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स्वयं को जानेंगे

एक दिन आप स्वयं को जानेंगे –
“One day you will know yourself”
लेकिन कैसे ? इससे पहले तो क्या आप जानना चाहते है स्वयम को?
यह भी एक जिज्ञासा है यदि आपके भीतर स्वयं को जानने की इच्छा है तभी आप अपने गंतव्य तक पहुंच सकते है।
क्या आप जिज्ञासु है स्वयम के प्रति ? स्वयं को जानने के लिए , स्वयम को जानने की इच्छा होना ही जिज्ञासु कहाँ जाता है।

इस पुस्तक के माध्यम से आप स्वयम को पहचान सकते है बहुत सारे सवाल जो मेरे भीतर उठ रहे है क्या को आपके भीतर भी उठ रहे है ? यदि हां तो आप इस पुस्तक के माध्यम से पड़ाव दर पड़ाव अपने लक्ष्य की ओर अगर हो सकते है।
ये पुस्तक आपके और आपके जीवन का दर्पण दिखाने में सहायक होगी,
सफर है स्वयं को पहचाने का , जानने का , समझने का आप स्वयं को जानेंगे

क्या है हमारा मूल स्वरूप इस बात का पता लगाने का है?  कैसे कैसे हम सभी इस जीवन की दूरी को तय कर रहे है इस सफर को पूरा करने की क्या क्या कोशिश कर रहे है इस जीवन को हम किस प्रकार से समझ रहे है,
इस सफर को किस और ले जा रहे है ?
इस जीवन का क्या महत्व है ?
हमारे जीवन में  सभी व्यक्ति समय के अनुसार आते है और जाते है जिसका एक अपना कारण है हर एक व्यक्ति का अपना ही अलग कारण और महत्व होता है, जिसकी वजह से ये सारी घटनाएं होती है।

इस पृथ्वी पर किसी एक व्यक्ति  की महत्वकांशा कैसी है
तो किसी दूसरे व्यक्ति की कैसी सबकी अलग अलग है ओर कुछ की समान हो सकती है
सभी व्यक्ति इच्छाओ को लेकर पैदा हो रहे है और इच्छाओ की पूर्ति करने के लिए ही अपना जीवन व्यतीत करते है सभी व्यक्तियों की महत्वकांशा एक जैसी नही होती
महत्वकांशा– महत्व + आकांशा
हम अपनी इच्छाओं को जितना महत्व देते है यह उतनी ही बढ़ती जाती है

जो कभी पूरी नही होती सिर्फ वहीं इच्छाएं पूरी होती है जिनके साथ आधार मिल जाता है इसके विपरित नहीं इसलिए कुछ ना कुछ इच्छा हमारे साथ जुड़ी ही रहती है जिसका हमे पता भी नही चलता परत दर परत वो इच्छाएं हमसे जुड़ी है जो कभी ना समाप्त होती का एक फेर है हर एक असावधानी पर कुछ और घटना हमारे जीवन के साथ जुड़ जाती है जिनसे हट पाना बहुत मुश्किल सा प्रतीत होता है

हम सभी अलग अलग दिशा में कार्य करने की कोशिश करता है तथा उसी क्षेत्र में ही सफल होना चाहता है तथा इनमें कुछ बहुत सारे कार्यो को एक साथ करना चाहते है और उन सभी कार्यो में सफलता प्राप्त करना चाहते है , परंतु कुछ ही व्यक्ति उनमें से सफल हो पाते है और कुछ अपने जीवन स्तर से ऊपर भी नही उठ पाते

ऐसा क्या कारण है की वो अपने जीवन को एक उन्नत जीवन नही बना पाते ? या बनाना नही चाहते?
कौनसा है हमारे जीवन स्थान का बिंदु ? किस स्थान पर पहुचना है हमे ? कहाँ पहुचना चाहते है हम ? कैसे उस स्थान पर पहुचा जा सकता है ?
लेकिन इन प्रश्नों से पहले तो हमारे मन में शायद कितने ही प्रश्न उठते है हर व्यक्ति जानना चाहता है ऋषि मुनि कितने ही पुरुषों महापुरषो के मन में ऐसे प्रश्न आते रहते है ?
की  कौन हूँ मै ?
मैं इस पृथ्वी पर क्यों आया हूँ ?
कहाँ से आया हूं, कहाँ जाना है ?
अथवा जाउ तो कहाँ जाउ जैसा प्रश्न भी हो सकता है ? आप स्वयं को जानेंगे जब आप स्वयं से इसी तरह के प्रश्न पूछेंगे।

यदि हम नही भी जाना चाहते है तो हम अपनी मंजिल की और अग्रसर होते है। परंतु इन बातो में कुछ अंतर होता है इस जीवन से  हम क्या प्राप्त करना चाहते है ?
क्या कुछ है जो बाकी रह गया है ? जिसको हम पूरा करना चाहते है
किस और जाना चाहते है तथा क्या कारण है और क्यों ?

क्यों आवश्यक है हमे इस जीवन अर्थ को जानना यदि हम अपनी गति में नही चल रहे है तो भी चलना पड़ता ही है परंतु तब हम पृकृति के अनुसार नही चल रहे है इसका मतलब ये है की हमे एक सहयोगी तत्व बनाना है उसके अनुसार चलना है हमे अपनी खोज करनी है हमे हमारा वास्तविक स्वरूप जानना है उसका सही रूप से अवलोकन करना है की हम किस कारण से यहाँ आये है तथा हमारा वास्तिविक स्वरूप क्या है।

ये शरीर , बुद्धि और मन और मन के भीतर के विचार किस प्रकार के है
हमे इनको जानना है,
ये शरीर क्या चाहता है? इस शरीर की इच्छा और अनिच्छा क्यों और कैसे उतपन्न हो रही है?
क्या इच्छा है और ये इच्छाएं किस प्रकार से कार्य करती है?
हमारे शरीर के अंग हमारी किस प्रकार से सहायता करते है?
ये शरीर हमे किस स्तिथि की और अग्रसर कर रहा है? हमारा जीवन किस और जा रहा है ? ये सफर लंबा है इस जीवन की यात्रा हमे किस और लिए जा रही है ? हमारा अस्तित्व क्या है ? क्या है हमारा मूल स्वरूप हम सभी यह जानना चाहते है

इस जीवन की यात्रा को कैसे सुखद जीवन बना सकते है? हमने यह सफर कहाँ से शुरू किया और ये सफर हमे कहाँ ले जा रहा है, क्या इस यात्रा का कोई अंतिम चरण है या ये यात्रा इसी प्रकार से चलती जा रही है ? कहते है हमे 84 लाख योनियों से होकर गुजरना पड़ता है यह हमारी इस जीवन यात्रा का सच है लेकिन क्यों हमे इन 84 लाख योनियो से गुजरना पड़ता है क्या कारण है?
यदि हमे ना जाना हो तो?

