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सामाजिक प्राणी

मन में कई प्रकल्प और संकल्प  उठते रहते है हम एक सामाजिक प्राणी है हम एक परिवार में रहते है हमारी या परिवार की जिम्मदारियाँ और लक्ष्य साधना पड़ता है कभी मन विचलित होता है, हमारा ख़ुद से किया वादा अपने जीवन का लक्ष्य और प्राप्ति को मन में हिसाब लग रहा होता है।

ये मन ही है जो किसी की लालच बेईमानी ईमानदारी समझदारी होने का कारण है, ये सब मन के खेल है और मन को पता है, लाखों में से एक को यह भीतर का ज्ञान जगा होता है कि सब मन के खेल है इनसे खेल के कैसे बाहर आना है , हम जितना विस्तार बाहर देख रहे है वो सब मनों में पहले घटा है फिर बाहर उसकी अभिव्यक्ति हुईं है।

मन जो भी हो क्रियाशील हो सिर्फ़ और सिर्फ़ विचार न हो उनकी अभिव्यक्ति हो उसकी बहुत सी बाँते इस दो शब्द के पिंजरे से बाहर नहीं आ पाती कहने को तो यह दो शब्द का है मन लेकिन बहुत ही गहरा सागर से भी गहरा धरती आकाश  इसमें सब समा जाते है यह कुछ भी कर सकता और न चले तो यह निष्क्रिय भी यही होता है ।

एक अच्छा स्वच्छ कार्यशील मन समाज परिवार और ख़ुद के लिए एक asset है उसकी पूँजी है किसी का धन लूट सकते है उसकी बाहर की पूँजी लूट सकते है लेकिन मन इतनी आसानी से नहीं लूट सकते जिसने बाहर ये सब विस्तारित क्या था ।

मैं यह मानता हूँ अधिकतर या कहे सब, जितने व्यक्ति उतने मन, बचपन से शिक्षा हमारे पाठ्यक्रम में अपनाना चाहिए कि पहले व्यक्ति पहचाने उसका मन क्या चाहता है क्या वो भावुक है विचारशील है चंचल है धीर गंभीर है  धोखेबाज़ है स्थिर है जो भी उसकी स्थिति हो अब वो उसको और स्वच्छ या स्वच्छ करने के उपाय जिससे एक ज़िम्मेवार समाज परिवार और देश निर्माण में सहायक होगा उसे अपनी कमियाँ और priorities मालूम हो तो खुद के लिए सब के लिये शुभ ही शुभ होगा बहुत शुभ होगा ।

मन एक बहुत ही सामान्य शब्द है जो हमारे दिमाग, विचार और भावनाओ को व्यक्त करता है, इसका अंग्रेजी में Mind कहते है मन एक ऐसा भौतिक तत्व नहीं है जो हम देख सकते है।

मन हमारे अंतरमन की एक अभिव्यक्ति है जिसमे हमारे विचार भवनाए और अनुभव होते है, यह हमारी सोच और व्यवहार डालती है, मन की स्थिति आउट स्थिरता काफी महत्वपूर्ण है हमारी ज़िंदगी के लिए , एक स्थिर और शांत मन हमारी खुशी और सुख के लिए जरूरी है, जबकी एक व्यग्रह और और असंतुलित मन हमारे जीवन में तकलीफ और परेशानी का कारण बन सकता है, मनुष्य अपने मन की स्थिति को स्वस्थ और शांत रखने के लिए की तरह के साधन अपनाते है जैसे की ध्यान, योग, भक्ति, और मन की शुद्धि के लिए मेडिटेशन मन क्यू भटकता है,

मन के भटकने के कारण कई बातों पर निर्भर करता है, कभी काभी मन के भटकने के कारण हमारी भीतरी स्थितियो से जुड़ा होता है और कभी कभी हमारे बाहर के मौसम के कारण, माहौल, और लोगों से भी जुड़ा है होता है , क्युकी हम एक सामाजिक प्राणी है जिसकी वजह से हमारा मन समाज के कार्यों में लगा होता है और वही विचार हमारे में लगातार चलते रहते है, कुछ मुख्य कारणों में से कुछ इस प्रकार है।

