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किताब

क्या आप को मालूम है दुनिया की पहली किताब या कहे धर्मग्रन्थ ऋग्वेद है जो भोज पत्र पे लिखा गया था और उसकी प्रति पुणे में फ़िलहाल भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट में रखी हुई है
सबसे पहले मानव पत्थरों में उकेर के लिखता था और लेखन का सबसे पहले प्रमाणित सूचना आती है प्राचीन सुमेर से वहाँ कृषि के लेन देन और अनुबंधों के दस्तावेज़ो को संभलने के लिए किया गया था फिर यह फैलते फैलते इसका उपयोग वित्त , धर्म ,सरकार , क़ानून आदि अन्य विषयों को अपने ऊपर आश्रित कर लिया

यह एक पूरा विशाल चक्र है जिससे किताबें गुज़री है आज जो हम किताबों का स्वरूप देख रहे है वो इतने सारे बदलावो के बाद हम तक पहुँची है ।

किताबों का अर्थ हो सिर्फ़ और सिर्फ शुद्ध ज्ञान का विस्तार प्रचार चाहे वो विज्ञान हो चिकित्सा हो सामाजिक हो आर्थिक हो शैक्षिक हो या प्रेरणादायक हो कला से जुड़ी हो आध्यात्मिक ज्ञान धार्मिक ज्ञान की हो वहीं सच्ची और अच्छी जिनमे लेश मात्र भी लाग लपेट ना हो और प्रामाणिक हो तभी वो आपने श्रोता से न्याय कर सकेंगी और सच्ची बातों और ज्ञान का प्रचार हो सकेगा तब अच्छे शिक्षक बन सकेंगे और इस ज्ञान का प्रचार प्रसार में सहायक बन पायेंगे ।

किसी देश की जैसी किताबें प्रारंभिक शिक्षा , माध्यमिक शिक्षा या उच्च शिक्षा में होंगी वेसे ही वहाँ के लोगो का माँग , सोच और व्यक्तित्व होगा ये सत्य है ।

मैं इस लेख के माध्यम से कहना चाहूँगा जो मुझे बहुत दिल से लगता है कि आक्रांताओं द्वारा देश और हमारी शिक्षा को नुक़सान पहुँचाया गया चाहे वो नालंदा विश्वविद्यालय को आग लगाकर इतनी बेशक़ीमती ज्ञान की पुस्तकें जल कर राख हो गई जिसकी क्षतिपूर्ति कभी नहीं हो सकती या फिर अंग्रेज बहुत ही चालाक थे उन्होंने भारत देश की पीढ़ी को बर्बाद करने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली जो की गुरुकुल माध्यम की थी उसको पलट दिया और अंग्रेज़ी भाषा को बढ़ावा देने का माध्यम से लार्ड मेकले की शिक्षा नीतियों के आधार से कितावों का निर्माण किया और उनकी नीति इस प्रकार बनाई गई जिसने भारतीय व्यक्ति ग़ुलाम ( नौकरी माँगने वाला ) बने ज़्यादा सोच न सके और हमेशा ग़ुलामों की तरह सोचे जिसका भुगतान हम आज तक भोग रहे है बच्चे पढ़ते है अंक अर्जित करना उसका उद्देश्य चाहे सामाजिक ज्ञान शून्य हो उनका दिमाग़ सरकार से नौकरी माँगता है इसमें उनकी गलती नहीं है यह होता है किसी सभ्यता को नष्ट करने का तरीक़ा तो यह ताक़त है किताबों की ।

मेरा कहना है हम् सब को मिलकर निरंतर शोध कर अच्छी पुस्तकें और हो वो सस्ती किताबे जो व्यक्ति के ज्ञान और उसके विकास में सहायक हो करमबद्ध तरीक़े से हमारी आने वाली नस्लों को पढ़ने के लिए मिले हर विषय में हर क्षेत्र जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो और देश का विकास हो।
किताब या कहे पुस्तक देश को व्यक्ति को बना सकती है या उसकी हस्ती मिटा सकती है ।
तो बड़ी ही जागरूकता से अपने पठन के लिए पुस्तकों का चुनाव करे और सरकार देश के शिक्षाविद और प्रभुद्ध वर्ग से हम सब मिलकर माँगे की एक उज्वल शिक्षा नीति और पुस्तकें वो जो देश और व्यक्ति के विकास में अच्छी किताबों का प्रचार प्रसार करे ताकि भविष्य का भारत खूब तरक़्क़ी करे उसका भविष्य उज्जवल हो।

