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प्रेरणादायक किताब

Who Moved My Cheese? – “Who Moved My Cheese?” एक छोटी लेकिन प्रेरणादायक किताब है, जो बदलाव (change) को अपनाने और उसे सफलतापूर्वक संभालने की सीख देती है। यह कहानी एक काल्पनिक भूलभुलैया (maze) में रहने वाले चार किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जो “Cheese” (सफलता, खुशी, अवसर) की तलाश में हैं। इस किताब की सहायता से आपको जीवन के प्रति प्रेरणा मिलती है, जिससे आप अपने जीवन की दिशा को बदलने का प्रयास करते है।

इसलिए आपको हू मूव्ड़ माय चीस जैसी प्रेरणादायक किताब पढ़ते रहना चाहिए

लेखक: डॉ. स्पेंसर जॉनसन
शैली: सेल्फ-हेल्प, मोटिवेशन
प्रकाशन वर्ष: 1998


कहानी का सारांश

📍 चार मुख्य किरदार:

  1. स्निफ़ (Sniff) – जो पहले ही बदलाव को सूंघ लेता है।
  2. स्करी (Scurry) – जो तुरंत एक्शन लेता है।
  3. हेम (Hem) – जो बदलाव से डरता है और उसे स्वीकार नहीं करता।
  4. हॉ (Haw) – जो बदलाव से डरता है, लेकिन धीरे-धीरे उसे अपनाना सीखता है।

ये सभी एक भूलभुलैया में रहते हैं और “Cheese” की तलाश करते हैं, जो सफलता, नौकरी, रिलेशनशिप, पैसा, खुशी या जीवन के लक्ष्य को दर्शाता है।

📌 कहानी की शुरुआत:

चारों किरदार हर दिन भूलभुलैया में जाकर Cheese Station C से चीज़ (सफलता) प्राप्त करते थे। लेकिन एक दिन वहां का सारा Cheese खत्म हो जाता है

  • Sniff और Scurry तुरंत नई चीज़ की तलाश में निकल जाते हैं और अंततः Cheese Station N में ढेर सारा नया Cheese ढूंढ लेते हैं।
  • Hem और Haw बदलाव से डरते हैं और सोचते हैं कि कोई उनके लिए Cheese वापस लाएगा। वे यहीं रुके रहते हैं और शिकायत करते हैं।

📌 संघर्ष और बदलाव:

  • धीरे-धीरे Haw को समझ आता है कि अगर वह कुछ नहीं करेगा, तो वह भूखा रह जाएगा।
  • वह हिम्मत जुटाकर भूलभुलैया में नई चीज़ की तलाश करता है।
  • रास्ते में उसे कई मुश्किलें आती हैं, लेकिन वह सीखता जाता है कि “बदलाव से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उसे अपनाना चाहिए”।
  • अंततः Haw भी Cheese Station N तक पहुँच जाता है और Sniff और Scurry के साथ खुशी से रहने लगता है।

Hem क्या करता है? – कहानी में यह नहीं बताया गया कि वह बदलाव अपनाता है या नहीं। यह इस बात को दर्शाता है कि कुछ लोग कभी बदलाव को स्वीकार नहीं करते।

who moved my cheese एक प्रेरणादायक किताब
ek prernadayak kitaab

मुख्य सीख (Life Lessons from the Book)

✅ 1. बदलाव हमेशा होता रहेगा:

  • जीवन में बदलाव अपरिहार्य है, इसलिए हमें उसके लिए तैयार रहना चाहिए।

✅ 2. बदलाव को जल्दी स्वीकार करें:

  • जितनी जल्दी हम बदलाव को अपनाते हैं, उतना ही जल्दी हमें नई संभावनाएं मिलती हैं।

✅ 3. डर को छोड़ो और नई चीजें एक्सप्लोर करो:

  • हमें अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आकर नई संभावनाओं की तलाश करनी चाहिए।

✅ 4. बीते हुए पर पछताने से अच्छा है आगे बढ़ना:

  • पुरानी असफलताओं या नुकसान के बारे में सोचते रहने से बेहतर है नए मौके तलाशना

✅ 5. खुद बदलाव का हिस्सा बनो:

  • बदलाव को रोकने की बजाय, खुद उसे लाने की कोशिश करें।

निष्कर्ष:

“Who Moved My Cheese?” हमें सिखाती है कि परिस्थितियां हमेशा बदलती रहेंगी और हमें बदलाव के साथ खुद को ढालना सीखना होगा। अगर हम डर छोड़कर आगे बढ़ने का साहस दिखाते हैं, तो हमें सफलता जरूर मिलेगी😊🚀


क्या आपको यह किताब पढ़नी चाहिए?

