ऐसा बचपन में सुनने को मिलता था अपनी अकल लगाओ ओर कुछ बन जाओ लेकिन आजतक अकल मैं नही बैठा यह सबक मुझे आज भी फेसबुक पर देखने को मिल रहा है, आंखे गड़ा कर बैठ हम जाते 9 घंटे तक, पलके भी नहीं झपकाते, बस मोबाइल की स्क्रीन को ऊपर और नीचे ही कर समय बिताते, फ़िल्म देखने जाते और अपनी सीट को ऐसे पकड़ कर बैठते है, कि कुर्सी थोड़ी सी भी आगे पीछे ना हो जाये।
इतना दिमाग क्रिकेट और फिल्मों में हम अपना लगा देते है तो क्या होता? अपनीअकल लगाओ
यदि इतना दिमाग पढ़ाई और काम करने में लगा दे तो शायद हम भी एक सफल व्यक्ति बन सकते है, सही है क्या ? किसी भी चीज को पाने को चाहत आपको कहा तक ले जा सकती है।
अगर इतनी मेहनत पढ़ाई में लगाये बिना पलक झपकाए पढ़ें तो टॉपर ही ना बन जाये काहे हम अपनी अकल लगाए
अरे भाई हमको ये बात काहे को समझ आये।
पढ़ाई में मन नही लगता
काम में मन नही लगता,
जो चीज़ करने बैठता हूं उसी से दूर भागने लगता हूं
फिर क्या करूँ और क्या नही ?
यही समझ नही आता, क्या मैं कम अकल का बच्चा हूँ
दुखडा मेरा है खुद को ही मैं समझाता हूं
देखते ही देखते दोस्त टोपर भी बना,
एक बड़ा बिजनेसमैन भी बन गया
मै ना जाने क्यों वही का वही अटक गया
लगता है में कही भटक गया
नींद बड़ी प्यारी लगती थी इसलिए
जिंदगी में नीचे लटक गया
सुबह उठ नही पाता था जल्दी
पढ़ नही पता था देर तक,
कानो मैं लीड लगाकर सो जाता था
जो याद किया था वो भी भूल जाता था।
फिर घंटो तक जो पढ़ा था उसीको दोहराया करता था
इतनी गलती करने पर भी में नही पछताया करता था
इसका नतीजा हार है यही एक विचार है।
अपनी अकल लगाओ
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