हंसने का बहाना बनाना….
जैसे न बीता हो बचपन सुहाना ।
बचपन हँसता खिलखिलाता….
छोटी छोटी बाँतो में ख़ुशियाँ ढूढ़ लाता ।
बचपन न हो जीवन का पड़ाव…..
भीतर सजोये रखे ये मेरा सुझाव ।
बचपन हे वो मस्तीख़ोर…..
मस्ती रखना चाहे बाहर हो कितना शो
हंसने का बहाना बनाना….
जैसे न बीता हो बचपन सुहाना ।
बचपन हँसता खिलखिलाता….
छोटी छोटी बाँतो में ख़ुशियाँ ढूढ़ लाता ।
बचपन न हो जीवन का पड़ाव…..
भीतर सजोये रखे ये मेरा सुझाव ।
बचपन हे वो मस्तीख़ोर…..
मस्ती रखना चाहे बाहर हो कितना शो
शब्दों में गाठ जो लगी है उन्हे खुल जाने दो इनको शब्दों की गठरी ना बनाओ तुम, इनका खुलना ही बेहतर होगा यदि ये गाठे नहीं खुली तो भीतर तकलीफ होगी, तुम्हारा शरीर , तुम्हारा मन , तुम्हारी बुद्धि रोग से ग्रसित हो जाएगी।
इन शब्दों को ध्यान, योग आदि क्रिया से हल्का करो तभी तुम अच्छा महसूस करोगे, यदि तुम्हारे मन, मस्तिष्क में प्रश्न घूम रहे है तो उन्हे पूछ डालो निसंकोच होकर यही हल है भीतर से शांत होने का कब तक, तुम इन अपाच्य शब्दों को भीतर ही रखोगे।
प्यारी छत ,मामा जी की वो प्यारी छत के वो दृश्य, मनमोहक वो किस्से
कुछ पुरानी यादे और कुछ पुरानी बाते
जो बिना मोबाइल, ओर कैमरे के अब भी कैद है
हमारी आंखों में हम संजोए वो दिन
आजकल तो बच्चे कैद कर लेते है
हर उस बात को अपने मोबाइल में
लेकिन हम कुछ भी कैद नही कर पाए
उस कैमरे में
क्योंकि
वो कैमरे वाला टाइम नही था
मोबाइल नही थे बस जो कैद हुआ
वो सब हमारी आंखों में चित्रित है
हमारी यादों में अब भी सजे हुए है
वैसे के वैसे ही अब तक रखे हुए है
वो सारे चित्र
एक एक पल अब भी हमारे जहन मैं उसी तरह से है
जैसे हमने उस पल को जीया बेहद हो ओर फिर याद करके एक बार ओर जी रहे है
आज वो यादे है छत की
हमारे प्यारे मामा जी की छत
जिस पर हम घंटो खेला कूदा करते थे
लड़ते झगड़ते ( लड़ते झगड़ते तो शायद कभी थे नही हम , बस खूब मस्ती हम किया करते थे )
और भी बहुत कुछ बचपन में
मामा जी की वो प्यारी छत
जिसको भूल मैं अब तक भी ना पाया
आज 6 साल बाद छत आकर याद ताज़ा कर लाया
वो छत जिस पर गए हुए लगभग 6 साल बीत गए है
मामा जी की वो प्यारी छत ही है जिस पर हम कल फिर से गए
जिस छत पर हम पूरा दिन बिता दिया करते थे।
छत पर जाते ही मेरे दिमाग में
छपे हुए चित्र फिर से ताज़ा हो गए
आसपास के सारे मकान आज और बड़े गए
जो खाली थे घर , वो घर भी आज भर गए थे
वो आसपास के बच्चे भी अब और बड़े हो गए थे
बात मानो कल ही की हो जब हम घंटो छत पर खेला करते थे। थक हार कर कुछ देर हम सोया करते थे भरी दोपहरी में भी बस हम छत पर ही होया हम करते थे।
वो बारिश के दिन अब भी याद है बारिश में हम नहा लिया करते थे बारिश से चौक गिला ना हो जाए वो जाल पर मोमजामा बिछाकर इटो से ढक दिया करते थे
( और जब बारिश के दिन हुआ करते थे तब जाली पर
मोमजामा ढक उस पर ईंट हम रखा करते थे)
वो छत बड़ी प्यारी है उस छत से जुड़ी है
हम सबकी यादे बहुत सारी है।
रात को घर की लाइट जाने पर छत पर ही हम सो जाया करते थे
ओर सुबह सूरज में चढ़ती धूप जब तक तेज़ ना हो जाए तब तक उठ कर हम नीचे नही आया करते थे।
जब छत पर हम सोते थे हमे सोने के लिए खाट मिला करती थी अब तो वो छत के साथ साथ खाट भी कही खो गयी है
रात को जब छत पर जाते थे सोने तब लेट कर हम बस तारे गिना करते थे जितने बाल उतने तारे इस बात बोलकर बात पूरी कर दिया करते थे
हम तारे गिनते तो कभी सप्तऋषि , तो कभी कुछ और हम बस ढूंढ करते थे पूरी रात तारो में बीत जाए ऐसी कोशिश हम किया करता थे कभी कभी तो ध्रुव तारा देखने की कोशिश में पूरी रात जगा करते थे।
सुबह से लेकर शाम तक छत पर ही दिन बीत जाता था,
ना हम नीचे आते थे ओर ना ही कही घूमने हम जाते थे