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हर व्यक्ति विशेष

हर व्यक्ति विशेष
अलग उसका ज्ञान और परवेश ।
मानव सेवा ही पूजा….
सब हौवे योग्य हो मंसूबा ।

सच्चा बल ही हर सकता पीड़ा….
मन हो बलवान उठा सके यह बीड़ा ।
मानव सेवा एक पूजा…..
इससे बड़ा नहीं कोई कार्य दूजा ।

मानव जानता मानव की व्यथा….
अच्छा करना उसकी शुभ संपदा।
मानव सेवा ही पूजा….
करके अपनी प्यास बुझा ।

हर व्यक्ति विशेष होता है,
अलग-अलग उसका ज्ञान और परवेश।
कोई बनता है नेता, कोई करता है कला,
कोई विज्ञान में होता है निपुण, कोई लेखन में महारथी होता है।

मानव सेवा है सबसे महत्वपूर्ण,
इसमें है समस्त धर्मों का सम्मान।
हर व्यक्ति की यही पूजा होनी चाहिए,
जीवन का अर्थ इसी में छिपा होनी चाहिए।

जो व्यक्ति मानव सेवा में लग जाता है,
उसे दुनिया सलाम करती है।
वह बनता है राष्ट्र का गौरव,
उज्ज्वल भविष्य का निर्माता होता है।

हर कोई हौवे योग्य मंसूबा,
अपने कर्मों से जगाए आदर्श।
सेवा करें दुखियों की, दें शिक्षा ज्ञान की,
जहां भी जाएं, वहां रचें नये इतिहास।

हर व्यक्ति का यही धर्म होना चाहिए,
सबको सम्मान और प्रेम देना चाहिए।
एक-दूसरे के साथ विनम्रता से रहना चाहिए,
तभी बनेगा यह संसार अद्वितीय।

समय बीत रहा है

समय बीत रहा है, दिन बस यूं ही बीत रहे है, जैसे मैं कुछ नही कर रहा इस वक्त बस नींद पूरी कर रहा हूं और बिना कुछ किए ही समय की हानि मैं कर रहा हूं, समय को व्यर्थ किए जा रहा हूँ

यह समय बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन फिर भी व्यर्थ के कार्यों में व्यतीत हो रहा है, इस पर नियंत्रण में नही कर पा रहा हूं, बस समय यू ही भागा जा रहा है, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं आ रहा है।
अपने समय को खोना बहुत ही निराशा से भरा हुआ एहसास होता है और यह समय फिर लौटकर नहीं आता यही सोचकर मैं कई बार घबरा जाता हूं। उस लौटे हुए समय को वापस भी नहीं ला पाता हूँ। खुद को बहुत सारी गलतिया करता हुआ ही नजर आता हूँ।

मैने लगभग 11 महीने का समय खराब कर दिया है जब मैं बहुत कुछ लिखना चाहता था लेकिन शायद मैं उतना लिख ही नही पाया, बहुत कुछ सोचना मैं चाहता था लेकिन उतना मैं सोच भी नही पाया बस इधर उधर के कार्यों में ही मैंने अपने समय को व्यर्थ में गवाया।

मैं बार बार किसी काम एक नई शुरुआत करता हूं और फिर से जीरो पर खड़ा हो जाता हूं, दूबारा उतनी मेहनत और उतना और उससे भी अधिक दिमाग लगाता हूं, नया काम करने के लिए नई चीज को सीखने के लिए फिर से नए कार्यों मे सफल होने के लिए,

लेकिन कुछ समय बाद ही मेरा मन उस कार्य से हट जाता है, उस कार्य के साथ मुझे बोरियत महसूस होती है सिर्फ पैसा कमाना ही जरूरी नहीं है, लेकिन उस कार्य में उतना आनंद भी आना चाहिए तभी उस कार्य के साथ लगातार रहा जाता है। उस कार्य को पूरे मन से किया जाता है।

समय बस यू ही बीत रहा है।

यह भी पढे: समय का सदुपयोग, समय का अंधेरा, मेरी दिनचर्या, एक निर्धारित समय,

मुस्कुराहट छुआ छूत

जरा देखिए दिखे कोई चेहरा जो नहीं रहा हो मुस्कुरा….
दीजिए उसको मुस्कुराहट उसका भी चेहरा खिले ये ख़ुशी का इशारा ।
मुस्कुराहट छुआ छूत की बीमारी…..
इच्छा ये लगे सबको, है इतनी प्यारी ।