स्ट्रेस: हमारे जीवन में स्ट्रेस के कारण हमारे मन असंतुलित हो सकता है, जिस तरह से हमारी शारीरिक क्रियाओ में स्ट्रेस के कारण प्रभाव होता है, वैसे ही हमारे मन पर भी स्ट्रेस होता है, आलस के कारण हम अपनी जिम्मेदारियों से भागने के लिए अपने मन को किसी भी तरह से समझाने का प्रयास नहीं करते है।

भूख और नींद की कमी: जब हम भूखे या थके होते है, तो हमारा मन ही असंतुलित हो जाता है, हमारा मन अपने को थका थका और बेजूबान महसूस करने लगता है।

भावनाओ का असंतुलन: हमारे मन को कोई भी बाहरी वस्तु जैसे की एक गण एक तस्वीर या कोई बात हमारी भावनाओ और विचारों पर प्रभाव डाल सकता है, अगर हमारे मन में कोई भावनाओ का असंतुलन है तो हमारा मन भटकने का प्रयास करता है।

आवाज और शोर: आवाज ओर शोर हमारे मन पर भी प्रभाव डाल सकता है, जब हम बाहर से आवाज़े सुनते है, तो हमारे मन का ध्यान उस तरफ जाता है, इन सभी कारणों के साथ हमारे मन का भटकना एक परक्रिया है जिसमे हमारे मन के विचार और भावनाओ का असंतुलन है इसलिए, हमारे मन के विचार को शांत और स्थिर रखने के लिए हमे अपने जीवन में शांति और सुकून को ढूँढना चाहिए।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह जीवन के बारे में लगातार सोचता रहता है, अपने जीवन के भविष्य में कभी सोच घबराता है तो कभी बहुत खुश नजर आता है बस यही सोच है जिसकी वजह से उसके मन में संतुलन ओर असंतुलन की स्थिति बनी रहती है।

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मन का भटकाव

मन का भटकाव: मन के विचारों में इतना भटकाव क्यों है ? मन क्यों इधर उधर इतना भटक रहा है? यह विचार स्थिर क्यू नहीं होते ? क्या तरीका है इनको स्थिर करने का जानते है, धीरे धीरे कैसे अपने विचारों को स्थिर किया जा सकता है, ओर कैसे इन विचारों पर नियंत्रण लाया जा सकता है? यह मन का भटकाव कैसा है ?

मन ना जाने कितने ही विचारो को बुनने लगता है, ओर मन का भटकाव होता है , हमारे अंतिम लक्ष्य से हमको दूर करता है यह मन लगातार नए कार्यों को जोड़ना चाहता है ओर पुराने को छोड़ना

मन के भीतर तो अनेकों  विचारों का समूह है, जो लगातार बढ़ रहा है इन विचारों का कोई अंत नहीं दिखता ये तो बस लगातार ही बढ़ता ही जा रहा है, क्या ये विचार कभी रुकेंगे या फिर यू ही चलते रहेंगे।

इस विचार समूह को छोटा कैसे करे? और इस समूह को एक विचार पर लाकर कैसे रोके अथवा नियंत्रित करे? क्या एक विचार पर लाना सही होगा या फिर यू ही इसको बढ़ते रहने देना चाहिए।

किसी दृश्य को देखने पर उसके बारे में लगातार सोचना और ना जाने क्या क्या बुन  लेना , 
हमारे लक्ष्य की रुकावट का कारण बन जाती है और हम अपने लक्ष्य से दूर हो जाते है।

बाहरी दृश्य आपके अंतर के परिणाम में अनेक परिवर्तन कर रहे है, जिन्हे हम जानकर और अनजाने में अनदेखा कर रहे है और उसका परिणाम भटकाव है।

ये आंखे उन दृश्य को लगातार देख रही है, ओर उन सभी दृश्यों को विचार रूप में परिवर्तित कर रही है , इन विचारों पर कैसे नियान्तर्न लाए इनको कैसे स्थिर करे ?