क्या कोई जबरदस्ती है की यही सफर तय करना पड़ेगा और कोई रास्ता नही है क्या ?
जो इतनी लंबी यात्रा है, इस जीवन की असल में ये लंबी नही बल्कि छोटी है, उन सभी के लिए जिनकी इच्छओं की पूर्ति नही हो रही क्योंकि वो जीवन मरण के चक्र को छोड़ना ही नही चाहते उनकी छोटी इच्छाएं इस प्रकार से चिपकी हुई है मानो वो कभी छोड़ना ही नही चाहते है।

यह भी पढे: स्वयं को नहीं रोकना, स्वयं से मुलाकात, स्वयं को समय दे, स्वयं की झोपड़ी,

Judge Karna

kya kisi ko judge karna sahi hai ? aap apni rai jaruri btana, lekin meri rai mei kisi ko judge karna thik nahi hai or kisi ka kisi ke saath comparison karna bhi uchit nahi hai …..

kyuki jab aap bahar kisi dusre vyakti ke bheetar sahi ya galat dekhne lag jaate ho to aap swayam ka core bhul jaate ho , aapko fer khud ka nahi maalum padta , bas aap duniay ke acche or bure mein ulajh mein jaate ho yahi baat comparison ki drishti hai jab kaun behtar hai kaun nahi, isliye in vivado ke chakkar mein fanse ho to fir aap kaise kisi ko apna dost bna paoge.

Kuch log aapko bahut baariki se dekhte hai ki aap koi galti kare or wo us galti par aapka mazak bnaye ya fir aapke jitne bhi negative point hai un par dusre logo se aapke baare mein baate kare , ye insaani fitrat hai……

Hame unh logo se dur rehna chahiye jo aapke saath kaarno se judte hai, in logo ka koi matlab hota hai aapke saath judne ka or inki hamesha koshish yahi rehti hai ki apna matlab poora kar ye log aapko chhod dete hai isliye is tarah ke logo se bache , saavdhan rahe

Aapko unki galtiyo ko bas najarandaaz karna hai , khamiya nahi dhundhni , bas wo kya aapko sikhaa raha hai , unki kaunsi baate hai jo aap apne jivan mein utaar sakte hai …. aapko sirf unhi baato par gaur karna hai.

Jivan ki jyadatar pareshaniya tabhi hoti hai jab ham khud se jyada dusro ke baare mein sochte hai , isliye khud par vichar jyada kare or dusro par kam.

क्या करता हूँ मैं

क्या करता हूँ मैं दिन भर ? वैसे तो मैं कुछ नहीं बस अगर सच बताऊ तो सिर्फ लिखने की कोशिश करता हूँ, ओर जो मन में आता है वही अब लिखता हूँ, चाहे मैंने कितना ही सोच रखा हो दिमाग में लेकिन वो एक दम शब्दों को पन्नों पर नहीं उतार पाता है।

इसलिए घंटों बैठ जाता हूँ खुद के साथ अकेले में ताकि मैं कुछ कुछ लिखू जो विचार आ रहे है उन शब्दों में उतार सकु, बस यही एक वो जरिया है , जिसकी वजह से मुझे बहुत शांति मिलती है , लगता है भीतर बहुत कुछ भरा हुआ जिसे बाहर निकाल देना है।

इसलिए मैं अपने लैपटॉप के सामने बैठ जाता हूँ ओर गूगल कीप जिसमे मैं लिखता हूँ, उसको खोल लेता हूँ, जैसे ही कोई विचार मेरे मन में आता है मैं उसे लिख लेता हूँ, यही मैं पहले भी करता था, तब मैं अपनी छोटी सी नोटबुक ओर पेन लेकर बैठ जाता था।

किस तरह से मैं लिखता था उस समय: अपने मस्तिष्क के विचारों पर गौर किया करता था की मेरे दिमाग में चल क्या रहा है? मैं सोच क्या रहा हूँ? असल मैं नहीं, मेरा दिमाग सोचा करता था बस उस दिमाग को मैं देखता था।

मैं आपको बताता हूँ, वो शुरुआत कैसे हुई जब मुझे घंटों बैठना पड़ता था, सिर्फ एक विचार के लिए , सिर्फ कुछ शब्दों के लिए की मैं लिख पाउ उन विचारों को पन्नों पर उतार मैं सकु बस इसलिए तब भी घंटों कॉफी होम में बैठता था। क्युकी एक एक विचार बहुत देर में आता था।

वो विचार जो ब्रह्मांड से आते थे , जो मुझे प्रकृति से जोड़ते थे , एक संबंध स्थापित करते थे , उन शब्दों को मैं सुनता ओर लिखता था , मुझे कुछ नहीं पता बस मैं लिख लेता था, जैसे मैं सवाल पूछ रहा हूँ ओर मेरे जवाब मुझे मिल जाते थे , कुछ बस सवाल ही बनकर भी रह जाते थे की इनका जवाब कुछ समय बाद मिलेगा अभी नहीं।

मैं हर रोज शिवाजी स्टेडियम के पास कॉफी होम है उधर जाता था, जिससे की आराम से बैठकर लिख सकु जो नया विचार आए उसको पकड़ सकु , उस समय मैं अपनी पुस्तक “कौन हूँ मैं” की शुरुआत पर था बस मन में यही विचार था ओर इसी किताब के इर्द गिर्द सभी प्रश्न ओर उत्तर बन रहे थे।

क्या करता हूँ मैं यह बात मैंने आपको बताई अब आप मुझे बताए की आप क्या करते है।

चिंतन मनन

क्या विचार एक विद्युत है? चिंतन, मनन, और विचार में आपको क्या फर्क नजर आता है?
विचार विद्युत नहीं बल्कि विद्युत से भी कई गुना अधिक है,इन विचारों को समझना आसान नहीं है , यह विचार इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में चर विचर कर रहे है , विचार इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड का जोड़ है, जिसकी वजह से ही यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड जुड़ा हुआ है यह विचार काही से भी अलग नहीं है

जिस प्रकार से श्री मद भागवत गीता में लिखा हुआ है शब्द आकाश के विकार है। यदि आप विचारों को समझेंगे तो सम्पूर्ण चराचर जगत में विचार ही विचार है जिसकी वजह से हमारे इस ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है, यह कभी ना रुकने वाली वाली प्रक्रिया है।

अब बात करते है मनन , चिंतन, ओर विचार की यह एक ही प्रक्रिया से जुड़े हुए तीन आकार में बदलाव है इसके विपरीत कुछ नहीं यदि आपके भीतर कोई विचार प्रकट होता है तो आपका उस पर अपनी क्रिया ओर प्रतिक्रिया रूप देते है जो मनन वाली श्रेणी में रखते है इसके बाद इन विचारों के समूह पर शांत चित से चिंतन करते है वही आपका चिंतन है।

चिंतन, मनन और विचार तीनों ही मानसिक क्रियाएँ हैं जो हमारे मन और बुद्धि की गतिविधियों को व्यक्त करती हैं। हालांकि, इन तीनों में थोड़ा अंतर होता है।

चिंतन एक ऐसी मानसिक क्रिया है जो हमारे मन में उत्पन्न होने वाले विचारों को ध्यान से सोचने का काम करती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें अपने विचारों के बारे में सोचने की समझ देती है और हमें अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में सोचने की अनुमति देती है। चिंतन हमें अपनी विचारों के बारे में गहनता से सोचने की अनुमति देता है ताकि हम अपनी जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को बेहतर बनाने के लिए उन्हें समझ सकें।