जरा मुस्कराइए….
ख़ुशी के महामार्ग पे चढ़ जाइए ।
जीवन के प्रति कृतघ्न भाव अपनाइए….
जीवन भी पूरी क्षमता से ख़ुद को लुटाइए।

जगमगाते रंगों के बीच एक चेहरा है,
जो नहीं रहा हो मुस्कुरा।
उसकी आँखों में छुपी दर्द की बूंदें,
जीवन की गहराईयों में घिरा।

पर उसे चाहिए था एक मुस्कान का इशारा,
जिससे उसका भी चेहरा खिले।
वो खुशी का संकेत जो भर दे उसके दिल को,
और हर गम को दूर कर दे मिटाए।

मुस्कुराहट छुआ छूत की बीमारी है,
जो देती है दिल को आराम।
वो बतलाती है कि जीने का असली मजा,
खुशियों को बांटने में है समाया।

जब चेहरे पर लगी मुस्कान की छांव हो,
दिल की धड़कनें भी जगमगाए।
हर दर्द को दूर कर दे वो प्यारी मुस्कान,
और खुशियों से सजाए।

तो जरा देखिए, दिखेगा वह चेहरा है,
जो नहीं रहा हो मुस्कुरा।
उसे दीजिए वो मुस्कुराहट का तोहफा,
जिससे उसका जीवन बन जाए सुहाना।

खाली बैठा हूँ

खाली बैठा हूँ कुछ नया सोचने की आतुरता के साथ …..
समय बने ऐसा बने मौक़ा मुलाक़ात हो आपके साथ ।
जीवन सरिता रिस रिस के रही है बह….
समय रहा बीत हो मुलाक़ात , मन को मिले ख़ुश होने की वजह ।
मन कुछ नया करने को आतुर….
उतरे मित्रता की बांसुरी का स्वर ।

खाली बैठा हूँ, नयी सोच की उड़ान में,
काल-ज्ञान की लहरों से भरी मेरी मनमान में।
अद्भुत विचारों के सागर में डूबा हुआ,
आपकी मौजूदगी से मेरा मन खुशहाल हुआ।

समय का बदलता रंग, दिल को छू गया है,
आपसे मुलाकात का बहुत इंतज़ार किया है।
जीवन की सरिता में लहरों का संगम,
समय के गहराई में खो गया हूँ अब अपनमंज़िल का नगम।

कविता के पन्नों पर बसे हैं ये शब्द,
आपके साथ बिताने की ख्वाहिश है लबों पर ज़ुबां से बढ़।
समय की धारा में पानी की तरह बहूं,
आपके साथ गुज़रने की आस जगाऊं।

खाली बैठे हैं यहाँ, मन भरा हुआ सोचों से,
समय के तूफ़ानों में हूँ खुद को ढूंढ़ने के लिए तैयार।
चलिए, आइए कविता के इस सफ़र में निकलें,
समय की धारा में खो जाएँ, नयी दुनिया में खुद को बिखेरें।

हल्का फुल्का

हल्का -फुल्का सा है जीवन बस सारा बोझ तो इच्छाओ का है …..
बात अपने आप में हल्की दुलकी नहीं तो बहुत भारी , बात सारी मन को समझ आने का है ।

हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
बात अपने आप में हल्की-दुलकी नहीं, तो बहुत भारी,
बात सारी मन को समझ आने का है।

हर दिन की दौड़ में खो रहे हैं हम,
कहाँ हैं हमारे अपने, खुद को भूल रहे हैं हम।
इच्छाओं की जंगली धूम में खो जाते हैं हम,
परमार्थ के बंधनों में बंध रहे हैं हम।

छिपा है सच्चाई का राज,
जीने की ख्वाहिशों से बनती है इसकी आवाज।
पर जब तक मन को न समझें, न सही राह चुनें,
हर क्षण बस नापसंद बिताएँ, खो दें अपनी खुशियाँ।

हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
मन के अन्दर की गहराइयों को समझने का है राज।
अपने अंदर के संघर्षों को न छिपाएँ,
उनसे मैत्री करके, समझ के आगे बढ़ जाएँ।

हर स्वास्थ्य समस्या का हल नहीं दवाओं में है,
हर परेशानी का समाधान नहीं सोच-विचार में है।
हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
मन को छूने के लिए, अपनी भावनाओं को पहचानो।

हमेशा खुश रहें, आत्माओं को सम्मान दें,
आपातकाल में भी आपने को न भूलें।
हल्का-फुल्का सा है जीवन, बस सारा बोझ तो इच्छाओं का है,
मन को समझें, खुद को पहचानें, और ख्वाबों की उड़ान भरें।