अपने विचारो को एक जगह स्थिर करे और देखे उनको की वह किस और जाने की कोशिश कर रहे है।

मन भीतर अनेक विचार लगातार दौड़ रहे है कुछ विचार पुनः पुनः आ जाते है , अर्थात बार लौटकर वही विचार हमारे मन में दुबारा आ जाते है और हम उन कुछ ही विचारों के साथ अपना पूरा दिन व्यस्त कर बैठते है जबकि वो विचार किसी भी काम के नहीं होते उन बेकार के विचारों पर हम अपना समय बर्बाद किए जा रहे है इन विचारों को हटाकर हुमए कुछ ऐसे नए विचारों को अपने भीतेर लाना चाहिए जिनसे हम अपने आने वाले कल को और बेहतर बना सके।

कुछ नए है लेकिन जो दुबारा आ रहे है उनका क्या कारण क्या  है ?

अपने विचारो को एक सही दिशा में दौड़ाना और लक्ष्य की और अग्रसर करना ही बेहतर है
बहुत सारे विचारो का निचोड़ क्या है?

सिर्फ वही बात दुबारा – दुबारा सोचना जिसका परिणाम कुछ नही है, जिसका कोई परिणाम नहीं फिर भी  उसके बारे में इतना क्यों सोचना
चित ओर मन को शांत रख  कर ही तो इस जीवन को है जीना

मन क्यों इतना भाग रहा है? अलग-2 दृश्यों को देखकर

ब्रह्माण्ड आपके शब्दों  से इशारा दे रहा है
ब्रह्माण्ड आपके हर एक इशारे को किस  प्रकार से देख रहा है।
और उन पर किस  प्रकार से किस तरह से कार्य कर रहा है।

का हमार द्वारा भाते है? और हमारे पूछे गए सभी का तालमेल जवाब है? सवाल

हम ब्रह्मांड को सन्देश लगातार भेज रहे है, अपने दिमाग के द्वारा हमारे मन के विचार लगातार बाहर की ओर जा रहे है।

विचार और विचारो का जो समुह है वह कर रहा कितना इतना शोरगुल है, किस प्रकार से कार्य कर रहे है यह विचार?

हमारे पास भटकने के कई वास्ते बहुत मुश्किल है। नर्षित सम्भलने क परन्त की कोशिश सम्भलना ज्यादा से ज्यादी रहे अपने विचारों पर पान बदल और ज्यादात आपका बहुत रहा है। से यह किस Calm एक विचार आपके मस्तिष्क की पूरी संरचना वह विचार नकारात्म आप अपने भी हो सकता है जीवन आकर्षित करते है तो ही जिसके देखने को मिलते है और सकरात्मक जीवन सारे भाव नवरात्मक विचारो सम्भवत नकारात्मक परिणाम देखने को मिलते है और यदि आप स्कारात्मक जीवन की और ले जायेंगे जिसकी संभावना आपका जीवन बहुत ही अलग स्तिथि में होगा आपके विचार को नई दिशा मिलेगी जीवन खुशियों से भर उठेगा,

स्कारात्मक जीवन और उसकी सोच आपके जीवन को पूर्णतया एक नया रूप दे देती है

आपके लगातार सोचने की कोशिश करते रहना चाहिए।

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मन

मन क्या है? क्या चाहता है ? मन शरीर का एक अंग नही है यह शरीर से अलग है जो हमारे शरीर को चलायमान रखता है स्वयं नित कार्यों में मग्न रहता है और शरीर को भी वहीं आदेश देना चाहता है।

मन की गति बहुत तेज़ है, शरीर की वह गति नहीं है, शरीर धीमा है, यदि शरीर में मन आवागमन की गति आए तो शरीर इस ब्रह्माण्ड में कहीं विचर सकता है परन्तु यह करने के लिए बहुत तपस्या करनी होगी।

हमेसा हम नए नए कार्यो उलझता है मन सिर्फ नए कार्य ही करने चाहता है, यह स्वभाव है यह की पृकृति है की यह सिर्फ नए की खोज में लगातार लगा रहे यह पुराने को भूल जाता है छोड़ देता है हर दूसरे पल में कुछ ना कुछ नया करने की इच्छा इस मन में रहती है जिसकी वजह से हम कुछ ना कुछ अलग अथवा नए कार्यों की तलाश में रहते है और उन्हीं कार्यो को करना चाहते है खाली बैठ नही पाते जिसकी वजह से  मन तो कभी इस दिमाग को व्यस्त रखता है खाने, घूमने, खेलने, आदि कार्य करने या कुछ भी सोचने आदि के कार्यो में हमेसा उलझाए रखता है।

हम क्यों खाली खाली महसूस कर रहे है या करते है ? क्या हमारे पास कुछ नही है करने को ? या हम कुछ अलग कुछ नया हम करना चाहते है हम क्यों अपने आपको खाली खाली देखते हैै?
 