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हमारी पृथ्वी का हृदय

पर्यावरण हमारी पृथ्वी का हृदय
उसे साँवरे नहीं इस बात में कोई संदेह ।

सब इस प्रकृति माँ का दिया देय….
इसका सही प्रयोग से करे व्यय ।

पेड़ पौधे धरती की संपदा….
सिर्फ़ उसका दोहन लाएगी विपदा ।

स्वयं से करे पर्यावरण को सुरक्षित
अपनी लालचो को करे संयमित ।

पर्यावरण में गहरा असंतुलन….
तापमान बढ़ रहा कट रहे है वन ।
एक तकलीफ़ हो रहा जलवायु परिवर्तन ।

इस गहरी समस्या पे दे ध्यान….
कैसे बाहर आयेंगे बने बुद्धिमान ।
नहीं तो जल्द गर्कं हो जाएँगे सब श्रीमान ।

सब जगह भिन्न भिन्न पेड़ उगाये…..
जल कटाव मिट्टी पहाड़ो को बचाये ।
हर दिन पर्यावरण दिवस जी कर मनाये ।
इस धरती को मानव का स्वर्ग बनाये ।
ख़ुद भी जिए दूसरी को भी जिवाए ।
यह मंत्र पढ़े और पढ़ाये ।

पर्यावरण, हमारी पृथ्वी का हृदय है। यह हमारे सभी जीवनों की जड़ है और हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है। पर्यावरण हमें स्वच्छ और ऊर्जावान वातावरण प्रदान करता है जो हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है।

हालांकि, आजकल हमारे पर्यावरण को नष्ट करने की चिंता बढ़ रही है। वनस्पति और जीव-जंतुओं के नष्ट होने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, वायु प्रदूषण और जल संकट के कारण पर्यावरण की स्थिति गंभीर हो रही है।

हमें इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक है। हमें अपनी भूमिका समझनी चाहिए और सुस्थित और सुरक्षित पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। हमें प्रदूषण कम करने, वनरक्षण को बढ़ावा देने, जल संरचनाओं को सुधारने और जल संचय करने के लिए जागरूक होना चाहिए। वन्य जीवों की संरक्षा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामरिक मुकाबला भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

हमारे पर्यावरण को साँवरने के लिए हमें साझा संगठनिक प्रयास करने, अधिकांशतः संयुक्त राष्ट्र की मान्यताओं और समझौतों का पालन करने और नवाचारी तकनीकों का उपयोग करके समस्याओं का समाधान ढ़ूंढ़ने की आवश्यकता है। पर्यावरण के हित में सतत और संवेदनशील प्रगति करना हमारा कर्तव्य हद्वारा जारी यह संदेश स्वर्णिम संकट को दर्शाता है। पर्यावरण हमारी माता की तरह है, और हमें उसे सावरना हमारा दायित्व है। इसके बिना, हमारा अस्तित्व खतरे में है। हमें संयुक्त रूप से कार्य करना होगा और पर्यावरण की सभी मान्यताओं का पालन करना होगा ताकि हम इसे सुरक्षित रख सकें। हमें जल संचय, प्रदूषण नियंत्रण, और वन संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। साथ ही, हमें नवाचारी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जो पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी में सुधार ला सकें। यदि हम इन समस्याओं के सामाजिक, आर्थिक, और वैज्ञानिक मुद्दों को संगठित रूप से समझते हैं और उन्हें हल करने के लिए सक्रिय रूप से काम करते हैं, तो हम पर्यावरण को सावर सकते हैं। पर्यावरण हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाने योग्य एक अमूल्य धरोहर है, और हमें इसकी सुरक्षा करनी चाहिए।

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चाय की तलब

चाय की तलब सी लग रही लेकिन मुझे आजकल चाय ही नहीं मिल रही है। इस चाय की तलब भी अब खत्म हो गई है अब उतनी अलब नहीं लगती जितनी मुझे पहले लगा करती थी, मेरी चाय की आदत में अब कमी आ गई है, अब मैं सिर्फ 3 बार चाय पिता हूँ, बल्कि जो तीसरी बार वाली चाय उसकी भी तलब अब बंद हो गई है, इसलिए वो चाय कभी पी लेता हूँ कभी नहीं अब इसी वजह से मेरा पेट भी ठीक रहने लगा है।

