आज ऐसे ही निकल पड़ा उन अनजान राहों पर जहां शायद मुझे जाना नहीं था, बस आज ऐसे ही घर से निकल गया मेट्रो का लुफ़त लेने क्युकी काफी दिनों से बाहर नहीं जा रहा था।
मैं तो आज सोचा की चल निकलू यू कही,
कुछ वक्त गुजार आऊ खुद के संग,
कही खुद में तन्हा ना रह जाऊ ,
खुद से आज रूबरू तो हो आऊ
बस यू हम बाहर निकल कुछ तस्वीरे खींच लाए ओर द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक घूम आए, सफर कुछ खास लंबा नहीं था फिर भी हम लुफ़त उठा लाए , मेट्रो से बाहर भी नहीं निकले सफर को मेट्रो में ही पूरा कर आए , चड़े थे द्वारका मेट्रो से वापसी में नवादा से घर वापस आए , यदि द्वारका मोड पर ही उतरते तो फाइन लग जाता है।
ब्लू लाइन पर चलने वाली मेट्रो
द्वारका मोड से द्वारका सेक्टर 21 तक 9 स्टेशन कुल है, और यह ब्लू लाइन का रूट है, कुछ मेट्रो ट्रेन द्वारका तक खतम हो जाती है, ओर कुछ सीधी द्वारका सेक्टर 21 तक यदि आप द्वारका वाली मेट्रो में बैठो ओर आपको द्वारका सेक्टर 21 जाना है, या ढाँसा बस स्टैन्ड की और तो आपको दूसरी मेट्रो बदलनी होगी।
यू ही कही भी कभी निकलना आसान होता है क्युकी उसमे बहुत सर दिमाग नहीं लगाना होता बस खुद को बाहर निकल चल लेना ही ठीक है।
नहीं तो यू ही उलझे रहोगे की अब निकलूँगा, अब जाऊंगा घूमने, कल का प्लान बनाता हूँ, कल जाऊंगा अपने दोस्तों के साथ वो प्लान बस टाल मटोल में खत्म हो जाते है ओर वैसे भी एक वक्त आता है जब सभी दोस्त व्यस्त हो जाते है।
क्या तब भी प्लान बनाओगे या फिर यू ही खुद के साथ निकल चलोगे, निकल चलो यार कब तक यू ही बैठ खुद को जिंदगी के कामों में उलझते रहोगे।
क्या आप भी यू ही कही भी कैसे भी निकल पड़ते है? यदि हाँ तो आप भी अपने अनुभव शेयर करे।