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सुकून की जिंदगी

मैं कभी काम के पीछे इतना नहीं भागा बस जो काम करना अच्छा लगता था वही किया ओर जितना करना चाहता था उतना ही करता था, समय के बाद काम को कभी महत्व नहीं दिया, घर आने के बाद फिर बस काम नहीं करता था, ओर ना ही काम की बाते क्युकी मझे हर समय काम की बाते करना पसंद नहीं था, मैं जो भी काम करता था घर से निकलने के बाद ही करता था, घर पर नहीं, दुकान का बचा हुआ काम भी घर नहीं लाता था, बस सुकून की जिंदगी हो ओर आराम से जीउ बहुत भागा दौड़ी भरी जिंदगी का मुझे कोई लाभ नहीं दिखता, हर समय काम के पीछे लगे रहने से भी क्या लाभ है।  

जितना भी कमा लो लेकिन एक दिन तो मौत की आगोश में सो ही जाना है, जब सब कुछ छूट ही जाएगा फिर क्यू इतना सब कमाना, क्यू इतनी मेहनत करनी उन कार्यों के लिए, क्यू इतना सब कुछ जोड़ना यही सब सोचकर मैं रुक जाता हूँ ओर आराम से बैठ जाता हूँ, यदि मुझे कुछ करना होगा तो मैं ध्यान, जप करूंगा स्वयं का जीवन शांति से व्यतीत करूंगा, इस सांसारिक जीवन की भागा दौड़ में नहीं व्यतीत करूंगा, कुछ बनकर भी क्या होगा? यदि कोई बड़ी पहचान नहीं होगी तो क्या जीवन अच्छा नहीं चलेगा, कितनी ही बड़ी पदवी पर बैठ जाओ लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं होता जब तक आपके मन में शांति- सुकून नहीं है, यदि सुकून की जिंदगी नहीं फिर क्या अर्थ इस जीवन का

बहुत सारे लोग ऐसा भी कहते है की यह सोच उनकी होती है जो काम नहीं करना चाहते लेकिन उस सोच का क्या जो ये कहते है, की इंसान की औकात उनके जूतों से पता चलती है, यह बात भी किसी जूते बेचने वाले या बनाने वाले ने ही कही होगी, यह शब्द आज हर दिल को ठेस करते है

यदि कोई व्यक्ति देखता है की उसके जूते बेकार है, अब उसे जूते बदलने चाहिए, इसलिए आजकल जूतों पर लोग अधिक मूल्य खर्च करते है, ताकि उसे ऐसा न लगे की वह किसी से कम है, उसके हृदय पर चोट लगी उसे आहात कर गई यह बात की जूतों से उसकी पहचान होती है, इसलिए अब ज्यादातर लोग जूतों पर खर्च करने लगे है, लेकिन वही दूसरी तरफ लोगों ने किताबों पर पैसा खर्चना कम कर दिया की बार ऐसा लगता है की उन्होंने किताबों पर पैसा खर्चना अब बिल्कुल बंद ही कर दिया है।

किताब यदि 300 रुपये की है तो उसको बोलते है कितने की दोगे कम कार्लो, इसकी इतनी कीमत नहीं है, लेकिन यही बात जूतों के लिए नहीं बोलते लोग, जूते की कीमत चाहे 4000 रुपये हो वो लेकर चल देते है, क्युकी यह उनको जूतों में अपनी औकात दिखती है, लेकिन किताबों में बुद्धि, ज्ञान, स्वभाव में परिवर्तन, सफलता, जीने का तरीका, जिम्मेदारी, अनुभव, आदते, बहुत सारी बाते जो उसे सिर्फ कुछ रुपयों में सीखने को मिलती है।

लेकिन आज का व्यक्ति इन सब बातों को भूलकर जूतों की ओर आकर्षित हो जाता है, ओर किताबों को भूल जाता है, अब शोरूम में जूते दिखते है ओर पटरी पर किताबे दिखती है, जो लोगों को कोड़ियों के दाम में चाहिए। इससे यही स्पष्ट होता है की आप अपने अनुसार उन शब्दों को ढूंढ लेते हो जो आपके हित में हो। जिन शब्दों से आपको कोई लाभ होता है उस प्रकार के शब्दों को ढूँढना ही आपका कार्य है, आप अपने चातुर्य को बढ़ाना चाहते हो, आप किसी से हारना नहीं चाहते यह तुम्हारा अहंकार है, ओर कुछ नहीं।

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महिला हाट

अब महिला हाट में संडे बुक बाजार लगने लगा है जिसका कोई भी समर्थन नहीं कर रहा था लेकिन कुछ लोगों की साजिश ओर कुछ लोगों की मजबूरई जो यह सब करना पड़ रहा है, किताब का छोटा शहर वीरान करने की एक साजिश चल रही है जो पूरी तरह से कामयाब होती दिख रही है। लगता है MCD अपने गलत बयान और पुलिस की सहायता से दरियागंज संडे बुक बाजार के लोगो को वहाँ से हटा देगी। पिछले 3 दिन से लगातार में अखबारों मैं पढ़ रहा हूं कि “संडे बुक बाजार के लोगो को मिला नया ठिकाना” अब मेरा प्रश्न यह है कि कितने लोग राज़ी हुए जरा हमे ये तो बताना
क्या आप जबरदस्ती अपना कुशासन चलाना चाहते हो ?
ये हमे बताना

हम तो वहाँ नही बैठना चाहते फिर काहे तुम चाहते हो जबरदस्ती हमे वहाँ बैठाना ? जरा हमको यह आप समझाना15rs लगते थे अब उसके 200rs आप ले लोगे हमसे
2 घंटे किताबों को लगाने में लगेंगे और 2 घंटे किताबों हटाने में लगेंगे।
एक समय पर 276 लोग जब हर हफ्ते वहाँ जाएंगे तो चक्का जाम हो जाएगा घण्टो का समय तो हमारा यू ही बर्बाद हो जाएगा। क्या तब ट्रैफिक जाम नजर नही आएगा ?क्या रिक्सा , ठेला पूरा महिला हाट में घूम पायेगा ?

कुछ किताबे लगाने से क्या वो अच्छा काम कर पायेगा ?जितने का माल बिकेगा उतना तो मेरा खर्चा हो जाएगा फिर घर पर क्या ठेंगा लाएगा।संडे बुक बाजार का नाम महिला हाट के नाम के नीचे दब जाएगा।मेरा तो अस्तित्व ही खो जाएगाहमारी मदद के लिए क्या कोई आगे आएगा ?
क्या आप हमारा साथ दोगे ?इस संडे को हमारे साथ आकर

आप सभी से एक बिनती है की इस “संडे बुक बाजार” दिल्ली गेट मेट्रो गेट नंबर 3 पर आप सभी हमारे मिलकर जुड़े और हमारा साथ दे संडे बुक बाजार को बचाने के लिए, क्युकी हम महिला हाट का बहिष्कार करते है।