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विश्व पुस्तक मेला

विश्व पुस्तक मेला जहां हर साल हजारों लोग अपनी पुस्तकों की प्रदशनी करते है, हर बार की तरह यहां बहुत सारे प्रकाशन और व्यापारी इस पुस्तक मेले में अपनी पुस्तकों की प्रदर्शनी करते है।

जैसे जैसे हम डिजिटल युग की और बढ़ रहे है पढ़ने वाले की संख्या कम होती जा रही है, यह एक आम बात है और ऐसा होना निश्चित ही है, यदि हम समय के साथ स्वयं को नहीं बदलते तो समय ही हम एक दिन बदल देगा। और हम उस समय, समय के दौर से बाहर हो चुके होंगे।

फिर दुबारा उस स्थान पर फिट होना बहुत मुश्किल होगा इसलिए हमें समय के साथ साथ बदल ही जाना चाहिए।

जैसे ही यह आर्टिकल मैं लिख रहा था सामने एक अंकल बैठ कर बहुत पुरानी किताब ही पढ़ रहे थे टूटी दीवारें जिसका पब्लिशर मीरा पॉकेट बुक्स है। मन तो कर रहा था कि एक तस्वीर की जाए लेकिन बिना उनकी अनुमति कैसे तस्वीर लु बस यही सोचकर रुक गया वो मेरे बिल्कुल सामने वाली सीट पर बैठे थे, और उनको देख बहुत मेरे मन में प्रसन्नता थी जहां हम डिजिटल युग की बात करने जा रहे है वहीं किताबों को स्पर्श करने का आनंद ओर अनुभव कुछ और ही होता है जब आपके हाथों में किताब होती है और आप उसको पढ़ते है तो आप किताब में पूरी तरह से खो जाते है।

मैं अपने मन को रोक नहीं पाया और मैंने उनकी एक तस्वीर ले ही ली बिना चेहरे की।

आज मैं दिल्ली विश्व पुस्तक मेला लगा है जिसमे मैं जा रहा था जहां मैं पिछले 20 वर्षों से जा रहा हूं। बचपन से ही मुझे पुस्तकों से लगाव रहा है। मुझे लाखों किताबें एकसाथ देख ऐसा लगता है कि मैं उन सभी पुस्तकों को पढ़ रहा हूं।

एक किताब ही होती है जिसके साथ आप बहुत सारी बातें कर सकते हो अपने मन की, वो आपकी मनपसंद की बाते आपसे करती है।

आज मैंने विश्व पुस्तक मेले बहुत सारी किताबे देखी ओर अलग अलग जगह गया कुछ नई चीज़े तो कुछ पुरानी चीज़े भी देखने को मिली हर वर्ष हजारों किताबे छपती है, हर रोज एक नया लेखक भी आ जाता है, और बहुत तो पुराने लेखक ही किताबे लिखते रहते है।

सपना बुक हाउस
सपना बुक हाउस

महिला हाट

अब महिला हाट में संडे बुक बाजार लगने लगा है जिसका कोई भी समर्थन नहीं कर रहा था लेकिन कुछ लोगों की साजिश ओर कुछ लोगों की मजबूरई जो यह सब करना पड़ रहा है, किताब का छोटा शहर वीरान करने की एक साजिश चल रही है जो पूरी तरह से कामयाब होती दिख रही है। लगता है MCD अपने गलत बयान और पुलिस की सहायता से दरियागंज संडे बुक बाजार के लोगो को वहाँ से हटा देगी। पिछले 3 दिन से लगातार में अखबारों मैं पढ़ रहा हूं कि “संडे बुक बाजार के लोगो को मिला नया ठिकाना” अब मेरा प्रश्न यह है कि कितने लोग राज़ी हुए जरा हमे ये तो बताना
क्या आप जबरदस्ती अपना कुशासन चलाना चाहते हो ?
ये हमे बताना

हम तो वहाँ नही बैठना चाहते फिर काहे तुम चाहते हो जबरदस्ती हमे वहाँ बैठाना ? जरा हमको यह आप समझाना15rs लगते थे अब उसके 200rs आप ले लोगे हमसे
2 घंटे किताबों को लगाने में लगेंगे और 2 घंटे किताबों हटाने में लगेंगे।
एक समय पर 276 लोग जब हर हफ्ते वहाँ जाएंगे तो चक्का जाम हो जाएगा घण्टो का समय तो हमारा यू ही बर्बाद हो जाएगा। क्या तब ट्रैफिक जाम नजर नही आएगा ?क्या रिक्सा , ठेला पूरा महिला हाट में घूम पायेगा ?

कुछ किताबे लगाने से क्या वो अच्छा काम कर पायेगा ?जितने का माल बिकेगा उतना तो मेरा खर्चा हो जाएगा फिर घर पर क्या ठेंगा लाएगा।संडे बुक बाजार का नाम महिला हाट के नाम के नीचे दब जाएगा।मेरा तो अस्तित्व ही खो जाएगाहमारी मदद के लिए क्या कोई आगे आएगा ?
क्या आप हमारा साथ दोगे ?इस संडे को हमारे साथ आकर

आप सभी से एक बिनती है की इस “संडे बुक बाजार” दिल्ली गेट मेट्रो गेट नंबर 3 पर आप सभी हमारे मिलकर जुड़े और हमारा साथ दे संडे बुक बाजार को बचाने के लिए, क्युकी हम महिला हाट का बहिष्कार करते है।