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एक दूसरे के दर्द

एक दूसरे के दर्द ख़ुशियाँ
समवेदना की समझ….
मनुष्यता के प्राण
उसके प्राणो का ध्वज ।

जब जीवन में प्रेम
तो दूसरे का ख़ुशियाँ
दुःख दर्द दिखता….

जब नही जाना प्रेम
नही गलती सिर्फ़ स्वयं
का दुःख दिखता
तो नही दूसरे का सुख
दुःख समझता ॥

जब दिल में दर्द उतर जाए,
तब गम की लहर आ जाए।
क्या करें जब ये छाती फट जाए,
वो दर्द जिसे बयां करने के लिए शब्द ना मिल पाए।

इस दर्द से जुड़े दोस्त का जब दिल दुखाए,
तो कैसे उसका दर्द कम कर पाए।
जब उसके आँसू बाहर ना निकले,
तो कैसे उसकी रूह से बातें कर पाए।

जीवन का हर मोड़ पर दर्द का एहसास होता है,
कोई अपना अपनों को खोता है, कोई प्यार को तरसता है।
दुखी होता है जब हमें अपने दोस्त का दर्द देख पाते हैं,
मगर उसे संभाल लेने की चाहत हमें हमेशा होती है।

हम दर्द को कम नहीं कर सकते,
लेकिन उस दर्द के साथ रह सकते हैं।
दोस्त के दर्द में शामिल होकर,
उसका साथ देकर, उसकी मुस्कुराहट लौटाने का हमें सौभाग्य मिल सकता है।

जब दोस्त का दर्द हमारा दर्द बन जाए,
तब हमें उसके साथ थाम जाना चाहिए।
दोस्ती का ये रिश्ता हमेशा सच्चा रहेगा,
जब तक हम एक दूसरे के दर्द को समझना नहीं सीखेंगे।

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मैं पुरुष हूँ

मैं पुरुष हूँ, पुरुष जिसे जल्दी समझदार बनना है और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ भी उठाना है , चाहे उसे जिम्मेदारी समझे या जिम्मेदारियों का बोझ लेकिन उठाना पुरुष को ही है, शादी करनी है, ताकि माँ बाप की इच्छाये पूरी हो, लेकिन खुद की इच्छा का दम घोट दो, तुम अकेले रहना चाहते हो लेकिन समाज आपको बंधनो में बाँधना चाहता है, वो चाहता है की हम उनके अनुसार चले, जो समाज चाहता है वही हम करे।

क्योंकि आप  पुरुष हो आपको बहुत सारी जिम्मेदारियां उठानी है , परिवार की खुशी के लिए अपनी खुशियो का गला घोट देना है, आप क्या बनना चाहते हो ओर क्या होना चाहते हो ये बाद में है पहले आपके परिवार की इच्छा महत्व रखती है। वो आपसे क्या चाहते है।

आपको एक अनुशासित पुरुष होना है आपको अपने माता पिता , भाई बहन , बीवी बच्चों सबके लिए ideal बनना है।

क्योंकि आप पुरुष हो,

एक दिल जो टूटा भी है ओर जुड़ भी गया है, रहने की चाहत अकेले की है फिर भी कही खालीपन सा भी महसूस होता है लेकिन ये सिर्फ कभी कभी होता है जो कभी कभी वाला रिक्त स्थान है वो भर लेना चाहता हूं।

एक डर है जो बयान नही कर पाता हूं, खुल कर रो नही पाता क्योंकि मैं एक आदमी हूं, सिर्फ इसलिए मैं अपने आसुओ को भीतर ही रोक नजर आता हूँ, कुछ चाहकर भी नहीं किसी को इस दिल का हाल नहीं बता पाता हूँ, बताना चाहू भी अगर तो लोग क्या कहेंगे तू एक पुरुष है ओर पुरुष होते हुए रोता है, शायद इसलिए भीतर ही सब दुख दर्द रोक रह जाता हूँ मन का हाल किसी को नहीं बताता हूँ इसलिए भी मैं पुरुष, कहलाता हूँ।

कितना ही भीतर मचा रहे कोहराम लेकिन उसको बाहर नहीं छलकाता हूँ अपने भीतर ही अपनी भावनाओ को मैं छिपाता हूँ।

क्योंकि मैं एक पुरुष हूं

एक अजीब उलझन है

यह उलझन खत्म होने का नाम नहीं लेती बस बढ़ती ही रहती है एक उलझन खत्म होती है तो दूसरी उलझन का तार जुड़ जाता है मानो जिंदगी उलझाने के लिए ही बनी है, इसी तरह से चल रही है मेरी जिंदगी भी जिसमे एक अजीब सी उलझन है, उसी पर मैंने एक कविता लिखी है।

एक अजीब उलझन में फंसा है इंसान
क्या वो अनजान , लापता है ?
क्या उसे अपने दर्द का भी पता है ?

कुछ बात दबी सी कुछ बात उभरी है
दिल में बेचैनी है कुछ बेसब्री है
कुछ इम्तिहान बाकी है

और कुछ देकर आए है
बस बीते हुए दिनों में
कुछ खुशी और कुछ गम छिपाए है

उन्हें क्या पता ?
कि हम किस दर्द से गुजर कर

फिर दुबारा उस प्यार में पड़ने आए है
जिसमे हमने ना जाने कितने पहले ही दर्द सहकर आए है।
#Rohitshabd

एक अजीब उलझन में फंस गया इंसान है , जीसे न दर्द का पता न आराम का
uljhan