मनन एक ऐसी क्रिया है जो हमें अपने विचारों को विस्तार से विचार करने की अनुमति देती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम अपने मन की समस्याओं को हल करने के लिए उनसे निपटने की अनुमति देते हैं। मनन हमें अपने विचारों के पीछे छिपी हुई भावनाओं और दृष्टियों को समझने की अनुमति देता है ताकि हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उचित कदम उठा सकें।

विचार एक ऐसी मानसिक क्रिया है जो हमारे मन में उत्पन्न होने वाले विभिन्न विचारों को व्यक्त करने की अनुमति देती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम अपने मन में उत्पन्न होने वाले विभिन्न विचारों को संगठित करने का काम करते हैं और उन्हें व्यक्त करने के लिए उचित शब्दों का चयन करते हैं। विचार हमें अपने अंतर्मन के भावनाओं और विचारों को समझने की अनुमति देता है और हमें विभिन्न मुद्दों और समस्याओं के समाधान के लिए उचित विचारों का चयन करने में मदद करता है।

इस प्रकार, चिंतन, मनन और विचार तीनों ही मानसिक क्रियाएं हैं जो हमारे मन और बुद्धि की गतिविधियों को व्यक्त करती हैं, लेकिन इनमें थोड़ा अंतर होता है। चिंतन हमें अपने विचारों के बारे में सोचने की समझ देता है, मनन हमें अपने विचारों को विस्तार से विचार करने की अनुमति देता है और विचार हमें अपने विभिन्न विचारों को व्यक्त करने की समझ देता है।

जानने की शुरुआत

जानने की शुरुआत कहाँ से हुई यह सवाल जीवन में एक बार तो सबके मन में उठता ही है, की मैं कौन हूँ ? और इस जीवन का क्या अर्थ है? फिर चाहे वो इन प्रश्नों पर गौर करे या नहीं बहुत सारे सवालों की भांति इन सवालों को छोड़ देता है ओर जीवन की व्यस्तता में खुद को खो देता है।

लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ यह वो प्रश्न था जिस पर मैं अटक गया मैं इस प्रश्न से हटने को तैयार नहीं था, इस प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा था उससे पहले मैं आपको बताता हूँ यह प्रश्न मेरे मन में कब ओर कैसे आया? स्वयं को जानने की शुरुआत होती है।

कौन हूँ मैं यह प्रश्न कब ओर कैसे उठा मेरे मन में

मेरी उम्र 13 साल थी जब मैं कक्षा 8 के फाइनल पेपर देकर रिजल्ट का इंतजार कर रहा था, हम एक सयुक्त परिवार में रहते थे अभी सब अलग अलग रहते है जैसे जैसे परिवार बड़े होते गए जगह छोटी पड़ती गई ओर हम इधर उधर बस गए, तो उस दिन घर पर सभी लोग नहीं थे क्युकी बड़े बड़े भाई माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए निकले थे शाम को उसी शाम अचानक मेरी दादी जी की तबीयत खराब हो गई ओर तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी, घर वालों को लगा की अब इनका अंतिम समय आ गया है तो अब गीता का पाठ कर लेना चाहिए ताकि अच्छे शब्द कानों में जाए।

तो मैं श्रीमद भागवत गीता अपने कमरे से ले आया ओर मैंने पढ़ना शुरू कर दिया कुछ देर पढ़ने के उपरांत ही दादी जी का देहांत हो गया।

सुबह होते ही उन्हे किरयाकर्म के लिए यमुना घाट ले जय गया जैसे जैसे यह सभी किरयाए चालू हुई मेरे मन में प्रश्न उठने शुरू हो गए की मैं भी एक दिन मरूँगा , मुझे भी इसी तरह से जाना होगा ? जब शरीर अग्नि में दाह हो रहा था तब सिर्फ वह शरीर राख का ढेर हो रहा था तभी मेरे मन से विचार उत्पन्न हुआ यह मिट्टी का शरीर एक दिन यू ही राख ढेर बन जाएगा फिर इस जीवन का क्या फायदा जब यह तन यू ही राख में मिल जाएगा। उस समय प्रश्न यह नहीं उठा की मैं कौन हूँ लेकिन वो शुरुआत हुई जब पूरा शरीर राख ही होना है तो इस शरीर का होना ही क्यू है? इसका क्या करू मैं?

मुझे घर आने के बाद बहुत अजीब से ख्याल आने लगे ओर मेरी तबीयत ठीक न थी मुझे यह सोच घबराहट होने लागि बस उलटी हो रही हो बार ऐसे जी कर रहा था तब मेरी ममी ने मुझे मामी जी के साथ उनके घर भेज दिया था की मैं 2-4 दिन वही रह आऊ बस फिर मैं 2-3 दिन वापस आया घर तब तक सब ठीक लग रहा दुबारा उस समय तो विचार शांत हुए लेकिन मेरे मन में प्रश्न उठने लगे कुछ समय बाद फिर

यह भी पढे: खुद से करे सवाल, स्वयं का अध्ययन, स्वयं का आकलन, स्वयं को जानेंगे,

स्वयं को जाने

स्वयं को जाने की कौन हूँ मैं यह एक प्रश्न ही बना हुआ है, लेकिन यह प्रश्न भी तभी तक है जब तक आपके मन में इस प्रश्न का उत्तर जानने की इच्छा नहीं है, नहीं तो यह प्रश्न फिर प्रश्न नहीं रहता उत्तरों की भरमार होती आपके पास, इसलिए अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आज से ही अपने भीतर की यात्रा को शुरू करे ओर जानिए की आप कौन है? आपका इस जीवन को पाने का क्या उद्देश्य है।

यदि कोई ओर व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर देगा तो उसका उत्तर शायद आपके लिए सही न हो क्युकी हम सभी की यात्रा का अर्थ अलग है।

जिन महापुरुषों ने इस प्रश्न का उत्तर जानने की इच्छा की उन्होंने जान लिया ओर जो लोग संसार के दवंध में फंसे वो फिर फंसे ही रहे इससे बाहर वो नहीं आ सके, इस प्रश्न का उत्तर हमारी दृढ़ इच्छा पर ही निर्भर करता है इसलिए दृढ़ निश्चय कर, दृढ़ संकल्प करो ओर भीतर की यात्रा शुरू करो तभी हमे सफलता मिलेगी।

स्वयं को जाने

आपके भीतर अनंत जिज्ञासा होने पर ही इस सवाल का जवाब मिल सकता है, यदि आपके मन भीतर इस प्रकार के प्रश्न उठते है तो आप स्वयं को एक जिज्ञासु के रूप में देख सकते है, परंतु इस प्रकार के प्रश्न उठे ओर आपने शांत कर दिए तो फिर आप जिज्ञासु कहाँ बस फिर तो आप किसी चीज को देखकर पढ़कर ही यह सवाल कर रहे है।

यदि आपके भीतर वास्तव में ऐसे प्रश्न उठते तो आप उन सवालों का उत्तर जानने के ईछुक हो ओर आप अपने आसपास के लोगों से , मित्रों व अन्य चीजों का सहारा लेते हो इन प्रश्नों का हल खोजने के लिए फिर आपको काही दूर नहीं जाना होता बस स्वयं में गोते लगाने होते है।

इस प्रश्न का उत्तर आपको 9 मिनट में भी मिल सकता है, ओर 9 जन्मों में भी न मिले ऐसा भी हो सकता है आप कितने जिज्ञासु है स्वयं की खोज के लिए यह इसी बात पर निर्भर करता है, फिर भी मैं आपको 4 ऐसी बाते बताता हूँ, जिसका सहारा लेकर आप स्वयं की खोज को शुरू कर सकते है।

1- ध्यान करना अत्यंत आवश्यक है।

2- अपने विचारों को देखना।

3- वर्तमान काल में ही जीवन को जीने की कोशिश करना।

4- स्वयं के साथ जिओ

कौन हो तुम ?