अगर आप बदलाव से डरते हैं, नई चीजें अपनाने में झिझकते हैं या किसी असफलता से बाहर निकलना चाहते हैं, तो यह किताब आपके लिए एक बेहतरीन प्रेरणादायक किताब हो सकती है। 📖✨

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सपनों को पूरा करे

धीरे धीरे उन सपनों को पूरा करे जिनको कही छोड़ दिया था, जिनको हम भूल गए थे, जिम्मेदारी के बोझ तले वो सपने जो पीछे रह गए, जिन सपनों को हमने कुचल दिया था, जिन सपनों को अब हम याद भी नहीं करते, जो समय के साथ साथ धुंधले हो गए थे, फिर से उनही सपनों को चिंगारी देते है और सुलगाते है आग भीतर की उन सपनों के लिए जो अधूरे रह गए थे।

उनही सपनों को फिर से पूरा करने की कोशिश हम करते है, उनही सपनों को फिर से हकीकत हम बनाते है।

हममे से बहुत सारे लोगों के ऐसे सपने होते है जिनको हम अपने घर की जिम्मेदारी के कारण पूरा ही नहीं कर पाते, या फिर हमारे सपने अधूरे रह जाते है, जिनके लिए हम कोशिश तो बहुत करते है, लेकिन उन्मे कुछ न कुछ कमी रह जाती है।

वो क्या कमी थी जिसकी वजह से वो सपने, वो ख्वाब हकीकत ही नहीं बन पाते है।

पैसों की कमी: बहुत सारे ऐसे सपने होते है जो पैसों की कमी के कारण हकीकत में नहीं बदल पाते।

अड़चने: बहुत सारी ऐसी अड़चने आती है जिंदगी में जिन्हे हम समझ ही नहीं पाते, जिनकी वजह से भी हमारे सपने अधूरे रह जाते है।

जिम्मेदारी: हमारे कंधों पर घर परिवार की जिम्मेदारी भी होती है, जिनकी वजह से भी हम अपने सपनों से दूर हो जाते है।

हम इसी उलझन में फंस जाते है और हमारे सपने कही पीछे और बहुत दूर छूट जाते है जिनको हम पूरा नहीं कर पाते, बल्कि उन सपनों के बारे में हम भूल भी जाते है जो सपने हमने अपने बहपन और जवानी के दिनों में देखे थे, जो हम पूरे नहीं कर पाए और शायद उन सपनों के लिए हमने फिर पलट कर भी नहीं देखा।

आओ फिर से उन सपनों को पूरा करे जिन्हे हमने पीछे छोड़ दिया है।

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Ham Sochte Hai

ham sochte hai kya hai aur kya ho jata hai, is baat ka hame bhi nahi pta chalta, sab kuch hamare chahne se bhi nahi milta aur bahut kuch bin chahe hi mil jata hai……….

hamare sochne aur karne mei bahut fark hota hai isliye bahut saare kaam adhure reh jaate hai, hamesha dimaag do taraf sochta hai aur alag chizo mei dimaag lgaata hai jiski wajah se bhi ham jo haasil karna chahte hai vo haasil nahi kar paate, kai baar hamara dimaag negative hota hai toh kai baar positive jab ham negative hote hai toh usme hamare emotion hamare control mei nahi hote un emotion ki wajah se bhi hamari bahut saari chize poori nahi ho paati

kabhi kabhi hame kuch , sirf thoda saa hi paane ke liye bahut mehnat karni padti hai aur kabhi kabhi chize bahut aasani se mil jaati hai, jo chize aasani se mil jaati hai unki kadr bhi nahi karte ham aur jo bahut mehnat ke baad milti hai uska ek alag hi maza hota hai, usko sambhal kar rakhne ka mann karta hai, usko khona nahi chahte ham, use ham zindagi bhar sambhal kar rakhne ki koshish karte hai, isiko fark kehte hai jo mehnat se milta hai aur jo bina mehnat kiye hi mil jaata hai.