अहंकार का कद

अहंकार का कद चार फीट ही ठीक….
ज़्यादा बड़ा अहंकार बना देता डीठ ।
चार फीट अहंकार है आत्मसम्मान ….
वही ऊर्जा अधिक करती लहुलुहान।

आत्मसम्मान ज़रूरी होता वो मर्यादित….
उसकी सीमा में  रहना स्वय का हित ।
यह सफल स्वस्थ जीवन का पथ…..
ओ सारथी पथ पर सही से चलेगा रथ

अहंकार का कद चार फीट ही ठीक,
ज़्यादा बड़ा अहंकार बना देता डीठ।
चार फीट अहंकार है आत्मसम्मान,
वही ऊर्जा अधिक करती लहुलुहान।

यह जीवन का नियम, यह सत्य है,
अहंकार के बिना व्यक्ति अधूरा रहे।
पर ध्यान रहे, बड़ा अहंकार न करो,
वरना खो दोगे सबकुछ, हो जाओगे हरजाये।

चार फीट अहंकार से भरे रहो,
आत्मसम्मान को सदा बनाए रखो।
पर अहंकार में खुद को न खो दो,
अपने मूल्यों को न समझो छोड़ दो।

जीवन की ऊर्जा बढ़ाने का यह राज,
सम्मान का रखो आदर्श संग ताज।
घमंड और अभिमान से दूर रहो,
सच्चे आत्मसम्मान में बस जीने रहो।

अहंकार का क़द चार फीट ही ठीक,
ज़्यादा बड़ा अहंकार बना देता डीठ।
चार फीट अहंकार है आत्मसम्मान,
वही ऊर्जा अधिक करती लहुलुहान।



दुनिया के लिए

दुनिया के लिए मैं एक व्यक्ति , लेकिन वही  मैं परिवार के लिए पूरी दुनिया ….
ये सब नज़रिए का फ़र्क़ , जब फ़र्क़ ख़त्म होते  वहाँ नज़रिया बड़ा ये उसका नफ़ा ।

मानो तो सब है एक परिवार , सारी पृथ्वी के सारे प्राणी एक परिवार ….
वसुधैव कुटुंबकम इस बात का उचित आधार और पूर्ण विचार ।

ये धरती, ये आकाश, ये सृष्टि अपार,
मैं एक व्यक्ति, उसका छोटा सा अंश हार।
परिवार के लिए हूँ मैं पूरी दुनिया,
उनके लिए हर कठिनाईयों का नया सूर्य।

बच्चों के खेलने के लिए पार्क बनाता हूँ,
उनके सपनों को मैं हकीकत में लाता हूँ।
पत्नी के लिए चाँद लाता हूँ रोज़ाना,
उसके आँचल से मैं सबको रोशनी देता हूँ।

माता-पिता के लिए मैं एक आश्रय हूँ,
उनके सपनों को साकार करता हूँ।
उनकी ऊंचाइयों को मैं छूने का अधिकार,
मैं उनके लिए बढ़ने का प्रतिकार।

दोस्तों के लिए मैं हंसता हूँ और रोता हूँ,
उनकी परेशानियों को दूर भगाता हूँ।
खुशियों के मोमेंट्स में मैं साथ देता हूँ,
उनकी ज़िन्दगी को मैं सजाता हूँ।

सभी के लिए मैं एक दोस्त, एक साथी हूँ,
उनकी मुसीबतों में मैं उम्मीद का बाँसी हूँ।
जब फर्क़ ख़त्म होते, नज़रिए समाने के,
मैं उसका नफ़ा हूँ, ये ज़िंदगी बदलाने के।

धरती के मालिक, परिवार की आभारी,
मैं व्यक्ति और उसका अद्वितीय पारी।
जीवन का सफर, संघर्षों से भरा,
सबके लिए मैं आगे बढ़ता चला, दुनिया के लिए


अपने पे रखे नज़र

अपने पे रखे नज़र हम दिखते कैसे है…
यही मुद्दे की बात हम दिखते कैसे है।
असली लेबोलबाब हम दिखते कैसे है….
इसी बात सब राज हम दिखते कैसे है ।

जो दिखता है वही बिकता है ….
वो व्यापारी की नज़र रखता है ।
असल में तो हम अपनी नज़र से कैसे है…
वही सच में आप है , अपनी नज़र दिखते कैसे है ।

