जन्म से न तो मित्र या शत्रु जन्मते….
वो तो व्यवहार अहंकार बल से पनपते ।
यदि जीवन जीना है खुलकर
उसका स्वाद है जीयो झुककर ।
प्रकृति अपनी पलकों पे बेठायेगी…
झुकने वाली बात जब समझ वो आएगी ।
प्रकृति उसे ऊँचा दर्जा बख़्शती….
जब उसकी रजा तुममें झलकती ।
हृदय से लिखी बात हृदय को करती स्पर्श..
इस बात में प्रेम के बहाव में सम्मिलित हर्ष ।
कुछ लोग मिलकर जाते वो बदल…
यह जीवन की सच्चाई उसकी हलचल ।
और कुछ लोग के मिलने से बदलता जीवन ….
समर्थ समृद्ध होता जीवन जैसे उजला यौवन।
जन्म से न तो मित्र या शत्रु जन्मते…
वो तो व्यवहार अहंकार बल से पनपते ।
प्रकृति की गोद से हम उठते हैं,
प्रेम और स्नेह से घिरे हुए पलते हैं।
कोई भी आये यहाँ, नवजात बच्चा हो या वृद्ध,
उन्हें बचपन की खेलने की जगह हम देते हैं।
परंपरा के बंधनों से हम छूटते हैं,
समाज की मर्यादाओं से टकराते हैं।
मित्रता और प्यार के बांधव बनते हैं,
सबके दिल में यह स्थान बनाते हैं।
कितने ही रंग-बिरंगे व्यक्तित्व हम देखते हैं,
कितने ही भावनाओं को हम महसूस करते हैं।
पर जन्म से ही कोई मित्र या शत्रु नहीं होता,
ये सिर्फ व्यक्ति का व्यवहार दिखाते हैं।
अहंकार और बल से उनके पनपते हैं,
सबको अपने नीचे रखने की कोशिश करते हैं।
पर जीवन का रहस्य है प्यार और सम्मान,
इन्हीं गुणों से बनते हैं सच्चे मित्र और भाई-बहन।
जन्म से न तो मित्र या शत्रु जन्मते,
वो तो व्यवहार अहंकार बल से पनपते है।
इसलिए हमेशा देखो दिल से इंसान को,
उसके गुणों को, जीवन के साथी को।
सच्ची मित्रता और प्यार ही जीवन का आधार है,
इन रिश्तों को हमेशा बचाएं और निभाएं।
जन्म से नहीं, बल्कि अपने व्यवहार से,
हम मित्र या शत्रु बनते हैं इस संसार में।