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होली कब है

होली कब है, कब है होली , कब – कब-कब, इस बार होली का त्योहार 2025, 14 मार्च को आ रहा है, हर साल की तरह इस साल भी होली का त्योहार बहुत रंगारंग होगा, यह गीले शिकवे भुलाने का दिन है, आपस में भाईचारा बढ़ाने का दिन है।

संग बैठ खुशिया मनाने का दिन है, पुरानी उन बातों को धो देने का दिन है जिनसे दिलों में दूरिया बढ़ गई थी, होली हम सभी के लिए नजदीकिया बढ़ाने का दिन है।

2025 में होली का त्योहार शुक्रवार के दिन आ रहा है, इससे पहले भी कई बार होली शुक्रवार के दिन आई होगी, लेकिन पहले कभी इतनी बहस नहीं हुई थी, यह मुस्लिम समाज के लिए जुम्मे का दिन है, जुम्मे के दिन मुस्लिम समाज ज्यादा संख्या में बाहर निकलता है नवाज अदा करने के लिए जिसकी वजह से सड़कों पर काफी भीड़ होती है, मुस्लिम समाज रंगों से परहेज करता है वह होली का त्योहार नहीं मनाते जिसकी वजह उन्हे कुछ आपत्ति होती है।

लेकिन हिन्दू धर्म में होली का त्योहार बहुत धूम धाम से मनाया जाता है, और रंगों से खेलने की प्रथा तो देवी देवतायो से चलती आ रही है।

यह कोई मुद्दा नहीं था जिसे मुद्दा बनाया जा रहा है, क्युकी पहले भी जुम्मे वाले दिन होली आई होगी लेकिन किसी को कोई आपत्ति नहीं आई फिर इस बार क्यू, क्या ये मीडिया कुछ शब्दों का ट्रेंड में, या सोशल मीडिया मेडिया पर ऐसे शब्दों को जबरदस्ती ट्रेंड में लाना ही है।

यदि आप होली के दिन किसी एरिया में देखेंगे तो मीट की बिक्री अधिक होती है ओर यह कारोबार ज्यादातर मुस्लिम लोग ही करते है, अब क्या वो होली वाले दिन मीट की दुकान बंद करंगे या अपने काम को करंगे, और एस बिल्कुल नहीं है की उनके ऊपर होली का रंग नहीं गिरता, यदि जुम्मे वाले दिन होली नहीं होती तब भी उनके ऊपर रंग ओर पानी दोनों ही गिरते जब वो लोग ऐतराज नहीं करते तो यह भड़काऊ लोग कौन है जो सोशल मीडिया में आकार हाल मचा रहे है।

कौन है ये लोग जो टीवी पर आकार गलत बयान दे रहे है, सभी को तकलीफ नहीं होती बस कुछ ही लोग है जिनको जिनको तकलीफ होती है और उनही लोगों की वजह से दरार पड़ जाती है, और दो धर्मों के बीच मतभेद पैदा होता है।

हम सभी साथ रहना चाहते है लेकिन कुछ असामाजिक तत्व ही है जो आपसी मतभेद पैदा कर रहे है।

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कुछ तो लिखे हम

कुछ तो लिखे हम, हर रोज तो लिखने को नही होगा
क्या यह बात है सही
नही नही
यह बात तो बिलकुल भी सही नही
क्यों
क्युकी हर पल , हर क्षण , हम अपने भीतर भर रहे असंख्य विचार उन्ही का समूह हम बना रहे है। बना रहे विचार पर विचार
फिर कैसे कुछ
फिर कैसे कुछ ना होगा कहने को
सुनने को
सुनाने को
कैसे ना होगी बात
और फिर कैसे ना होगी हमारी और आपकी मुलाकात
होगी और बहुत सारी होगी बात, कुछ नए शब्द और विचारो के तालमेल संग हम और आपका होगा साथ

कुछ तो लिखे हम, हर रोज लिखना ज़रूरी नहीं है,
यह सत्य नहीं है बिलकुल भी।
क्योंकि हमारे भीतर बसते हैं
असंख्य विचार, भावनाएं अनगिनत।

हर पल, हर क्षण ये विचार घुलते हैं,
उनसे ही हमारी कविताएं मिलती हैं।
ये विचारों का समूह हमें बनाता है,
कविता की रचना में उन्हें समाता है।

कविता हमारी आत्मा की अभिव्यक्ति है,
जब विचारों को शब्दों में बदलती है।
हर रोज़ लिखकर हम बनाते हैं वाद्य,
अपनी भावनाओं को साझा करते हैं यहाँ।

तो हर रोज़ लिखने को हो सकता है,
यह बात बिलकुल सही हो सकती है।
क्योंकि जब विचार बहुत हों अनगिनत,
उन्हें शब्दों में छिड़कते हैं हम नित्यत।