यु ही रूठ भी जाते हो ,
यु ही मान भी जाते हो
ना जाने कौन हो तुम मेरे ?

फिर भी साथ हमेशा तुम ही निभाते हो ,
मेरी आँखों में देखो जरा हर पल
तुम ही नजर आते हो
भाग जाता हूं सबकुछ छोड़कर

लेकिन मेरे जिंदगी के हर विचार तुम आकार में तुम खड़े हो जाते हो ,
क्रोध भी लाता हूं, अहंकार भी लाता हूं
लेकिन प्रेम इतना गहरा है कि पिघल जाता हूं
समस्त विचारो में संसार नहीं दिखता

क्योंकि तुम्हारी छवि के साथ ही ठहर मैं जाता हूं
ना जाने कौन हो तुम?
जिसके बिना रह नहीं पाता हूं
बस मौन मैं हो जाता हूं ,
खुद को समझने और समझाने की चेष्ठा मैं करता हूं

लेकिन तुम विचार बन मेरे मस्तिष्क में बैठ जाते हो
क्यों ? अपनी ही सोच में मुझे डूबा कर बार बार चले क्यों चले जाते हो ?
रूठे हुए दीखते हो तुम मुझसे लेकिन सबसे ज्यादा प्यार भी मुझे करते नजर आते हो
यह कौनसा है सम्बन्ध जो तुम मुझसे निभाते हो ?

सोच को बदलो

“सोच को बदलो जिंदगी जीने का नजरिया बदल जाए”
क्या सोच है आपकी और वो सोच किस प्रकार से बढ़ती ही जा रही है क्या उस सोच को बदलने की आवश्यकता है ?

एक बात तो यह भी है की खुद को बदलना जरूरी है ? नही बदलते जी हम तो ऐसे ही रहेंगे करलो जी जो करना है हो जाने दो जो होना हमे कोई फर्क नही पड़ता किसी भी बात से जो हो रहा है होने , छोड़ो इन बातो मत सुनाओ ये बदलने वगैरह की बाते हमे नही पसंद है यह सब
हमारे जीवन में बहुत ही पुरानी पुरानी सोच दबी हुई है।

जिन्हें हमे रूढ़िवादी विचार भी कह सकते है जिन्हें बाहर कर खत्म कर देना चाहिए क्योंकि पुराणों विचारों को छोड़कर आगे बढ़ना ही जीवन है नए नए विचारों को अपने जीवन में स्थान देना
अब यहाँ एक प्रश्न बनता की है की अगर आपकी सोच दबी है तो क्या फर्क पड़ता  है दबी रहने दो उनसे हमे क्या करना ?

जिसके कारण हमारा जीवन अस्त व्यस्त सा हो रहा है  और हम उस सोच को अब तक पकड़े हुए है और छोड़ ही नही पा रहे है क्या ये सोच आसानी से छूट सकती है या ये सोच ही हमारी आदत बन चुकी है पुराने विचारो को छोड़ दो इन पुरानी रूढ़ीवादी सोच को छोड़ दो।

पुरानी सोच से पीछे हट जाओ , दुसरो के विचारो में अपना जीवन व्यर्थ ना करे किसी के द्वारा गए तर्कों के ऊपर ही अपना जीवन स्थापित ना करो नए विचारो को स्थान दो जन्म दो और उन्हें ही जीवन के लिए आगे बढ़ाओ उपयोग में लाओ।

आपकी सोच आपके विचार भिन्न है अपने जीवन को खुद ही समझो जानो , खोजो, अपने अनुभव में लाओ दूसरे के अनुभव आपकी यात्रा में सहायक हो सकते है परंतु अंतिम छोर नही अपने शब्दो का अर्थ एहसास तो आप स्वयम ही पाओगे और जान जाओगे किसी और का एहसास आपका एहसास कैसे हो सकता है ??

आपको आपके अनुभव में लाना होगा हम बहुत जल्दी भावुक हो जाते है , क्रोधित हो जाते है
शब्दो को जोड़ना-तोड़ना मरोड़ना और उनको समझना होगा उन शब्दों को हमे जानना होगा हमारे शब्द का क्या अर्थ है?  इस जीवन का अर्थ हमे यदि जानना है तो पहले स्वयम को जानना होगा , और स्वयम को जानने का मतलब हम सभी मानवीय किर्यायों को जानना चाह रहे है क्योंकि मैं “मैं” नही हूं मुझमे मैं का अर्थ जो सबसे है सिर्फ मैं से नही हम किसी ना किसी रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए है हमारे शब्द हमारी सोच , विचार हमारे एहसास हमारी भावनाएं एक दूसरे से किसी ना किसी प्रकार से जुड़ी हुई है इसलिए स्वयम को मैं नही मानो “हम समझो” पूरी पृकृति की रचना संरचना पालन,पोषण, अंत सभी चीज़े एक साथ एक दूसरे से जुड़ी हुई है।

कौन हूँ मैं?

“निकला हूँ उस ठिकाने को ढूंढने जिसका पता भी ना मालुम मुझे”
मैं निकल चला हूँ उस राह पर जिसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता, ना उस मंजिल की खबर है न रास्ते  का पता बस निकल चला हूँ मैं, कौन हूँ मैं? प्रश्न यही मेरे मन मस्तिष्क में घूम रहा है,
अब लौटना संभव नहीं है और अब मै वापस लौटना भी नहीं चाहता क्युकी मै स्वयं को जानना चाहता हूं कौन हूं मैं ? यह प्रश्न मेरे मन को कचोट डालता है,

तलाश पूरी मेरी होगी
या अधूरी रह जायेगी?
ये भी नहीं पता मुझे
लेकिन
मैं निकल पड़ा हूँ,

अब लौट कर वापस नहीं आना है
मुझे बस मंजिल को पाकर ही रहना है
सफ़र में आयेे कितनी भी रुकावट
मैं रुकुंगा नहीं, थकूँगा नहीं
बस चलते ही रहना है मुझे
अपनी मंजिल को हासिल ही करना है मुझे

सवाल है कुछ इस तरह
जिनके जवाब मै खोज रहा हूं
ना जाने किस किस तरह

कौन हूँ मैं ?
किसलिए मैं आया हूँ यहाँ?
यहां मेरे आने का क्या कारण है ?
 