अपने पे नज़र रखे हम दिखते कैसे है,
यही मुद्दे की बात हम दिखते कैसे है।
असली लेबोलबाब हम दिखते कैसे है,
इसी बात सब राज हम दिखते कैसे है।

हम आहुति हैं साहस की, न रुकने वाले युद्धों की,
जो अथाह विश्वास रखते, कठिनाइयों को चुनौती देते।
हम वीरता के अम्बार में चमक, अद्वितीय स्वाभिमान की,
पर दिखने का तरीका, यह जग न समझे, हम जानते हैं बस खुदाई की।

सबके होंठों पर हंसी हो, लेकिन सच्चाई हमारी हो,
चाहे चुप रहें हम, जैसे ज्ञाता नहीं हमारी हो।
हम कवच हैं सत्य का, जो न टूटे कभी विपरीत में,
बदलने से तोड़ देंगे नहीं, इस जग के फ़रमान को हम पर मिले विपरीत में।

अपने कर्मों में छुपी है, हमारी असलियत गहराई में,
हम पर नज़र रखने वालों को है यह सच्चाई में।
हम अद्वितीय व्यक्तित्व के साकार हैं, अज्ञात जग में छिपे हुए,
बस खुद का साथी हैं हम, बाकी सब बने रुखे हुए।

जगत के राजों की जड़ में है विद्या की वृक्षारोहण,
हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ते जाते हैं अग्रणी।
हार नहीं मानते हम, जीत के लिए बने हैं हम आदी,
जिसे देखते हैं सब राज, वही हमारी पहचान है प्रमुख हदी।

अपने पे रखे नज़र हम दिखते हैं जैसे कैसे,
यही मुद्दे की बात हम जानते हैं कैसे।
असली लेबबोलबाब हम दिखते हैं कैसे,
इसी बात सब राज हम दिखते हैं कैसे।

यह हैं हमारी प्रखरता, जो छिपी हैं हमारे अंदर,
जग में लहराते हैं हम, अपने वीरता के प्रमाण पर।
हमारे हृदय में धड़कन, जो लहराती हैं गर्व के साथ,
महसूस करो यह जग, हमारी उच्चता की अवाज़।

हम सृजनशीलता के प्रतीक, जो जगत में चमकते हैं,
अपने विचारों के आचरण, जो जग को प्रेरित करते हैं।
हम उज्ज्वल आध्यात्मिकता, जो जगत में छाती चौड़ी करते हैं,
मिटाओ अंधकार को, बन जाओ ज्ञान के बिरादरों के सरदार।

हम अस्थायी नहीं, दीर्घकालिक प्रतिष्ठित हैं,
जहां जाते हैं हम, उज्ज्वलता छोड़ जाते हैं।
हम सहायता के प्रतीक, जो जगत को बचाते हैं,
बढ़ते हैं हम सबके साथ, जीवन के रास्ते साथ चलाते हैं।

हम अपने कर्मों के धर्म में जीने का जन्म लेते हैं,
जन जन को जागृत करते हैं, सत्य के पथ पर चलते हैं।
जग को दिखाते हैं हम, अपनी सत्यता के बादशाही,
हम अपने पे रखे नज़र हैं, जग को दिखते हैं कैसे हमारी महिमा।

घेरने को बीमारी तैयार

घेरने को बीमारी तैयार ….
होके घोड़े पे सवार ।
बीमारी दबी भीतर…..
कमजोर पड़ते आ जाएगी ऊपर ।
घेरने को बीमारी तैयार….
सज के घोड़े पे सवार ।

बीमारी और स्वास्थ्य में लकीर लकीर का फ़र्क़….
जिसकी लकीर हो जाती बड़ी चलता उसका तर्क ।
घेरने को बीमारी तैयार ….
तर्क के घोड़े पे सवार।

घेरने को बीमारी तैयार,
होके घोड़े पे सवार।
बीमारी दबी भीतर,
कमजोर पड़ते आ जाएगी ऊपर।

बस्तियों की चौकीदारी,
आँखों में है चिंता सदैव।
जगह छोटी, जनसंख्या बढ़ी,
स्वास्थ्य की बातें हो गईं परेशानी आविर्भाव।

प्रदूषण ने घेरा दूरियाँ,
धूल के ढेरों ने छिन ली धड़कनें।
जहां स्वच्छता की बातें थी सुनी,
वहां कचरे की बढ़ गई बरसातें।

धुएं में उड़ रहा खुदरा जीवन,
दानों की जगह पाएंगे अनुशासन।
बीमारी की लहरें बढ़ रहीं गहराई,
स्वास्थ्य की चिंता बढ़ी तनाव की वजह।