अधिक चाय के सेवन से हमारी पाचन शक्ति कमजोर होने लगती है, साथ ही हमारी भूख भी कम हो जाती है यदि हम चाय का अधिक मात्रा में सेवन करते है तो।

अब जो तीसरी वाली चाय उसके मिलने ओर न मिलने से मुझे कोई खास फर्क नहो पड़ता क्युकी अब मेरी चाय की तलब थोड़ी कम हो गई है, जिस तरह से मुझे मेरे समय पर चाय ना मिलने पहले फर्क पड़ता था की अब इस समय चाय मिलनी चाहिए नहीं तो मेरा मूड खराब हो जाता था, बार बार दिमाग सिर्फ चाय चाय चिल्लाता रहता था।

जब तक नहीं मिलती मन शांत नहीं होता था लेकिन अब वह बात नहीं है, वो हाल नहीं है इस दिमाग का अब मन ओर दिमाग दोनों शांत है, अब चाय की जरूरत खत्म हो गई है, या फिर मन अब समझ चुका है की चाय इस शरीर की जरूरत नहीं है, और वैसे भी चाय की आदत अच्छी नहीं है जिसे छोड़ ही देना चाहिए क्युकी चाय पेट खराब करती है, गैस की अधिक समस्या चाय के कारण ही होती है, कब्ज भी चाय की वजह होती है।

आपका आलस चाय की वजह से बढ़ जाता है, चाय में कोई शारीरिक व मानसिक शक्ति नहीं होती बस यह एक आदत है जो लग चुकी है हम सभी को इसके कोई फायदे नहीं है, लेकिन हम सभी बचपन से ही चाय का सेवन करते है, इसलिए हमे चाय की आदत लगी होती है, जो अब हमे छोड़ देनी चाहिए।

इसके अलावा बहुत सारे पे पदार्थ है जिनका हम सेवन कर सकते है, ओर वे हमारी सेहत के लिए अच्छे होते है, यदि आप चाय छोड़ नहीं सकते तो कम तो अवश्य ही कर सकते है।

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यादों से कैसे बचे

किसी की यादों से कैसे बचे:इसके लिए आपको अपने ध्यान को दूसरी ओर केंद्रित करना होगा तभी आप उनकी यादों से बच सकते है

किसी की यादों से कैसे बचे, क्या किसी के साथ क्या उनके साथ आप की कोई बेकार यादे जुड़ गई है या कोई छोड़ कर चला गया है याडे जब दिल दुखती है तभी उन यादों से बचने की कोशिश की जाती है, आप उनके बारे में अपने विचार को बदल दीजिए वह यादे आपको कभी दुख , तकलीफ नहीं देगी।

आप उनके साथ बिताए अच्छे पलों को याद कीजिए ओर जीवन का सुखद आनंद लीजिए हर किसी से हमने कुछ न कुछ सीखा ही होता है जो चला गया उन्होंने भी कुछ सिखाया ही है एस सोचिए।

यादे बुरी है ऐसा सोचकर आप यादों से दूर ना भागे, बस अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनकी यादों का उपयोग कीजिए।

जीवन बहुत बड़ा है सिर्फ कुछ महीनो ओर सालों की यादे आपके बहुत बड़े जीवन पर कैसे अपना शासन कर सकती है उन यादों को अपने ऊपर हावी न होने दे उनसे आगे बढ़े ओर कुछ बड़ा करे।

पुरानी यादों से कैसे बचे:

सबसे पहले तो उस इंसान को माफ करदे जिसकी याद आपको आ रही हो कोई भी इंसान वो बाते याद नहीं करता जो सुलझी हो इंसान की आदत होती है वहीं बात सोचने की जहां गड़बड़ हो, तो माफ करने से आप अपने दिमाग में सुलझोगे उसकी गलती माफी लायक ना भी हो या फिर गलती आपकी हो आपको माफी मन में उसको माफी देनी है इससे आप मन में सुलझ जाओगे