कौनसा ऐसा कार्य है जिसको पूर्ण करना है ?
यह मुझे न खबर ना ही पता है मुझे बस मंजिल की तलाश है, मैं भटक रहा हूँ इधर उधर अपनी मंजिल मैं 

मैं खोजता रहा बस अपनी मंजिल और अपना सफ़र मैं
ना मुझे नाम पता है,
ना निशान पता है
कौनसी छाप छोड़ी  थी,
ना ही मुझे उसका निशान पता है,
बस ढूंढ रहा हूँ अपने आपको
ढूंढता हूं मैं अपने आपको
ढूंढता हूँ हर जगह हल पल,
मैं भटकता फिर रहा हूं ना जाने

कभी मैं  सवयम को किसी वस्तु मे ढूंढता हुूं
तो कभी किसी वस्तु से अलग होकर मै देखता हूं
मुझे नहीं पता
की मैं अपने आपको कहा ढूंढ पाउँगा या फिर मै स्वयं को ढूंढ पाऊंगा भी या नहीं लेकिन चलना खोजना मेरा  काम है यही मेरा नियत कर्म है जिसे मुझे पूरा करना है।
मुझे ना रास्ता पता है
ना किसी दिशा का ज्ञान है
बस एक कोशिश है, अपने आपको जानने की मैं निकल चला हूँ उस रास्ते पर जहा मैं अपने आपको जान सकु ये मेरे पहला पड़ाव है जिंदगी में अपने आपको खोजने के लिए मैं आतुर हूँ मुझे कुछ पाना नहीं है बस जानना है, स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है कैसे ? बस यही समझ जाना है मुझे
नहीं पता क्यों ?  मुझे मेरे अंदर हजारो लाखो विचार उमड़ रहे है ? जो सिर्फ सवाल है जिनके जवाब नहीं है मेरे पास………..

वो क्यों इतने सारे विचार एकत्रित हो रहे है इनका जवाब कहां खोज पाऊंगा मै ?
कहां मिलेंगे मुझे उन सवालों के जवाब ?

मेरे मैं और मस्तिस्क में जिनके बारे में मैं भी नहीं जानता मैं क्यों इतने विचारो से मैं भरा जा रहा हूँ,कहा से आ रहे है? क्या कारण है इन्ह विचारो के आने का? क्यों मुझे ये विचार कही ले जाना चाहते है ?मैं जाना तो कही और चाहता हूँ ये विचार मुझे कही और खीच रहे है जैसे मैं विवश हूँ इन्ह विचारो के साथ लेकिन मुझे अपनी मंजिल हासिल करनी है मैं निकल हूँ सिर्फ अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए तलाश भी उसी की बस कुछ और नहीं चाहिए मुझे चाहे मेरे विचार मुझे कितना ही भटक रहे हो कितना भी डरा रहे हो कभी भी ले जाने की कोशिश करे लेकिन मैं वापस ना जाऊंगा मैं अपनी मंजिल को पाकर ही रहूँगा ये मेरा विशवास स्वयं में जिसे मैं पूरा करके ही रहूँगा

कौन हूँ मैं?
कौन हूँ मैं?


कौन हूँ मैं?
किसमे हूँ मैं?
मेरे यहां होने का कारण क्या है ?
क्यों मेरा जन्म हुआ है?
ऐसा कोनसा कार्य है जिसे मैं करने यहाँ आया हूँ ?
कभी लगता है की मुर्गे की बांग में हूँ
तो कभी सूरज की रोशनी में हूँ
मैं हूँ कहाँ ? कौन हूँ मैं?
यह एक प्रश्न जो मेरे मस्तिस्क को झुझला देता है,
की क्यों नहीं जान पा रहा हूँ अपने आपको, मैं तो एक शरीर हूँ या मन , लेकिन फिर वो भी नहीं हूँ,
तब कौन, कौन हूँ मैं ? आवाज़, सुर, ध्वनि किसमे हूँ में ?
कौन हूँ मैं?

किर्या में हूँ
या
कार्य में हूँ ?
विचार,
सोच,
हाव-भाव,
शब्द,
किर्या,
प्रतिकिर्या बस सवाल यही की कौन हूँ मैं?

मैं मुर्गे की कुकड़ू कु में हूँ, या
चिड़िया की ची ची में हूं मै,
सूरज की रोशनी में मैं हूँ ?
मैं प्रकाश हूँ या अँधेरा हूँ मैं?
कौनसी दिशा में हूँ या दिशाहीन भटकाव हूँ मैं
क्या दसो दिशाओ में मैं हूँ?
समय की तरह बीतता हुआ हूँ मैं
या समय हूँ मैं ?
बचपन,जवानी या बुढ़ापा हूँ मैं?
या इनके पड़ाव में हूँ मैं ?
टूटता हुआ हूँ मैं ?
या जुड़ा हुआ हूँ मैं ?
लड़खड़ाता हुआ हूँ मैं या
संभालता हुआ इंसान हूँ ?
पूर्ण हु मैं या
अपूर्ण हु मैं ?
शांति हूँ मैं या
शोर हूँ मैं ?
खेलता हुआ बचपन हूँ या
शांति का अनुभव हूँ मैं ?
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ ?
राह पर चलता हुआ इंसान हूं या
भटक गया हूं राह से कही ? 
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ इंसान हूं ?

प्रश्नों की झड़ी लगी हुई है मेरे मन मस्तिष्क में लेकिन जवाब कुछ नहीं आ रहा है, बस चल रहा हूँ मैं उस रहा पर जिसके लिए मैं निकला था।

मैं किस तरह से कर रहा हूं?
खुद की तलाश ये भी नही पता मुझको 

लेकिन तलाश कर रहा हूं
वो कौनसा रास्ता है?
जिससे मैं अपने आपको जान सकता हूं ? 
मैं अपने विचारों को देख रहा हूं , समझ रहा हूं जानने की कोशिश कर रहा हूं ,
किस ओर से ये विचार मेरे मन मस्तिष्क में आ रहे है इनका उद्गम स्थान कौनसा है और क्यों इतने विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहे है ?

इन विचारो के कारण और परिणाम क्या है ?
शायद यह विचार ही है जो मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पहुंचा सकते है
मुझे यही जानना है इन्हीं विचारों पर मुझे बल देना है,
इन्ही विचारो को सही ढंग से समझना है क्योंकि इन्ही विचारो के कारण मेरा जीवन कदम कदम पर बदल रहा है इसलिए मुझे इन्ह विचारो को ध्यांपूर्वक देखना है  ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो में बदल जाते है और विचारो इकठ्ठा कर लेते है मुझे ये जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में उन्में मिल जाता हूं क्यों मिल जाता हूं ये भी मुझे समझना है।ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो मैं बदल जाते है और विचारों का समूह रूप बना लेते है मुझे यह जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में मै उस किर्या मैं मिल जाता हूं लेकिन क्यों मिल जाता हूं यह भी मुझे समझना है।

हमको कुछ खबर नही इसका ना पता मालुम मुझे ना ही मंजिल की खबर फिर भी मैं चलता ही जा रहा हूं किश और मैं निकल चला ?किश सफर किस मंजिल की तलाश में मैं भटक इधर उधर हूं रहा बस अब मुझे बढ़ना है और आगे लेकिन कैसे मेरे ही विचार मुझे दबा रहे मेरे ही विचार मेरे रास्ते की रुकावट है मेरे विचार आगे नहीं बढ़ने देते है और रोक लेते है बार बार सारे विचार मेरे एक विचार को दबा रहे मुझमे डर पैदा पैदा कर रहे है उस डर से आगे निकलू कैसे बस वही सोचता हूं रुकावट से भर जाता जाता ह् मंजिल की औए आगे बढ़ नहीं पाता बार बार फिर वापस पीछे आ जाता हूं.