bahut baar yahi hota hai hamare jivan mei ki ham karna toh bahut kuch chahte hai lekin kar nahi paate, kuch hamare vichar aur karya mei sahi taalmel nahi hota, jiski wajah se bhi ham apne karyo mei safal nahi ho paate,

Aesa kyu hota hai lekin: jab bhi ham kisi chiz ke baare mei sochte hai par vo chiz hame nahi milti aesaa kyo? kya us vastu par hamne sahi se dhyan kendrit nahi kiya? ya hamari iccha hi kamjor hai jiske kaaran ham jo chahte hai vo poora nahi ho paata

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होली कब है

होली कब है, कब है होली , कब – कब-कब, इस बार होली का त्योहार 2025, 14 मार्च को आ रहा है, हर साल की तरह इस साल भी होली का त्योहार बहुत रंगारंग होगा, यह गीले शिकवे भुलाने का दिन है, आपस में भाईचारा बढ़ाने का दिन है।

संग बैठ खुशिया मनाने का दिन है, पुरानी उन बातों को धो देने का दिन है जिनसे दिलों में दूरिया बढ़ गई थी, होली हम सभी के लिए नजदीकिया बढ़ाने का दिन है।

2025 में होली का त्योहार शुक्रवार के दिन आ रहा है, इससे पहले भी कई बार होली शुक्रवार के दिन आई होगी, लेकिन पहले कभी इतनी बहस नहीं हुई थी, यह मुस्लिम समाज के लिए जुम्मे का दिन है, जुम्मे के दिन मुस्लिम समाज ज्यादा संख्या में बाहर निकलता है नवाज अदा करने के लिए जिसकी वजह से सड़कों पर काफी भीड़ होती है, मुस्लिम समाज रंगों से परहेज करता है वह होली का त्योहार नहीं मनाते जिसकी वजह उन्हे कुछ आपत्ति होती है।

लेकिन हिन्दू धर्म में होली का त्योहार बहुत धूम धाम से मनाया जाता है, और रंगों से खेलने की प्रथा तो देवी देवतायो से चलती आ रही है।

यह कोई मुद्दा नहीं था जिसे मुद्दा बनाया जा रहा है, क्युकी पहले भी जुम्मे वाले दिन होली आई होगी लेकिन किसी को कोई आपत्ति नहीं आई फिर इस बार क्यू, क्या ये मीडिया कुछ शब्दों का ट्रेंड में, या सोशल मीडिया मेडिया पर ऐसे शब्दों को जबरदस्ती ट्रेंड में लाना ही है।

यदि आप होली के दिन किसी एरिया में देखेंगे तो मीट की बिक्री अधिक होती है ओर यह कारोबार ज्यादातर मुस्लिम लोग ही करते है, अब क्या वो होली वाले दिन मीट की दुकान बंद करंगे या अपने काम को करंगे, और एस बिल्कुल नहीं है की उनके ऊपर होली का रंग नहीं गिरता, यदि जुम्मे वाले दिन होली नहीं होती तब भी उनके ऊपर रंग ओर पानी दोनों ही गिरते जब वो लोग ऐतराज नहीं करते तो यह भड़काऊ लोग कौन है जो सोशल मीडिया में आकार हाल मचा रहे है।

कौन है ये लोग जो टीवी पर आकार गलत बयान दे रहे है, सभी को तकलीफ नहीं होती बस कुछ ही लोग है जिनको जिनको तकलीफ होती है और उनही लोगों की वजह से दरार पड़ जाती है, और दो धर्मों के बीच मतभेद पैदा होता है।

हम सभी साथ रहना चाहते है लेकिन कुछ असामाजिक तत्व ही है जो आपसी मतभेद पैदा कर रहे है।

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चाय की चुस्की

चाय की चुस्की की तलब सुबह के समय तो ऐसी होती है,
मानो बिना चाय मेरे दिन की शुरुआत ही न हो रही हो।
लगता है चाय पीने के बाद दिमाग तरोताजा होगा,
चाय की महक तुम तक भी पहुच रही है, यही बस बात होगी।

चाय की तलब कुछ इस तरह से लग रही है,
मानो जिंदगी प्यास में तड़प रही है।
चाय की चुस्की, चाय की तलब कुछ इस तरह बढ़ जाती है,
की उसके सामने सारी तलब फीकी पड़ जाती है।