आपको सारी सोशल मीडिया से ब्लॉक नहीं करना है, क्यों की आपका दिमाग का ट्रिगर वहीं जाएगा कि आपने उसे ब्लॉक कर रखा है unblock ka trigger आपको परेशान करेगा। बताया ना दिमाग वहीं जाता है जो चीजें अनसुलझी हो और ना नंबर डिलीट kre ना फोटो ये सब वहीं करे तो सोने पे सुहागा आपको दिमाग का ट्रिगर अपने को प्रेरित करने वाली चीजों को दूर ही रखे तो अच्छा है इसलिए ऐसा पहले ना करे

उसकी यादों से आनंद लेना बंद करे हम उनके साथ बिताए पल को इसलिए याद करते है क्यों की हमे आनंद अपनापन लगता है और ये सोच कर हमे बुरा लगता कि ये पल दोबारा हमारे साथ नहीं होंगे उस वक़्त दिल में गहरा सा एक दर्द होता है जिसे प्यार में तड़प कहते है हमे ये वार वार इस यादों को हल्के में लेना होगा जैसे अरे यार ये तो नॉर्मली ही था कुछ स्पेशल नहीं था

जिस वक़्त आप उस व्यक्ति से बात करते थे या WhatsApp chat ya social media पर बात करते थे या कॉल में बात उस वक़्त आपको ज्यादा याद आएगी तो उस वक़्त को गुजारने के लिए बुरी आदत में ना पड़ जाए जैसे शराब सिगरेट इत्यादि क्यों की कुछ समय में आपको वहीं आदत हो जाएगी ,इसलिए उस समय में अच्छी बुक पढ़े अच्छी बुक पीडीएफ फाइल डाउनोड करे, अच्छी आदतें बनाइए आगे आप जब इससे उभर जाएंगे आपको फायदा मिलेगा

उसको भुलाने के लिए किसी जगह डिपेंड नहीं रहे जैसे की आप दोस्तो के पास जाते हो की उसकी याद ना आए कुछ देर तो आपको याद नहीं आएगी पर जैसे ही आप अकेले रहो तब एक दम से उसकी याद आने लगती है तो आपको सहारे नहीं ढूंढ ना है सहारे से आप भूलने की कोशिश करोगे तो आपके दिमाग को पता होता हैं दिमाग का ट्रिगर आपको कुछ देर रुक देगा किन्तु वो जनता है समस्या सुलझी नहीं है तो दिमाग वहीं जाएगा

अब सबसे अहम काम ये है कि आपको खाली समय को भरना होगा पर इसलिए नहीं की उसकी याद ना आए बल्कि इसलिए कि उसकी यादों को रोकने के लिए आप जो बेफिजूल के काम करोगे जैसे किसी भी जान अनजान को मेसेज भेजना किसी से भी बात करना बिना मतलब की या नया रिश्ता बनाने की ओर प्रेरित होना ये बाद ने चलकर आपको दुख देगा रिग्रेट feel करवाएगा इसलिए उस खाली समय को अच्छे कामों में भरों क्यों की आदत तो आपको उसके बदले में किसी भी चीज की होगी ही

बदला लेने की ना सोचे जैसे में उसको बताऊंगा या बताऊंगी की में कोन था /थी अपना ईगो सेटिस्फाई करने के चक्कर में आप ना की भूल पाओगे बल्कि खुद की स्थिति और परिवार की स्थिति को भी बिगड़ दोगे इससे आपका वक़्त फ़िज़ूल जाएगा उसकी याद में खुद को किसी के भी सामने प्रूफ करने जरूरत नहीं है, हा उसने बहुत बुरी तरह छोड़ा हो पर बदले की भावना से आप कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे अनसुलझे हो जाओगे फिर याद आपको रहेगी ही खुद में विश्वास करे आप खुश हो बस,

अब शांत बैठ जाओ और मन में सोचना प्यार सबसे अच्छी चीज होती है दुनिया में अगर भूलना इतना आसान होता तो दुनिया में प्यार जैसा शब्द नहीं होता ये हमारी अच्छाई ही है की हम भूल नहीं पाते वरना कोई भी किसी को अपने मतलब के लिए आसानी से छोड़ सकता था, में खुश हूं कि में एक बहुत अच्छा इंसान हूं जिसके दिल में प्यार करूणा है गहरी सास लेकर छोड़ो अब सब ठीक है वक़्त के साथ हर चीज नॉर्मल हो जाती है ज्यादा तकलीफ हो तो डॉक्टर की मदद ले सकते ह