मुझे खुद की तलाश है में बेखबर हूं अपने ही लिए ना मुझे पता अपने ही होने का ना ही रकस्त कुछ मिल रहा बस युही में चलता जा रहा हूं जिसका न होश है मुझे ना खबर है रहो की भी बड़ी अजीब सी मिल रही है रहे भी मुझे लोग मिल रहे है करवा यू बढ़ रहा सफर में क्या होना था और हो क्या रहा है इसका भी होश नही है मुझको बस में आगे बढ़ युही चल रहा हूं मंजिल मील या ना मिले लेकिन मैं आगे बढ़ रहा हूं।

इसमे बताया जा रहा है हम अपनी मंजिल को भूलकर अलग अलग राहो पर निकल पड़ते है जिसका कोई मेल नही है मिलान नही है हमारी मंजिल जिसका दूर दूर तक कोई नाता नही है बस चलते रहते है हैम ओर फेर भटकाव जिंदगी का पेड़ होता ही जाता है पता भी होता है कुछ फिर भी कुछ न कुछ भूल कर ही देते है हम मनीला को पाने के लिए जैसे मम्मी मार्किट सामान लेने के लिए भेजती है तो हम किसी से बात करते हुए रुक जाते है और भूल जाते है कि किस लिए आया या फिर कौनसा समान लेने के लिए आया था।

लोग अब मिलते जा रहे है मुझे मेरी इन्ह राहो मैं मुझे कारवा भी यू जुड़ता ही जा रहा रहा है बस में सफर के साथ चलता ही जा रहा हूं मंजिल की तलाश में , मैं ना जाने कहा कहा मैं भटकता जा रहा हूं बार बार मेरे मन में आ रहा यही सवाल की कौन हूँ, मैं किधर जा रहा हूँ, स्वयं की तलाश में बस मैं चला जा रहा हूँ।

क्या शब्दों का संचार हूं मैं या आसमान से विस्तार हूं मैं क्रोध हूं मैं या प्रेम हूं मैं 
क्यों विचार टूटे टूटे से लगते है क्या, उसमे हूं मैं क्या इंसान ना समझ है , या आज का इंसान सब कुछ समझता है हम सभी बुद्धिमान समझते है।


कौन है इंसान?  लक्ष्य क्या है ?
फिर ना जाने क्यों चल रहा है ये इंसान 
क्या इस इंसान को पता है वो क्या चाहता है ?


टूटता हूं मैं या जुड़ता हुआ मैं , समय के साथ साथ बैतब हूआ बिता हूं पल में या समय के आने बाप काल या पल में हूं मैं ? लेकिन कौन हूं मैं परिस्तिथयो से भाग रहा इंसान हूं मैं या जूझ रहा परिष्तिथियो में ठहरा हुआ रुक हुआ देखता हुआ एहसास  हूं मैं या कल या देखती हुई आंख महसूस कर रहा है शरीर हूं मैं या मूर्च्छा में पड़ा हूआ शरीर 

बहता हुआ प्रेम हूं मैं या
इंसान का क्रोध ?
विपरित दिशा में मुड रहा इंसान हूं मैं
या ब्रह्मांड का विस्तार हूं मैं ? 
अनुकूल परिस्तिथयो में बह रहा इंसान हूं विप्रिप जाने की कोसिह हूं मैं ? 
लड़ता हुआ इंसान हूं मै या चुप रहता हूं मै?
हर पल हर समय में बढ़ाने वाली परिस्थितियों
से भरा हुआ इंसान हूं मैं ?
उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं
या सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?

उधेड़ बन में जा रहा इंसान हूं मैं ?
या
सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?
घबराहट हूं मैं या साहस हूं मैं ?
हाथी की गर्जना हूं ? हिम्मत हूं मैं ? 

इंसान की पूर्णता हूं मैं या
उसकी अपूर्णता हूं मैं ?

रिक्त स्थान हूं या
भर हुआ आसमान ?
सवाल हूं मैं या जवाब हूं मैं
समस्या हूं या समाधान  हूं मैं ?
जानने की इच्छा या
पहचानने की समझ हूं मैं ?
चलता हुआ मुसाफिर हूं मै? या
रुका हुआ इंसान हूं मै?
परिसिथतियों के साथ बह रहा हु मै
परिष्तिथियो से लड़ता हुआ इंसान ? 

खुशी हूं मैं या दुख हूं मैं ?
अंधेरा हूं मैं या प्रकाश हूं?
हर जगह ढूंढ रहा इंसान हूं मैं
कौन सा उद्गम स्थान हूं मैं ?

इस स्तिथि में हु मैं ?
कोनसी सी परिस्तिथत में हूं
चांद की शीतलता हूं या
सूरज की ज्वलनशीलता हु मैं ? 

बिंदु सा आकर हूं मैं या
ब्रह्मांड जैसा निराकार हूं ? 
शब्द सा मीठा हूं या
नीम से कड़वा हूं मैं

कौन हूं मैं ? 

इस जगह खड़ा इंसान हु मैं ?
हर वक़्त , हर पल घटना में मैं
अपने आपको खोजता इंसान हु मैं ?
चट्टान की तरह कठोर हूं मै ? या
माँ की तरह नरम हु मैं
ये मुझे ना पता चल पा रहा है
कि कौन हूं मैं?
हर पल हर जगह खोजता चल रहा मैं
इस सवाल  का जवाब नही मिल रहा है
हर एक वस्तु हर एक घटना में होने की कोशिश है
और
हर घटना को जानने और समझने की
कोशिश में लगा हुआ मैं

किस ओर निकल चला किस मंजिल को पाने को हूं मै ?
निकल चला बस गतिमान हु मैं
अब रुकना मेरा काम नहीं
मुझे मिले मेरी पहचान वहीं है सही
कही ढूंढता स्वयम को चला
पूछता अपने आपको रहा
बतादो मुझे कौन हूं मैं
जानते है लोग मुझे मेरे नाम से
मेरे काम से लेकिन मेरा अस्तित्व है क्या ?
इस वजह मै यहां वहां बस भटकता ही रहा
ना मंजिल न सफर का मुझे पता चला
बस रहा ढूंढ मै स्वयम को हर पल रहा
कौन हूं मैं?
ये प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा 
“निकला हूँ उस ठिकाने को ढूंढने जिसका पता भी ना मालुम मुझे”
मैं निकल चला हूँ उस राह पर जिसके बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता, ना उस मंजिल की खबर है न रास्ते  का पता बस निकल चला हूँ मैं
अब लौटना संभव नहीं है और अब मै वापस लौटना भी नहीं चाहता क्युकी मै स्वयं को जानना चाहता हूं कौन हूं में ? यह प्रश्न मेरे मन को कचोट डालता है
तलाश पूरी मेरी होगी
या
अधूरी रह जायेगी?
ये भी नहीं पता मुझे
लेकिन
मैं निकल पड़ा हूँ
अब लौट कर वापस नहीं आना है
मुझे बस मंजिल को पाकर ही रहना है
सफ़र में आयेे कितनी भी रुकावट
मैं रुकुंगा नहीं, थकूँगा नहीं
बस चलते ही रहना है मुझे
अपनी मंजिल को हासिल ही करना है मुझे
सवाल है कुछ इस तरह
जिनके जवाब मै खोज रहा हूं
ना जाने किस किस तरह
कौन हूँ मैं ?
किसलिए मैं आया हूँ यहाँ?
यहां मेरे आने का क्या कारण है ? कौनसा ऐसा कार्य है जिसको पूर्ण करना है ?
यह मुझे न खबर ना ही पता है मुझे बस मंजिल की तलाश है, मैं भटक रहा हूँ इधर उधर अपनी मंजिल मैं 