उच्च रक्तचाप, मधुमेह और दिल की बीमारियाँ,
बढ़ती उम्र के साथ हो रहीं जमावटें।
घबराहट हर घर में घुस रही है,
स्वास्थ्य का मामला हुआ नाराजगी का वजह।

व्यस्तताओं ने छीन ली सुख की नींव,
प्राकृतिक आहार की बढ़ी है कमी।
जीवन में खुद को समझाने की जरूरत है,
स्वस्थ रहेगा तो होगी कामयाबी।

योग और ध्यान का अभ्यास करें,
रोज़ाना व्यायाम को महत्व दें।
प्रकृति से संबंध बनाए रखें,
स्वास्थ्य की रक्षा में आगे बढ़ें।

घेरने को बीमारी से बचें,
उत्साह और संयम से रहें सजग।
स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ें,
खुशहाली की राह पर आगे बढ़ें।

यह संदेश देता है संकेत,
स्वास्थ्य का रखें हमेशा ध्यान।
बीमारियों को दूर रखें दूर,
जीवन को बनाएँ स्वस्थ और पुरूर।

अच्छे आहार का सेवन करें,
फलों और सब्जियों से भरें थाली।
विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर,
स्वस्थ शरीर को पाएँ मजबूत और स्वस्थ बाली।

व्यायाम को न भूलें, नियमित बनाएँ,
शारीरिक कठिनाइयों को दूर भगाएँ।
स्वस्थ मनोवृत्ति का ध्यान रखें,
खुशहाल और सकारात्मक जीवन बिताएँ।

धूल, धुएं, प्रदूषण से बचें,
पर्यावरण की रक्षा करें सबके साथ।
स्वच्छता को महत्व दें हम सभी,
स्वस्थ भारत की ओर करें प्रगति का साथ।

इस प्रकार से स्वस्थ रहें हम सब,
बीमारियों से दूर रखें हम खुद को।
स्वस्थ देश का सपना साकार करें,
आपदाओं के खिलाफ मजबूत खड़े हों।

स्वस्थ्य जीवन का ध्यान रखें,
खुशहाली की ओर बढ़ते जाएँ।
घेरने को बीमारी ना तैयार करें,
आपदाओं के साथ निरंतर लड़ते जाएँ।

यह भी पढे: मुस्कुराहट छुआ छूत, जब कोई आपसे पूछे, हरकत में बरकत,

वो नहीं है बराबर

अंगुलियाँ बताती की वो नहीं है बराबर
हर उँगली का अपना जादू और हुनर ।
देती उँगलियाँ परस्पर एक दूसरे का साथ…
हथेली संग मिलकर कहलाती वो हाथ ।

अंगुलियाँ से हाथ की सुंदरता….
प्यार करे सहलाये मारे बचाये ,थप्पड़ या मुक्का सब इनकी क्षमता ।
इसी प्रकार जीवन में कोई छोटा कोई बड़ा ….
परस्पर सहयोग से कार्य करे नहीं होगा झगड़ा ।

अंगुलियाँ बताती की वो नहीं है बराबर
हर उंगली का अपना जादू और हुनर।
देती उंगलियाँ परस्पर एक दूसरे का साथ,
हथेली संग मिलकर कहलाती वो हाथ।

बड़ी उंगली सभी को राह दिखा जाती,
मध्यम उंगली संगठन को बनाती।
अनामिका सृजनशीलता में निपुण,
कनिष्ठिका योग्यता से भरपूर है यह दुनिया किसी की नहीं।

अंगुलियों की संगठनशीलता,
अद्वितीयता का प्रतीक बनती है।
एक दूसरे को समर्थन देती,
संयोग का प्रभाव जगाती है।

हर उंगली में छिपी है अनगिनत शक्ति,
प्रतिभा, कौशल और संवेदनशीलता की लिप्त।
जब वे मिल जाती हैं, एकजुट होकर,
दुनिया को छूने का अवसर मिलता है सबको।

अंगुलियों की मिलनसार ताकत,
साकार और असाकार के बीच जो बांध लेती।
वे बनाती हैं हाथ को समृद्ध,
सफलता की ओर अग्रिम बढ़ाने की कल्पना खुद ही कर लेती।

अंगुलियाँ हैं बराबर नहीं होती,
पर अपने महत्व में सभी को झोंकती।
हर उंगली अपना जादू प्रगटाती,
हुनर की चमक दुनिया को दिखाती।