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समय का सदुपयोग

यदि समय का सही सदुपयोग नहीं होता है तो अक्सर मेरा मूड खराब हो जाता है, मेरा मूड जो इस समय काफी खराब है वो ठीक ही नहीं हो रहा लगातार बिगड़ता ही चला जा रहा है, जैसे पहले हो रहा था जब मैं अपनी पुरानी दुकान पर था, तब भी मेरे साथ यही हो रहा था लेकिन मैं उधर फिर भी बीच बीच में खुश रहता था क्युकी वहाँ लोग मिलने के लिए आते रहते थे, जिनसे बाते करके शब्द हल्के हो जाते है, मन में जो बाते घर कर जाती थी वो निकल जाती थी बाहर, जिन बातों की वजह से भीतर घुटन महसूस होती थी वो भी हल्की हो जाती थी जब किसी बच्चे से बाते हो जाती थी, अच्छी बातों में समय बीत जाता था, लेकिन इस समय ऐसा कुछ नहीं हो रहा।

मेरा समय बिल्कुल खराब हो रहा है ऐसा मुझे लगता है, मैं अपने समय का भरपूर लाभ नहीं उठा पा रहा, समय व्यर्थ ज्यादा हो रहा है जिसकी वजह से मन अशांत हो रहा है, मुझे अपने जीवन में सबसे अमूल्य वस्तु मेरा समय ही मुझे लगती है जब कोई इसका हनन करता है तो मेरा क्रोध अधिक हो जाता है, मुझे एकांत में रहना ज्यादा पसंद है, शोर शराबे से मुझे चीड़ मचती है, वो एक तरह से ध्वनि प्रदूषण है, साफ सुथरे वातावरण को पूरी तरह से दूषित किया जा रहा है।

उन शब्दों से जिनका कोई महतव नहीं है, ओर जो बुरे विचारों को बढ़ावा देते है उस प्रकार के विचार हमारे वातावरण में छोड़े जा रहे है, जिसकी समझ आज के मानव को बिल्कुल भी नहीं रही, उन्हे लगता है आजकल हर कोई गाली बक रहा है तो क्या ही फर्क पड़ेगा यदि मैं भी दु तो, इसी तरह यह बाते जो हमारे वातावरण को दूषित कर रही है लेकिन इन सभी पर कोई नियंत्रण व कानून नहीं है।

समय का सदुपयोग करना ओर अच्छी वार्तालाप करना ही उचित है ओर उसी को समय का सदुपयोग कहा जाता है, भगवत चिंतन में समय को अधिक से अधिक लगाना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है।

यदि मैं अपने समय को व्यर्थ के कार्यों में लगता हूँ तो मेरा मूड खराब होने लगता है, मैं छिन्न भिन्न होने लगता हूँ, मेरे भीतर क्रोध भर जाता है, इसलिए पिछले कुछ दिनों से मेरा मूड अधिक खराब हो रहा है।

इसके साथ साथ मैं कुछ भी बेहतर नहीं लिख पा रहा हूँ, सिर्फ मन मस्तिष्क में वही विचार घूम रहे है जिनकी वजह से लिखने में रुचि नहीं बन पा रही है। मन जब शांत स्थिर होता है तो लिखने में आनंद आता है।

घर पर बैठकर

घर पर बैठकर अपने समय को बिना वजह के कार्यों में बर्बाद करना ओर उसके अलावा कुछ ना करना, अपनी मर्जी से ही इधर उधर जाना आना बस कुछ नहीं करना, बैठे बैठे थक जाते हो तो कभी लेट जाते हो, कभी टीवी देख लेते है, तो कभी कुछ कर लेते है, बस कुछ इसी तरह से दिन निकल जाता है, तुम्हें लगता है तुम्हारा समय पास हो गया है, लेकिन समय को पास करना कितना सही है, ओर कितना गलत है ये जानना जरूरी है, समय की हानी ना हो इसलिए समय को उचित जगह पर लगाया जाए, समय की बर्बादी को रोका जाना चाहिए, बेवजह के कामों से जरूरी के कार्यों में समय को लगाया जाए, जिससे उससे कुछ परिणाम आगे आने वाले भविष्य को फायदा पहुच सके।

