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बस और मेट्रो

एक समय था जब नीली वाली प्राइवेट बस चला करती थी उसमे बहुत भीड़ होती थी और लोग लटक लटक जाते थे, ज्यादातर लोग गेट पर ही खड़े हो जाते थे आज जब मेट्रो चलने लगी है तब भी लोगों में वही आदत है, लोग गेट पर ही खड़े रहते है वहाँ से हटते ही नहीं है पता नहीं लोगों को क्या लगता है, की उन्हे वही खड़ा रहना है जैसे एकदम से कूदेंगे जैसे ही मेट्रो रुकेगी, चाहे मेट्रो में भीड़ हो या नहीं लेकिन उन लोगों को तो गेट पर ही खड़ा होना है, जैसे सारा आनंद उनको गेट पर ही मिलेगा, किसी को भीतर आने ओर बाहर जाने का रास्ता आसानी से नहीं मिल पाता है, ये लोग ऐसे अढ़ कर खड़े हो जाते है जैसे की अब जगह नहीं बची है किसी को प्रवेश नहीं होगा।

नीली बस और मेट्रो
courtesy of image alamy नीली बस

आजकल तो बस और मेट्रो के तो गेट बंद हो जाते है इसमे लटक भी नहीं सकते फिर भी यह लोग गेट पर खड़े होते है, पहले जो नीली वाली बसे चलती थी उन्मे ज़्यादार लोग बस की सीढ़ियों पर ही खड़े रहते थे, तब गेट नहीं बंद होते तो ज्यादातर लोग गेट पर ही लटक जाते थे चाहे भीड़ हो या नहीं फिर भी बसों में लटकने की आदत बनी हुई थी।

तो मुझे इन गेट पर खड़े होने वाले लोगों को देखकर वही दृश्य याद आता है जो आजसे 15 साल पहले  होता था, लोग उस समय एक बस के इंतजार में आधे घंटे तक खड़े रहते थे लेकिन आज इतनी जल्दी होती है, एक मेट्रो का इंतजार वो 2 मिनट नहीं कर पाते पता नहीं कितनी जल्दी है, अब लोगों को की उनसे इंतजार के 2 मिनट नहीं बीतते दिल्ली मेट्रो के कुछ स्टेशन जैसे राजीव चौक, कश्मीरी गेट स्टेशन पर तो लोग ऐसे धक्का मुक्की करते है जैसे दूसरी कोई मेट्रो ही नहीं आएगी।

मेट्रो का सफर बहुत आरामदायक हो चुका है पहले से बेहतर है सब कुछ बेहतर हो रहा है फिर भी इंसान परेशान सा लगता है, इतना आरामदायक जीवन हो चला है फिर भी कही फंस हुआ लग रहा है ये इंसान।

दिल्ली मेट्रो और बस
दिल्ली मेट्रो

आज से 10 साल पहले जब रात 9 बजे बस सर्विस नहीं थी या कम थी तब घंटे भर तक एक बस का इंतजार करना पड़ता था ओर वो भी बिल्कुल भरी हुई आती थी, लेकिन आज के समय में लगातार बस भी है ओर मेट्रो भी हर 2 मिनट बाद मेट्रो आ जाती है, रात 11 बजे तक तो मेट्रो चलती है कुछ स्टेशन के लिए 12 बजे तक की भी सर्विस है फिर भी लोग बेचैन हो जाते है।

समय के साथ सबकुछ बेहतर हो रहा है लेकिन क्या इंसान बेहतर हो पा रहा है इंसान उसी तरह से, उसी सोच के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा है उसमे कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।

घूमने के फायदे

घूमने के फायदे क्या है ? घूमने का अर्थ है एक जगह से दूसरी जगह जाना यह साधारण भाषा में हम इसे स्थानांतरण भी कह सकते हैं। कभी-कभी तो बीमार व्यक्तियों के चिकित्सा के लिए भी चिकित्सक उनको स्थान परिवर्तन की सलाह देते हैं।

  एक जगह पर रहते रहते हम उस स्थान के आदी हो जाते हैं। स्थान बदलने पर जलवायु बदलती है, हवा बदलती है, पानी बदलता है।
 
  यह तो हुई मौसम की बात इससे अलावा हमें अलग-अलग जगह जाने से अलग-अलग जगह के रीति रिवाज तौर-तरीकों को जानने का मौका मिलता है।
 
ज्ञान केवल हमें किताबों से ही नहीं मिलता बल्कि हम जितने ज्यादा लोगों में बैठते हैं जितने ज्यादा लोगों से मिलते हैं उतना ही हमें ज्ञान मिलता है।
जितनी ज्यादा लोगों से हमारा मेलजोल होता है इतना ज्यादा ही हम दुनिया के तौर-तरीकों को आसानी से सीख पाते हैं।      
                    
    यह उसी प्रकार सत्य है जिस प्रकार के एक भरे पूरे परिवार में एक बच्चा बहुत जल्दी बोलना सीख जाता है वह सभी क्रियाकलापों को बहुत जल्दी सीख जाता है। मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं जो कि हिंदुस्तान में कई राज्यों में घूमे हैं और बिना किसी विशिष्ट ज्ञान के उन्हें भारत की कई अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान भी है और साथ में वहां की परंपराओं को आसानी से समझ पाते है।

घूमने के फायदे
घूमने के फायदे

घूमने के फायदे 

दुनिया में अलग-अलग जगह जाने पर आपको अलग-अलग जगह के व्यंजनों का पता चलता है। अलग-अलग जगह के रीति-रिवाजों का ज्ञान होता है अलग-अलग जगह के लोगों की सोच का पता चलता है। अगर आप अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल एक ही जगह रहते हैं तो आपको कभी भी बाहर के समाज का ज्ञान नहीं हो सकता आप केवल कुएं के मेंढक की तरह बने रहेंगे।
   
आज के समय में बच्चों का यही तो हाल है कि वह घर से बाहर निकलना नहीं चाहते।
सभी का मन यही करता है कि सबकुछ घर बैठे-बैठे ही मिल जाए और तो और खेल खेलने के लिए भी कोई बच्चा बाहर नहीं जाना चाहता।

मोबाइल में या वीडियो गेम पर सारे खेल उपलब्ध है इससे उनका शारीरिक विकास भी रुक जाता है।     
 
हमने कई ऐसे महापुरुषों के बारे में पढ़ा है जिन्होंने पूरी दुनिया में भ्रमण करके पूरी दुनिया का ज्ञानार्जन किया। उसमें सबसे ऊपर तो नाम गुरु नानक देव जी का ही है जिन्होंने पैदल ही पूरी दुनिया की यात्रा की। जितना ज्यादा आप एक जगह से दूसरी जगह पर जाओगे आपको उतने ही ज्यादा समाज के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।   
 
एक पुरानी कहावत भी है कि
             
कोस कोस पर बदले पानी और 5 कोस पर बदले वाणी”।   
                              
 अर्थात हमारे देश में इतनी विविधता है कि हर थोड़ी ही दूर चलने पर पानी में विविधता जाती है और और थोड़ी दूर चलने पर लोगों की वाणी में विविधता जाती है अर्थात लोगों की बोली में अंतर आ जाता है।

Written by Pritam Mundotiya