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सिर्फ ये मन

सिर्फ ये मन , बुद्धि भाग रहे है बाकी कुछ नही चाहे तुम बैठ जाओ एक बंद कमरे में फिर भी तुम्हारा तुम्हे दौड़ा कर ले जायेगा बाहर, जरा देखो तो सही खुद को तुम्हारी दौड़ बाहर से तो है ही नही, तुम्हारी दौड़ भीतर की है जिसे तुम नही देख रहे बस भाग रहे हो उन दौड़ते हुए लोगो को देखकर जो बस दौड़ रहे है उन्हे भी नही पता कहा जाना है और अब तुम भी भूल गए हो की तुम्हे कहां जाना था , तुम्हारी मंजिल क्या है, तुम्हारा ठिकाना कहां है बस तुम दौड़ रहे हो।

सिर्फ ये मन, बुद्धि चाहते हैं स्वतंत्रता,
कमरे में बैठे, विचारों का संग्रह किया,
लेकिन तुम्हारी दौड़ विचारों को नहीं रोक सकती,
बाहर जगती वास्तविकता, जिसे तुम्हें देखना है।

तुम्हारी दौड़ बाहर से है, देखो अपने अंतर को,
विचारों का मार्ग चुनो, दुनिया में निकलो,
धैर्य और संवेदनशीलता से यात्रा करो,
तुम्हे अपने सच्चे आप को पहचानना है।

जहां तुम्हारी इच्छाएं और सपने बहुतेरे,
उन्हें पूरा करने का अवसर ढूंढ़ो।
जब तक तुम नहीं निकलोगे दौड़ने के लिए,
तब तक तुम नहीं जान पाओगे अपनी सीमाएं।

बाहर जगती वास्तविकता तुम्हें पुकार रही है,
तुम्हारे सपनों को साकार करने के लिए।
अपनी क्षमताओं को पहचानो और उन्हें प्रगति में लाओ,
तुम्हारी दौड़ से जीवन को सजाओ और सार्थक बनाओ।

मन यू ही भागता

मन यू ही भागता फिर रहा है कही, फिर रहा है कही, इस मन को कैसे संभालु , बस इस मन की व्यथा है , मन यू ही भागता रहा,
खुशियों की तलाश में थका हुआ।
कहीं न रुकता, न ठहरता,
हर समय खोजता रहा।

जीवन की दौड़ में पड़ा हुआ,
खुद को भुलाता जा रहा था।
सफलता की तलाश में जुटा हुआ,
मन खुशियों के सागर में बहता रहा था।

पर वो नहीं जानता था,
कि जो उसे खुश करता था,
वो उसी के अंदर ही मौजूद था।

बस वो एक दिन देख लिया,
खुशियों का सागर अपने अंदर ही था।
जो उसने ढूंढा था बाहर,
वो उसी के अंदर छुपा हुआ था।

अब वहीं बैठकर, खुशियों के साथ,
वहीं वो खुश होता जा रहा है।
मन नहीं भागता अब,
खुशियों का सागर अपने अंदर ही पाता है।