पहले के समय में हम समय को इसी तरह से व्यर्थ कर देते थे, लेकिन आज के समय में हमारे पास बहुत सारे ऐसे साधन है जिनसे हम अपने समय की बचत ओर समय का सदुपयोग कर सकते है, जिस तरह तरह ब्लॉगिंग ओर वलॉगिंग इन दोनों का ही बहुत प्रचलन है हम घर बैठ कर यह दोनों चीज़े बहुत अच्छी तरह से कर सकते है।

घर पर बैठकर सिर्फ समय की हानी करना उचित नहीं है, कुछ ऐसा किया जाए जिससे समय बेहतर हो सके, हर रोज कुछ अच्छा करे जिससे हमारा आने वाला कल बेहतर होता जाए, आज में कुछ बेहतर किया जाए तभी कल बेहतर होता है। आज उसका परिणाम नहीं दिखता लेकिन कल में व सुनहरा होता है।

मुझे भी पता ही नहीं चला की कब 11 महीने बीत गए घर पर बैठे कर ही, ओर लिखने में व्यस्त हूँ लेकिन जीवन में असत व्यस्त नहीं हूँ, इसीलिए जीवन हर रोज बेहतर हो रहा है, उस बेहतर में खुद को तलाश करने की कोशिश में लगा रहता हूँ।

हम अपने लक्ष्य को पाने में देरी अवश्य कर सकते है लेकिन विफल नहीं होते यदि हम लगातार कार्य करते है, इसलिए हमे अपने समय की हानी नहीं करनी चाहिए, घर बैठकर उस समय का लाभ उठाना चाहिए जो समय हमे मिल है, उसे यू ही व्यर्थ ना जाने दे।

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समय बीत रहा है

समय बीत रहा है, दिन बस यूं ही बीत रहे है, जैसे मैं कुछ नही कर रहा इस वक्त बस नींद पूरी कर रहा हूं और बिना कुछ किए ही समय की हानि मैं कर रहा हूं, समय को व्यर्थ किए जा रहा हूँ

यह समय बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन फिर भी व्यर्थ के कार्यों में व्यतीत हो रहा है, इस पर नियंत्रण में नही कर पा रहा हूं, बस समय यू ही भागा जा रहा है, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं आ रहा है।
अपने समय को खोना बहुत ही निराशा से भरा हुआ एहसास होता है और यह समय फिर लौटकर नहीं आता यही सोचकर मैं कई बार घबरा जाता हूं। उस लौटे हुए समय को वापस भी नहीं ला पाता हूँ। खुद को बहुत सारी गलतिया करता हुआ ही नजर आता हूँ।

मैने लगभग 11 महीने का समय खराब कर दिया है जब मैं बहुत कुछ लिखना चाहता था लेकिन शायद मैं उतना लिख ही नही पाया, बहुत कुछ सोचना मैं चाहता था लेकिन उतना मैं सोच भी नही पाया बस इधर उधर के कार्यों में ही मैंने अपने समय को व्यर्थ में गवाया।

मैं बार बार किसी काम एक नई शुरुआत करता हूं और फिर से जीरो पर खड़ा हो जाता हूं, दूबारा उतनी मेहनत और उतना और उससे भी अधिक दिमाग लगाता हूं, नया काम करने के लिए नई चीज को सीखने के लिए फिर से नए कार्यों मे सफल होने के लिए,

लेकिन कुछ समय बाद ही मेरा मन उस कार्य से हट जाता है, उस कार्य के साथ मुझे बोरियत महसूस होती है सिर्फ पैसा कमाना ही जरूरी नहीं है, लेकिन उस कार्य में उतना आनंद भी आना चाहिए तभी उस कार्य के साथ लगातार रहा जाता है। उस कार्य को पूरे मन से किया जाता है।

समय बस यू ही बीत रहा है।

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लिखता हूँ

लिखता हूँ लेकिन कभी कभी तो लिखने का मन नहीं होता ओर कभी कभी तो यह सोचने में समय निकल जाता है, की क्या लिखू किसके बारे में लिखू जब लिखने बैठता हूँ तो फिर कई बार तो मैं लिख भी नहीं पाता या दो चार लाइन लिख कर बस वही रुक जाता हूँ, उस लिखे हुए को बीच में अधूरा छोड़ फिर किसी ओर विषय पर लिखने बैठ जाता हूँ, एस बहुत बार होता है मेरे साथ जब मैं लैपटॉप पर लिखता हूँ इसलिए पेन ओर कॉपी उठाकर ही लिखता हूँ जिससे मुझे एक ही विषय पर लिखने का जोर रहे।