मैं खोजता रहा बस अपनी मंजिल और अपना सफ़र मैं
ना मुझे नाम पता है,
ना निशान पता है
कौनसी छाप छोड़ी  थी
ना ही मुझे उसका निशान पता है
बस ढूंढ रहा हूँ अपने आपको
ढूंढता हूं मैं अपने आपको
ढूंढता हूँ हर जगह हल पल,
मैं भटकता फिर रहा हूं ना जाने

कभी मैं  सवयम को किसी वस्तु मे ढूंढता हुूं
तो कभी किसी वस्तु से अलग होकर मै देखता हूं
मुझे नहीं पता
की मैं अपने आपको कहा ढूंढ पाउँगा या फिर मै स्वयं को ढूंढ पाऊंगा भी या नहीं लेकिन चलना खोजना मेरा  काम है यही मेरा नियत कर्म है जिसे मुझे पूरा करना है।
मुझे ना रास्ता पता है
ना किसी दिशा का ज्ञान है
बस एक कोशिश है अपने आपको जानने की मैं निकल चला हूँ उस रास्ते पर जहा मैं अपने आपको जान सकु ये मेरे पहला पड़ाव है जिंदगी में अपने आपको खोजने के लिए मैं आतुर हूँ मुझे कुछ पाना नहीं है बस जानना है, स्वयं को स्वयं की अनुभूति होती है कैसे ? बस यही समझ जाना है मुझे
नहीं पता क्यों ?  मुझे मेरे अंदर हजारो लाखो विचार उमड़ रहे है ? जो सिर्फ सवाल है जिनके जवाब नहीं है मेरे पास
वो क्यों इतने सारे विचार एकत्रित हो रहे है इनका जवाब कहां खोज पाऊंगा मै ?
कहां मिलेंगे मुझे उन सवालों के जवाब ?

मेरे मैं और मस्तिस्क में जिनके बारे में मैं भी नहीं जानता मैं क्यों इतने विचारो से मैं भरा जा रहा हूँ कहा से आ रहे है ?क्या कारण है इन्ह विचारो के आने का ? क्यों मुझे ये विचार कही ले जाना चाहते है ?मैं जाना तो कही और चाहता हूँ ये विचार मुझे कही और खीच रहे है जैसे मैं विवश हूँ इन्ह विचारो के साथ लेकिन मुझे अपनी मंजिल हासिल करनी है मैं निकल हूँ सिर्फ अपनी मंजिल को हासिल करने के लिए तलाश भी उसी की बस कुछ और नहीं चाहिए मुझे चाहे मेरे विचार मुझे कितना ही भटक रहे हो कितना भी डरा रहे हो कभी भी ले जाने की कोशिश करे लेकिन मैं वापस ना जाऊंगा मैं अपनी मंजिल को पाकर ही रहूँगा ये मेरा विशवास स्वयं में जिसे मैं पूरा करके ही रहूँगा
मैं कौन हूँ?
किसमे हूँ मैं?
मेरे यहां होने का कारण क्या है ?
क्यों मेरा जन्म हुआ है?
ऐसा कोनसा कार्य है जिसे मैं करने यहाँ आया हूँ ?
कभी लगता है की मुर्गे की बांग में हूँ
तो कभी सूरज की रोशनी में हूँ
मैं हूँ कहाँ ? कौन हूँ मैं ?
यह एक प्रश्न जो मेरे मस्तिस्क को झुझला देता है
की क्यों नहीं जान पा रहा हूँ अपने आपको 
मैं तो एक शरीर हूँ या मन
लेकिन फिर वो भी नहीं हूँ
तब कौन कौन हूँ मैं ?
आवाज़, सुर,ध्वनि
किसमे हूँ में ?
कौन हूँ मैं ?
किर्या में हूँ
या
कार्य में हूँ ?
विचार,
सोच,
हाव-भाव
शब्द,
किर्या,
प्रतिकिर्या में हूँ क्या

मैं मुर्गे की कुकड़ू कु में हूँ या
चिड़िया की ची ची में हूं मै
सूरज की रोशनी में मैं हूँ ?
मैं प्रकाश हूँ या अँधेरा हूँ मैं?
कौनसी दिशा में हूँ
या दसो दिशाओ में मैं हूँ?
समय की तरह बीतता हुआ हूँ मैं
या समय हूँ मैं ?
बचपन,जवानी या बुढ़ापा हूँ मैं?
या इनके पड़ाव में हूँ मैं ?
टूटता हुआ हूँ मैं ?
या जुड़ा हुआ हूँ मैं ?
लड़खड़ाता हुआ हूँ मैं या
संभालता हुआ इंसान हूँ ?
पूर्ण हु मैं या
अपूर्ण हु मैं ?
शांति हूँ मैं या
शोर हूँ मैं ?
खेलता हुआ बचपन हूँ या शांति का अनुभव हूँ मैं ?
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ ?
राह पर चलता हुआ इंसान हूं या
भटक गया हूं राह से कही ? 
खेलता हुआ बच्चा हूं मैं या
रोता हुआ इंसान हूं ?

मैं किस तरह से कर रहा हूं? खुद की तलाश ये भी नही पता मुझको 

लेकिन तलाश कर रहा हूं
वो कौनसा रास्ता है?
जिससे मैं अपने आपको जान सकता हूं ? 
मैं अपने विचारों को देख रहा हूं , समझ रहा हूं जानने की कोशिश कर रहा हूं ,
किस ओर से ये विचार मेरे मन मस्तिष्क में आ रहे है इनका उद्गम स्थान कौनसा है और क्यों इतने विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहे है ?
इन विचारो के कारण और परिणाम क्या है ?
शायद यह विचार ही है जो मुझे मेरी मंजिल तक मुझे पहुंचा सकते है
मुझे यही जानना है इन्हीं विचारों पर मुझे बल देना है
इन्ही विचारो को सही ढंग से समझना है क्योंकि इन्ही विचारो के कारण मेरा जीवन कदम कदम पर बदल रहा है इसलिए मुझे इन्ह विचारो को ध्यांपूर्वक देखना है  ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो में बदल जाते है और विचारो इकठ्ठा कर लेते है मुझे ये जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में उन्में मिल जाता हूं क्यों मिल जाता हूं ये भी मुझे समझना है।ये विचार कैसे बहुत सारे विचारो मैं बदल जाते है और विचारों का समूह रूप बना लेते है मुझे यह जानना है इसी किर्या को देखना है जाने अनजाने में मै उस किर्या मैं मिल जाता हूं लेकिन क्यों मिल जाता हूं यह भी मुझे समझना है।