क्यों हमारा मस्तिष्क खाली खाली सा महसूस कर रहा है हमारा मन हमेसा नए कार्यो में नई चीज़ों की तरफ आकर्षित होता है तथा शरीर पुराने की मांग करता है जो पिछले दिन किया था उसी कार्य को करना चाहता है यदि हम पिछले दिन दिन में 2-4 के बीच सोए थे आज फिर शरीर उसी की मांग करता है परन्तु मन के साथ एसा नहीं है बिल्कुल भी नहीं है, नए कार्यो में लगाना चाहता है ये सिर्फ कुछ स्थानों पर शांति चाहता है जैसे बीते हुए दिन में क्या हुआ था वही दुबारा चाहता है उसी को बार बार दोहराना चाहता है शरीर आलसी है।

मन नित नए कार्यो की अग्रसर होता है अर्थात नया चाहता है इसलिए हमेसा हम एक छोर को छोड़ते है तो दूसरे छोर की और भागते है एक कार्य पूरा नही होता बस दूसरेे कार्य में लग जाना चाहते है एक मिनट भी हमें यह हमारा मन हमे खाली बैठने नही देता बस किसी ना किसी कार्य में लगातार लगाए रखता है।

और इस मन को जिसने जीत लिया वहीं जीत जाता है और जो इससे हार गया वहीं हारा हुआ कहलाता है।

यह भी पढे: मानव का मनोविज्ञान, बुद्धि, एक सकारात्मक बुद्धि, सकारात्मक विचार, नया विचार,

मन क्या है?

मन क्या है ? मन क्या चाहता है ? मन शरीर का एक अंग नही है, यह शरीर से अलग है,
मन हमेसा हम नए नए कार्यो उलझता है मन सिर्फ नए कार्य ही करने चाहता है, यह मन का स्वभाव है, यह मन की पृकृति है की यह सिर्फ नए की खोज में लगातार लगा रहे यह पुराने को भूल जाता है, छोड़ देता है हर दूसरे पल में कुछ ना कुछ नया करने की इच्छा इस मन में रहती है।

जिसकी वजह से हम कुछ ना कुछ कार्यो को करना चाहते है, और खाली बैठ नही पाते मन तो कभी इस दिमाग को व्यस्त रखता है। खाने, घूमने, खेलने, आदि कार्य करने या कुछ भी सोचने आदि के कार्यो में हमेसा उलझाए रखता है।

हम क्यों खाली खाली महसूस कर रहे है या करते है ? क्या हमारे पास कुछ नही है करने को ?
या हम कुछ अलग कुछ नया हम करना चाहते है।

हम क्यों अपने आपको खाली खाली देखते हैै ?

क्यों हमारा मस्तिष्क खाली खाली सा महसूस कर रहा है हमारा मन हमेसा नए कार्यो में नई चीज़ों की तरफ आकर्षित होता है, तथा शरीर पुराने की मांग करता है जो पिछले दिन किया था उसी कार्य को करना चाहता है परंतु मन नए कार्यो में लगाना चाहता है, ये सिर्फ कुछ स्थानों पर शांति चाहता है जैसे बीते हुए दिन में क्या हुआ था ? वही दुबारा चाहता है।

उसी को बार बार दोहराना चाहता है शरीर आलसी है, मन नित नए कार्यो की अग्रसर होता है, अर्थात यह मन नया चाहता है, इसलिए हमेसा हम एक छोर को छोड़ते है, तो दूसरे छोर की और भागते है, एक कार्य पूरा नही होता बस दूसरेे कार्य में लग जाना चाहते है, एक मिनट भी हम मन हमे खाली बैठने नही देता बस किसी ना किसी कार्य में लगातार लगाए रखता है।

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