मन में अब कोई दर्द भी नहीं है जिसको लिखू, जिसको कुरेद कर लिख दू अपने शब्दों में, कोई जिले, शिकवा व शिकायत नहीं किसी से जो मैं दुखी होकर लिखू , सुन है दुख में इंसान ज्यादा लिख लेता है, खुश होता है तो उसके पास शब्द नहीं होते या शब्दों में अपनी भावनए व्यक्त नहीं कर पाता।

मेरे साथ भी कुछ इसी तरह का लगता है, मेरा जीवन एक सीधी रेखा की तरह सीधा ही है जिसमे कोई हलचल नहीं है, ना शोर शराबा है, बस चुप शांत लहर है भीतर गहरी शांति ओर सन्नटा है, ना बहुत सारी इच्छाए जितना है उसमे संतुष्ट हूँ, ओर जीवन में यही उम्मीद भी करता हूँ सब अच्छा ओर शांति से ही चलता रहे सब खुश रहे सदेव शांति बनी रहे।

लेकिन जब हृदय टूट हुआ होता है, छिन्न भिन्न होता है, कुछ गीले शिकवे, शिकायते बहुत होती है किसी से तो हमारे मस्तिष्क में विचारों जमावड़ा सा लग जाता है, भीतर क्रोध भी भर जाता है, बुद्धि खुद में ही बड़बड़ाने लगती है, विचार अपनी कहानिया बना लेते है, ओर बहुत सारे ऐसे विचारों को जोड़ लेते है जो पहले से थे नहीं उनको आमंत्रण दे देते है, वही समय होता है जब व्यक्ति बहुत अधिक लिखने लगता है।

उस समय सबकुछ शब्दों के माध्यम से बाहर आने लगता है, इसके विपरीत जब मन ओर मस्तिष्क, हृदय शांत होता है तब कोई राग द्वेष नहीं होता भीतर ना इच्छाए बहुत उच्चल मार रही होती तब विचार भी शांत मुद्रा में बैठ जाते है फिर वो भी बाहर नहीं आना चाहते विचार भी गहरी शांति का अनुभव लेना चाहते है, ओर शांत जीवन के साथ बस ज्यों के त्यो ही चलते है, फिर कुछ लिखना या नहीं लिखना बहुत जरूरी नहीं लगता, भीतर ही ठहराव बना रहे यह ज्यादा जरूरी सा लगता है।

लिखने का मन है तो कभी लिखना नहीं छोड़ना जो राग द्वेष के बुलबुले उठते है उनको शब्दों के द्वारा बाहर निकालते रहो, उन्हे लिखो ओर अपने शब्दों को जन जन तक पहुचाओ, जिसने सुधार हो , जीवन बेहतर हो ओर अच्छे रास्ते पर अग्रसर रहे, यही आशा करता हूँ

दिल्ली की बस

मैं लगभग 3 साल बाद आज दिल्ली की बस से सफर कर रहा था, लेकिन आज बस में भीड़ को देखकर ऐसा लगा की बस पुरुषों के लिए तो रह ही नहीं गई, इन बसों में सिर्फ महिलाये ही सफर कर रही है, वो भी ऑफिस जाने के लिए नहीं सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए अपने रिश्तेदारों व बाजार के लिए बस में सफर हो रहा है लेकिन जो महिलाये ऑफिस जा रही है वह इस योजना का सही ढंग से लाभ भी नहीं उठा पाती वो तो मेट्रो में जा रही या ऑटो में ही आना जाना कर रही है।

दिल्ली की बस का सफर भी कुछ ऐसा है मानो खचाखच भीड़ बस ओर कुछ नहीं केजरिवाल सरकार ने महिलाओ की टिकट मुफ़्त में कर रखी है अब पुरुष तो बस में दिख ही नहीं रहा, पता नहीं कहाँ गायब हो गया है बेचारा पुरुष हर जगह महिलाये है बस, मुझे महिलाओ से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सरकारी बसों में पुरुषों को कोई स्थान ही न दे, एक तो सफर मुफ़्त ऊपर से सीट की जगह पर लिखा होता है की यह सीट महिलाओ की है लेकिन पुरक्षों की सीट कही भी रिजर्व नहीं होती, अब बेचारा पुरुष करे भी तो क्या करे।