कुछ से कुछ का कहना बिना चाय के भी क्या रहना,
चाय के बिना दिन की शुरुआत अधूरी सी महसूस होना।
चाय की तलब जैसे जीवन की एक आधारभूत आवश्यकता,
जो मन को शांति देकर दिल को बहुत सुकून देती है।

चाय की चुस्की लेने से लगता है दिल खुश हो जाता है,
कलम और कागज़ की जोड़ी बनती है, जब चाय की मिठास के साथ।
चाय की तलब इतनी है कि अक्सर शब्दों की कमी हो जाती है,
की सिर्फ एक चाय की मुलाक़ात से ही सब कुछ कह जाती है।

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क्या करता हूँ मैं

क्या करता हूँ मैं दिन भर ? वैसे तो मैं कुछ नहीं बस अगर सच बताऊ तो सिर्फ लिखने की कोशिश करता हूँ, ओर जो मन में आता है वही अब लिखता हूँ, चाहे मैंने कितना ही सोच रखा हो दिमाग में लेकिन वो एक दम शब्दों को पन्नों पर नहीं उतार पाता है।

इसलिए घंटों बैठ जाता हूँ खुद के साथ अकेले में ताकि मैं कुछ कुछ लिखू जो विचार आ रहे है उन शब्दों में उतार सकु, बस यही एक वो जरिया है , जिसकी वजह से मुझे बहुत शांति मिलती है , लगता है भीतर बहुत कुछ भरा हुआ जिसे बाहर निकाल देना है।

इसलिए मैं अपने लैपटॉप के सामने बैठ जाता हूँ ओर गूगल कीप जिसमे मैं लिखता हूँ, उसको खोल लेता हूँ, जैसे ही कोई विचार मेरे मन में आता है मैं उसे लिख लेता हूँ, यही मैं पहले भी करता था, तब मैं अपनी छोटी सी नोटबुक ओर पेन लेकर बैठ जाता था।

किस तरह से मैं लिखता था उस समय: अपने मस्तिष्क के विचारों पर गौर किया करता था की मेरे दिमाग में चल क्या रहा है? मैं सोच क्या रहा हूँ? असल मैं नहीं, मेरा दिमाग सोचा करता था बस उस दिमाग को मैं देखता था।

मैं आपको बताता हूँ, वो शुरुआत कैसे हुई जब मुझे घंटों बैठना पड़ता था, सिर्फ एक विचार के लिए , सिर्फ कुछ शब्दों के लिए की मैं लिख पाउ उन विचारों को पन्नों पर उतार मैं सकु बस इसलिए तब भी घंटों कॉफी होम में बैठता था। क्युकी एक एक विचार बहुत देर में आता था।

वो विचार जो ब्रह्मांड से आते थे , जो मुझे प्रकृति से जोड़ते थे , एक संबंध स्थापित करते थे , उन शब्दों को मैं सुनता ओर लिखता था , मुझे कुछ नहीं पता बस मैं लिख लेता था, जैसे मैं सवाल पूछ रहा हूँ ओर मेरे जवाब मुझे मिल जाते थे , कुछ बस सवाल ही बनकर भी रह जाते थे की इनका जवाब कुछ समय बाद मिलेगा अभी नहीं।

मैं हर रोज शिवाजी स्टेडियम के पास कॉफी होम है उधर जाता था, जिससे की आराम से बैठकर लिख सकु जो नया विचार आए उसको पकड़ सकु , उस समय मैं अपनी पुस्तक “कौन हूँ मैं” की शुरुआत पर था बस मन में यही विचार था ओर इसी किताब के इर्द गिर्द सभी प्रश्न ओर उत्तर बन रहे थे।

क्या करता हूँ मैं यह बात मैंने आपको बताई अब आप मुझे बताए की आप क्या करते है।

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काहे को खाली खाली

काहे को खाली खाली , खाली , खाली
खाली क्या है ???
समय
खाली कौन है ??

इंसान
खाली किस से है
पैसों से या समय से
यह खाली भी अजीब शब्द है

आजकल खाली वैसे कोई है क्या ?????
एक तरफ लगता है
सब खाली है
एक तरफ लगता है

दूसरी तरफ देखो तो कोई भी ना खाली
खाली कोई नही है,
कभी खाली तो कभी भरा सा लगता है इंसान
कहते है खाली दिमाग होता है।

शैतान का घर
खाली बड़ा या छोटा
मुट्ठी खाली , जेब खाली ,

रहता नही कोई तो मकान खाली ,

खाया नही कुछ तो पेट भी खाली
खाली डब्बा ,खाली बोटल
अगर तुम भी हो खाली तो

हर कोई आकर बके दो गाली
अरे बुड़बक काहे तू है खाली
यह जब होते है खाली
गेम खेले, जुआ खेले ,
ना जाने क्या क्या है ये खेले
बस दिखते है हरदम खाली, काहे को खाली खाली

यह भी पढे: खाली बैठा हूँ, दिमाग खाली, यह खाली हाथ, खाली दिमाग, शब्द खाली है,

विचार क्या है?

