर हो गरीब हो ताकतवर हो कमजोर हो सब के साथ समान व्यवहार इसकी पहचान ।
प्रणाम प्रकृति को उसके सत्य को उसकी कार्यशेली को नमन वंदन बस सत्य कि माँ प्रकृति इस सत्य के दर्शन भीतर से हो पाए उसमें सहायक बनना आपका अति आभार ।

शब्दों की गठरी जो

शब्दों की गठरी जो अनचाही है उसे ही लेकर घूम रहे हो, उन अनचाहे शब्दो को हटाकर जिन शब्दो को चाहते हो, उनको बांध लो और उनके ही साथ चलो फिर देखो सफर कैसा मस्त हो जायेगा, मंजिल आसान लगेगी मुसीबतें चाहकर भी करीब ना होगी दुख भी सुख में झट से बदल जाए।

जीवन शिक्षा

अनावृत जीवन शिक्षा न रुके सदा नया कुछ न कुछ रहे सीखते ….
जीवन निरंतर शिक्षा देता बिना शुल्क के ।
सदा सीखने जब होगी आदत में शुमार….
जीवन का हृदय से आपके प्रति आभार ॥

जीवन आपको सौंपने आया अपना सर्वोत्तम ..
भरपूर ख़ज़ाना उसका कभी नहीं होता कम ।
वादा करे सदा जीवित रहे सीखने का जनून..
ख़रीदी हम पे आधारित की थोक या परचून॥

जीवन सदा देने के लिए बना हे ये मॉडल ऐसे तैयार हे इसका निर्माता हे जो कोई क्लेम नहीं करता लेकिन हे सब चीज़ें एक दूसरे को सपोर्ट करती हे सहायक हे जीवन को आगे सही से चलाने में वो एक अंग का काम करती हे अब ये व्यक्ति विशेष पे आधारित हे वो इस जीवन से क्या क्या ले सकता हे ओर क्या क्या लौटा सकता हे ।
मुझे लगता हे जीवन सही से चलाने के लिए इसको इस्तेमाल करके इसकी भरपाई भी करे ताकि ये प्रक्रिया चली आ रही हे उसमें अवरोध न उत्पन्न हो आप ने लिया ओर थोड़ा भी लौटाया ये जीवन उसे बढ़ा देता हे ये इसकी ख़ासियत हे ये सर्जनक़ारी व्यवस्था हे जो देने के लिए बना हे ।
ज़मीन खोदो ख़ज़ाने निकल रहे हे हीरे भाँति भाँति के खनिज पदार्थ सोना ओर चाँदी क़ीमती धातुएँ गैस अकूत सम्पदा से सम्पन्न हे ये धरा ।
वातावरण किसने इसकी रूपरेखा रखी होगी ये जंगल ,पहाड़, गुफाये ,नादिया , समुन्दर फल फूल वनस्पति पेड़ ये जानवर पक्षी नहीं बखान कर सकते एक करोड़ चीज़ें वो जान लेंगे तो एक करोड़ फिर अनजान रह जाएँगे ये सब हमें विरासत में मिला कोई गहरी विशाल अथाह अबूझ शक्ति हे जो यहाँ जीवन को पनपाना चाहती हे ओर हम उस शक्ति के बहुत ही निकट हे नहीं समझे तो दूर भी बहुत हे ओर मज़े की बात पहचाने तो वो बहुत निकट हे ओर नकारे तो कुछ भी नहीं हे क्या ग़ज़ब का ये खेल हे न ? ये मेरा प्र्श्न हे मुझे लगता हे ये एक खेल हे आपका क्या कहना हे ।
मुद्दा ये हे कि इस जीवन से सीख ले इसके डिज़ाइन इसकी संरचना से सीख ले तो काफ़ी सारे मेरे हिसाब से सब उठे प्रश्नो के उत्तर इसी में छुपे हे ।
अब का तो मुझे पता नहीं पहले अंग्रेज़ी के पेपर में एक दो प्रश्न इस प्रकार के होते थे जिसमें एक कहानी लिखी संवाद लिखे अब प्रश्न उसी घटनाक्रम पर आधारित 4-5 प्रश्न पूछ लिए जाते थे जिनका जवाब उसी संवाद कहानी मेन छुपा होता था कहने का मतलब ये हे की उसी प्रकार हमें भी जीवन रूपी paragraph मिला हे प्रश्नो के उत्तर इसी में निहित हे बस सही से इस मिले जीवन की कहानी को पढ़ना हे ।
सब उत्तम हुआ हे आगे भी उससे कम नहीं होगा अति उत्तम होगा .
सब का मंगल हो सभी का कल्याण हो ।
सर्वतः दा भला । जय हो सबकी विजय