हमको कुछ खबर नही इसका ना पता मालुम मुझे ना ही मंजिल की खबर फिर भी मैं चलता ही जा रहा हूं किश और मैं निकल चला ?किश सफर किस मंजिल की तलाश में मैं भटक इधर उधर हूं रहा बस अब मुझे बढ़ना है और आगे लेकिन कैसे मेरे ही विचार मुझे दबा रहे मेरे ही विचार मेरे रास्ते की रुकावट है मेरे विचार आगे नहीं बढ़ने देते है और रोक लेते है बार बार सारे विचार मेरे एक विचार को दबा रहे मुझमे डर पैदा पैदा कर रहे है उस डर से आगे निकलू कैसे बस वही सोचता हूं रुकावट से भर जाता जाता ह् मंजिल की औए आगे बढ़ नहीं पाता बार बार फिर वापस पीछे आ जाता हूं 

मुझे खुद की तलाश है में बेखबर हूं अपने ही लिए ना मुझे पता अपने ही होने का ना ही रास्ता कुछ मिल रहा बस युही में चलता जा रहा हूं जिसका न होश है मुझे ना खबर है राह भी बड़ी अजीब सी मिल रही है।
लोग मिल रहे है, करवा यू बढ़ रहा सफर में क्या होना था, और हो क्या रहा है? इसका भी होश नही है मुझको बस में आगे बढ़ युही चल रहा हूं, मंजिल मील या ना मिले लेकिन मैं आगे बढ़ रहा हूं।

इसमे बताया जा रहा है हम अपनी मंजिल को भूलकर अलग अलग राहो पर निकल पड़ते है जिसका कोई मेल नही है मिलान नही है हमारी मंजिल जिसका दूर दूर तक कोई नाता नही है बस चलते रहते है हैम ओर फेर भटकाव जिंदगी का पेड़ होता ही जाता है पता भी होता है कुछ फिर भी कुछ न कुछ भूल कर ही देते है हम मनीला को पाने के लिए जैसे मम्मी मार्किट सामान लेने के लिए भेजती है तो हम किसी से बात करते हुए रुक जाते है और भूल जाते है कि किस लिए आया या फिर कौनसा समान लेने के लिए आया था।

लोग अब मिलते जा रहे है मुझे मेरी इन्ह राहो मैं मुझे कारवां भी यू जुड़ता ही जा रहा रहा है बस में सफर के साथ चलता ही जा रहा हूं मंजिल की तलाश में, मैं ना जाने कहा-कहा मैं भटकता मैं जा रहा हूं, बार बार मेरे मन में आ रहा ये प्रश्न है।

“क्या शब्दों का संचार हूं?, मैं या आसमान से विस्तार हूं, मैं क्रोध हूं, मैं या प्रेम हूं मैं”

क्यों विचार टूटे टूटे से लगते है क्या उसमे हूं मैं क्या इंसान ना समझ है , या आज का इंसान सब कुछ समझता है हम सभी बुद्धिमान समझते है 

कौन है इंसान?  लक्ष्य क्या है ?
फिर ना जाने क्यों चल रहा है ये इंसान 
क्या इस इंसान को पता है वो क्या चाहता है ?

टूटता हूं मैं या जुड़ता हुआ मैं , समय के साथ साथ बैतब हूआ बिता हूं पल में या समय के आने बाप काल या पल में हूं मैं ? लेकिन कौन हूं मैं परिस्तिथयो से भाग रहा इंसान हूं मैं या जूझ रहा परिष्तिथियो में ठहरा हुआ रुक हुआ देखता हुआ एहसास  हूं मैं या कल या देखती हुई आंख महसूस कर रहा है शरीर हूं मैं या मूर्च्छा में पड़ा हूआ शरीर 

बहता हुआ प्रेम हूं मैं या
इंसान का क्रोध ?
विपरित दिशा में मुड रहा इंसान हूं मैं
या ब्रह्मांड का विस्तार हूं मैं ? 
अनुकूल परिस्तिथयो में बह रहा इंसान हूं विप्रिप जाने की कोसिह हूं मैं ? 
लड़ता हुआ इंसान हूं मै या चुप रहता हूं मै?
हर पल हर समय में बढ़ाने वाली परिस्थितियों
से भरा हुआ इंसान हूं मैं ?
उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं
या सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?

उधेड़ बुन में जा रहा इंसान हूं मैं ?
या
सुलझाने की कोशिश हूं मैं ?
घबराहट हूं मैं या साहस हूं मैं ?
हाथी की गर्जना हूं ? हिम्मत हूं मैं ? 

इंसान की पूर्णता हूं मैं या
उसकी अपूर्णता हूं मैं ?

रिक्त स्थान हूं या
भर हुआ आसमान ?
सवाल हूं मैं या जवाब हूं मैं
समस्या हूं या समाधान  हूं मैं ?
जानने की इच्छा या
पहचानने की समझ हूं मैं ?
चलता हुआ मुसाफिर हूं मै? या
रुका हुआ इंसान हूं मै?
परिसिथतियों के साथ बह रहा हु मै
परिष्तिथियो से लड़ता हुआ इंसान ? 

खुशी हूं मैं या दुख हूं मैं ?
अंधेरा हूं मैं या प्रकाश हूं?
हर जगह ढूंढ रहा इंसान हूं मैं
कौन सा उद्गम स्थान हूं मैं ?

इस स्तिथि में हु मैं ?
कोनसी सी परिस्तिथत में हूं
चांद की शीतलता हूं या
सूरज की ज्वलनशीलता हु मैं ? 

बिंदु सा आकर हूं मैं या
ब्रह्मांड जैसा निराकार हूं ? 
शब्द सा मीठा हूं या
नीम से कड़वा हूं मैं

कौन हूं मैं ? 

इस जगह खड़ा इंसान हु मैं ?
हर वक़्त , हर पल घटना में मैं
अपने आपको खोजता इंसान हु मैं ?
चट्टान की तरह कठोर हूं मै ? या
माँ की तरह नरम हु मैं
ये मुझे ना पता चल पा रहा है
कि कौन हूं मैं?
हर पल हर जगह खोजता चल रहा मैं
इस सवाल  का जवाब नही मिल रहा है
हर एक वस्तु हर एक घटना में होने की कोशिश है
और
हर घटना को जानने और समझने की
कोशिश में लगा हुआ मैं

किस ओर निकल चला किस मंजिल को पाने को हूं मै ?
निकल चला बस गतिमान हु मैं
अब रुकना मेरा काम नहीं
मुझे मिले मेरी पहचान वहीं है सही
कही ढूंढता स्वयम को चला
पूछता अपने आपको रहा
बतादो मुझे कौन हूं मैं
जानते है लोग मुझे मेरे नाम से
मेरे काम से लेकिन मेरा अस्तित्व है क्या ?
इस वजह मै यहां वहां बस भटकता ही रहा
ना मंजिल न सफर का मुझे पता चला
बस रहा ढूंढ मै स्वयम को हर पल रहा
कौन हूं मैं?
ये प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा।

यह भी पढे: जानने की शुरुआत, स्वयं को जाने, शब्द हूँ मैं, स्वयं को जानेंगे,