आइए जानते है विचारों के बारे में :- विचार कहाँ से आते है? क्यों आते है? इन विचारो के आने का कारण क्या है ? विचार क्या है?
विचारो के उत्पन्न होने का रहस्य क्या है? विचारों का उद्गम स्थान क्या है
हमारे मस्तिस्क के अंदर विचारो की उत्पत्ति हो रही है हमारे आसपास के वातावरण से हमारी शारीरिक क्रिर्याओं के कारण, जो हम पहले कार्य कर चुके है। उन् सभी के कारण हमारे मन, मस्तिष्क में प्रतिक्षण विचार पैदा हो रहे है। जिनके कारण हमारी सोच पर प्रभाव पड़ता है।

छोटे विचार ओर बड़े विचार
विचार कहने में और देखने में बहुत छोटा सा है यह आता भी बहुत छोटे छोटे कार्यो से है जैसे हमने आंखो के द्वारा  किसी को देखा और पल भर में ही विचार आ गया, सिर्फ एक ही विचार नहीं आता वह विचार अपनेसाथ असंख्य और विचारो को साथ लाता है।

महिन विचार जो एक दम से आपके मस्तिष्क में नहीं आता वो पहले आपकी नाभि में उत्पन्न होता है उसके उपरांत वो पूरे शरीर में कम्पन करता है इस क्रिया के पूरे होने पर ही वो मस्तिष्क तक पहुंचता है तथा वह सूक्ष्म विचार अब आपके मस्तिष्क में अटके या आप उसे सुदृढ कर वाणी के द्वारा बाहर निकाले यह आप पर निर्भर करता है। यह पूरा क्रम है आपके द्वारा उच्चारित शब्दो का
परंतु हमारा मस्तिस्क इस पर विचार, विमर्श करने लग जाता है।
हम विचारो को कैसे देख और समझ सकते है?

विचारों को देखा नहीं जा सकता
हम विचारो को आँखों के द्वारा नहीं देख सकते परंतु हमे यह समझ में आते है। इन विचारो को हम visualise करते है अपनी imagination से, मस्तिस्क में छोटे से छोटा विचार भी बहुत प्रभावशाली होता है। यह एक विचार नहीं है बल्कि बहुत सारे विचार है जो लगातार कार्यरत है यह विचार एक के साथ मिलकर नए नए विचारों को जन्म दे रहे है जिन्हे हमें वृतिया कहते है
जिसके कारण ही हमारे जीवन की असंख्य घटनाओ का निर्माण हो रहा है और हम एक नई स्तिथि ओर परिस्थिति को जन्म दे रहे है।

विचार एक घटना है
इन सभी घटनाओ को हम कैसे देख सकते है? कैसे ये सभी घटनाये घट रही है?
इन घटनाओ के पीछे कौनसा विचार किर्याशील था या है ? हम सभी ये सोचते है की मेने तो किसी के साथ कोई बुरा नहीं किया परंतु मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों मेरे साथ ऐसी घटनाये घट रही है जिसको मेने कभी सोचा भी नहीं था या मेने ऐसा कब किया था ?
ये क्यों हो गया ?

हमे उन घटनाओ का समबन्ध पता भी नहीं होता की क्यों और क्या कारण है?
इन होने वाली घटनाओं का फेर भी वे घटनाये हमारे जीवन में हमारे साथ होती है
आप खाना खाते है, आप खेलते है
आप पुरे दिन में बहुत सारी घटनाओ के साथ जुड़े होते हो जैसे घर,दुकान पूजा कार्य , आना- जाना आदि कार्यो से पूरा दिन व्यस्त रखते है, जिस कारण  से असंख्य विचार तथा कार्य हमारे साथ जुड़ जाते है और हमे पता भी नहीं चलता यह सारे कार्य और विचार हमारे लिए एक घटना स्तिथि ओर परिस्थिति का निर्माण कर रहे है।

