हृदय से प्रशंसा …. सही हो मंशा ।
मस्तिष्क से हस्तक्षेप ….
आवश्यक बुद्धि से देखरेख ।
विवेक से समीक्षा….
ही सच्ची शिक्षा ।
अन्यथा मौन सर्वोत्तम….
मौन समाधान परम।
मस्तिष्क से हस्तक्षेप, आवश्यक बुद्धि से देखरेख,
विवेक से समीक्षा, नजरियों का निर्माण करें संघर्ष।
हृदय की मधुरता से भरी, प्रशंसा की धारा बहाएं,
सही और सुंदर शब्दों में, आपसी बंधुता जगाएं।
मस्तिष्क की तेजस्विता से, हस्तक्षेप करें समस्याओं का समाधान,
बुद्धि की सामर्थ्य से, ज्ञान के सागर में डूबे अभिमान।
विवेक की प्रकाशित दीप्ति से, समीक्षा करें अपने कर्मों को,
सही गलत का विचार करें, सत्य की ओर बढ़ें धृष्टता के धाम को।
हृदय, मस्तिष्क, बुद्धि और विवेक, ये चारों संग चलें,
प्रशंसा, हस्तक्षेप, समीक्षा करें, स्वयं को संयमित बनाएं।
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