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दशमेश गुरु जी

आज का विषय बहुत ही सुंदर
दशमेश गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के जन्मदिवस के विषय में

उनका आकाशीय कथन से शुरुआत करेंगे
जो हे
चिड़ियों को में बाज से लड़ाऊ , गीदड़ों को में शेर बनाऊ !
सवा लाख से एक लड़ाऊ तभी गोविंद सिंह नाम कहाऊ !!
दशमेश गुरु जी जिन्होंने खालसा की नीव रखी सिक्खों को सिखी को जोड़ा ओर एक जीवन की अमिट निष्कलंक विधि दी अमृत पान करवा के पाँच प्यारे दिए ओर पाँच कक्के दिए जो थे कंघा ,केश, कढ़ा ,कच्छेरा ओर कृपाण
आप जी का जन्म पटना साहिब में हुआ था आपने मुग़लों से 14 बार युद्ध हुआ ओर ओर आपकी सदा जीत हुई ।

आपजी हृदय से कवि ओर मस्तिष्क से एक अपराजित योद्धा थे ओर परम ज्ञानी कई भाषाओं के जानकार जिसने संस्कृत ,गुरमुखी अरबी , फ़ारसी ओर न जाने ओर कौन कौन सी भाषाओं में वो पारंगत थे ओर 9 वर्ष से भी एक महीना क़रीब कम में वो दसवे गुरु की पदवी मिली।

हम नमन करते हे उनके किए बलिदान के लिए , पूरा परिवार पिता जी श्री तेग़ बहादुर जीं ने शीश को काटा गया गुरुद्वारा श्री शीश गंज उसका बलिदान की गवाह हे उनको खुद 42 वे वर्ष में धोखे से मुग़लों ने सीने में घाव देकर हुई उससे पहले उनके दो पुत्र चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए ओर दो पुत्रों को मुग़लों ने ज़िन्दा दिवार में चुनवा दिया।

चमकौर का युद्ध क्या कमाल का था एक तरफ़ 40-43 सिख थे ओर दूसरी तरफ़ 10 लाख की विशाल मुग़ल सेना ओर क़ाबिले तारीफ़ बात ये थी गुरु गोविंद सिंह जी ने जो मेने शुरुआत में उनके वचन को लिखा था कि चिड़ियों से में बाज़ लड़ाऊ , गीदड़ को मैं शेर बनाऊ ! सवा लाख से एक लड़ाऊ तभी गोविंद सिंह नाम कहाऊ !! को सिद्ध कर दिखाया ये थे महान महान श्री श्री गोविंद सिंह जी ।

मेने अपनी जीवा से उनका नाम लिया हे मेरी लेखनी मेरी जीवा भी शुद्ध हो गई ऐसा प्यारा प्यारा नाम श्री गुरु गोविंद सिंह ।
वाणी नहीं कर सकती उनका बखान ये वाणी की कमी जो कभी पूरी नहीं की जा सकती आज के दिन ऐसी पुण्यात्मा महान विभूति संत श्री गोविंद सिंह जी को क्षत क्षत नमन वंदन ।
जो बोले सो निहाल ससरियाकाल।