परंतु वह भी एक घटना का निर्माण कर रही है कुछ विचार हमारे आस पास के वातावरण के जो आपके जीवन की घटनाओ से जुड़ जाते है।

जरा देखिये, समझिये यह विचार कैसे अनेको घटनाओ का निर्माण कर रही है। जिनको हमे समझना में असमर्थ है असहाय हो जाते है, अपने जीवन के प्रति क्योंकि हमे समझ ही नहीं आता है क्यों ये घटनाये हो रही है क्या कारण है इन घटनाओ का इस कारण कई लोग कहते है, आप निमित है, इन सभी घटनाओ के होने मात्र में जिसे होना था जो होनी है सिर्फ आपको जो कार्य दिया है। उसको आपको भोगना है, आप भोगने के लिए हो आपके हाथ में कुछ नहीं आप कुछ नहीं करते हो सबकुछ पहले से तय हो चूका है, मान लेते है।

हमे यह भी मालुम है कि जिस प्रकार की घटनाये हमारे जीवन में घट रही है वो हमारे द्वारा ही निर्धारित है। जो कुछ घट रहा है वो पहले से ही तय है और जो आगे होने वाला है वो भी हम तय कर चुके है लेकिन क्या ??

हम यही सोच कर बैठ जाये कि हम कुछ भी नहीं कर सकते तो हम अपने विचारो को नीचे की श्रेणी में ले जायेंगे, अर्थात अधोगति में और हमारे विचार तथा उसी प्रकार के कार्य होंगे हमे अपने विचारों को बेहतर ओर अच्छा बनाना है उन पर ध्यान देना है।

यदि हम ऐसा कर रहे है तो हमे अपने विचारो तथा अपने कार्यो को धयांपूर्वक देखना और समझना चाहिए यह किस दिशा में है तथा क्या आदेश और निर्देश की स्तिथि है तभी हम इन विचारो को  एक नयी दिशा दे सकते है।

जिससे हमारा जितना भी भविष्य हमारे पिछले विचारो तथा कार्यो से तय हुआ है उन्हें हम पार कर जाये उसके बाद निर्माण तो हमे करना है न या फेर हम ऐसा ही जीवन बिताना चाहते है। कैसे हम बीता रहे है।हमे अपने विचारो को उच्च बनाना है।

यह हम समझते है कि किस प्रकार हम अपने जीवन निर्माण में सहायक तत्व है। ऐसा हम कोशिश करते है। क्यों और किस प्रकार से यह घटना पैदा हो गयी है। जिसे हम उसी क्षण समझ जाये और उस घटना को होने से वही रोक सकते है तथापि होने ही न दे उस घटना को आगे बढ़ने दे
बहुत सारे उदहारण के साथ हम इन विचारो का विशलेषण करते है,  आप किसी कार्य को करते है,

तो उसमे कितने ही विचार आपकी सहायता करते है और उन विचारो का प्रभाव तथा वो विचार हमारे जीवन को किस प्रकार गति प्रदान कर रहे है, जिनके कारण घटनाओ का समावेश बनता ही जा रहा है, आपने देखा होगा की आप किसी जगह से गुजर रहे है,  उस जगह बाजार है अलग-अलग सामान, साज-सज्जा, कपडे, खाने-पीने,सुन्दर-सुन्दर लोग, अतिमनभावुक दृश्य है तो क्या होगा उससे ? क्या आप उस जगह तथा उन लोगों से प्रभावित होंगे या अप्रभावित ही निकल जायेंगे?
कोई विचार आएगा या नहीं ? आपके शरीर की हाव भाव की स्तिथी में परिवर्तन होगा या नहीं ?
आपके मन मस्तिस्क में कोई इच्छा जागृत होगी या नहीं? आप उस जगह के बारे में कुछ सोचेगे या नहीं?

यह कुछ और प्रश्न उत्पन्न हुए इस जगह यही विचार है यह सूक्ष्म ओर बड़ा विचार बनता है।

तो लगातार जुड़े रहे मेरे साथ मैं विचार क्या है ओर इन विचारों के क्या कार्य है, ओर यह विचार किस प्रकार से कार्य करते है। नीचे मैं कुछ लिंक ओर दे रहा है जिसमे आप विचार व शब्दों के बारे में और जानकारी प्राप्त कर सकते है।

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