Date Archives June 2019

मैं मनमर्जी हूँ

हाँ और ना एक इशारा है जो मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं मनमर्जी हूँ, हाँ और ना, एक इशारा है,
मन की बातों का पहरेदारा है।
कभी मंज़ूरी, कभी अस्वीकार,
इसे समझने में है कठिन बहुत बार।

हाँ कहने से हमेशा डर लगता है,
ना कहने से दिल को तसल्ली नहीं मिलता है।
कभी खो देते हैं अच्छे मौके,
कभी अच्छे मौके खुद ही छोड़ देते हैं।

इशारा ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी,
जब शब्दों में नहीं बयां हो पाती कहानी।
पर दिल के बातों को समझना तो है मुश्किल,
हर इशारे पर विश्वास करना उचित नहीं होता है।

मनमर्जी होना, कुछ लोगों को अच्छा लगता है,
खुद को खोलना, सबको अपनी बात कहने में खुशी मिलती है।
पर हाँ और ना की दुनिया भी जरूरी है,
समझने वाले के लिए यह एक अद्वितीय कहानी है।

हाँ और ना एक इशारा है जो मुझे बिल्कुल पसंद नही इसलिए मैं मनमर्जी हूँ, हाँ और ना, एक इशारा है,

यह शब्द

इन शब्दों का अंदाज अलग है
क्योंकि
शब्दों में भेद भी बहुत अलग अलग है
पता नहीं
यह शब्द कभी समझ नहीं आते
मनो
यह शब्द कही है भाग जाते
पकड़
कैसे पाउ मैं इन शब्दों को
न जाने
कैसे अदृश्य हो जाते है ये तो?

शब्दों मे हरकत

आज शब्दों में कुछ हरकत होने को है।

लगता है जिंदगी बस अब उस पार होने को है।

यहाँ था मैं सिर्फ तुम में होने के लिए जब तू,तुम न रहा

तो जिंदगी ने जाना की अब मैं सिर्फ, मैं होने को है।

मुझमे सिर्फ मैं रह जाये बाकी सब खो जाये ,

कुछ अब शेष नही मेरा किसी से द्रेष नही

इसलिए बाहरी यात्रा का समापन हो रहा

अब तो भीतर ही रुकना है बहार नहीं आना

किसी को पाने की कोई इच्छा नहीं,

किसी को छोड़ना नहीं बस अंदर ही बैठ जाना है,

बाहर नहीं खड़े होना

भीतर विराम है,बाहर सावधान होना है

भीतर मौन होना है, बाहर शब्दों में खोना है।

भीतर व्यस्त होना है, बाहर अस्त व्यस्त होना है,

बस यही शब्दों की हरकत है जो हो रही है मेरे भीतर उन शब्दों को कैसे में विराम दु।

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