कहाँ जाए जो चल चल कर थक जाता है वो किसी से बोल भी नहीं पाता की आज मैं बहुत थका हुआ हूँ मुझे सीट दे दो, वो बेचारा पुरुष कुछ रुपये बचाने की वजह से हर समय ऑटो में नहीं जाता, गाड़ी नहीं बुक करता भीड़ भाड़ भरी बस में लटकर भी चल देता है उन सरकारी बसों का घंटों तक इंतजार भी कर लेता है की ऑटो के पैसे बच जाएंगे, ज्यादा बस बदल लेगा तो ज्यादा पैसे लग जाएंगे इसलिए सीधे अपने रूट वाली बस का ही इंतजार वो करता है।

लेकिन महिलाये कितनी ही बस बदलकर चली जाती है, महिलाये तो बिना सोचे समझे ऑटो ओर गाड़ी भी कर के चलती है, क्युकी वो अपनी सहूलियत ज्यादा देखी है, उनको रिजर्व सीट तो हर जगह मिल ही जाती है, फिर चाहे उनकी सीट पर कोई बुजुर्ग भी बैठा हो वो उनको उठाकर खुद बैठ जाती इनको इसमे भी कोई शर्म नहीं आती।

क्या इस समय सरकारी बसे मुनाफे में चल रही है? जहां तक हमे लगता है की सरकारी बस घाटे में ही चल रही है क्युकी ज्यादातर संख्या तो महिलाये की होती है बस में जिनका किराया माफ है दिल्ली की सरकार की ओर से, ओर जो व्यक्ति चढ़ते है उनके पास होते है फिर सरकारी बस मुनाफे में कैसे हो पाएगी।

वादा

जो वादा हम साल की शुरुआत में अपने आपसे बहुत सारे वादे करते है, लेकिन जैसे ही कुछ दिन बीत जाते है हमारे वादे जो हमने खुद से किए वो टूटने लग जाते है, आखिर ऐसा क्यू होता है?

यह सब इसलिए होता है की हम अपने वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर पाते, या फिर वो वादे बस इसी तरह के होते है रात गई बात ओर हम वो वादा भी उसी तरह से भूल जाते है।

लेकिन यदि आप चाहते है की जो वादे आपने अपने आपसे किए थे उनको पूरे साल तक निभाया जाए तो उन वादों की लिस्ट बनानी चाहिए।

उस लिस्ट को बनाने के बाद उसे अपने कमरे की दीवार पर लगा देना है ताकि आप हर रोज उन बातों पर हर रोज ध्यान दे सको।

आपको अपनी लिस्ट को हर रोज ट्रैक करना है की आप कुछ छोड़ तो नहीं रहे, ओर आपको कभी स्किप नहीं करना।

बाकी सारे कामों को छोड़कर अपनी लिस्ट के कार्यों को हर रोज जरूर पूरा करना है इससे आपको उन कार्यों की आदत बनने लगती है, ओर हर रोज इस कार्य को एक ही समय पर करना चाहिए अब उस कार्य का निश्चित समय आपको तय कर लेना है, ताकि आप उस कार्य को उसी समय पर करे जैसे की मैं भी अपने लिखने का कार्य एक ही समाए पर करता हूँ, चाहे मेरा मन हो या नहीं लेकिन उस समय मैं अपने लैपटॉप को लेकर बैठ जाता हूँ बिना मन के भी हमे उन कार्यों को करना चाहिए जब तक हमारी रुचि उन कार्यों में नहीं बढ़ जाती।

जैसे ही आपकी आदत उस कार्य के प्रति बन जाएगी आपकी रुचि भी अधिक हो जाएगी ओर फिर आपको उस कार्य को करने में मन लगने लगेगा ओर आप उस कार्य को कभी नहीं छोड़ना चाहेंगे, इसलिए हमे लगातार बने रहने की कोशिश रखनी चाहिए ताकि हम किसी भी दिन उस कार्य को छोड़े नहीं वो जो वादा हमने अपने आपसे किया था साल के पहले दिन उस वादे को साल के आखिरी दिन तक निभाते रहे ओर उसमे प्रगति करे, उस लक्ष्य को पूरा करे व सफलता हासिल करे।